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डूबने से हुई थी बेटे की मौत, जलाशयों को सुरक्षित बना रहे हैं माता-पिता!

पनों को खोने का गम शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। कुछ लोग इस गम में पूरी जिंदगी गुज़ार देते हैं, जबकि कुछ इस गम को अपनी ताकत बनाकर कुछ ऐसा कर गुजरते हैं जिसकी कल्पना भी मुश्किल है। भोपाल निवासी प्रतिभा और विश्वास घुषे भी ऐसे ही लोगों में से हैं। 21 मार्च 2015 का दिन घुषे दंपत्ति के जीवन का सबसे काला दिन था। इस दिन उन्हें अपने छोटे बेटे मंदार की मौत की खबर मिली थी।

10वीं में पढ़ने वाला मंदार अपने दोस्तों के साथ केरवा डैम गया था, जहां ‘मौत के कुएँ’ में डूबने से उसकी मौत हो गई। डैम के एक हिस्से को ‘मौत का कुआँ’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि मंदार से पहले भी वहाँ करीब 175 ज़िंदगियां पानी में समा गई थीं। प्रतिभा और विश्वास इस हादसे से पूरी तरह टूट गए थे, लेकिन वह जानना चाहते थे कि आखिर उनके घर का चिराग उनसे दूर क्यों चला गया, उसे क्यों बचाया नहीं जा सका? और इसी चाहत ने उनसे वह सब कुछ करा दिया, जिसके बारे में कोई दूसरा नहीं सोच सका।

मंदार।

विश्वास एवं प्रतिभा घुषे समस्या की जड़ तक पहुंचे और उसके हल के लिए ज़मीन-आसमान एक कर दिया। ये उनके प्रयासों का ही नतीजा है कि 21 मार्च 2015 के बाद से लेकर आज तक ‘मौत के कुएँ’  में फिर किसी के घर का चिराग नहीं बुझा। हालांकि, घुषे दंपत्ति यहीं नहीं रुके, उन्होंने इस तरह की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए पहले ‘मंदार एंड नो मोर’ अभियान छेड़ा और 2018 में इसे फाउंडेशन का रूप दिया, ताकि अभियान के दायरे को विस्तृत किया जा सके। हाल ही में फाउंडेशन ने इंदौर के पाताल-पानी के बारे में भी एक रिपोर्ट बनाकर सरकार को सौंपी है।

केरवा डैम को ‘मौत के कुएँ’ से मुक्त करने का काम बिल्कुल भी आसान नहीं था। यह सुनने में जितना सामान्य लगता है, उससे कहीं ज्यादा मुश्किल था। एक तरफ सोया हुआ प्रशासन और दूसरी तरफ बदहाल व्यवस्था। विश्वास अच्छे से जानते थे कि प्रशासन को नींद से जगाने में लंबा वक़्त लग जाएगा, इसलिए उन्होंने पहले बदहाल व्यवस्था को दुरुस्त करने का बीड़ा खुद उठाया।

मंदार के पिता विश्वास और माँ प्रतिभा।

उनके सामने सबसे पहली चुनौती यह पता लगाना थी कि आखिर पानी में उतरने वाले लोग वापस क्यों नहीं लौट पाते? पेशे से मैनेजमेंट कंसल्टेंट विश्वास रोटरी क्लब से जुड़े हुए हैं और इस काम में क्लब के सदस्यों का भी उन्हें पूरा सहयोग मिला।

विश्वास एवं प्रतिभा के कई दिनों के शोध में यह बात निकलकर सामने आई कि पानी के नीचे बड़े-बड़े गड्ढे हैं, जो ऊपर से दिखाई नहीं देते और इन्हीं में फंसने से लोगों की मौत हो जाती है।

केरवा डैम का वह हिस्सा जहां डूबने से मंदार की मौत हुई थी.

इसके अलावा, यहाँ न लाइफ गार्ड है और न ही सुरक्षा उपकरण, इतना ही नहीं लोगों को खतरे से आगाह करने वाले साइन बोर्ड तक नदारद है। अपने शोध को घुषे दंपत्ति ने रिपोर्ट के रूप में संबंधित विभागों को सौंपा, लेकिन जैसा कि अंदेशा था प्रशासन की नींद नहीं टूटी।

इस बारे में विश्वास कहते हैं, “हमारा बेटा तो चला गया, वो वापस नहीं आएगा। हम केवल इतना चाहते हैं कि किसी दूसरे परिवार को यह दर्द न सहना पड़े। इसी उद्देश्य से हमने ‘मंदार एंड नो मोर’ अभियान शुरू किया है। जब प्रशासन ने हमारी रिपोर्ट पर ध्यान नहीं दिया, तो बुरा लगा, दुःख भी हुआ, लेकिन हमने हार नहीं मानी।”

इसके बाद उन्होंने अपने खर्चे पर लाइफ जैकेट जैसे सुरक्षा उपकरण खरीदें और आसपास रहने वाले तैराकों को वहाँ तैनात किया।

पुलिस को लाइफ जैकेट आदि प्रदान करते विश्वास और रोटरी क्लब के सदस्य.

साथ ही डैम पर आने वालों को लगातार जागरुक भी करते रहे। आख़िरकार उनकी सक्रियता देखकर प्रशासन की नींद टूटी और उनकी रिपोर्ट पर गौर किया।

इसके बाद वन, जल संसाधन और रेवेन्यू विभाग की मदद से ‘मौत के कुएँ’ को खाली किया गया और उसके गहरे गड्डों को पत्थर से भरा गया। चेतावनी बोर्ड एवं बैरिकेड भी लगवाए गए। तब से लेकर अब तक ‘मौत के कुएँ’ में कोई जानलेवा हादसा नहीं हुआ है। घुषे दंपत्ति के प्रयासों से केरवा पुलिस चौकी को भी पुन: जीवित किया गया है और यह इलाका अब डायल 100 के रूट में भी शामिल है।

मौत के कुएं में पत्थर आदि डालकर उसे काफी हद तक समतल बनाया गया.

चार महीने के अथक प्रयास से ‘मौत के कुएँ’ की जानलेवा अंदरूनी संरचना को दुरुस्त करने के बाद, विश्वास एवं प्रतिभा ने मोबाइल नेटवर्क की समस्या की तरफ प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया। केरवा डैम इलाके में मोबाइल का नेटवर्क नहीं आने से मुश्किल वक़्त में लोगों के लिए मदद मांगना संभव नहीं था। घुषे दंपत्ति ने फिर प्रयासों की मैराथन शुरू की, विभिन्न विभागों से लेकर अधिकारी और नेताओं तक को स्थिति से अवगत कराया, तब कहीं जाकर भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) केरवा डैम इलाके में मोबाइल टावर लगाने पर सहमत हुआ।

10 जुलाई 2016 को लगे इस टावर का नाम भी ‘मंदार टावर’ रखा गया है।

केरवा डैम पर मोबाइल टावर लगवाया गया, जिसका नाम मंदार टावर है.

इस असंभव से काम को संभव बनाने में किस तरह की मुश्किल और चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

इस सवाल के जवाब में विश्वास कहते हैं, “जब हमें पता चला कि मंदार से पहले भी 175 लोग ‘मौत के कुएँ’ में जान गंवा चुके हैं तो लगा कि यदि प्रशासन पहले ही चेत जाता तो शायद हमारा बेटा हमारे साथ होता। उसी वक़्त हमने तय कर लिया था कि अब किसी और के साथ यह घटना नहीं होने देंगे। जहाँ तक मुश्किल की बात है तो आप यह समझ लीजिए कि हमें बिना किसी सहारे के पहाड़ चढ़ना था। हम कई बार फिसले, लेकिन प्रयास करते रहे और आख़िरकार सफल हुए।”

शुरुआत में घुषे दंपत्ति ने दो गोताखोरों को डैम पर तैनात किया, जिनका दो साल तक करीब 14 हज़ार मासिक वेतन अपनी जेब से दिया।

‘मंदार एंड नो मोर’ अभियान की शुरुआत के अवसर पर अपने बेटे मंदार की फोटो पर फूल चढ़ाते विश्वास.

इसके अलावा, उनके साथ ही पुलिस चौकी को लाइफ जैकेट और रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए ज़रूरी सामान उपलब्ध करवाया, ताकि आपात स्थिति में तुरंत सहायता पहुंचाई जा सके। केरवा डैम को सुरक्षित बनाने के बाद ‘मंदार एंड नो मोर’ फाउंडेशन प्रदेश के अन्य जलाशयों को सुरक्षित करने के लिए प्रयासरत है। इसके अलावा, खासतौर पर बच्चों और युवाओं को जागरूक किया जा रहा है, क्योंकि डूबकर मरने वालों में इनकी तादाद सबसे ज्यादा होती है।

एक अनुमान के मुताबिक़, देश में हर साल 40 हजार से ज्यादा लोगों की मौत डूबने से हो जाती है। फाउंडेशन द्वारा जागरूकता फैलाने के लिए भोपाल से स्पीति वैली (हिमाचल प्रदेश) तक करीब 3500 किमी की बाइक रैली भी निकाली गई थी। जिसमें शामिल बाइकर्स पूरे रास्ते लोगों को जलाशयों से जुड़े खतरों से आगाह करते रहे।

लोगों को जागरूक करते ‘मंदार एंड नो मोर’ फाउंडेशन के वॉलेंटियर.

‘मंदार एंड नो मोर’ फाउंडेशन की सरकार से मांग है कि जलाशयों को सुरक्षित करने के लिए नीति बनाई जाए और 5 अक्टूबर को जल दुर्घटना रोकथाम दिवस घोषित किया जाए। इसके लिए उन्होंने एक पेटीशन भी फाइल की है, जिस पर आप यहाँ साइन कर सकते हैं।

इस पर विश्वास कहते हैं, “डूबने से मौत की ख़बरें आप हर रोज़ अख़बारों में पढ़ सकते हैं, कहीं प्रशासन की लापरवाही होती है तो कहीं लोगों की गलती, लेकिन चूँकि यह आंकड़ा एक-एक, दो-दो मौतों का होता है, इसलिए इस विषय की गंभीरता को नज़रंदाज़ कर दिया जाता है। हमारा मानना है कि यदि नीति बनेगी तो प्रशासन संभवतः ज्यादा गंभीरता से काम करे।”

इस मुद्दे को व्यापक स्तर पर ले जाने के लिए एक डॉक्यूमेंट्री भी बन रही है। बाहुबली फिल्म के सिनेमेटोग्राफर यू.के. सेंथिल कुमार इसे तैयार कर रहे हैं। विश्वास के आग्रह पर सेंथिल भोपाल आए थे और उस जगह का दौरा भी किया जहाँ मंदार की मौत हुई थी। इसके बाद वे ‘मंदार एंड नो मोर’ फाउंडेशन से जुड़े और जलाशयों में होने वाली मौतों के संबंध में लोगों को जागरूक करने के लिए डॉक्यूमेंट्री पर काम करने लगे।

‘द बेटर इंडिया’ के माध्यम से विश्वास एवं प्रतिभा लोगों से कहना चाहते हैं कि जिंदगी अनमोल है, उसे थोड़े से रोमांच के लिए जोखिम में न डाले। जलाशयों से दूर रहें, क्योंकि पानी के नीचे क्या है, हम नहीं जानते। पैरेंट्स को भी चाहिए कि इस विषय में अपने बच्चों को जागरुक करें, जागरूकता ही बचाव की पहली सीढ़ी है।

यदि आप भी घुषे दंपत्ति के इस अभियान का हिस्सा बनना चाहते हैं तो उनसे 98270 57845 पर संपर्क कर सकते हैं।आप ‘मंदार एंड नो मोर’ फाउंडेशन के फेसबुक पेज से भी जुड़ सकते हैं।

संपादन – भगवती लाल तेली


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