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दो दशक से 5 रुपये में ही बिक रही है यह स्वदेशी जेल पेन, पीछे है एक रोचक कहानी

linc gel pens

पुणे की रहने वाली अमृता पाटिल याद करते हुए कहती हैं कि कैसे हर परीक्षा से पहले वह स्टेशनरी की दुकान जाती थी और पेंसिल, इरेज़र, एक ब्लैक बॉल पेन और पाँच जेल पेन का सेट (Linc Gel Pens) खरदती थीं। इन जेल पेन का इस्तेमाल वह अपने बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की डिग्री के सात विषयों के परीक्षा देने के लिए करती थीं। वह कहती हैं कि ये जेल पेन खरीदना उनके लिए एक रस्म की तरह था और ग्रैजुएशन के तीनों साल में इसका पालन उन्होंने बड़ी शिद्दत से किया है।

2010 में ग्रैजुएशन पूरा करने वाली अमृता कहती हैं, “इस जेल पेन की अच्छी पकड़ थी, इससे आसानी से लिखा जा सकता था, एक पेन काफी दिनों तक चलती थी और यह किफायती भी थी। यह ब्रांड कभी नहीं बदला, क्योंकि बाजार में उपलब्ध अन्य पेन की तुलना में यह सबसे सस्ती जेल पेन थी। अगर कभी कोई पेन मुझसे गुम भी हो जाता था तो मुझे अपराध-बोध कम होता था।”
इस पेन का नाम था Linc Ocean gel!

अमृता की तरह ही, भारत भर में कई छात्रों की यह पसंदीदा पेन है। इसके दो कारण हैं, एक यह कि इसकी स्याही उच्च गुणवत्ता वाली है और दूसरी यह कि यह काफी सस्ती होती है – एक पेन की कीमत केवल 5 रुपये है। हर महीने करीब पाँच मिलियन Linc Ocean gel पेन भारत भर में बेचे जाते हैं, जिससे यह कंपनी के इतिहास में सबसे अधिक बिकने वाला पेन बनता है।

सफलता की स्क्रिप्ट लिखने वालों के लिए सही कलम

Linc ने जेल पेन मार्केट में अपनी जगह बनाई। शहरी से लेकर ग्रामीण क्षेत्र तक इसने अपनी पहुँच बनाई। लिंक पेन एंड प्लास्टिक लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर, दीपक जालान कहते हैं, “Linc पेन की इस रेंज को 2003 में लॉन्च किया गया था और आज भी इसे उसी कीमत पर बेचा जा रहा है। बाजार में अच्छी पकड़ बनाने का कारण, इस पेन की कम कीमत ही थी।”

कोलकाता स्थित यह कंपनी 1976 में शुरु की गई थी। बाजार में इस पेन की 50 से अधिक किस्में उपलब्ध हैं और यह लगभग 400 करोड़ रुपये का वार्षिक कारोबार करती है।

द बेटर इंडिया से बात करते हुए, दीपक कहते हैं, “भारतीय बाजारों में आने वाली यह पहली जेल पेन नहीं थी। लेकिन बाजार में जो पहले से उपलब्ध पेन थे, वे हमारे जेल पेन से पाँच गुना ज्यादा कीमत पर बेचे जा रहे थे। जिन कंपनियों ने जेल पेन मार्केट पर अपना दबदबा कायम रखा हुआ था, वे 20 से 25 रुपये तक में उसे बेच रहे थे। ये कई छात्रों के बजट से बाहर था।”

दीपक कहते हैं कि यह जेल पेन मार्केट में अपने अनोखे गुणों के कारण पकड़ बना रही थी।

वह कहते हैं, “जेल पेन देश में 1996-97 के आसपास लॉन्च किया गया था। फाउंटेन पेन और बॉल पेन के मुकाबले इस पेन में एक तरह की धार ( edge ) थी। भारत में बच्चे जब माध्यमिक स्कूल में जाते हैं, तो पेंसिल छोड़, पेन का इस्तेमाल करना शुरु करते हैं। उस समय भी, फाउंटेन पेन का उपयोग करना बहुत असुविधाजनक था, क्योंकि वे अक्सर लीक होते थे और खराब गुणवत्ता के होते थे। हालांकि, इन पेन में पानी आधारित स्याही का इस्तेमाल किया जाता था, जो लिखते समय अधिक नियंत्रण प्रदान करते थे। वहीं बच्चों के माता-पिता बॉल पेन ज्यादा पसंद नहीं करते थे, क्योंकि इससे लिखावट पर असर पड़ता था। हालांकि, उन पेन की टिप अच्छी होती थी। ऐसे में जेल पेन सबकी जरुरतों को पूरा करती थी। जेल पेन की टिप बॉलपॉइंट पेन की तरह होती है, और रिफिल में पानी आधारित स्याही होती है।”

इसलिए, कंपनी ने एक सस्ते जेल पेन की पेशकश करने का फैसला किया। दीपक कहते हैं, “क्षेत्र की अन्य कंपनियों की तरह, हमने जापानी स्याही का इस्तेमाल किया, लेकिन एक अच्छी गुणवत्ता वाली टिप का निर्माण किया और पेन की बॉडी के लिए कम लागात वाला समाधान निकाला। इससे लिखावट पर बिना कोई असर डाले लागत को कम करने में मदद मिली।”

दीपक का कहना है कि माता-पिता या छात्र आमतौर पर पाँच या दस के सेट का पेन खरीदते थे। वह कहते हैं, “सेट में इन पेन को खरीदने से, कुल लागत 50% तक कम हो गई थी। इसलिए, यह शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में काफी पसंदीदा कलम बन गया।”

दिलचस्प बात यह है कि कंपनी ने अपना पहला जेल पेन 2001 में ‘हाय-स्कूल जेल पेन’ लॉन्च किया था और इसकी कीमत 10 रुपये रखी थी।

चेहरे पर मुस्कान के साथ दीपक बताते हैं, “यह बाजार में एकदम हिट हो गया। यह अभी भी बाजार में सबसे सस्ता था। लेकिन, ओशन जेल पेन ने बिक्री के मामले में सबको पीछे छोड़ दिया।”

किंग खान की पसंद की कलम

कंपनी की शुरुआत दीपक के पिता सूरज मल जालान ने की थी। वह कहते हैं कि उत्पाद का नवाचार करना और उच्च गुणवत्ता वाले पेन बनाना कंपनी की प्राथमिकता रही है।

अपने पिता के बारे में दीपक कहते हैं, “मेरे पिता ने 1976 में कंपनी लॉन्च की। वह पढ़ने के लिए 1960 के दशक में राजस्थान से कोलकाता चले गए। अपने शैक्षणिक जीवन के दौरान अच्छी गुणवत्ता वाले पेन खरीदने में उन्होंने काफी परेशानियों का सामना किया।”

दीपक बताते हैं कि उन दिनों फाउंटेन पेन का उपयोग करना काफी असुविधाजनक था, क्योंकि अक्सर स्याही फैल जाती थी और नियमित रखरखाव की जरुरत होती थी। फिर बॉलपॉइंट पेन आया, जिसकी कीमत 10 रुपये थी, जो उस समय छात्रों के लिए महँगी थी।

दीपक कहते हैं कि उस समय भारत में पेन मैन्युफैक्चरिंग उद्योग में, रिसर्च ज़्यादा अच्छी नहीं थी। वह आगे बताते हैं, “मेरे पिता ने दो दोस्तों की मदद ली और कुछ हज़ार रुपये का निवेश किया। उन्होंने जर्मनी से स्याही और स्विट्जरलैंड से टिप का आयात किया और एक कंपनी बनाई, जो 2 रुपये में बॉल पेन बनाता था।

धीरे-धीरे बिजनेस बढ़ा और कंपनी ने पश्चिम बंगाल और उत्तर पूर्व भारत में अच्छी पकड़ बना ली। 1995 में कंपनी सार्वजनिक हो गई। उसी दशक में, कंपनी ने दक्षिण पूर्व एशियाई देशों और दुनिया के अन्य हिस्सों में भी निर्यात करना शुरू कर दिया, जिसमें मध्य पूर्व, अफ्रीका और USA शामिल हैं।

लेकिन, दीपक का कहना है कि जेल पेन बाजार में प्रवेश करने से पूर्वी भारत के बाहर भी मजबूत पकड़ हासिल करने में मदद मिली है। वह बताते हैं कि एक के बाद एक दो जेल पेन लॉन्च ने टीयर I, II और III शहरों तक पहुंचने में मदद की। वह कहते हैं, “कलम निर्माण उद्योग बहुत ही नाजुक और कमजोर है। इसलिए, यह एक बड़ी उपलब्धि थी।”

दीपक कहते हैं कि, सारे पेन आमतौर पर समान दिखते हैं और इनमें लगभग समान गुणवत्ता होती है। वह कहते हैं, “जब तक कि पेन एकदम अलग ना हो, ग्राहकों के लिए ब्रांड से कोई फर्क नहीं पड़ता है। रेनॉल्ड्स 045 जैसे उत्पाद दशकों से इसे हासिल करने में सक्षम हैं।”

वह कहते हैं कि हर कंपनी प्रत्येक वर्ष कई पेन लॉन्च करती है। उन्होंने बताया “हम हर साल तीन उत्पाद बाजार में लाते हैं। यह बाजार में नवीनता पैदा करना और युवा पीढ़ी के लिए कई किस्म उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है। इससे प्रतिस्पर्धा कठिन हो जाती है।”

कंपनी ने 2008 में, जेल पेन की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए बॉलीवुड अभिनेता शाहरुख खान को भी शामिल किया। दीपक बताते हैं, “इससे उत्पाद को एक अलग पहचान बनाने और लोकप्रिय बनने में मदद मिली। तब से, यह स्कूली छात्रों की पसंदीदा कलम बन चुकी है।”

दो जेल पेन के अलावा, पेंटोनिक, ग्लिसर और ग्लिटर अन्य किस्में हैं, जो कंपनी के लिए राजस्व का अधिकांश हिस्सा कमाती हैं। पेन की कीमत 5 से 20 रुपये के बीच है।

2012 में, जापान की मित्सुबिशी पेंसिल ने Linc में 13% हिस्सेदारी ली।

कोविड का असर

उद्योग की वर्तमान स्थिति पर चर्चा करते हुए, दीपक कहते हैं, तकनीकी रुप से कई प्रगतियाँ हुई है। वह कहते हैं, “दस साल पहले पेन बाजार में 5 और 10 रुपये की कीमत पर लाया गया था और आज भी उसकी कीमत वही है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि हमने बिजनेस में टेक्नोलोजी को ज्यादा अपनाया है। उदाहरण के लिए, पहले, पेन की असेंब्ली मैन्युअल रूप से की जाती थी, लेकिन अब ऑटोमेटिक मशीनें हैं जो उत्पादन लागत को कम करती हैं।”

दीपक का कहना है कि स्याही की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ है। वह बताते हैं कि पहले एक साल तक इस्तेमाल नहीं करने पर बॉलपॉइंट पेन की स्याही सूख जाती थी। लेकिन, अब स्याही दो साल या उससे अधिक समय तक चलती है। दीपक ने बताया कि उत्पादों की गुणवत्ता के स्तर में भी सुधार हुआ है।

दीपक का कहना है कि कंपनी विभिन्न उत्पादों के माध्यम से बाजार में पहचान बनाने के साथ-साथ गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए संघर्ष तो कर ही रही है। इसके साथ ही, कोविड-19 के आने से पैदा होने वाली समस्याओं से भी जूझ रही है।

वह बताते हैं, “लॉकडाउन के कारण शैक्षणिक संस्थानों को मजबूरन रातोंरात बंद होना पड़ा। कॉपी-पेन की जगह छात्रों के हाथों में टैबलेट आ गया और सेल फोन आ गए। पेन का इस्तेमाल काफी कम हो गया। खपत लगभग 40% तक गिर गई। हमारे सामने एक बड़ा सवाल खड़ा था कि जब स्टेशनरी की दुकानें बंद हैं, तो अपना उत्पाद कैसे बेचें? ”

दीपक कहते हैं कि कंपनी ने एक समाधान ढूंढ निकाला और मेडिकल स्टोर, पान की दुकान, सुपरमार्केट, और किराने की दुकानों सहित नॉन-स्टेशनरी दुकानों को लक्षित किया। वह कहते हैं, “ग्राहक ऐसी जगहों से सामान खरीदते हैं, इसलिए हमने भारत में ऐसी 50,000 दुकानों के साथ संपर्क किया और मिलकर काम करने का फैसला किया। ऑर्डर के साथ कॉर्डिनेट करने और बिक्री बढ़ाने के लिए हमने टेलीमार्केटिंग के लिए 300 लोगों को नियुक्त किया। इसने हमें जोखिमों से बचने में मदद की और फील्ड से हटकर काम करके बिक्री टीम की सुरक्षा सुनिश्चित की। ”

दीपक का कहना है कि पेन निर्माण प्रक्रिया में स्थिरता लाने के लिए योजनाएं चल रही हैं। वह कहते हैं, “व्यवसाय प्लास्टिक का उपयोग करने पर निर्भर करता है, और ‘यूज़ एंड थ्रो’ संस्कृति ने प्रदूषण के मुद्दों को बढ़ा दिया है। इसलिए, कंपनी ने रिफिलेबल पेन पेश किया। ऐसी तीन किस्म की पेन हैं, जिन्हें 2018 में लॉन्च किया गया था। हमारा उदेश्य स्थायी मूल्यों और संस्कृति को बढ़ावा देना और साथ ही, ग्राहकों को अधिक रिफिल खरीदने और पेन कोफिर से इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करना है।”

मूल लेख- हिमांशु नित्नावरे

संपादन- जी एन झा

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