नए खिलौने के लिए पिता से ज़िद करना, माँ के हाथों से खाना खाना, भाई-बहन के साथ खेलना-मस्ती करना..आज न जाने कितने ही बुजुर्गों को आसरा दे चुके राजेश थिरुवल्ला की बचपन की चाहत सिर्फ़ इतनी थी कि उन्हें सामान्य बच्चों की तरह ही एक प्यार करने वाला परिवार मिले। लेकिन उनका शुरुआती जीवन इससे बिल्कुल अलग, कई कड़वी यादों से भरा हुआ था।
वह महज़ 10 साल के थे, जब उनके पिता उन्हें और उनकी माँ को छोड़कर चले गए थे। इसके बाद, उनकी माँ अपने घर आ गईं और राजेश का बाक़ी का बचपन लोगों की दया पर बीता।
अडूर, केरल के रहने वाले राजेश की ज़िंदगी का पहला पड़ाव बिल्कुल आसान नहीं था। पिता के चले जाने के कुछ समय बाद, माँ ने भी दूसरी शादी कर ली। माता-पिता के प्यार और सहारे के बिना, उन्हें बस ग़रीबी ही मिली। कई रातें तो वह भूखे पेट सो जाते थे। इसके अलावा, जिस रिश्तेदार के घर वह रहते थे, अक्सर राजेश को उनकी मार भी सहनी पड़ती थी।
47 वर्षीय राजेश द बेटर इंडिया से बात करते हुए कहते हैं, “मैं 10 साल का था, तब से मेरे अंकल नशे की हालत में मुझे मारा करते थे। आज भी उन दिनों को याद करता हूँ, तो डर जाता हूँ।” ग़रीबी की वजह से राजेश ने छोटी सी उम्र में ही काम करना शुरू कर दिया था।
बचपन से ही सेवा से जुड़े थे राजेश
आज कई बुजुर्गों को आसरा देने वाले राजेश बताते हैं, “जब मैं छठी क्लास में पढ़ता था, तब मैंने मात्र 5 रुपये लगाकर एक दुकान शुरू की थी। शहर के एक स्पोर्ट्स ग्राउंड के बाहर मैं नींबू पानी बेचा करता था। यह दुकान मैंने पांच साल तक चलाई। कई लोग मेरे काम से खुश होकर मुझे डबल पैसे देकर भी जाया करते थे।”
इसी दौरान वह स्पोर्ट्स ग्राउंड के पास एक संस्था से जुड़े, जो ग़रीब छात्रों को खाना, कपड़े और पढ़ने का सामान देकर उनकी मदद करती थी। राजेश के कई दोस्त इस टीम का हिस्सा थे। हालांकि, उस दौरान राजेश को खुद ही इस मदद की ज़रूरत थी। लेकिन उन्होंने सोचा कि वह तो दुकान चलाकर अपना ख़र्च निकाल लेते हैं, लेकिन कई लोगों के पास कमाई का कोई भी ज़रिया नहीं होता।
फिर उन्होंने उस संस्था से जुड़कर गरीबों की मदद करना शुरू किया और ज़रूरतमंद बच्चों को मदद की चीज़ें पहुंचाने लगे। दसवीं के बाद ही वह समाज सेवा के काम से जुड़ गए थे, लेकिन तब उन्होंने यह नहीं सोचा था कि एक दिन वह खुद ऐसे काम की शुरुआत और संचालन करेंगे।
समय के साथ राजेश के जीवन की कठिनाइयां और बढ़ गईं। उनकी माँ ने दूसरी शादी कर ली और राजेश को अपने रिश्तेदार के घर पर ही छोड़ दिया। इस घटना ने 15 वर्षीय उस बच्चे को घर से भागने पर मजबूर कर दिया। माँ के भी छोड़कर जाने के बाद, राजेश ज़िंदगी से बेहद निराश हो गए थे, वह रिश्तेदारों के घर से तो भाग निकले लेकिन जाते कहाँ?
कोसने गए, तो पिता ने फिर से अपनाया
राजेश बताते हैं, “मैं इस सब का ज़िम्मेदार अपने पिता को मानता था और गुस्से में मैं अपने पिता को कोसने उनके घर गया। मुझे अंदाज़ा भी नहीं था कि मेरे पिता और उनका परिवार मुझे अपना लेंगे। पिता के साथ कुछ समय रहा, लेकिन सालों से उनसे दूर रहने के बाद मैं उनके परिवार में अनजान और अकेला महसूस करता था। इसके बाद मैं वहां से भी निकल गया और काम की तलाश में घूमने लगा।”
इस तरह वह लगभग 14 सालों तक देश के अलग-अलग हिस्सों में घूमकर छोटे-मोटे काम करते रहे। वह इस दौरान कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, गोवा, महाराष्ट्र के अलग-अलग शहरों में रहे और मज़दूरी से लेकर इलेक्ट्रीशियन जैसे कई तरह के काम किए। लेकिन बाद में उन्होंने वापस केरल आकर बसने का फ़ैसला किया।
अपने होम टाउन वापस आकर राजेश अपने पुराने दोस्तों से मिले। उनके ये दोस्त अब भी सेवा के काम से जुड़े हुए थे। राजेश ने भी अडूर आते ही लोगों की सेवा करना फिर से शुरू कर दिया। इसके साथ वह एक टेलीफोन बूथ पर भी काम करने लगे।
कैसे हुई बुजुर्गों को आसरा दे रहे महात्मा जनसेवा केंद्रम की शुरुआत
राजेश बताते हैं, “हर कोई हमारे काम के बारे में जानता था, इसलिए अक्सर लोग शहर में बेघर और बेसहारा लोगों की जानकारी हमें देते रहते थे। कई बार मैंने सोचा कि काश इन लोगों के लिए एक आसरा बना पाता। इसी सोच के साथ, मैंने अपनी पत्नी प्रीशिल्डा के साथ मिलकर साल 2013 में पथानामथिट्टा (अडूर) में ‘महात्मा जनसेवा केंद्रम’ शुरू किया।
इस आश्रम की शुरुआत एक ट्रस्ट के रूप में हुई जिसके सदस्य थे सीवी चंद्रन, जी अनिल कुमार, पीके सुरेश, अजीत कुमार और बेंजामिन ए। इस काम में मलयाली अभिनेत्री सीमा जी नायर ने भी हमें सपोर्ट किया था।”
राजेश ने इस केंद्र की शुरुआत सिर्फ़ बुज़ुर्गों को आसरा देने के लिए की थी, लेकिन आज यहां कई बच्चे भी रह रहे हैं। इसके अलावा, अब इनके तीन और केंद्र भी बन गए हैं। एक, ‘महात्मा जनसेवा केंद्रम’ जो भीख मांगनेवाले लोगों का घर है। सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए ‘महात्मा जीवा करुणा ग्रामम’ और बुज़ुर्गों के लिए एक स्वरोज़गार प्रशिक्षण केंद्र।
इस तरह कुल मिलाकर आज यहां 300 बुज़ुर्ग, 10 बच्चे और क़रीब 60 स्टाफ के लोग रहते हैं, जो सफ़ाई, सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़े हैं।
किराए के मकान से की शुरुआत, आज बुजुर्गों को आसरा देने के लिए बनाए 10 घर
राजेश ने बताया कि शुरुआत में उन्होंने किराये पर एक मकान लेकर इन लोगों को रखना शुरू किया था। लेकिन समय के साथ लोगों की मदद मिलने लगी और उन्होंने खुद की पांच एकड़ ज़मीन ख़रीदकर वहां 10 घर बनाए। उनके एक घर में सात लोग आराम से रह सकते हैं और इन सबका खाना एक बड़ी रसोई में तैयार किया जाता है।
शहर से कई लोग समय-समय पर अपना जन्मदिन, कोई ख़ास अवसर या त्योहार मनाने केंद्र में आते रहते हैं। इस तरह से उन्हें आर्थिक और राशन की मदद भी मिल जाती है।
इसके अलावा, यहां रहने वाले लोग और कर्मचारी, परिसर के अंदर ही खेती और मछली पालन भी करते हैं, जिससे होने वाली कमाई का इस्तेमाल केंद्र को चलाने के लिए किया जाता है। वहीं, इस केंद्र में एक छोटा सा मोमबत्ती बनाने का कारखाना भी है। यहाँ भी बुज़ुर्ग लोग मोमबत्ती बनाने का काम करते हैं, ताकि अपनी ज़रूरतों के लिए उनका केंद्र किसी पर निर्भर न रहे।
यह केंद्र न सिर्फ़ लोगों को आसरा और खाना देने का काम कर रहा है, बल्कि कइयों की ज़िंदगी फिर से संवार कर उन्हें जीने की नई आशा भी दे रहा है।
निराशा से आशा की ओर एक कदम
62 साल के सोमराज अपने 31 वर्षीय बेटे और पत्नी के साथ यहां रह रहे हैं। सोमराज बताते हैं, “मैं साल 2019 में यहां आया था। मेरा बेटा दिव्यांग है और कई सर्जरीज़ के बाद भी वह एक सामान्य इंसान की तरह नहीं जी सकता। मैं एक थिएटर कलाकार था, जबकि मेरी पत्नी मेरे बेटे का ख़्याल रखती थी। इस उम्र में बेटे की ज़िम्मेदारी उठाना हमारे लिए काफ़ी मुश्किल हो गया था। हमारी दशा के बारे में लोकल चैनलों पर ख़बरें आईं थीं, जिसके बाद हमें महात्मा सेवा केंद्रम में लाया गया। यहां हम तीनों का बहुत ख़्याल रखा जाता है। इससे ज़्यादा हमें और क्या चाहिए?”
सोमराज ने बताया कि यह कोई वृद्धाश्रम या अनाथालय नहीं, बल्कि एक बड़ा घर है, जहां वे सभी परिवार की तरह रहते हैं।पिछले साल राजेश ने बुजुर्गों को आसरा देने के लिए शुरू किए गए महात्मा जनसेवा केंद्रम में रह रहे दो बुज़ुर्गों की शादी भी कराई थी। इन दोनों को उनके बच्चों ने छोड़ दिया था। राजेश इस साल भी 13 नवंबर को केरल के कुछ माननीय मंत्रियों की उपस्थिति में दो और घरवालों की शादी कराने वाले हैं।
एक समय पर परिवार के प्यार के लिए तरसते राजेश के पास आज एक भरा-पुरा परिवार है, जिनका भरपूर प्यार उन्हें मिल रहा है। इसके अलावा, उनकी पत्नी और चार बच्चे भी हैं, जो उनके इस काम में पूरी मदद करते हैं। राजेश की कहानी हमें यह प्रेरणा देती है कि जीवन में निराशा को आशा में बदलना हमारे खुद के हाथ में होता है।
आप महात्मा सेवा केन्द्रम तक अपनी मदद पहुंचाने के लिए उन्हें 86062 07770 पर संपर्क कर सकते हैं।
संपादन- भावना श्रीवास्तव
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