डांग, नर्मदा और भरूच, गुजरात के छह आर्थिक रूप से संकटग्रस्त माने जाने वाले जिलों के तहत आते हैं। लेकिन इन जिलों के आदिवासी इलाकों में बेहतर जल प्रबंधन पर फोकस किया गया है, जिससे कई गांवों में पानी की समस्या दूर हुई है। बेहतर जल प्रबंधन की इस पहल के पीछे हाथ है नीता पटेल (Neeta Patel) का, जिनके 12 साल के लंबे प्रयास के कारण यह संभव हो पाया है। नीता को अब ‘वॉटर चैंपियन‘ के नाम से जाना जाता है।
जल संरक्षण और महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में पटेल ने काफी काम किया है, जिससे इन ज़िलों के 51 गांवों में रहनेवाले 30,000 से ज्यादा निवासियों और गुजरात के दक्षिणी हिस्से में कई गांवों में रहनेवाले लोगों का जीवन प्रभावित हुआ है।
नीता पटेल हर दिन एक गांव से दूसरे गांव जाती हैं। अपनी दोपहिया वाहन पर पहाड़ी क्षेत्रों को पार करते हुए, वह कभी-कभी 80 किमी से 90 किमी की दूरी तय करते हुए, दूर-दराज़ के आदिवासियों तक पहुंचती हैं। यहां, वह हजारों महिलाओं को संगठित करती हैं, पंचायतों के साथ पानी से संबंधित मुद्दों को उठाती हैं, वॉटर हार्वेस्टिंग संरचनाओं को खड़ा करती हैं और वॉटर कमेटी का गठन करती हैं।
कभी पहने पड़ोसियों के कपड़े, कभी नंगे पांव किया काम
पटेल (Neeta Patel) ने नई दिल्ली के ‘श्री संत कबीर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट’ से रूरल स्टडीज़ में पोस्टग्रेजुएशन की है। उनका बचपन नवसारी के मोगरावाड़ी गाँव में बीता। शुरुआती दिनों में पैसों की कमी के कारण उनका समय काफी संघर्षपूर्ण रहा। लेकिन अपने माता-पिता के समर्थन और स्कॉलरशिप के कारण उनकी पढ़ाई में कभी कोई बाधा नहीं आई।
बचपन को याद करते हुए उन्होंने बताया कि उनके परिवार के पास एक एकड़ जमीन थी, जिस पर वे माॉनसून के दिनों में खेती करते थे। साल के बाकी समय उनके माता-पिता दूसरे के खेतों में मजदूरी करते थे। नीता पटेल बताती हैं कि वह और उनके दो भाई कभी घास काटने, कभी गन्ने की कटाई या आम चुनने जैसे अजीबोगरीब काम करके घर की आय में योगदान देते थे और रोजाना 12 रुपये कमाते थे।
पढ़ाई के लिए नीता (Neeta Patel) पैदल तय करती थीं 22 किमी की दूरी
सातवीं कक्षा के बाद, वह आगे की शिक्षा हासिल करने के लिए हर दिन 22 किमी पैदल चलकर पास के गांव जाती थीं। वह कहती हैं, “उन दिनों स्कूल ही मेरा एकमात्र सहारा था।”
स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, पटेल ने एक रेजिडेंशिअल कॉलेज में दाखिला लिया, जहां खाना, यूनिफॉर्म और किताबें मुफ्त मिलती थीं। उनके माता-पिता ने पहले वर्ष के लिए 2,000 रुपये की फीस जमा की। हालांकि, बाद के वर्षों में उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के लिए सूरत के गांधी विद्यापीठ वेदछी से स्कॉलरशिप हासिल कर ली थी।
पटेल बताती हैं, कि उन्होंने थोड़े समय के लिए नवसारी के एक संगठन के लिए काम किया और साल 2002 में एकेआरएसपी या आगा खान ग्रामीण सहायता कार्यक्रम (भारत) में डेवलपमेंट ऑर्गेनाइज़र के रूप में शामिल हुईं, जहां उन्हें कंबोडिया गांव भेज दिया गया।
…जब पंचायत ने ठुकरा दी थी उनकी (Neeta Patel) योजना
कंबोडिया गांव, भरूच ज़िले के वालिया तालुका में है। यह कम आबादी वाला गांव था, जहां करीब 408 घरों में 2,000 लोग रहते थे। जब नीता इस गांव में गईं, तो पता चला कि यहां पीने के पानी की गंभीर समस्या है। फिर उन्होंने गांववालों को वॉटर सप्लाई चैनल स्थापित करने की योजना बनाने में सहायता की और पंचायत की स्वीकृति के लिए उनके सामने योजना को रखा। लेकिन पंचायत ने उनकी याचिका खारिज कर दी। उस समय पटेल की उम्र 23 वर्ष थी।
पंचायत के मना करने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। एक साथ कई दिनों तक, पटेल ने ग्रामीणों को लामबंद किया और अंततः पंचायत को राजी कर लिया, जिसके परिणामस्वरूप 200 घरों को नियमित रूप से पानी की सप्लाई मिली।
इस समय तक, स्थानीय जल कमेटी में महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता था, लेकिन काफी विरोध के बाद पंचायत ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें महिलाओं को शामिल करने की अनुमति मिली।
एक अन्य उदाहरण में, सरपंच ने किरली की ग्रामीण महिलाओं को एक महिला विकास मंडल से धन आने के बावजूद, हैंडपंप लगाने से मना कर दिया। लेकिन स्थानीय लोगों और पटेल के लगातार प्रयासों के बाद, पंचायत को मानना ही पड़ा और ग्रामीणों के लिए हैंडपंप लगाया गया।
चलाया वृक्षारोपण अभियान
आदिवासी बस्तियों का दौरा करते हुए, पटेल (Neeta Patel) ने महसूस किया कि नर्मदा और बहरूच के पहाड़ी क्षेत्रों में जून और अक्टूबर के बीच भरपूर बारिश होने के बावजूद, पेड़-पौधों की कमी है। बारिश का पानी नीचे की ओर नदियों में मिल जाता है, जबकि ग्रामीणों को पानी की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ता है।
पटेल ने इस समस्या पर गौर किया और करीब 2,000 लोगों को इकट्ठा कर लगभग 90,000 पौधे लगाए। आज वह पौधे, पेड़ बन चुके हैं और वहां रहनेवाले स्थानीय लोगों को ईंधन की लकड़ी प्रदान कर रहे हैं। पटेल कहती हैं, ”हमने 1997 से 2000 के बीच कुल 300 हेक्टेयर में वन विभाग के सहयोग से पौधे लगाए हैं।”
लगभग 10 वर्षों तक काम करते हुए पटेल ने डांग जिले में बहने वाली पूर्णा, खपरी, अंबिका, गीरा और धोधड़ नदियों पर कई चेक डैम, ग्रुप वेल, चेक वॉल और बोरीबांध (रेत से भरे बैग) बनाने के लिए ग्रामीणों को तैयार किया है।
48 डैमों के मरम्मत का किया काम
पटेल (Neeta Patel) अब एकेआरएसपी के साथ एक क्लस्टर मैनेजर हैं। साल 2013 में पटेल ने डांग जिले के सुबीर ब्लॉक के तीन गांवों को देखा, जो पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे थे, क्योंकि राज्य सरकार द्वारा बनाए गए चेक डैम कई जगह से टूट गए थे और उन्हें तत्काल मरम्मत कराए जाने की ज़रुरत थी।
एक बार मॉनसून खत्म होने के बाद, चेक डैम खाली हो गए थे। तब एक भारतीय बैंक द्वारा दिए गए संसाधनों और ग्रामीणों की मदद से बांधों की मरम्मत की गई और वर्तमान में उससे लगभग 2,500 निवासियों की ज़रूरतें पूरी हो रही हैं।
कुछ फाउंडेशनों, गैर सरकारी संगठनों से वित्तीय समर्थन और ग्रामीणों के स्वैच्छिक श्रम के साथ, लिफ्ट सिंचाई योजनाएं शुरु की गईं, जिससे 400 ग्रामीणों को फायदा हुआ। पटेल कहती हैं, “राज्य सरकार द्वारा बनाए गए चेक डैम की स्थिति खराब थी और ऐसे डैम के रहने का कोई मतलब नहीं था। हमने उनमें से 48 की मरम्मत की।”
पटेल (Neeta Patel) और गांववालों की कोशिशों से सुधरा जलस्तर
डांग, नर्मदा और बहरूच के ग्रामीणों में भूमि जोत ( landholdings ) बहुत छोटी है। यह प्रति परिवार 10 से 20 गुंठा (40 गुंठा या 40,400 वर्ग फुट प्रति एकड़) से ज्यादा नहीं है और यहां के ज्यादातर लोग केवल मॉनसून के महीनों के दौरान खेती करते हैं। बाकी के महीने या तो वे छोटी-मोटी नौकरी करते हैं या शहरों में पलायन कर जाते हैं।
यहां लोग पानी लाने के लिए रोजाना 3 से 4 किमी पैदल चलकर जाया करते थे। डांग जिले के अमसरपाड़ा, चिखली, पिपलादेवी, सबरपाड़ा, जरान, वडपाड़ा और हिंडला जैसे गांवों में मार्च से जून के दौरान पानी की काफी किल्लत हो जाती है और पीने के पानी के लिए पानी के टैंकरों की मांग की जाती है।
हालांकि जिले में अच्छी बारिश होती थी, लेकिन पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण पानी मैदानी इलाकों में चला जाया करता था। इससे पीने के पानी की गंभीर समस्या हो गई। पटेल बताती हैं, “लगभग 15 साल पहले, केवल 2 प्रतिशत किसान सर्दियों की फसल उगाते थे, लेकिन आज गांववालों के प्रयासों से कई लोग ऐसा कर रहे हैं।”
पटेल की कोशिशों के कारण कई गांवों में पानी की समस्या हल हुई है और इसका प्रभाव ज़मीन और सतही जल उपलब्धता दोनों पर साफ देखा जा सकता है। उन्होंने महिला हितधारकों को इसमें शामिल किया, क्योंकि उन्हें अक्सर पानी की कमी का सामना करना पड़ता था।
महिलाओं ने संभाली कमान
पटेल (Neeta Patel) के प्रयासों के कारण कई गांवों में महिलाओं द्वारा संचालित जल समितियों की स्थापना की गई है, जो गांवों में पानी की समस्या से निपटने के लिए पंचायत के साथ मिलकर काम करते हैं। डांग में, उन्होंने 2,900 सदस्यों की कुल संख्या के साथ चार महिला सशक्तिकरण समूह बनाने में मदद की है।
नीता ने सोलर से चलने वाले सिंचाई प्रणाली और अन्य कृषि प्रणालियाँ भी डेवलप की हैं, जिससे वर्तमान में डांग के 230 गाँवों में फैले लगभग 22,000 परिवारों को फायदा मिल रहा है। इससे 1000 हेक्टेयर की सिंचाई करने में मदद भी मिल रही है। कई ग्रूप्स ने कुओं, चेक डैम की मरम्मत करने और रीचार्ज संरचनाओं का निर्माण करने के साथ, टॉप टू बॉटम वॉटर कंजर्वेशन अप्रोच शुरु किया है।
साथ ही जनभागीदारी से वन विकास कार्य, सॉयल ट्रीटमेंट का काम शुरु किया गया। साथ ही महिलाओं द्वारा चलाई जा रही पीने के पानी की योजनाएं से कम से कम 25 गांवों के जल स्तर में सुधार आया है।
पटेल, जल संरक्षण गतिविधियों में अपनी सफलता का श्रेय लोगों से मिले अपार समर्थन को देती हैं, जिसमें कई आदिवासी और महिलाएं शामिल हैं। पटेल देश के विभिन्न हिस्सों की 41 महिलाओं में से थीं, जिन्होंने पानी के बारे में जागरूकता बढ़ाई और हालातों में सुधार किया। उन्हें पिछले साल भारत में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा सम्मानित किया गया है। वह कहती हैं, “यह देखकर मुझे बहुत खुशी और संतुष्टि मिलती है कि छोटे-छोटे प्रयासों से कैसे आज गांव में रहनेवाली महिलाएं भी सशक्त हो गई हैं और उनमें फैसले लेने की काबिलियत भी आ गई है।”
मूल लेखः हिरेन कुमार बोस
संपादनः अर्चना दुबे
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