सर्वेक्षण और रिपोर्ट्स के मुताबिक,भारत की कुल आबादी में से लगभग 2.21% लोग दिव्यांग हैं और इनमें भी सबसे ज़्यादा संख्या उन लोगों की है जो कि चल-फिर नहीं सकते। इन आंकड़ों के मुकाबले अगर हम देश की विकास गति को देखें तो आज भी भारत का इंफ्रास्ट्रक्चर, यहाँ तक कि हमारा समाज भी दिव्यांगों के अनुकूल नहीं है।
ऐसे में, देश के जाने-माने शिक्षण संस्थान IIT मद्रास द्वारा एक ‘स्टैंडिंग व्हीलचेयर’ का लॉन्च किया जाना, वाकई बहुत महत्वपूर्ण कदम है। फ़ीनिक्स मेडिकल सिस्टम्स संगठन और यूके स्थित चैरिटी रिसर्च संगठन, वेलकम ट्रस्ट की मदद से बनी यह स्टैंडिंग व्हीलचेयर, एक ऐसा इनोवेशन है जो कि ज़रूरत और संवेदना, दोनों भावनाओं को सार्थक करता है।
इस व्हीलचेयर का नाम है, ‘अराइज़,’ जिस पर बैठा हुआ कोई भी दिव्यांग व्यक्ति बिना किसी की मदद से खुद बहुत ही आसानी से खड़ा हो सकता है।
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इस खास व्हीलचेयर को IIT मद्रास के मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग की प्रोफेसर सुजाता श्रीनिवासन के नेतृत्व में टीटीके सेंटर फॉर रिहैबिलिटेशन रिसर्च एंड डिवाइस डेवलपमेंट (R2D2) ने डिजाइन करके बनाया है। यह स्टैंडिंग व्हीलचेयर 15 हज़ार रुपये की कीमत पर उपलब्ध है।
साल 2008 से, R2D2 अलग-अलग शारीरिक अक्षमताओं वाले लोगों के लिए विभिन्न उपकरणों को डिजाइन करने और बनाने के लिए ह्यूमन कइनेसीओलॉजी (मानव शरीर की हरकत/चाल की स्टडी) पर गहन शोध कर रहा है। फ़ीनिक्स मेडिकल सिस्टम्स ने इसे बनाने में मदद की और वेलकम ट्रस्ट ने इस प्रोजेक्ट को फंड किया है।
आखिर क्यों ज़रूरी है यह इनोवेशन?
वैसे तो सामान्य व्हीलचेयर इधर उधर जाने के लिए काफी है, लेकिन फिर भी बहुत-सी समस्याएं हैं जिन्हें यह हल नहीं कर सकती। उदाहरण के लिए जो लोग व्हीलचेयर का इस्तेमाल करते हैं, उन्हें बहुत ज़्यादा बैठे रहने के कारण अन्य कई तरह की स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां जैसे कि ब्लड सर्कुलेशन अच्छे से न होना आदि हो सकती हैं।
प्रोफेसर श्रीनिवासन ने बताया कि दिव्यांग-जनों के लिए यह ज़रूरी है कि वे नियमित तौर पर खड़े हों ताकि शरीर के निचले भाग का ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहे। पैरों के ऊपर कुछ वजन के पड़ने से पैरों की हड्डियां भी ख़राब नहीं होंगी। लेकिन नियमित तौर पर ऐसा करने के लिए इन्हें हमेशा किसी न किसी के साथ की ज़रूरत होती है, जोकि अक्सर संभव नहीं हो पाता। संकोच तथा साथी के आभाव में अक्सर दिव्यांग-जन नियमित तौर पर खड़े होने से परहेज़ ही करते हैं।
पर डॉक्टरों की माने तो खुद अपने पैरों पर खड़ा हो पाना सिर्फ शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत ज़रूरी है।
“एक युवा जो कभी भी कहीं भी जा सकता था, उसके लिए अचानक व्हीलचेयर पर सिमट कर रह जाना उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर कर सकता है। लोगों को देखते समय, किसी से बात करते समय, वह हमेशा ही खुद को बैठा हुआ पाता है और हर काम के लिए उसे किसी के सहारे की ज़रूरत होती है। यह बात उसके विश्वास और आत्म-सम्मान को बहुत प्रभावित कर सकती है। लेकिन खुद खड़े हो पाने की क्षमता होने से, ऐसे लोग ज़्यादा एक्टिव बनेंगे। इसलिए खड़े हो पाने की क्षमता उनके लिए लाइफ चेंजर की तरह है,” प्रोफेसर श्रीनिवासन ने आगे कहा।
कैसे हुई यह व्हीलचेयर डिज़ाइन?
IIT मद्रास ने ‘अराइज़’ व्हीलचेयर को तीन स्टेज में बनाया गया है। पहले स्टेज में, हाथ से ऑपरेट होने वाला एक लिंकेज बेस्ड मैकेनिज्म डेवेलप किया ताकि इसमें खड़े होने का फंक्शन काम करे। फिर इस व्हीलचेयर को ऐसे बनाया गया है जिससे कि इस पर बैठने वाले के हाथ से यह ऑपरेट हो।
बड़ी ही आसानी से, वे व्हीलचेयर को बैठने की पोजीशन से खड़े होने की और फिर खड़े से बैठने की पोजीशन में ला सकते हैं। इसका पूरा कंट्रोल इसे इस्तेमाल करने वाले के हाथ में होता है।
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इस प्रक्रिया में उन्हें बहुत ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। बल्कि, हाथों से व्हीलचेयर को चलाने के लिए जितना दम लगता है, उससे बहुत कम मेहनत उन्हें इस तरह बैठने और खड़े होने में करनी पड़ती। दिव्यांगों की आसानी के लिए ही व्हीलचेयर में एक गैस स्प्रिंग लगाया गया है। इसकी मदद से इसे दिव्यांगों के शरीर और वजन के हिसाब से कस्टमाइज़ किया जा सकता है।
इस स्टैंडिंग व्हीलचेयर को बनाने में पाँच साल से अधिक का समय लगा है। लेकिन साल 2015 से यह प्रोजेक्ट असल में शुरू हुआ, जब R2D2 ने वेलकम ट्रस्ट को फंडिंग के लिए अप्लाई किया।
“उन्होंने (वेलकम ट्रस्ट) हमारे साथ इस प्रोजेक्ट को वाक़ई सफल बनाने के लिए काम किया। जबकि फंडिंग एजेंसी इस तरह की चीज़ों में नहीं पड़ती हैं। उन्होंने ही सुझाव दिया कि अगर हमारा उद्देश्य इसे कमर्सियलाइज करना है तो हमें एक इंडस्ट्री पार्टनर ढूँढना चाहिए। IIT दिल्ली के कुछ साथियों ने मुझे फ़ीनिक्स मेडिकल सिस्टम्स के मैनेजिंग डायरेक्टर शशि कुमार से मिलवाया। शशि ने हमारे शुरूआती प्रोटोटाइप देखे और कहा कि यह बहुत ही किफायती तरीके से किया जा सकता है। किस्मत से, वेलकम ट्रस्ट से फंडिंग भी आ गयी,” प्रोफेसर श्रीनिवासन ने कहा।
उनके दो छात्र, स्वास्तिक दाश और विवेक सारदा ने अपनी डिग्री लेने के बाद साल 2015 से इस प्रोजेक्ट पर लगातार काम किया। क्योंकि उन्हें लगा कि इस प्रोजेक्ट से लोगों के जीवन में अच्छा बदलाव लाया जा सकता है।
उन्होंने आगे कहा कि उनकी टीम ने डिज़ाइन और एनालिसिस पर काम किया और फ़ीनिक्स ने उनकी प्रोटोटाइप बनाने में मदद की जो कि आगे टेस्टिंग के लिए गया। गंगा ट्रस्ट के को-फाउंडर एस. वैद्यनाथ ने उनकी टेस्टिंग में काफी मदद की। क्योंकि उनका ट्रस्ट दिव्यांगों को पुनर्वासित करने का काम करता है और इसके चलते, यह टीम सीएमसी वेल्लोर जैसे अस्पतालों, तमिलनाडु के अमर सेवा संगम एनजीओ, कर्नाटक में एपीडी और अन्य पुनर्वासित केंद्रों पर इसे टेस्ट कर पायी। इससे उन्हें अलग-अलग जगहों पर लोगों से काफी इनपुट मिले।
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उन्होंने बहुत-सी जगह दौरे किये जहां लोग व्हीलचेयर इस्तेमाल करते हैं ताकि उनकी परेशानियां और जरूरतें समझ सकें। इसलिए अराइज़ में खास सेफ्टी फीचर- इंटरलॉकिंग सिस्टम भी लगाया गया है ताकि नी ब्लॉक अगर पोजीशन में न भी हो तब भी व्हीलचेयर लॉक्ड रहे। इस व्हीलचेयर की कीमत 15, 000 रूपये है और इसे पोंडीचेरी स्थित फ़ीनिक्स फैक्ट्री में बनाया गया है।
कैसे काम करती है ‘अराइज़,’ देखिये इस वीडियो में:
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के केन्द्रीय मंत्री, थावरचंद गहलोत ने भी इस इनोवेशन की तारीफ़ की और कहा,
“मैं IIT मद्रास के R2D2 केंद्र द्वारा किए गए काम से बहुत प्रभावित हूँ और भविष्य में उनका सहयोग करने की इच्छा रखता हूँ।। मैं IIT मद्रास और अन्य सहयोगियों को विश्वास दिलाता हूँ कि हम मंत्रालय, विधायक संविधान विकास और सीएसआर फंड्स के माध्यम से जरूरतमंदों को स्टैंडिंग व्हीलचेयर उपलब्ध कराने का प्रयास करेंगे। इससे लोगों का स्वास्थ्य तो ठीक होगा ही, साथ ही उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।”
संपादन – मानबी कटोच