अक्सर हम सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं की कमी और वहां के स्टाफ के लापरवाह व्यवहार की आलोचना करते हैं। लेकिन आज हमारे पास ऐसी एक कहानी है जो सरकारी अस्पतालों के बारे में आपके नज़रिए को थोड़ा बदल देगी। क्योंकि जब हम कमियाँ गिनाने से पीछे नहीं रहते तो कुछ अच्छा काम होने पर हौसला-अफजाई से भी पीछे नहीं रहना चाहिए।
हाल ही में, नागपुर के इंदिरा गाँधी सरकारी कॉलेज और अस्पताल में कार्यरत स्टाफ नर्स, सविता इखर ने नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU) में अकेले नौ प्री-मैच्योर बच्चों (4 लड़के और 5 लड़कियाँ) की जान बचायी।
31 अगस्त 2019 को सविता NICU के पोस्ट-बर्थ यूनिट से बाहर आ रही थीं, जब उन्होंने एक इलेक्ट्रिक स्पार्क देखा और इससे पहले कि वे कुछ प्रतिक्रिया कर पातीं, शॉर्ट सर्किट हो गया। “मैं उस वक़्त बिल्कुल अकेली थी वहां पर और कोई आस-पास नहीं था। मुझे सबसे पहले वार्ड में बच्चों का ख्याल आया जिनके पास उनके माता-पिता या रिश्तेदार कोई नहीं था। बिना समय गंवाएं मैं तुरंत वार्ड में पहुंची और मैंने नौ में से चार बच्चों को उठा लिया,” सविता ने बताया।
उन्होंने आगे कहा कि, “माता-पिता राज्य के अलग-अलग भागों से आते हैं, इसलिए वे अस्पताल के पास ही कहीं न कहीं रुकने के लिए जगह ले लेते हैं।
आईसीयु में इन्फेक्शन से बचने के लिए माता-पिता को अंदर जाने की इजाज़त नहीं होती है। एक बच्चे ने तो जन्म के समय ही अपनी माँ को खो दिया और उसके पास अब कोई रिश्तेदार ही है।”
सूझ-बुझ का परिचय देते हुए सविता ने सबसे पहले सारे ऑक्सीजन सिलिंडर को बंद कर दिया था। अगर वो ऐसा न करती तो परिणाम और भी भयानक हो सकता था। इसके अलावा, उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि बच्चों के नाम के टैग सही तरह से लगें ताकि बाद में कोई परेशानी न हो।
एक बार जब सविता ने बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाल दिया तो एक और नर्स उनकी मदद के लिए आ गयीं। “हमने पहले चार बच्चों को एक कमरे में छोड़ा जहाँ वे सुरक्षित थे और इसके बाद मैं बाकी पांच को लेने गयी। उनको ऑक्सीजन मास्क लगे हुए थे,” सविता ने कहा।
अपने मोबाइल फ़ोन की टोर्च लाइट की मदद से वे आईसीयु तक पहुंची और दूसरे बच्चों को भी बचाया।
ये सभी बच्चे प्री-मैच्योर थे और इसलिये इन्हें ऑक्सीजन मास्क, आइवी ड्रिप आदि लगी हुई थी। सविता ने बच्चों को सुरक्षित जगह पहुंचा कर, फिर से उन्हें ऑक्सीजन मास्क और ड्रिप लगाये। उन्होंने सबसे पहले उस बच्चे को देखा जिसे सबसे ज़्यादा ऑक्सीजन की ज़रूरत थी और फिर दूसरों को चेक किया। इन बच्चों की उम्र चंद घंटों से लेकर पंद्रह दिनों के बीच है। किसी भी बच्चे का वजन डेढ़ किलो से ज़्यादा नहीं था।
सविता ने फिर बच्चों के माता-पिता और रिश्तेदारों को बुलाकर घटना की जानकारी दी। अस्पताल के डीन डॉ. अजय केओलिया ने बताया कि सिर्फ शॉर्ट सर्किट हुआ था पर कोई आग नहीं लगी। उन्होंने कहा, “पूरे अस्पताल और स्टाफ को सविता की सूझ-बूझ पर गर्व है।”
इन बच्चों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सविता की नौकरी का हिस्सा है और उन्होंने ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई। हम उनके इस जज़्बे को सलाम करते हैं और उम्मीद करते हैं कि हम सभी अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने के लिए हमेशा ऐसे ही तत्पर रहें।
संपादन – मानबी कटोच