फ़िल्में मनोरंजन का ज़रिया है और इसलिए हम सभी उन फिल्मों के दीवाने हैं, जो हमें भरपूर मनोरंजन देती है! पर कुछ फ़िल्में ऐसी होती है, जो मनोरंजन के साथ-साथ हमारे समाज और वास्तविक जीवन का आईना भी दिखाती है। ये फ़िल्में हमारे चरित्र पर, हमारी सोच पर और हमारे जीवन पर एक गहरी छाप छोड़ जाती है।
ऐसी ही 39 फ़िल्मों का नायब तोहफ़ा हमारे लिए महान फ़िल्मकार सत्यजीत रे (Satyajit Ray) छोड़ गए है।
पर कहा जाता है कि विश्वभर में प्रशंसित होने के बावजूद, उन्होंने कभी अपनी किसी भी फ़िल्म को ऑस्कर की दौड़ में शामिल होने के लिए नहीं भेजा।
उनकी फ़िल्म ‘पाथेर पांचाली’ (1955) और अपू त्रयी को दुनिया भर के फ़िल्म-फेस्टिवल्स में सैकड़ों अवॉर्ड मिले, फिर भी उन्होंने ऑस्कर के लिए कोई कोशिश नहीं की।
पर विश्व के दस बेहतरीन फ़िल्मकारों में से एक माने जाने वाले सत्यजीत रे (Satyajit Ray) के पास ऑस्कर अवॉर्ड खुद चल कर कोलकाता आया।
30 मार्च 1992 को विश्व सिनेमा में अभूतपूर्व योगदान के लिए सत्यजीत रे को मानद ऑस्कर अवॉर्ड से अलंकृत किया गया था!
बंगाली फ़िल्मों में अपने अद्भुत कार्य के लिए जाने, जाने वाले सत्यजीत रे ने अपने जीवन काल में कुल 39 फिल्मों का निर्देशन किया! जिनमें फ़ीचर फ़िल्में, वृत्त चित्र और लघु फ़िल्में शामिल हैं। इनकी पहली फ़िल्म पथेर पांचाली (পথের পাঁচালী – पथ का गीत) को कान फ़िल्मोत्सव में मिले “सर्वोत्तम मानवीय प्रलेख” पुरस्कार को मिलाकर कुल ग्यारह अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले।
यह फ़िल्म अपराजितो (অপরাজিত) और अपु’र संसार (অপুর সংসার – अपु का संसार) के साथ इनकी प्रसिद्ध अपु त्रयी में शामिल है। सत्यजित दा फ़िल्म निर्माण से सम्बन्धित कई काम ख़ुद ही करते थे — पटकथा लिखना, अभिनेता ढूंढना, पार्श्व संगीत लिखना, चलचित्रण, कला निर्देशन, संपादन और प्रचार सामग्री की रचना करना। फ़िल्में बनाने के अतिरिक्त वे कहानीकार, प्रकाशक, चित्रकार और फ़िल्म आलोचक भी थे।
उन्हें अपनी लीक से हटकर फिल्मों के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें अकादमी मानद पुरस्कार और भारत रत्न शामिल हैं।
जब ऑस्कर पुरस्कार की घोषणा हुई उस वक़्त सत्यीजत दा बीमार थे। इसलिए उनके घर आकर ऑस्कर अवॉर्ड के पदाधिकारियों ने उनका सम्मान किया। इस आयोजन की फ़िल्म बनाई गई और उसे ऑस्कर सेरेमनी में प्रदर्शित कर, पूरी दुनिया को दिखाया गया।
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