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एक युवा जिसकी पहल से मुस्कुराईं चंबा की 1300 जनजातीय महिलाएँ!

हुनरमंदों को बिचौलियों की वजह से हमेशा अपने काम के औने पौने दाम मिले हैं और यही हो रहा था हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले के जनजातीय समुदाय की गुणी महिलाओं के साथ। काम को सही दाम नहीं मिल रहे थे क्योंकि बिचौलिए बीच में मौज कर रहे थे। तब ऐसे में डॉ. हरीश शर्मा नाम के इस युवा ने आगे आकर जनजातीय समुदाय की इन महिलाओं की किस्मत बदल दी। ‛द बेटर इंडिया’ से बात करते हुए डॉ. शर्मा कहते हैं,

“मैं हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले का निवासी हूं। सभी जानते हैं कि चंबा एक जनजातीय क्षेत्र है। मैं पिछले 8 सालों से पांगी, भरमौर, महला, किन्नौर, लाहौल स्पीति जैसे जनजाति क्षेत्रों में सामाजिक सरोकारों के कार्यों से जुड़ा हूं। चूंकि मेरी मास्टर्स की डिग्री भी सोशल वर्क में है, इसलिए मैंने इन कार्यों की शुरुआत 2010 में कर दी थी। सोशल वर्क के दौरान मेरा कार्य क्षेत्र पांगी घाटी ही रहा। यहां के स्थानीय मुद्दों पर मैंने कार्य करना शुरू किया। धीरे-धीरे कुछ लोगों को संगठित करते हुए उन्हें जोड़ने के काम में मुझे सफलता मिली। इसके चलते मैंने किसान क्लब, किसान उत्पादक संगठन, स्वयं सहायता समूह, महिला मंडल आदि को एक सूत्र में पिरोने का कार्य किया।”

Dr. Harish Sharma
नींव पड़ी ‛सेवा’ संस्थान की…
डॉ हरीश ने बताया कि जब धीरे-धीरे स्थानीय लोगों में जनजागृति बढ़ी और उनका काम बढ़ने लगा तो बहुत से लोग उनसे जुड़ने के लिए आगे आने लगे। जब कई जगहों पर उन्हें बुलाया जाने लगा तब साल 2012-13 में उन्होंने ‛सेवा’ (CEVA-Collective Efforts for Voluntary Action) नाम से एक संस्थान का गठन किया, जिसका उद्देश्य था कि एक ही छत के नीचे पूरे हिमालय क्षेत्र के लोगों के जीवनस्तर को सुधारने के लिए काम किया जा सके।
महिलाओं को पांगी घाटी के जंगलों से प्राप्त उपज के भरपूर दाम मिले…
‛सेवा’ संस्थान का मुख्य उद्देश्य स्थानीय बाशिंदों की जन समस्याओं को सुलझाना है। इसके साथ ही वह उनकी आजीविका के लिए भी काम करती है। पांगी घाटी क्षेत्र में 70 से 80% ऐसी महिलाएँ हैं, जो जंगलों से प्राप्त होने वाले उत्पाद इकट्ठा करके उन्हें बेचते हुए अपनी आजीविका चला रही हैं।
लेकिन ये महिलाएँ इस काम में भरपूर मेहनत के बाद भी बिचौलियों की चालाकी का शिकार होतीं थीं, उन्हें उनकी मेहनत के मुकाबले बहुत कम दाम दिए जा रहे थे। पहाड़ी बादाम वैसे यूरोप में बहुतायत मात्रा में होता है, लेकिन भारत में केवल पांगी और किन्नौर क्षेत्र में ही पाया जाता है। पहाड़ी बादाम को चंबा की स्थानीय भाषा में ‛ठांगी’ कहते हैं और इसका अंग्रेजी नाम ‛हेजलनट’ है। इसी तरह काला जीरा, गुछि, सुआण, गुग्गुल, पतिश, शिलाजीत, केसर, धूप, वालनट आयल, अचार, शहद, सफेद शहद, विभिन्न प्रकार का राजमा और जंगली जड़ी बूटियों की विभिन्न किस्मों को यहां की स्थानीय महिलाओं द्वारा इकट्ठा करके बिचौलियों के माध्यम से बेचा जाता था।
रूरल/ट्राइबल मार्ट ‛पांगी हिल्स’ के माध्यम से डबल हुआ मुनाफा
डॉ हरीश कहते हैं, “हमने यहां उन महिलाओं के बिखरे हुए काम को एकसूत्र में पिरोते हुए सबसे पहले इस काम को वैल्यू एडिशन से जोड़ा। पहले जहां इन्हीं महिलाओं द्वारा ‛हेजलनट’ को 600 से 700 रुपए प्रतिकिलो में बेच दिया जाता था, वहीं आज रूरल/ट्राइबल मार्ट ‛पांगी हिल्स’ के माध्यम से इसे 2000 रुपये किलो में बेचा जा रहा है। यह सारा मुनाफा सीधे उन किसान महिलाओं के खाते में ट्रांसफर होता है, जो इसे जंगलों से संगृहीत करके लाती हैं। अब इस कार्य में किसी बिचौलिए का कोई रोल नहीं रहा।”
अभी ‛सेवा’ में 125 से ज़्यादा स्वयं सहायता समूह हैं, जिसमें लगभग 1300 महिलाएँ जुड़ी हुई हैं। 6 किसान उत्पादक संगठन हैं, एक संगठन में 300 से 500 के बीच सदस्य हैं। इस प्रकार हज़ारों किसान सीधे जुड़े हुए हैं। ‛सेवा’
द्वारा उनके उत्पादों को सीधा बाजार मुहैया करवाया जा रहा है। बायर सेलर की मीटिंग्स भी करवाई जाती है, ताकि ग्रामीणों को अच्छा दाम मिल सके।
जैविक सेब में किसानों ने कमाया मुनाफा
पांगी घाटी में उग रहा सेब जैविक गुण लिए है, क्योंकि अभी तक यहां के किसानों ने केमिकल का उपयोग नहीं किया है। डॉ. शर्मा के अनुसार पिछले सीज़न में 12-15 गाड़ियां भरकर यहां के किसानों का सेब बिका। उन्होंने दिल्ली और पठानकोट के व्यापारियों से इन किसानों का सीधा संवाद भी करवाया। आज यह किसान उत्साहित हैं, क्योंकि जिस मेहनत से वे कार्य कर रहे हैं, उन्हें उसका उतना मेहनताना मिल रहा है।
‛पांगी हिल्स’ में नियमित बिक रहे हैं 72 स्थानीय उत्पाद
आज ‛पांगी हिल्स’ नामक ब्रांड के तहत 72 उत्पाद विकसित किए जा चुके हैं। बहुत से उत्पाद तो ऐसे भी हैं, जो विदेशों तक अपनी पहुंच बना चुके हैं। गुरनु हर्बल चाय को रूस, कजाकिस्तान, सऊदी अरब जैसे देशों में एक्सपोर्ट भी किया जा रहा है। 62 प्रोडक्ट ऐसे हैं, जो नियमित रूप से यहां बेचे जा रहे हैं। उद्देश्य किसानों द्वारा प्राप्त उत्पादों को ग्रेडिंग के बाद अच्छी पैकिंग कर मार्केट देना है।
संस्थान से जुड़े किसानों के उत्पादों की बिक्री के लिए ‛पांगी हिल्स’ का ये आउटलेट चंबा-पठानकोट राष्ट्रीय उच्च मार्ग, चंबा और उदयपुर (हिमाचल प्रदेश) में स्थित है। इसकी स्थापना जनजातीय क्षेत्र के गाँवों से किसानों द्वारा लाए जा रहे उत्पादों को एक निश्चित बाज़ार उपलब्ध करवाने के लिए की गई है। हाइवे पर स्थित होने के कारण ‛पांगी हिल्स’ पर टूरिस्ट रुककर शॉपिंग करना पसंद करते हैं, जिसका समुचित फायदा यहां के जनजातीय समुदाय को मिलता है।
हैंडीक्राफ्ट के आइटम्स भी हैं
‛पांगी हिल्स’ ब्रांडनेम के साथ चंबा के जनजातीय समुदाय के कलाकारों द्वारा बनाए गए लकड़ी के उत्पादों को भी बाज़ार मुहैया करवाया जा रहा है। इस तरह के उत्पादों को बनाने का सिलसिला आज बुजुर्ग हो चुके कालाकारों द्वारा शुरू किया गया था। आज नई पीढ़ी इस काम को कर रही है। लकड़ी के कुछ उत्पादों की तो मेडिसिनल वैल्यू भी है, जैसे यहां मिलने वाले गिलास में सुबह पानी पीने पर उसके तत्त्व शरीर में जाते हैं। इस तरह का सेवन ब्लड प्रेशर, डायबिटीज आदि में मददगार है।
‛पांगी हिल्स’ ने किसानों के अलावा हस्तशिल्पियों के उत्पादों को बाज़ार मुहैया करवाने में भी भूमिका निभाई है। ये सारे उत्पाद हैंड मेड हैं। पहले भी इन कारीगरों द्वारा ये आइटम बनाए जाते थे, पर तब उन्हें बाज़ार नहीं मिलता था। आज हर आर्टिस्ट को महीने के 10 से 15 हज़ार रुपए घर बैठे सीधे उनके खातों में मिल रहे हैं।
■ चंबा चप्पल को भी मिल रही  लोकप्रियता…
स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाई जाने वाली ‛चंबा चप्पल’ का भी अपना एक मार्केट है, जिसे भी ‛पांगी हिल्स’ ब्रांडनेम के साथ जुड़कर बड़ा मार्केट मिला है। आज चंबा में 50 लोगों का एक ग्रुप सिर्फ इन चप्पलों के निर्माण से जुड़ा है।
चंबा जेल के कैदियों द्वारा बनाए गए उत्पादों की भी मार्केटिंग
जिला कारागार चंबा के कैदियों को भी मुख्यधारा से जोड़ने के लिए पांगी हिल्स ने एक पहल की है। कैदियों द्वारा तैयार किए गए पाइन नीडल्स (चीड़ के पेड़ों से बनी सुईं) उत्पादों को भी इस स्टोर के माध्यम से बेचा जा रहा है।
हैंडलूम सेक्शन में मिलते हैं ऊनी वस्त्र
गाँव की महिलाओं द्वारा बने उत्पादों के लिए स्टोर में हैंडलूम सेक्शन भी बनाया गया है, जिसमें भेड़ की उन से बने मोज़े, स्वेटर, टोपी, दस्ताने, कैप, मफलर, शॉल आदि रखे गए हैं। अब तक लाखों की तादाद में यह उत्पाद बिक चुके हैं।
टर्नओवर भी शानदार
स्टोर को खुले करीब दो साल हो गए हैं। गत वर्ष का टर्नओवर 70-80 लाख रुपए के करीब था। इस साल उम्मीद है कि ये टर्नओवर एक करोड़ से डेढ़ करोड़ तक पहुंच जाए। पिछले सीज़न में इन किसानों द्वारा 30-35 लाख रुपये का तो केवल सेब ही बेचा गया। अब जिस हिसाब से ऑनलाइन आर्डर मिल रहे हैं, उम्मीद है एक इतिहास बन जाए।
पूरे प्रोसेस के लिए न्यूनतम मार्जिन पर करते हैं काम
आउटलेट को चलाने और किसानों से सीधे तौर पर प्राप्त कच्चे उत्पादों की साफ-सफाई, ग्रेडिंग-पैकिंग के लिए ‛सेवा’ संस्थान मात्र 3-5% मार्जिन लेता है, ताकि ‛पांगी हिल्स’ स्टोर का सेटअप चलाया जा सके। इस कार्य में उन्हें नाबार्ड (National Bank for Agriculture and Rural Development) का भी सहयोग मिलता है। भविष्य में हिमाचल के सभी लोकप्रिय टूरिस्ट स्पॉट्स पर ‛पांगी हिल्स’ स्टोर की ब्रांच खुलने की उम्मीद है, ताकि पूरे हिमाचल प्रदेश के हुनर को पहचान के साथ साथ विस्तार मिले।

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संपादन – अर्चना गुप्ता

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