बिहार के दलसागर गाँव में पले-बढ़े, 18 साल के हरिओम चौबे बताते हैं, “जब मॉनसून आता है, हमारे गाँव में मिट्टी के घरों के आस-पास कई सांप दिखने लगते हैं। लेकिन जैसे ही गाँव वाले इन सांपों को देखते हैं, वे इन्हें मार देते हैं।” उन्हें बाद में पता चला कि बिहार के बक्सर में हर साल 300 लोग सिर्फ़ इसलिए अपनी जान गवां देते हैं, क्योंकि सांप के काटने के बाद उन्हें तुरंत इलाज नहीं मिल पाता। इसके बाद सांप पकड़ने वाले हरिओम पिछले काफ़ी सालों से सांपों को रेस्क्यू करके लोगों की मदद कर रहे हैं।
इसके अलावा, उन्होंने बाकी पशुओं की देखभाल के लिए एक एनिमल रेस्क्यू सेंटर भी बनाया है। एक बार सांप के साथ गाँव वालों का कठोर व्यवहार देखकर, हरिओम को दया आई और उन्होंने अगली बार ऐसी स्थिति में इनकी जान बचाने का फ़ैसला किया।
एक तोहफ़े ने बदली ज़िंदगी
सांप पकड़ने वाले हरिओम बताते हैं, “जब मैं 12 साल का था, तब मैंने पहली बार सांप को बचाया था।” उन्होंने उस सांप को गाँव के एक तालाब में छोड़ दिया और रोज़ उसे देखने जाते थे। हालांकि, जब हरिओम के परिवार को इस बात की भनक लगी, तो वे परेशान हो गए और उन्होंने बेटे को सांपों के साथ इतना जुड़ाव रखने के लिए मना किया।
कुछ समय बाद, हरिओम के जन्मदिन पर उनके चाचा घर आए, जो दक्षिण भारत में रहा करते थे। सांपों के प्रति हरिओम के जुड़ाव के बारे में जानने के बाद, चाचा ने ‘स्नेक्स ऑफ इंडिया’ नाम की एक किताब उन्हें गिफ्ट की।
हरिओम बताते हैं, “यह मेरे लिए सबसे अच्छा तोहफ़ा था।” उन्होंने चार साल तक इस किताब को बड़े ध्यान से, बार-बार पढ़ा। इस किताब में लिखी जानकारी और फोटोज़ के ज़रिए उन्होंने रेप्टाइल्स के बारे में, उनके काटने के बाद ज़रूरी फर्स्ट एड के बारे में जाना, सांप पकड़ने के तरीक़े जाने, साथ ही यह भी सीखा कि कौन से सांप ज़हरीले होते हैं और सांप को कैसे रेस्क्यू किया जा सकता है।
सांपों के बारे में अपने परिवार की राय से अलग, हरिओम का मानना था कि वे किसी भी तरह हानिकारक नहीं हैं। बस आपको यह पता होना चाहिए की उन्हें कैसे संभालना है। इसके बाद उन्होंने अपना रेस्क्यू करने का काम फिर से शुरू किया।
सांप पकड़ने और उनसे जुड़े अंधविश्वास से लड़ने का कर रहे काम
हरिओम ने बताया, “धीरे-धीरे लोग मेरे सांपों को बचाने के काम और उनके प्रति मेरे आकर्षण को देखने आने लगे और 2019 में, जब मेरे पास पहला मोबाइल फोन आया, तो गांववाले फोन करके मुझे अपने घरों के पास मौजूद सांपों से छुटकारा पाने में मदद करने के लिए बुलाने लगे।”
एक भयावह घटना को याद करते हुए सांप पकड़ने वाले हरिओम कहते हैं कि एक बार उन्होंने एक ही घर से 35 कोबरा को रेस्क्यू किया था। वह बताते हैं, “वहां पहले एक सांप था, लेकिन फिर उसने और कई सांपों को जन्म दिया और ये लगातार बढ़ते ही जा रहे थे।”
हालांकि, वह कहते हैं कि उनके अच्छे काम के बावजूद, समाज ने उन्हें कभी नहीं समझा और हमेशा उन्हें सिर्फ़ एक सपेरे की तरह ही देखा। यहाँ तक कि लोगों ने आकर उनके माता-पिता से यह भी कहा कि हरिओम एक ‘अपवित्र’ काम कर रहा है।
साल 2020 में गांव वालों का यह अंधविश्वास तब और मज़बूत हो गया, जब गांव के एक आदमी की सांप के डसने से मौत हो गई। हरिओम कहते हैं, “गांव वालों का मानना था कि भगवान ने उनकी प्रार्थना नहीं सुनी और उस आदमी की जान लेकर ईश्वर ने उन्हें सज़ा दी है।”
लोगों के इस अंधविश्वास को ख़त्म करने और सांप के काटने के बारे में उन्हें जागरूक करने के लिए, हरिओम घर-घर जाकर लोगों को सही चीज़ें समझाने लगे। वह इस तरह लोगों को घर साफ रखने, साफ़-सफ़ाई के तरीक़े, वगैरह बताकर उन्हें सामान्य शिक्षा भी देते। फिर, अप्रैल 2021 में उनके पास एक फोन आया, जिसने उनकी ज़िंदगी बदल दी।
सांप पकड़ने वाले हरिओम ने बनाया अपना रेस्क्यू सेंटर
हरिओम बताते हैं, “मुझे डिस्कवरी चैनल से कॉल आया था। वे सिलीगुड़ी में एक सेगमेंट की शूटिंग कर रहे थे, जो सांपों के बारे में था और किसी ने उन्हें मेरे काम के बारे में बताया था।”
कुछ समय के लिए जब वह सिलीगुड़ी में रह रहे थे, उन्होंने वहाँ एक रेस्क्यू सेंटर देखा, जहाँ घायल और चोटिल जानवरों को बचाया जाता था और ठीक हो जाने पर उन्हें वापस जंगल में छोड़ दिया जाता था। हरिओम को यह कॉन्सेप्ट बहुत पसंद आया और बिहार लौटकर उन्होंने सरकार को इस काम के लिए उन्हें एक ज़मीन देने की याचिका लिखी।
हालांकि, जब सरकार से उन्हें कोई मदद नहीं मिली, तो उन्होंने चूड़ामनपुर में 10 कट्टे (6000 वर्ग फुट) की एक जगह पट्टे पर ली। साथ ही उन्होंने सांप को रेस्क्यू करने के लिए लोगों से पैसे लेना शुरू कर दिया।
हरिओम का रेस्क्यू सेंटर 25 दिसंबर 2021 को बनकर तैयार हो गया। वह कहते हैं कि कुत्तों, बिल्लियों, बंदरों, सांपों और गायों को बचाने के लिए उन्हें हर दिन लगभग 25 कॉल आते थे।
केवल सांप ही नहीं, अन्य जानवरों की भी उठायी ज़िम्मेदारी
कई ऐसे रेस्क्यू हैं, जो बहुत ही अच्छे और उनके दिल के क़रीब हैं। ऐसे ही एक के बारे में बताते हुए वह कहते हैं, “एक बकरी थी, जिसके तीन पैर थे। जब मुझे इस बारे में कॉल आई, तो मैंने तुरंत एक लॉरी का इंतज़ाम किया और उस बकरी को अपने पास ले आया। वह एक महीने तक हमारे पास रेस्क्यू सेंटर में रही और फिर हमने उसे वापस भेज दिया।”
एक और ऐसा रेस्क्यू एक उल्लू का था। हरिओम बताते हैं, “किसी ने उस उल्लू को गोली मार दी थी और उसके छोटे-छोटे बच्चे पेड़ के पास गिरे हुए थे।” तीन महीने तक उन्होंने उल्लुओं को अपने पास रखकर उनका ध्यान रखा, खाना खिलाया और फिर उन्हें छोड़ दिया। लेकिन ये फिर भी अपने उस घोंसले में वापस आया करते, जो उन्होंने रेस्क्यू सेंटर में बनाया था।
बचाव केंद्र में जानवरों की दवाएं सिलीगुड़ी से मंगवाई जा रही थीं और गांव वाले भी डोनेशन दिया करते थे। लेकिन फरवरी में किसी ने रेस्क्यू सेंटर में आग लगा दी। हरिओम का काफ़ी नुक़सान हुआ और उन्होंने जो भी बनाया था, सब खो दिया।
सांप पकड़ने वाले हरिओम फिर से बना रहे हैं उम्मीदों का रेस्क्यू सेंटर
वह कहते हैं कि शुक्र है, इन सब में किसी जानवर को कोई नुक़सान नहीं पहुँचा। आग लगने के लगभग 10 दिन पहले उन्होंने सभी जानवरों को छोड़ दिया था, क्योंकि वे ठीक हो गए थे।
इस घटना से काफ़ी निराश हरिओम का कहना है कि इसके बाद उन्होंने लोगों से डोनेशन लेना बंद कर दिया। उन्होंने फिर से रेस्क्यू सेंटर बनाने का फ़ैसला किया और इस बार केवल खुद के ख़र्च पर।
उन्होंने सांप को रेस्क्यू करने के लिए 1,000 रुपये चार्ज करना शुरू किया और सात महीनों में 70,000 रुपये इकट्ठा कर लिए। अब उन्हें थोड़ी राहत मिली कि वह फिर से रेस्क्यू सेंटर बना पाएंगे। लेकिन तभी उन्हें एक और बुरी घटना का सामना करना पड़ा, दो महीने पहले उन्हें एक ज़हरीले कोबरा ने काट लिया।
वह कहते हैं, “फ़िलहाल सांप के डसने के बाद मेरा इलाज चल रहा है, लेकिन अभी भी मुझे जानवरों को बचाने के लिए कई कॉल्स आते हैं। अब मैं कॉल करने वाले इंसान से यह कहता हूँ कि वही जानवर को मुझ तक पहुंचा दें। मेरा एक डॉक्टर दोस्त है, जो उनका इलाज करता है और सलाह देता है और दूसरा दोस्त है राहुल, जो बाक़ी चीज़ों को संभालने में मदद करता है। एक बार जानवर का इलाज हो जाने के बाद, हम उन्हें वहीं छोड़ देते हैं जहां से वे आए थे।”
हज़ारों सांप पकड़ने के अलावा, 152 पशुओं को किया रेस्क्यू
अब तक हरिओम ने 152 जानवरों को बचाया है, जिनमें कुत्ते, बिल्लियां, बकरियां शामिल हैं और 3000 सांपों को भी रेस्क्यू किया है। हरिओम कहते हैं, “मेरे गांव के लोग बहुत ज़िम्मेदार हैं। हर कोई जानवरों की चिंता और उनकी मदद की कोशिश करता है।” डॉक्टर और राहुल हर रविवार गांव के गौशाला में जाकर गायों को देखते हैं और उनकी सेहत का जायज़ा लेते हैं।
वे यह काम मुफ़्त में करते हैं। हरिओम का कहना है कि एक बार वह ठीक हो जाएं, तो दोबारा सापों को रेस्क्यू करने का काम शुरू कर देंगे और इस तरह अपना रेस्क्यू सेंटर बनाने के लिए पैसे जोड़ना फिर से शुरू करेंगे। वह कहते हैं, “मैं लोगों को दिखाऊंगा कि मैं जो काम करता हूं वह कितना ज़रूरी है और इसे हमेशा करता रहूंगा।”
मूल लेख – क्रिस्टल डीसूज़ा
संपादनः अर्चना दुबे
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