हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के जोनल हॉस्पिटल में डॉ. उदय भानु राणा बतौर गायनोकोलॉजिस्ट (स्त्री रोग विशेषज्ञ) कार्यरत हैं। हाल ही में उन्होंने लैप्रोस्कोपिक हिस्टेरेक्टॉमी (टीएलएच) सर्जरी करने के लिए 10 लाख रूपये की एक मशीन मंगवाई है। और सबसे बड़ी बात है कि इस मशीन को खरीदने का पूरा खर्च उन्होंने खुद उठाया है।
हैरानी की बात यह है कि यह सुविधा राज्य के जाने-माने अस्पताल जैसे IGMC- शिमला और डॉ. राजेंद्र प्रसाद गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में भी उपलब्ध नही है। पर डॉ. उदय के पास आने वाले ग़रीब मरीज इस सुविधा का लाभ उठा रहे हैं।
कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपने साथी डॉ. संदीप राठौर के साथ मिलकर, 7 मरीजों की इस मशीन की मदद से लैप्रोस्कोपिक सर्जरी भी की हैं और वह भी बिल्कुल निःशुल्क।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए डॉ. उदय ने बताया कि उनके माता-पिता हमेशा से उन्हें डॉक्टर बनते हुए देखना चाहते थे। और वे खुद भी सर्जरी में दिलचस्पी रखते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करना उनका मुख्य उद्देश्य है। “मैं मंडी जिले से हूँ और मेरा उद्देश्य लोगों की सेवा करना है। प्राइवेट सेक्टर में जहाँ बिजनेस को प्राथमिकता दी जाती है, तो वहीं पब्लिक सेक्टर में मैं बिना किसी दवाब के अपने प्रोफेशन पर ध्यान केन्द्रित कर सकता हूँ।”
उन्होंने इस मशीन को इसी साल जून में ख़रीदा था और फिर 2-3 हफ्ते में यह अस्पताल भी पहुँच गयी।
लेकिन इतनी महँगी मशीन खरीदने की वजह?
इस सवाल के जवाब में डॉ. उदय कहते हैं कि सर्जरी करने के दो तरीके होते हैं- एक ओपन सर्जरी, जिसमें आप पेट में चीरा लगाकर, परत दर परत इसे खोलते हैं और फिर इलाज की प्रक्रिया करते हैं।
जबकि “लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में, आप पेट में सिर्फ 1 सेमी और 0.5 सेमी के 2-3 छेद करते हैं। इन छिद्रों के माध्यम से समस्या का इलाज किया जा सकता है। पेट को काटने की कोई ज़रूरत नहीं होती है क्योंकि इससे एक तो मरीज को 15-20 सेमी का निशान भी पड़ता है और फिर इस घाव को भरने में भी लम्बा समय जाता है। जब आप किसी मरीज की चीरा लगाकर सर्जरी करते हैं, तो उन्हें 7-10 दिनों के लिए अस्पताल में रहना पड़ता है। इसलिए मरीज के लिए लेप्रोस्कोपिक सर्जरी अधिक सुविधाजनक है, जिसमें 24 घंटे के बाद छुट्टी दी जा सकती है। इस प्रक्रिया में दर्द बहुत कम होता है, घाव भी जल्दी भर जाते हैं और मरीज एक या दो सप्ताह में ही अपने काम पर वापस जा सकता है,” उन्होंने बताया।
साथ ही, लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में मरीज का बहुत ज़्यादा खून भी नहीं जाता।
डॉ. उदय का मुख्य उद्देश्य है कि महिला मरीजों को सर्जरी के बाद बहुत कमजोरी न हो। लेकिन इस तरह की सर्जरी करने के लिए आपको बहुत ही धैर्य और अनुभव की ज़रूरत होती है।
पहले उन्होंने इस सुविधा के बारे में सरकार की सहायता लेनी चाही और उनसे बात की। पर इस पूरी प्रक्रिया में काफ़ी लम्बा वक़्त चला जाता- लगभग 10-12 महीने या फिर और भी अधिक समय। डॉ. उदय ने लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में अपनी फ़ेलोशिप की है और अगर वे काफ़ी दिन तक इस तकनीक पर काम नहीं करते तो बेशक उनकी स्किल्स पर इसका असर पड़ता। किसी भी सार्वजानिक अस्पताल में कोई भी लेप्रोस्कोपिक सर्जरी नहीं कर रहा है- ख़ासकर कि स्त्री रोगों में तो बिल्कुल नहीं। इसलिए उन्होंने अपने माता -पिता से बात की और मशीन मंगवाने का फ़ैसला किया।
चीजों को और बेहतर बनाने के लिए डॉ. उदय फ्री में ये सर्जरी करते हैं। वरना, हिमाचल में एक मरीज को निजी अस्पताल में इस सर्जरी के लिए 50,000 रुपये से 1 लाख रुपये तक भरने पड़ें, तो दिल्ली और चंडीगढ़ के कॉरपोरेट अस्पतालों में, यह सर्जरी 1.5 लाख रुपये से 3 लाख रुपये के बीच होगी।
पर डॉ. उदय को इन गरीब मरीजों की मदद करके आत्म-संतुष्टि मिलती है और इसलिए वे हर सम्भव प्रयास कर यहाँ के गाँव के लोगों का जीवन सुधारना चाहते हैं।
वे मानते हैं कि पब्लिक सेक्टर में सही और ज़रूरी संसाधनों की बहुत कमी है और इसलिए अक्सर डॉक्टर चाहते हुए भी अपनी ड्यूटी सही तरह से नहीं कर पाते हैं। लेकिन डॉ. उदय की सोच है कि वे किसी और पर निर्भर हुए वगैर अपने लोगों की सेवा के लिए हर वो कदम उठायेंगें, जो उनके बस में है। और इसलिए यह डॉक्टर 10 लाख रुपये जैसे बड़ी रकम खर्च करने से भी नही चूका।
लेकिन साथ ही, हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि डॉक्टर हमारी और आपकी तरह इंसान ही हैं और कोई भी डॉक्टर कभी यह नहीं चाहता कि उसके यहाँ से कोई भी मरीज मायूस लौटे। पर किस्मत पर किसी का बस नहीं, इसलिए अपने डॉक्टरों पर भरोसा कीजिये और जैसे भी आप उनके काम में उनकी मदद कर सकते हैं, ज़रूर करें!
द बेटर इंडिया इस डॉक्टर के जज़्बे को सलाम करता है और उम्मीद करता है कि देश को ऐसे और भी बहुत-से डॉक्टर मिलें।