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पद्म पुरस्कार पाने वाले 16 ऐसे नायक जिनसे आप अब तक अनजान रहे!

द्म पुरस्कार उन लोगों का उत्सव है जो असल जिंदगी में किसी नायक से कम नहीं और जिन्होंने अपनी जिन्दगी भारत के नाम कर दी। पद्म पुरस्कार भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार है जो की कला और सामाजिक क्षेत्र से लेकर विज्ञान के क्षेत्र तक अलग-अलग क्षेत्र के लोगों को सम्मानित किया जाता है। इस साल ये कुछ ऐसे लोगों को दिया गया है जिन्होंने भारत के लिए बिना थके लगातार कार्य किया है पर आज तक उन्हे कोई पहचान नही मिली थी। यह कुछ ऐसे ही हीरोस की बात की गई है जो इस देश इस विश्व को एक बेहतर जगह बनाते हैं।

 

1. भक्ति यादव

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डॉक्टर दादी के नाम से मशहूर, डॉक्टर भक्ति यादव 1940 से लेकर आज तक मरीजों का मुफ्त इलाज करती हैं। ये इंदौर की पहली महिला डॉक्टर हैं जो कि अब 91 वर्ष की हैं और इन्होंने आज तक हजारों बच्चों की डिलिवरी की है और साथ ही 10 साल में करीब एक लाख मरीजों को देख चुकी हैं।

2.मीनाक्षी अम्मा

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ये कलारीपयातू की सबसे बूढ़ी महिला प्रस्तावक हैं, उम्र तो लिए मात्र एक संख्या है इस तलवार वाली दादी के लिए। इस 76 वर्षीय महिला ने 76 साल की उम्र में मार्शल आर्ट सिखा रही हैं जिसकी शुरूआत इन्होंने तब की थई जब ये मात्र 7 साल की थीं। इन्होंने हमेशा इसका अभ्यास किया और ये अपने स्कूल में बच्चो को 2009 से इसकी शिक्षा भी देती हैं जो कि केरेला के वातारका गांव में स्थित है।

3.दरिपल्ली रमैया

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जब ज्यादातर लोग किचन गार्डन लगाने में व्यस्त थे तब दारीपल्ली रमैया ने मिलियन पेड़ लगा लिए । तेलांगना के खमाम जिले के रहने वाले इस शख्स ने बंजर जंमीन पर बीज बोये और ये व्यक्ति ये काम उन हर जगहों पर करता था जहां कही भी उसे बंजर ज़मीन दिखती थी । ये खास स्थायी बीज को इकठ्ठा करते थे , हरित क्रंति के लिए राजनीतिक हस्तियों के साथ घूम-घूम कर लोगो को प्रोत्साहित करते थे और इको-फ्रेंडली संदेश और नारे भी बनाते थे।

4.डॉक्टर सुब्रोतो दास

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जब भी हाईवे इमरजेंसी के दौरान आप फस जाते हैं तो 108 नंबर पर काल करते वक्त डॉक्टर सुब्रतो दास का धनयवाद करना मत भूलिएगा। सुब्रतो का एक बार हाईवे एक्सीडेंट हो गया और उनके दोस्तों ने मेडिकल हेल्प के लिए घंटों इंतजार किया पर कोई मदद न मिली जिसके बाद सुब्रतो ने पहला ह2002 में गुजरात वासियों के लिए पहला हेल्पलाइन नंबर शुरू किया.उनका एनजीओ 108 नंबर टीलू रखने के लिए तकनीकी विशेषज्ञों की मदद लेता है जो कि 20 राज्यों में काम करता है।

5.बिपिन गणात्रा

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ये कोलकाता निवासी भले ही कोई पेशेवर आग से खेलने वाला न हो पर इसने करीब 40 साल से शहर में आग से होने वाली दुर्घटना को खत्म किया है। ये 59 वर्षीय आदमी आग विभआग में वालेंटियर है और रात-दिन दुर्घटना से पीड़ित लोगों की मदद करता है, आग की लपटों को बुझाता है और राख साफ करता है।  ये एक बीजली बनाने वाली मिस्त्री हैं जो की इसी पेशे से कमाए पैसों से अपना जीवन यापन करते हैं और अपने बचे हुए समय में आग विभाग के साथ काम करते हैं।

6.शेखर नाइक  

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शेखर ने कभी अपने अंधेपन को खेल के लिए अपने प्यार पर हावी नही होने दिया। कर्नाटका राज्य के शिमोगा के रहने वाले शेखर ने 12 साल की उम्र में अपने माता-पिता को खो दिया था औऱ गरीबी में जीवन यापन किया इनको अपने जीवन का प्यार क्रिकेट में मिला। नेशमल ब्लाइंड क्रिकेट टीम के कैप्टन के बतौर इन्होने अपनी टीम को कई बार जीत दिलीई जिसमे 2014 ब्लाइंड क्रिकेट वर्ल्ड कप और 2012 टी-20 ब्लाइंड क्रिकेट वर्ल्ड कप भी शामिल हैं|

7.गिरीश भारद्वाज

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बहुत दशकों पहले, इंजीनियरिंग ग्रेजुएट गिरीश भारद्वाज ने अपने आप को एक नौकरी ढूंढने में असमर्थ पाया| पर अब, 67 वर्षीय गिरीश अपनी बेरोजगारी के बदले वास्तविक मायनों में कुछ असाधारण करने के लिए जाने जाते हैं- गिरीश सारे भारत में रिमोट विलेज में ब्रिज का निर्माण करते हैं| उन्हें सेतु और बंधु के नाम से भी जाना जाता है| उन्होंने अब तक कम लागत वाले 100 से भी ऊपर ब्रिजों का निर्माण किया है| उन्होंने इन ब्रिजों का निर्माण केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा में किया है|

8.थान्गालेवु मारियप्पन

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ये पैराओलंपिक 2016 में ऊंची कूद प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतने वाले भारत के पहले एथलीट है जिन्होंने कई मिथकों को तोड़ा है| जब वो महज 5 साल के थे, एक बस एक्सीडेंट में उनका पैर कुचल गया| उनकी अपंगता और उनकी गरीबी कभी भी उनके खेलप्रेम में बाधक नहीं बनी और युवावस्था में ही उन्होंने ऊंची कूद टूर्नामेंट में भाग लेना शुरू कर दिया था| उनकी इस जीत ने उन्हें भारतीय पैराओलंपिक प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक लाने वाला तीसरा भारतीय बना दिया|

9.एली अहमद

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असम से आई इस 81 वर्षीय विजेता की कई उपलब्धियां हैं| उन्होंने उत्तरी भारत में ओरानी नाम की मैगजीन के सञ्चालन को दोबारा शुरू किया ये मैगजीन महिलाओं के बारे में है| असम निवासी 1970 से ही इस मैगजीन का संचालन कर रहे हैं| लेखक कार्यकर्ता ने अपंगता और बाल शोषण पर नाटक भी लिखे हैं और उन्होंने असम में पहला फिल्म इंस्टिट्यूट भी स्थापित किया|

10.बलबीर सिंह सीचेवाल

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पंजाब के सबसे मशहूर पर्यावरणप्रेमियों में से एक बलबीर सिंह सीचेवाल ने प्रदेश की प्रदूषित काली बेई नदी को फिर से पुनर्जीवित किया है| इस पर्यावरणविद् ने अपने दम पर 20 गाँव के लोगों को एकत्र किया और एक बड़ा जनांदोलन शुरू किया ताकि 110 मील लंबे नाले  की गाद साफ की जा सके और उसके किनारों को खूबसूरत बनाया जा सके| पर्यावरणविद् ने लोगों को नदियों को साफ रखने के लिए जागरूक किया और खाड़ी में जल की शुद्धता का ध्यान रखने के लिए कहा|

11. गेनाभई दर्गाभई पटेल

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गुजरात के बनासकांठा गाँव के निवासी एक असमर्थ दिव्यांग किसान गेनाभाई अनारदादा के नाम से जाने जाते हैं| क्यों? क्यों कि उनके जिले में पानी की समस्या के समाधान के लिए उन्होंने 2005 में अनार की खेती करनी शुरू की| उत्पादन की बढ़ोत्तरी के लिए न केवल उन्होंने नई तकनीक का इस्तेमाल किया, बल्कि उन्होंने इसके बारे में अन्य किसानों को भी बताया| उनका शुक्रिया, देश के इस क्षेत्र में अब सबसे  ज्यादा अनार पैदा होता है|

12. करीमुल हाकुए

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चाय के बागानों में काम करने वाला एक कामगार जो कि पश्चिम बंगाल के धलाबरी गांव से आया था, करीमुल हकुए लोगों को जल्द चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराने के लिए एक बाइक ट्रांसपोर्ट सर्विस चलाते हैं| करीमुल कि बाइक एम्बुलेंस इसके फाउंडर कि खुद की कमाई और ये सर्विस अब तक 3000 लोगों को चिकित्सकीय सहायता पहुंचा चुकी है|

13. सुकिरी बोम्मा गोवडा

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सुकीरी अज्जी को हलाक्की की नाइटिंगेलकहा जाता है क्योंकि उन्होंने हलाक्की वोक्कालिगास के गीतों और कविताओं को दशकों के बाद भी जीवित रखा है| उत्तरी कर्नाटक की रहने वाली सुकीरी वहां की धीरे धीरे विलुप्त हो रही एक प्रजाति का नेतृत्व कर रही हैं| ये 75 वर्षीया वृद्धा और इसके गीतकारों का समूह इस समुदाय के रिवाजों को अपने गीतों से जिंदा रखने की कोशिश कर रहा है | ये गीत उनके जीने का तरीका बताते हैं|

14.चिंताकिंदी मल्लेषम

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आंध्र प्रदेश के रहने वाले, चिंताकिंदी को लक्ष्मी एएसयू मशीन  के निर्माता के रूप में जाना जाता है, जिसने  कि प्रदेश की शान का प्रतीक बन चुकीं पोचमपल्ली सिल्क  कि साड़ियों कि बुनाई को थोडा आसन बना दिया है , जिससे कि मेहनत भी कम लगती है और समय की भी बचत हो जाती है| एक हाई स्कूल फेलियर ने अपनी माँ के काम के बोझ को कम करने के लिए, जो कि एक बुनकर भी थीं , उन्हें ऐसी ही कई  खोजों के लिए अवार्ड मिल चुका है और अपनी खोज के लिए उन्हें उद्यमिता का अवार्ड भी  मिल चुका है|

15.डॉक्टर सुहास विट्ठल मपुस्कर


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सन 1960 में डॉक्टर सुहास एक डॉक्टर के तौर पर पुणे के एक गाँव देहू पहुंचे, और यहाँ की परिस्थितियों में हमेशा के लिए बदलाव कर दिया| डॉक्टर ने यहाँ के स्थानीय लोगों के लिए शौचालय मुहैया कराने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली और उन स्वदेशी शौचालय को उन्होंने खुद डिजाइन किया ताकि वो बारिश में ख़राब ना हो जाए| उनके लंबे समय तक चले प्रयासों की वजह से गाँव वाले उन्हें स्वच्छ दूतकहते हैं| 2015 में उनका निधन हो गया और ये अवार्ड उनको उनकी मृत्युपरांत मिलेगा|

16.डॉक्टर सुनीति सोलोमन

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भारत के जाने माने डॉक्टर्स  में से एक, डॉक्टर सोलोमन को एड्स में उनकी रिसर्च के अभूतपूर्व योगदान के लिए जाना जाता है| स्वर्गीय फिजीशियन और माइक्रोबायोलॉजिस्ट को सन 1985 में भारत में एड्स का पहला केस पहचानने का श्रेय जाता है| क्षेत्र में उनके अभूतपूर्व योगदान की वजह से चेन्नई में वाई आर गैतोंड़े एड्स रिसर्च और एजुकेशन सेंटर है| सबसे महत्त्वपूर्ण, उनकी फ्रैंक बातचीत की वजह से इस रोग से जुड़े कई मिथक और वर्जनाएं टूटीं|

मूल लेख- सोहिनी डे

 

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