एक बड़ा-सा पुल और उसके नीचे पढ़ाई करते हुए कुछ बच्चे, जिन्हें एक कुर्सी पर बैठे मास्टर साहब पूरी लगन से पढ़ा रहे हैं। बच्चे भी बस्ता लेकर दरी पर बैठे पढ़ाई में तल्लीन हैं। यह पढ़ कर आपको लगा होगा कि हमारे देश के दूर-दराज वाले इलाकों में अभी भी शिक्षा की सुविधा की कितनी कमी है। अभी भी बच्चे इस तरह खुले में पुल के नीचे पढ़ रहे हैं, पढ़ाई के लिए एक छत तक उन्हें नसीब नहीं। आपको लगा होगा कि यह किसी गाँव का दृश्य है। लेकिन नहीं, यह दृश्य है दिल्ली सचिवालय से कुछ ही दूरी पर स्थित यमुना बैंक के मेट्रो के पुल का। यहाँ गरीब बच्चों को मुफ़्त में शिक्षा दी जाती है।
यहाँ पढ़ाई करने वाले गरीब मजदूरों के बच्चे हैं, जिनका एडमिशन सरकारी स्कूलों में भी हो पाना मुश्किल होता है, क्योंकि इनके माँ-बाप के पास न तो जरूरी कागजात होते हैं और न ही इतनी हिम्मत कि वे सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों का एडमिशन कराने जा पाएं।
पुल के नीचे इस स्कूल को चलाने वाले शख्स को कभी खुद भी पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी। उन्हें अक्सर इस बात का दुख होता कि वे इंजीनियर नहीं बन पाए। उन्हें तब और भी दुख होता था, जब वे देखते कि झुग्गी बस्तियों के बच्चे यूँ ही दिन भर इधर-उधर भटकते रहते हैं और कभी पढ़ाई नहीं करते। यह देख कर इनके मन में आया कि क्यों न इन बच्चों को पढ़ाया जाए। इसके बाद इन्होंने एक कुर्सी डाल कर दो बच्चों को पेड़ के नीचे पढ़ाना शुरू कर दिया।
आजीविका के लिए ग्रॉसरी की एक दुकान चलाने वाले राजेश कुमार शर्मा नाम के इस शख्स का लोगों ने शुरू-शुरू में काफ़ी मजाक भी उड़ाया, लेकिन उनका मकसद साफ था। उन्होंने तय कर लिया था कि झुग्गी बस्तियों के बच्चों को हर हाल में पढ़ाना है और इसकी शुरुआत उन्होंने साल 2006 से की।
उन्होंने अपने पास पढ़ रहे बच्चों का एडमिशन सरकारी स्कूल में कराने की भी कोशिश की और इसके लिए पास के एक नगर निगम स्कूल में गए, लेकिन प्रिंसिपल ने उनकी बात नहीं मानी। बावजूद राजेश का जज्बा कायम रहा। उन्होंने बच्चों को पढ़ाना जारी रखा। एक दिन नगर निगम स्कूल के प्रिंसिपल साहब ने जब राजेश को बच्चों को पढ़ाते देखा तो उनका भी दिल भर आया। इसके बाद उन्होंने 60 बच्चों को अपने स्कूल में एडमिशन दे दिया। राजेश के पास तब करीब 140 बच्चे पढ़ रहे थे।
इससे राजेश के कुछ बच्चों का तो भला हो गया, लेकिन उन्हें अभी आगे की लड़ाई लड़नी थी। उन बच्चों का नगर निगम के स्कूल में एडमिशन हो जाने के बाद कुछ समस्याओं की वजह से राजेश ने बच्चों को पढ़ाना छोड़ दिया, लेकिन 2010 में उन्होंने फिर से यमुना बैंक पर बने मेट्रो के पुल के नीचे बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया। तब से उनका बच्चों को पढ़ाने का यह सिलसिला आज भी जारी है। उनकी इस लगन को देख कर मेट्रो वालों ने दीवारों पर कुछ ब्लैक बोर्ड बनवा दिए हैं।
“हम ये काम समाज के लिए कर रहे हैं। हमारे पढ़ाए कई बच्चे आज कॉलेज में पहुंच गए हैं। बच्चों के माता पिता आते हैं और कहते हैं कि हमारे बच्चों ने पढ़ना शुरू कर दिया वरना ये भी हमारी तरह मजदूरी कर रहे होते,” राजेश कहते हैं!
राजेश बच्चों को पढ़ाने का यह काम कोई एनजीओ बना कर नहीं करना चाहते क्यूंकि उनका कहना है कि वे सिर्फ अपने बलबूते पर समाज के लिए यह काम कर रहे हैं और करते रहेंगे।
आज उनके पास लगभग 300 बच्चे पढ़ने आते हैं। इनमें कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो 10वीं क्लास तक के हैं और वे ट्यूशन पढ़ने आते हैं। राजेश की ख्याति इतनी बढ़ गई है कि लोग उनकी मदद के लिए आगे आने लगे हैं और अब उनके साथ 4-5 लोग और भी जुड़ गए हैं, जो बच्चों को पढ़ाने में उनकी मदद कर रहे हैं।
“मेरे साथ कई और टीचर्स जुड़ गए हैं । कुछ महिलाएं भी आने लगीं हैं। उनका कहना हैं कि वे घर में बैठी रहती थीं, पर अब बच्चों को पढ़ाने लगीं तो उनके पति खुद उनको स्कूटी पर छोड़ने के लिए आने लगे हैं,” राजेश ने बताया।
ये लोग बच्चों को पढ़ाने के साथ उन्हें किताब-कॉपी और दूसरी चीज़ें भी देते हैं। कुछ लोग बच्चों के लिए खाना भी लेकर आते हैं।
इन्हीं टीचर्स में से एक रेखा ने बताया, “मैं पिछले साल जुलाई से यहां जुड़ी हूँ। मैं शादी से पहले पढ़ाती थी, लेकिन शादी के बाद पढ़ाना छूट गया। लेकिन जब मैंने सर (राजेश शर्मा) के बारे में पढ़ा, तो अपने बेटे (24 साल) से कहा कि मुझे वहाँ ले चल तो वो मुझे यहाँ ले आया। यहाँ आकर देखा, तो सर खुद ही साफ-सफाई कर रहे थे। उसके बाद से मैं रोज यहां आने लगी। इन बच्चों के बीच आकर और दोबारा पढ़ाना शुरू करके मुझे बहुत अच्छा लगता है। इनके माता-पिता नर्सरी वगैरह में काम करने चले जाते हैं और इन्हें ऐसे ही छोड़ देते थे। ये बच्चे भूखे भी रहते थे लेकिन अब इन्हें यहाँ खाना भी मिलता है।
इतना ही नहीं, अब तो यहाँ लड़कियों के लिए दो टॉयलेट भी बन गए हैं, ताकि उन्हें परेशानी का सामना नहीं करना पड़े।
अगर राजेश जैसे शख्स हर शहर और गली-मुहल्ले में हो जाएं तो देश से अशिक्षा का नामो-निशान मिट जाए। राजेश की किसी भी प्रकार की मदद करने के लिए आप उनसे 9873445513 नंबर पर संपर्क कर सकते हैं।
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संपादन – मनोज झा