शार्क टैंक इंडिया शो से रातों-रात हिट हुए जुगाड़ू कमलेश कहते हैं, “जब मैं शो की शूटिंग के लिए दरवाजे के पीछे खड़ा था। तब मुझे अपनी पुरानी जिंदगी याद आ रही थी। खेती की जिन दिक्क्तों को मेरे पिता ने झेला वह कई और किसानों की दिक्क़तें भी होंगी। दरवाजे के आगे मेरे लिए एक मौका था, जिससे मैं अपने जुगाड़ उन सभी किसानों तक पहुंचाकर मदद कर सकता हूं।”
और जिस ढंग से 27 वर्षीय कमलेश ने इस मौके का फायदा उठाया, करोड़ों देशवासी उनके फैन हो गए। महाराष्ट्र के मालेगांव के समीप स्थित तारपाडा गांव में कबाड़ इकट्ठा करके जब कमलेश घुमारे जुगाड़ बनाते थे। तब उनके गांव वाले उनकी बनाई चीजों को देखकर दंग रह जाते थे। कमलेश जानते थे कि इन जुगाड़ों की जरूरत उनके जैसे हर एक किसान को है।
लेकिन उनके पास न बिज़नेस का कोई आईडिया था न कोई प्रॉपर प्रोडक्ट। उनके पास था तो केवल बस कुछ जुगाड़, जिनपर उनको यकीन था। फिल्मों के शौक़ीन कमलेश को पढ़ाई ज्यादा समझ नहीं आती थी लेकिन दिमाग बड़ा तेज था। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि बीसीए के एक पेपर में तीन बार फेल होने वाले कमलेश का बनाया कोई भी जुगाड़ कभी फेल नहीं हुआ है।
बारिश में ट्रेक्टर चलाने की दिक्क्त को देखकर उन्होंने एक केबिन वाला ट्रेक्टर बनाया। खेत में बीज बोने में दिक्क्त आई तो उसकी मशीन बना डाली। दिक्क़तें आती गई और कमलेश जुगाड़ बनाते गए।
लेकिन अपने जिस जुगाड़ को लेकर वह शो पर पहुंचे थे, वह उनके लिए बहुत खास था। जिसे बनाने के लिए उन्होंने सात साल लगा दिए। बात 2014 की है, जब उनके पिता ने उन्हें खेत में कीटनाशक छिड़कने को कहा। 20 लीटर के उस टैंक को एक दिन पीठ पर लादकर उनकी हालत ख़राब हो गई। कमलेश ने फैसला किया कि इस दिक्क्त का जुगाड़ तो निकलना ही है। दिन-रात की मेहनत और कई प्रयासों के बाद आखिरकार उन्होंने मल्टी यूज़ ट्राली बनाई।
अपनी इस ट्राली को दूसरे किसानों तक पहुंचाने का कोई रास्ता उनको समझ नहीं आ रहा था। ऐसे में अपने बहनोई और दोस्तों की मदद से उन्हें शार्क टैंक इंडिया शो के बारे में पता चला। और फिर वह दिन भी आया जब उन्हें शो में इंट्री मिल गई।
बड़े फ़िल्मी अंदाज से उन्होंने शो में अपने जुगाड़ को पेश किया और शानदार सफलता हासिल की। यही वजह है कि आज हर जगह कमलेश की ही चर्चा हो रही है।
संपादन- जी एन झा
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