जयपुर में रहने वाले विष्णु लांबा को सभी जानते हैं। फ़िल्म उद्योग की क़रीब 250 से अधिक हस्तियाँ, बड़े-बड़े राजनेता, युवा पीढ़ी के लोग, छात्र-छात्राएं और कभी हालात से मजबूर होकर बंदूक उठा लेने वाले अपने दौर के कुख्यात डकैत तक। विष्णु कोई बड़ी हस्ती नहीं, बल्कि एक आम युवा हैं जो पौधारोपण के कार्य से जुड़े हैं।
उनकी संस्था ‛श्री कल्पतरु संस्थान’ राजस्थान सहित 23 राज्यों में सफलतापूर्वक पौधारोपण की मुहिम चला रही है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए वे कहते हैं, “पर्यावरण और पेड़ों की खातिर मैंने परिवार और गृहस्थी तक को त्याग रखा है। मैंने विवाह नहीं करने का प्रण लिया है, ताकि सारा समय पेड़ों के संग रहकर उन्हें बचा सकूं, उन्हें लगा सकूं, उन्हें पनपा सकूं। पेड़-पौधों के प्रति मेरा लगाव 7 साल की उम्र से ही है। बचपन में कोई भी पौधा पसंद आते ही मैं उसे चुरा लिया करता था। लम्बे समय तक मुझे ‛पौधा चोर’ कहकर बुलाया गया है। अब खुशी इस बात से होती है कि मुझे ‛ट्री मैन’ कहा जाता है।”
पर्यावरण संरक्षण की सीख सबसे पहले माँ से मिली
बातचीत के दौरान वे बताते हैं, “मैं बचपन में बहुत बदमाश हुआ करता था। एक दिन पानी भरने के लिए जा रही माँ के पीछे हो लिया। उस वक़्त उम्र 7 साल रही होगी। एक ही हैंडपंप था गाँव में। वहीं सभी माँ-बहनें पानी भरने आया करती थीं। गाँव में जिस स्थान पर गोबर रखा जाता है, उस रेवड़ी पर आम का एक छोटा-सा पौधा देखा, गुठली से फूटा ही था। उसके कोंपल ने मुझे भीतर तक ख़ुशी से भर दिया। बरसात में उगा हुआ आम का पौधा बेहद खूबसूरत लगता है। माँ से बोला- यह मुझे चाहिए। माँ ने पौधा उखाड़ कर अपनी लुगड़ी में रख लिया। आम का वह पौधा मेरे गृह जिले टोंक के लांबा गाँव में जानवरों के बाड़े में लगा दिया गया।”
इसके बाद उनका यह शौक धीरे-धीरे परवान चढ़ता गया। शुरू में आम के पौधे उखाड़ने के बाद दूसरे पौधे भी आँखों में चढ़ने लगे। नींबू और अमरूद के पौधे तो निशाने पर ही रहते। दोस्तों की टीम बनाकर खेतों के किनारे उगे टमाटर के पौधों पर मार्किंग कर आते कि यह मेरा, वह तेरा। समय बीता। दोस्त बिछुड़ गए, लेकिन पौधे चुराने से पनपा शौक आज तक कायम है। इसके बाद वे अपने ताऊजी के साथ जयपुर आ गए।
जयपुर के तत्कालीन कलेक्टर के यहाँ से भी पौधे चुराए
बातचीत करते हुए विष्णु ने एक ख़ास ही घटना का जिक्र किया। उन्होंने कहा, “जयपुर आकर मैंने श्रीमत पांडे साहब के मकान से भी पौधों की चोरी की। तब वह जयपुर के कलेक्टर हुआ करते थे। उनका एक मकान जवाहर सर्किल के पास था। इसी मकान में एक बहुत ही अच्छी नर्सरी थी। बात उस समय की है, जब मैं छठी क्लास में था। चीकू, अमरूद और अनार के पौधे देखकर मन ललचा गया। दीवार फांदकर मैं उन पौधों को घर में ले आया और उन्हें लगा दिया। जब सुबह उठकर ताऊजी ने घर में हरियाली देखी तो चौंक पड़े। मुझे बुलाया और शाम 7 बजे तक की मोहलत दी कि यह सोच लूं कि मुझे अपनी सफाई में क्या कहना है। इधर मैं सोच रहा था कि आखिर होगा क्या। 2-4 लट्ठ पड़ेंगे, खा लेंगे, पौधे तो नहीं जाने दूंगा। पौधों को देख इतरा रहा था, चीकू आ गए हैं तो बड़े भी होंगे। नारियल, तुलसी, जैसे महंगे प्लांट। इधर, ताऊजी ने शाम को खूब जोर से ठुकाई की। जब मार से टूट गया तो बताना पड़ा। हाथ पकड़कर ले गए पांडेजी के घर और बोले कि इससे सारे पौधे वापस लो और सजा दो इसे।”
पिछले 18 सालों से हर रोज़ एक पौधा लगा रहे हैं
राजस्थान सरकार के 200 विधायकों, 25 सांसदों सहित लांबा ने 250 से भी ज्यादा फ़िल्म कलाकारों के साथ मिलकर पौधे लगाए हैं। ऐसे आईएएस और आईपीएस अफसरों की तो एक लम्बी सूची है, जिनके साथ मिल कर उन्होंने पौधे लगाए। उन्होंने देश के पूर्व डाकुओं के साथ भी बीहड़ को बचाने के लिए प्रोजेक्ट शुरू किया था। पिछले 18 सालों में कोई दिन ऐसा नहीं गुज़रा, जब उन्होंने पौधारोपण नहीं किया हो।
वे कहते हैं, “किसी कारणवश 10 दिन पेड़ नहीं लगा सका तो 11वें दिन 11 पेड़ लगाए हैं।”
पृथ्वी पर सबसे बड़ा कोई है तो पेड़ है
लांबा का कहना है कि पर्यावरण एक दिन का विषय नहीं, बल्कि 24 घंटे चिंतन की प्रवृत्ति पर्यावरण है। पर्यावरण को लेकर यदि हम ईमानदार होते, तो क्या ग्लोबल वार्मिंग की समस्या होती? पहले के लोग कितने बरसों तक जीते थे? क्या उनकी हाइट और क्या बॉडी हुआ करती थी। कारण क्या था? सब कुछ शुद्ध था इसलिए।
उन्होंने अपने पैतृक गाँव लांबा को नवजीवन देने का एक प्रयास किया। 2012 में 11 हज़ार 11 सौ 11 पौधे 11 बजकर 11 मिनट 11 सेकंड पर पूरे गाँव वालों से लगवाए। 101 बरगद और 101 पीपल के पेड़ तालाब के किनारे लगवाए।
लांबा कहते हैं, “ऐसा करना कोई हंसी-खेल नहीं। बाल्टी-दर-बाल्टी पानी से सींचा, तब जाकर हरे हुए हैं पौधे। सपना इस गाँव को आदर्श बनाने का है। गाँव में जन-जागृति आई है। जो माताएं-बहनें पहले पेड़ काटती थीं, आज उनको बचाने के लिए मर-मिटने को तैयार हैं। दुनिया में सबसे बड़ा पेड़ है, उसे बचाना है, उसे बचाने के लिए लड़ना है। मकर संक्रांति के दिन चाइनीज मांझे के विरोध में आवाज़ बुलंद करता हूँ, तो गर्मियों में अब तक 5 लाख से भी अधिक परिंडे लगवा चुका हूँ।“
लगाए हैं साढ़े पांच लाख पौधे
लांबा की संस्था ‛श्री कल्पतरु संस्थान’ ने अब तक 5.50 लाख से अधिक पौधे लगाकर उनको बड़ा करने में अहम भूमिका निभाई है, वह भी बिना किसी सरकारी, गैर-सरकारी सहयोग के।
लांबा कहते हैं, “उन्होंने सबसे बड़ी लड़ाई वर्ल्ड हैबिटैट सेंटर की जीती। झालाना में ओटीएस नामक स्थान पर सरकार ने 5000 पेड़ काटने के आदेश जेडीए को दिए। हमें पता चला तो विरोध किया। 500 कारों की पार्किंग सुविधा सहित अन्य कई प्रकार की सुविधाओं को विकसित करने के लिए 5 हज़ार बड़े पेड़ों की बलि कहाँ की समझदारी है? ओटीएस में इन वृक्षों के होने से विलुप्त प्राय मोरों को भी तो आश्रय मिला है। उक्त आदेश को निरस्त करवाने के लिए आंदोलन किए, कोर्ट गए। कोर्ट ने पर्यावरण के हित में फैसला सुनाया। सरकार झुकी और आज 5 हज़ार पेड़ जिन्दा हैं।“
जयपुर के बांडी का बहाव, गोपाल योजना, कालवाड़ी योजना, बीटू बाईपास, नेशनल हाईवे इत्यादि प्रमुख योजनाएं हैं, जहाँ पेड़ों को कटने से बचाना उनकी उपलब्धियों में शामिल है।
छोटे भाई की शादी की ख़बर ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में छपी
इस शादी के बारे में लांबा बताते हैं, “छोटे भाई की सगाई तय होने की ख़बर पिताजी ने दी। बताया कि मैंने दहेज लेने से इंकार कर दिया है। मैंने कहा, क्यों किया इंकार? हम दहेज में 2 पौधे लेंगे। समधी जी ने 2 ट्रैक्टर पौधे भिजवा दिए। शादी का कार्ड ढाई बाय ढाई का छपवाया। रिश्तेदार-मेहमानों को निर्देश था कि गिफ्ट नहीं लाएं। मिट्टी के सकोरे मंगवाए गए। गाँव में बरगद के बहुत पेड़ हैं। पत्तों के पत्तल-दोने बनाए और इसी पर भोजन परोसा गया। भोजन के पूर्व सभी मेहमानों से पौधे लगवाए। समधी पक्ष ने ककड़ी-तरबूजे का नाश्ता करवाया। ऋग्वेदकाल के बाद यह पहला पर्यावरणीय विवाह माना गया। इस विवाह की ख़बर द न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित हुई।“
मूक पक्षियों के लिए भी दे रहे हैं सेवा
विष्णु अपनी संस्थान की ओर से हर साल मकर संक्रांति पर ‛निःशुल्क पक्षी चिकित्सा शिविर’ आयोजित करते हैं। चाइनीज़ मांझे से घायल होने वाले पक्षियों का उपचार इसमें किया जाता है। प्रतिवर्ष 13 से 15 जनवरी को लगने वाले इस कैम्प से अब तक 22,000 से अधिक बेजुबानों को नया जीवन मिल चुका है।
साथ ही सालभर ‛बर्ड हेल्पलाइन’ पर आने वाली सूचनाओं के माध्यम से घायल पशु पक्षियों को लाकर उनके उपचार के बाद उन्हें आज़ाद कर दिया जाता है। गंभीर रूप से घायलों को जयपुर चिड़ियाघर या ‛हेल्प इन सफरिंग’ को सौंप दिया जाता है।
विष्णु लांबा से 09983809898 पर संपर्क किया जा सकता है।
संपादन – मनोज झा