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मात्र दो सालों में 200 देसी कुत्तों की बचाई जान, अब तक 65 बेज़ुबानों को ‘आसरा’ दे चुकी हैं चारु

Dog rescue
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अक्सर लोग अपने घरों में अलग-अलग विदेशी नस्लों के कुत्ते पालते हैं, लेकिन सड़क पर रह रहे देसी कुत्तों को प्यार करने वाले कम ही लोग होते हैं। आए दिन ऐसे कुत्ते किसी घटना या क्रूरता का शिकार हो जाते  हैं या भूखे पेट, खाने के लिए तरसते रहते हैं। असल में ये देसी नस्ल के कुत्ते ही हैं, जो हर तरह के परिवेश में आसानी से रह पाते हैं, उन्हें रखने के लिए हमें किसी ख़ास तरह की सुविधा देने की ज़रूरत नहीं होती।  

देसी कुत्तों की ऐसी और कई खूबियों के बार में जानकारी देकर, लखनऊ की चारु खरे लोगों को इन कुत्तों को पालने के लिए प्रेरित करती हैं।  

उन्होंने अपनी बहन पूर्णा के साथ मिलकर इस काम की शुरुआत की थी।  फ़िलहाल उनके साथ लखनऊ के ही दो और पशु प्रेमी, राहुल और रजत सक्सेना भी जुड़े हुए हैं।

ये चारों अपनी कमाई का कुछ हिस्सा निकालकर ‘Aasra – The helping hands’ नाम की  एक संस्था भी चला रहे हैं। द बेटर इंडिया से बात करते हुए चारु ने बताया, “हमारे आस-पास कई ज़रूरतमंद  लोग हैं जिनकी मदद हमें करनी चाहिए। मैंने अपने स्तर पर इन बेज़ुबानों की मदद करने का फैसला  किया और यक़ीन मानिए, जब आप इन मासूम जानवरों की मदद के लिए आगे आएंगे,  तो ये आपको काटेंगे नहीं, बल्कि प्यार ही देंगे।”

Charu khare

पिता के निधन के बाद, उनकी सीख से मिली प्रेरणा 

चारु और उनकी बहन, बचपन से ही अपने माता-पिता को सड़क पर रहनेवाले बेज़ुबानों की सेवा करते हुए देखती आई हैं। उनके पिता न सिर्फ़  कुत्ते, बल्कि सड़क पर रह रहे  हर तरह के जानवरों को खाना खिलाते थे। कभी कोई बीमार हो या एक्सीडेंट का शिकार हो जाए , तो उसका इलाज भी कराते थे। 

वैसे तो साल 2020 तक चारु के मन में जानवरों के लिए विशेष संस्था चलाने का कोई इरादा नहीं था। लेकिनजीवन में आने वाली मुश्किलें आपको हमेशा कुछ न कुछ सिखा जाती हैं। ऐसा ही कुछ चारु के साथ भी हुआ।

साल 2020 में उनके पिता अतुल खरे का निधन हो गया। पिता  की अचानक  मृत्यु से पूरा  परिवार दुख में डूब गया।   लेकिन इस बुरे वक़्त में भी चारु ने हिम्मत रखी और फैसला किया कि उनके पिता की जिस काम में  सबसे ज़्यादा  रुचि थी,  उसी काम को वह आगे जारी रखेंगी। 

वह कहती हैं, “हम बचपन से अपने पिता को सड़क पर रहनेवाले जानवरों की सेवा करते देखते आए थे। साल 2020 में उनके निधन के बाद, हम दोनों बहनों ने उनके इस नेक काम को जारी रखने का फैसला किया।”

अब तक 200 बेज़ुबानों को कर चुकी हैं रेस्क्यू 

पिता को खो देने के बाद, जब चारू और पूर्णा ने जानवरों को खाना खिलाने का काम शुरू किया, तभी उन्होंने इन बेज़ुबानों की कई तकलीफ़ों को करीब से समझा। फिर, समय पर घायल कुत्तों  का इलाज कराना, मुसीबत में फंसे कुत्तों  की जान बचाना, जैसे काम भी वह करने लगीं ।

Stray Dogs

वह बताती हैं, “मैंने महसूस किया कि इन देसी कुत्तों को समाज से ज़्यादा  प्यार नहीं मिलता;  जबकि विदेशी नस्ल के कुत्ते लोग महंगे दामों पर खरीदकर पालते हैं। इसलिए मैंने इन देसी कुत्तों को आसरा देने के लिए सोशल मीडिया पर एक पेज बनाया।”

और इस पेज के साथ ही शुरू हुआ ‘आसरा’ का सफर। चारु, अपने पेज ‘आसरा’ पर कुत्तों की फोटो खींच अपलोड कर,  लोगों से उन्हें  पालने की विनती करने लगीं। धीरे-धीरे लोग उनसे जुड़ने लगे।  हालांकि यह काम उनके लिए इतना आसान भी नहीं था, क्योंकि  ज़्यादातर  लोग ऐसे  कुत्तों को अडॉप्ट करने के लिए तैयार नहीं होते हैं ।  फिर चारु, इन देसी नस्ल के कुत्तों की खूबियां बताकर   लोगों में जागरूकता लाने की कोशिश करने लगीं।   

धीरे-धीरे, लेकिन मजबूती से कदम बढ़ाते हुए वह आगे बढ़ती गईं और फिर इस सफर में राहुल और रजत भी उनके साथ जुड़ गए,   जो पहले से ही शहर में जानवरों को रेस्क्यू करने का काम करते थे। अब तक चारु और उनकी टीम ने मिलकर 200 से ज़्यादा  बेज़ुबानों को रेस्क्यू किया है और उनकी जान बचाई है। 

इसके साथ ही उन्होंने 65 देसी कुत्तों को आसरा यानी शेल्टर भी दिलवाया है। सबसे अच्छी बात यह है कि ये सभी इस काम के लिए किसी से फंड नहीं लेते, बल्कि खुद ही अपनी कमाई का कुछ हिस्सा मिलाकर  इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं।  

चारु कहती हैं, “अब हमें हर दिन लखनऊ के आस-पास के शहरों से भी रेस्क्यू के लिए फ़ोन आते हैं। साथ ही मुझे ख़ुशी है कि कुत्तों के छोटे-छोटे बच्चों की फोटोज़ देखकर कुछ लोग इन्हें अडॉप्ट करने के लिए भी फ़ोन करने लगे हैं।”

अगर आप भी चारु की आसरा टीम से जुड़ना या उनकी किसी तरह की मदद करना चाहते हैं, तो यहां सम्पर्क कर सकते हैं।

संपादन-अर्चना दुबे

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