हमें अपने उन पूर्वजों को हमेशा याद रखना चाहिए जिनकी कोशिशों और बलिदानों ने हमारे आज की नींव रखी। उनकी वजह से ही हम अपने सुनहरे भविष्य की दिशा में काम कर रहे हैं। पर दुःख की बात यह है कि अगर हम अपने इतिहास के पन्नों को पलटें तो बहुत ही कम लोगों को उनके कार्यों के लिए सराहा गया है या फिर उनके बारे में भावी पीढ़ियों को बताया गया है।
हेमेंद्र मोहन बोस भी ऐसा ही एक नाम हैं, जिन्होंने गाँधी जी के स्वदेशी अभियान से बहुत पहले ही, भारतीय उत्पादों को बाजारों में उतार दिया था। भारत का पहला ग्रामोफ़ोन लेकर साइकिल और बंगाल के मशहूर तेल और परफ्यूम तक- सभी कुछ बनाने और फिर उसे मार्किट तक पहुंचाने का श्रेय उनके ही नाम है।
एच. बोस के नाम से मशहूर भारत के इस उद्यमी का जन्म पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के मय़मनसिंह जिले के जयसिद्धि गाँव में साल 1864 में हुआ था। बचपन से ही पढ़ाई में बहुत तेज और हमेशा कुछ नया ढूंढने की कोशिश में लगे रहने वाले बोस को विज्ञान में काफ़ी दिलचस्पी थी। महान वैज्ञानिक सर जे. सी. बोस उनके मामा थे। उनके ही मार्गदर्शन में उन्होंने बारहवीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया।
लेकिन एक बार लैब में काम करते हुए गलती से उनके आँख में एसिड की बूंद पड़ गयी। वैसे तो छह महीने के इलाज के बाद उनकी आँखों की रौशनी वापस आ गई थी। लेकिन फिर उन्हें मेडिकल के प्रोफेशन के लिए अनफिट कह दिया गया।
एच. बोस परफ्यूमर्स:
पर बोस ने इसे अपनी ज़िंदगी की हार नहीं बनाया, बल्कि उन्होंने अपनी सफलता की राह खुद तैयार की। कुछ न कुछ नया इन्वेंट करने की कोशिश में लगे रहने वाले बोस ने परफ्यूम्स से शुरुआत की। साल 1890 में उन्होंने परफ्यूम इंडस्ट्री में एक्सपेरिमेंट करना शुरू किया और साल 1894 में उन्होंने कोलकाता के 62, बोऊबाज़ार में खुद की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट, ‘एच. बोस परफ्यूमर्स’ शुरू की।
उन्होंने अपने परफ्यूम को ‘दिलखुश’ ब्रांड से मार्किट किया। धीरे-धीरे उनका परफ्यूम देश के बेहतर ब्रांड्स में से एक बन गया और इस सफलता को देखते हुए बोस ने और भी प्रोडक्ट्स जैसे साबुन, तेल आदि बनाना शुरू किया। उनके मशहूर कुंतालिन हेयर ऑयल ने लंबे समय तक ब्रिटिश भारत के बाज़ारों में राज किया। उन्होंने कोलकाता की 6, शिव नारायण दास लेन में अपनी दूसरी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू की।
बोस ने अन्य व्यवसायों में भी अपना हाथ आजमाया, जिसमें सिनेमैटोग्राफी, साउंड रिकॉर्डिंग, साइकिल इंडस्ट्री, प्रिंटिंग प्रेस आदि शामिल हैं।
प्रिंटिंग प्रेस और पुरस्कार:
1900 में उन्होंने ‘कुंतालिन’ नाम से प्रिंटिंग प्रेस और पब्लिशिंग हाउस की शुरुआत की। अपने इस उद्यम के ज़रिये उनका उद्देश्य बंगाल के युवा लेखकों को प्रोत्साहन और मौके देना था। उन्होंने रवीन्द्रनाथ टैगोर की मदद से ‘कुंतालिन पुरस्कार’ भी शुरू किया, जोकि साल के सबसे बेहतरीन साहित्यिक कार्य के लिए दिया जाता था। यह बंगाल का पहला साहित्यिक सम्मान था।
सबसे पहले ‘कुंतालिन पुरस्कार,’ सर जे. सी. बोस को एक लघु कथा के लिए मिला। इसके बाद, शरद चंद्र चटोपाध्याय के पहले प्रिंट पब्लिकेशन, ‘मंदिरा’ को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
कहा जाता है कि आधुनिक समय के साहित्य अकादमी सम्मान, रवीन्द्र पुरस्कार आदि कई साहित्यिक सम्मानों को कुंतालिन पुरस्कार के कॉन्सेप्ट पर ही शुरू किया गया है।
एक भारतीय द्वारा संचालित पहली साइकिल कंपनी:
बोस को साइकिल चलाने का बहुत शौक था। वे न सिर्फ़ खुद साइकिल चलाते बल्कि अपने दोस्त-रिश्तेदारों को भी चलाना सिखाते थे। साल 1903 में उन्होंने अपने भाई के साथ मिलकर भारत की पहली ऐसी साइकिल कंपनी शुरू की, जिसका मालिक एक भारतीय था।
कोलकाता के हैरिसन रोड पर उन्होंने एच. बोस एंड को. साइकल्स के नाम से यह कंपनी शुरू की। इसके अलावा वे भारत में रोवर साइकिल के डिस्ट्रीब्यूटर भी थे। उन्होंने ग्रेट ईस्टर्न मोटर कंपनी के नाम से अपना कार शोरूम भी खोला और साथ ही, एक कार रिपेयरिंग यूनिट, ग्रेट ईस्टर्न मोटर वर्क्स के नाम से शुरू की।
हालांकि, पहले विश्व युद्ध के दौरान उनका शोरूम बंद हो गया। क्योंकि मंदी के कारण, लोगों के लिए अपनी मूलभूत ज़रूरतें पूरी करना ही बहुत मुश्किल था। ऐसे में किसी लक्ज़री प्रोडक्ट जैसे कि कार के बारे में कोई कैसे सोच सकता था।
उनके परफ्यूम्स और हेयर ऑइल के बाद जिस व्यवसाय ने बोस को अमर कर दिया, वह था साउंड एंड म्यूजिक रिकॉर्डिंग।
इंडियन साउंड रिकॉर्डिंग के जनक
बोस को इंडियन साउंड रिकॉर्डिंग का जनक कहा जाता है। साल 1902 के आस-पास, बोस ने एडिसन का फोनोग्राम ख़रीदा और शौक के लिए उन्होंने अपने सभी क़रीबी दोस्त और नाते-रिश्तेदारों को रिकॉर्ड करना शुरू किया। इस फ़ेहरिस्त में रबीन्द्रनाथ टैगोर, जे. सी. बोस, प्रफुल्ला चंद्र रॉय, सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी जैसे नाम शामिल होते हैं।
उनकी दिलचस्पी वॉइस रिकॉर्डिंग में इस कदर बढ़ी कि उन्होंने कोलकाता की सबसे पहली रिकॉर्डिंग शॉप, टॉकिंग मशीन हॉल’ शुरू की। यहाँ पर लोग अपनी या किसी और की आवाज़ आकर रिकॉर्ड कर सकते थे। उन्होंने एक फ्रेंच फिल्म टाइकून और बिज़नेसमैन चार्ल्स पैथे से टाई-अप किया और उन्हें उनके सिलिंडर रिकार्ड्स को डिस्क रिकार्ड्स में बदलने के लिए कहा।
उन्होंने बहुत से बंगाली गीत, स्वतंत्रता संग्राम पर क्रांतिकारियों के भाषण आदि रिकॉर्ड किये। इन्हें ‘एच बोस स्वदेशी रिकॉर्डस’ ब्रांड के नाम से भारत में मार्किट किया। उनके रिकार्ड्स ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई।
उनके रिकार्ड्स का प्रचलन इस कदर बढ़ गया था कि ब्रिटिश पुलिस को उनके स्टोर को सील करना पड़ा। इतना ही नहीं, उनके द्वारा रिकॉर्ड किये गए सभी महान और अनुभवी लोगों के रिकार्ड्स को ब्रिटिश सरकार ने तबाह कर दिया। आज उनकी रिकॉर्डिंग्स में से सिर्फ़ टैगोर द्वारा गाया गया ‘वन्दे मातरम’ गीत की छोटी-सी रिकॉर्डिंग बची है।
बोस को सिर्फ़ साउंड रिकॉर्डिंग के क्षेत्र में ही नही बल्कि कलर फोटोग्राफी को भारत में मशहूर करने के लिए भी याद किया जाता है। वे शायद पहले भारतीय रहे होंगे जिन्होंने फोटोग्राफी के लिए ऑटोक्रोम लुमिएरे स्लाइड्स का इस्तेमाल किया।
साल 1916 में 26 अगस्त को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा। उस समय उनकी उम्र 52 साल थी। हैरत की बात है कि जिस व्यक्ति ने हमारे देश में इतने व्यवसायों की नींव रखी, उनके बारे में शायद ही किसी को पता हो।
द बेटर इंडिया भारत के इस महान उद्यमी और स्वदेशी उत्पादों को ब्रिटिश भारत में पहचान दिलाने वाले सच्चे देशभक्त को सलाम करता है!
संपादन – मानबी कटोच