रिटायर्ड कर्नल शंकर वेम्बू हमेशा से भारतीय सेना में शामिल होना चाहते थे। उनके दिल में देश की सेवा करने की भावना बचपन से ही थी। इसलिए उन्होंने पहले एनडीए और फिर आईएमए जॉइन किया।
साल 1997 में उन्हें भारतीय सेना में कमीशन किया गया था। फिर साल 1998 में जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में आतंकियों को हटाने के लिए सेना के एक ऑपरेशन के दौरान उनकी बहादुरी के लिए उन्हें शौर्य चक्र से नवाज़ा गया। इसके बाद उन्होंने 1999 में कारगिल युद्ध के ऑपरेशन विजय में भी अपनी सेवाएँ दीं।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए कर्नल शंकर ने कहा कि ऑपरेशन विजय के अनुभव ने उनकी ज़िंदगी बदल दी। “उस वक़्त मैं युवा अफ़सर था, सिर्फ़ दो साल हुए थे सेना में। खुशकिस्मती से, हमारी यूनिट से कोई घायल नहीं हुआ था जबकि भारतीय सेना ने ऑपरेशन के दौरान अपने 500 से भी अधिक सिपाही और अफ़सर खोए थे।”
कर्नल शंकर ने सिर्फ़ 20 साल ही सेना में नौकरी की और फिर उन्होंने रिटायरमेंट ले ली।
वे बताते हैं कि बिना किसी युद्ध या फिर हमले की स्थिति के भी भारतीय सेना सर्विस के दौरान किसी न किसी दुर्घटना के चलते अपने सैनिकों को खो रही है। ऐसे सैनिक और अफ़सरों को मरने के बाद ‘शहीद’ होने का मुक़ाम भी नहीं मिलता है। ऐसे में, इन सिपाहियों के घर वाले ज़्यादातर सेना द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं। कोई नहीं पूछता कि इन सैनिकों का परिवार इनके बाद कैसे गुज़र-बसर कर रहा है।
इसलिए उन्होंने अपनी नौकरी खत्म होने से पहले ही रिटायरमेंट ले ली क्योंकि उन्हें लगा कि इन सैनिकों के परिवारों की मदद करना भी देश की सेवा है। उन्होंने फ़ैसला किया कि वे सैन्य ट्रैनिंग या फिर अपनी नौकरी के दौरान किसी दुर्घटना में मरे सैनिकों और अफ़सरों के घरों तक सेना से मिलने वाली सभी तरह की मदद को पहुंचाएंगे।
उनकी इस पहल का नाम उन्होंने ‘प्रोजेक्ट संबंध’ रखा। यह 1000 दिनों का एक प्रोजेक्ट है, जिसमें वे भारतीय सेना के इन दिवगंत सिपाहियों के परिवारों से संपर्क कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि भारतीय सेना ने साल 2019 को सैनिकों के परिवार का साल घोषित किया है।
कर्नल शंकर ने अपने इस प्रोजेक्ट को अपनी ड्यूटी से रिटायरमेंट लेने से पहले 15 अगस्त 2017 को ही शुरू कर दिया था और यह प्रोजेक्ट 11 मई 2020 को खत्म होगा।
हर साल किसी दुर्घटना, बीमारी, आत्महत्या आदि के चलते भारतीय सेना के 1500-2000 सैनिकों की जान चली जाती हैं। जहाँ शहीदों के परिवार की मदद के लिए बहुत से लोग आगे आते हैं तो वहीं इस तरह की स्थिति में जान गंवाने वाले सैनिकों के परिजन सिर्फ़ एक पेंशन के भरोसे छोड़ दिए जाते हैं। उन्हें न तो कोई आर्थिक मदद मिलती है न ही भावनात्मक!
बहुत बार इन सैनिकों की पत्नी और बच्चे घर से अलग हो जाते हैं। जिसके चलते सेना के लिए उनका रिकॉर्ड रखना मुश्किल होता है।
इस वजह से भारतीय सेना और सैनिकों के इन निकटतम परिजनों के बीच का संपर्क लगभग टूट ही जाता है। ऐसे में, ये परिवारजन अपने सैनिक पति और पिता की मृत्यु के बाद मिलने वाली कई तरह की स्कीम और सुविधाओं से अनभिज्ञ रहते हैं।
प्रोजेक्ट संबंध का उद्देश्य इन परिवारजनों के प्रति सैन्य अधिकारियों और आम नागरिकों में जागरूकता फैलाना है। हालांकि, इस राह में बहुत-सी चुनौतियाँ हैं जिनका सामना कर्नल शंकर हर दिन बहादुरी से करते हैं।
सबसे पहली मुश्किल है इन सैनिकों के परिजनों का पता लगाकर उन तक पहुंचना, फिर वेरीफाई करना और यह सुनिश्चित करना कि सभी तरह की मदद उन तक पहुंचे। पिछले दो सालों में उन्होंने कुछ ऐसे ही परिवारों की जानकारी इकट्ठा की और फिर अच्छे से समीक्षा करके उन परिवारों को भी जोड़ा है जिनका नाम रिकार्ड्स में दर्ज नहीं है।
उन्होंने अब तक ऐसे 27,000 परिवारों को ढूंढ निकाला है और अब उनका यह प्रोजेक्ट अपने आख़िरी चरण में है। साथ ही, उनके इस काम से उन सैन्य अधिकारियों की जागरूकता भी काफ़ी बढ़ी है जिन पर इन परिवारों तक सभी सुविधाएँ पहुँचाने की ज़िम्मेदारी है।
“बहुत मेहनत से जो भी जानकारी मैंने इकट्ठा की है और जो भी डाटा तैयार किया है, उसे इस्तेमाल करके मुझे मेरे गाँव (तंजावुर जिले में) के पास का एक नाम मिला। सिर्फ़ स्वर्गीय सैनिक (हवलदार के. पोंमुदी) का नाम और एक पता, मैं उनके घर गया। वहां पर, दिवंगत सैनिक का भाई मुझे मिला, जो सैनिक की पत्नी (सरस्वती) और बेटे (नंद बाला) के प्रति बहुत कटु था। उसने मुझे बताया कि वे लोग अब उनके साथ नहीं रहते और उस विधवा को किसी भी तरह की मदद की ज़रूरत नही है,” कर्नल शंकर ने पिछले दिसंबर यह बात अपने फेसबुक पोस्ट में साझा की।
सैनिक के भाई के व्यवहार से कर्नल काफ़ी हैरत में थे और उन्हें समझ आया कि क्यों सैनिक की पत्नी और बेटे को उन सुविधाओं के बारे में नहीं बताया जा सका, जिन पर उनका हक़ है। इसलिए उन्होंने उस यूनिट में संपर्क किया, जहाँ दिवंगत सैनिक थे और बहुत कोशिशों के बाद उन्हें सरस्वती और उनके बेटे के बारे में पता चला। वे लोग चेन्नई के छोटे से घर में रह रहे थे।
जब कर्नल शंकर उनसे मिलने गए तो उन्हें पता चला कि आर्थिक तंगी के चलते उस माँ ने कितना संघर्ष किया है और साथ ही, हर दिन कैसे वह समाज का सामना करती हैं। सरस्वती ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, “मैंने आख़िरी बार अपने पति से दिसंबर, 2014 में बात की थी और जब मैंने उनसे बात की थी तो वे थोड़े परेशान लग रहे थे। उसके लगभग एक महीने बाद मुझे सेना से अपने पति की मौत की खबर मिली।”
कर्नल शंकर ने आगे लिखा कि सरस्वती का घर उनके बेटे की ख़बरों से भरा पड़ा था। हवालदार के. पोंमुदी का बेटा नंद बाला चेन्नई के केन्द्रीय विद्यालय में नवीं कक्षा का छात्र है। उस बच्चे की क्षमता का पता इस बात से ही लगाया जा सकता है कि सिर्फ़ 3 साल की उम्र में उसे सभी देशों के नाम और उनकी राजधानियों के नाम मुंहज़ुबानी याद थे। बहुत से सॉफ्टवेयर उसने खुद सीखे, कर्नाटिक म्यूजिक की ट्रेनिंग ली है और तमिलनाडु के जूनियर शूटिंग चैंपियनशिप में प्रतिनिधित्व किया है।
“मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई यह जानकर कि उन्होंने इतने सालों में अपने लिए उपलब्ध किसी भी एजुकेशनल स्कॉलरशिप के लिए अप्लाई नहीं किया है। लेकिन उनके पास सभी कागजात थे तो मैंने उन्हें सभी स्कीम समझाई और तीन मिनट के अंदर उनका फॉर्म भर दिया। उन्हें स्कॉलरशिप का दावा करना चाहिए। पैसे भी ज़्यादा, यह एक तरह का संपर्क बनाये रखने का ज़रिया है,” उन्होंने कहा।
नंद बाला फ़िलहाल नीट परीक्षा की कोचिंग कर रहा है वह संगीत में अपनी प्रतिभा को आगे बढ़ाने के अलावा, शूटिंग में भारत के लिए पदक जीतने की इच्छा भी रखता है। कर्नल शंकर के प्रयासों के कारण, उसकी कोचिंग के लिए स्पोंसरशिप मिल रही है जबकि बहुत से अन्य लोग उसकी शूटिंग कोचिंग को स्पोंसर करने के लिए भी तैयार हैं।
“ज़्यादातर वेलफेयर स्कीम शिक्षा के लिए है और कुछ वोकेशनल व सोशल है। शिक्षा के लिए विशेष रूप से, इन सैनिकों के जो बच्चे स्कूल या कॉलेज जा रहे हैं वे छात्रवृत्ति जैसे लाभों के हकदार हैं। कक्षा एक से आठवीं तक के लिए उन्हें प्रति वर्ष 10,000 रुपए मिलते हैं। 9वीं से 12वीं कक्षा तक उन्हें प्रति वर्ष 14,000 रुपए मिलते हैं। इसके अलावा ग्रेजुएशन करने वालों को 20,000 रुपए, पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए 25,000 रुपए और प्रोफेशनल कोर्स के लिए 50,000 रुपए सालाना मिलते हैं। सोशल स्कीम में, उदाहरण के लिए, अगर कोई सैनिक की विधवा फिर से शादी करती है, तो उसे 1,00,000 रुपए मिलते हैं। इन सुविधाओं को प्राप्त करना बहुत ही आसान है,” विजय दिवस पर द फ़ेडरल को एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने बताया।
यह एक पेज का फॉर्म है जिसे सैनिकों के निकटतम परिवारजन www.indianarmyveterans.gov.in से डाउनलोड कर सकते हैं।
ऐसा ही एक और उदाहरण याद करते हुए उन्होंने बताया कि उन्हें जम्मू-कश्मीर के राजौरी जिले के सुंदरबनी गाँव में भी एक सैनिक की विधवा के बारे में पता चला। शादी के दो साल बाद ही उसने अपने पति को दिल का दौरा पड़ने से खो दिया। पति के मौत के बाद दो साल की बेटी की ज़िम्मेदारी भी उसी पर आ गई ।
कर्नल को इस केस पर छानबीन करने पर पता चला कि अधिकारियों ने उसके पति की मौत का कारण गलत बताया था और उसे कुछ भी नहीं मिला सिवाय चंद रुपयों की पेंशन के।
“माँ के साथ उसकी बेटी भी थी जिसने अपने पिता को सिर्फ़ दो साल की उम्र में खो दिया था। उसने अपना हाथ मिलाने के लिए बढ़ाया और अपना नाम निहारिका बताया। अब 15 साल की यह बच्ची बिल्कुल अपने नाम की तरह है। जब मैंने उससे पूछा कि वह क्या बनना चाहती है तो उसने तुरंत जबाव दिया ‘कार्डियोलॉजिस्ट’,” कर्नल शंकर ने अपनी एक और फेसबुक पोस्ट में यह बात साझा की।
वैसे तो उस माँ ने टीचर की नौकरी ले ली और अपनी बेटी को पढ़ा-लिखा रही हैं, पर उनके लिए भी ज़िंदगी आसान नहीं रही। यहाँ पर कर्नल शंकर ने एक बार फिर एक सैनिक के परिवार को सेना से जोड़ दिया। इस परिवार को न सिर्फ़ उनके हक़ की मदद मिली बल्कि उस यूनिट ने भी उनसे संपर्क किया जहाँ दिवंगत सैनिक तैनात थे।
कर्नल शंकर का यह 1000 दिन का प्रोजेक्ट खत्म होने के कगार पर है और उसके बाद क्या?
इस सवाल के जबाव में वे कहते हैं, “मुझे विश्वास है कि ज़रूर कुछ सकारात्मक होगा। मुझे उम्मीद है कि जागरूकता फ़ैलाने की मेरी इन कोशिशों का असर पॉलिसी लेवल पर भी दिखेगा, जिसके बाद इन परिवारजनों को और बेहतर सुविधाएँ मिलेंगी। अभी के लिए, मेरा उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ये 1000 दिन भारतीय सेना और इन सैनिकों व अफसरों के परिवारों के बीच एक वास्तविक संपर्क स्थापित करें।”
कर्नल शंकर को उम्मीद हैं कि इन 1000 दिनों के बाद इन सैनिकों के परिवार स्वस्थ और खुश रहेंगे। बेशक, भारतीय सेना में देश की सेवा करने वाले सैनिकों के परिवार हर तरह की मदद के हक़दार हैं!
कर्नल शंकर से संपर्क करने के लिए आप उन्हें theprojectsambandh@gmail.com पर मेल कर सकते हैं और उनकी वेबसाइट www.projectsambandh.com देख सकते हैं!
संपादन: भगवती लाल तेली
मूल लेख: रिनचेन नोरबू वांगचुक