हर सुबह अख़बार में दिन-दहाड़े लूट-पाट और डकैती की ख़बरें पढ़ने को मिलती है, लेकिन हर रोज़ एक ऐसी भी ख़बर पढ़ने को मिलती है, जिसे पढ़कर लगता है कि इस दुनिया में बहुत लोग अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं। ऐसी ही दिल को छू लेने वाली एक घटना छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में हुई है।
छत्तीसगढ़ के जगदलपुर शहर के निवासी ऑटो चालक महेश कश्यप रोज़ की तरह अपने काम पर निकले थे। एक दिन गाज़ियाबाद से अपने भाई के घर शादी समारोह में जगदलपुर आई एक महिला, महेश की ऑटो में बैठी थी। ऑटो से उतरते वक़्त वह अपना बैग ऑटो में ही भूल गई, उस बैग में 7 लाख रुपये के कीमती जेवर और रुपये रखे हुए थे।
रात को जब महेश घर पहुंचे, तो उनकी पत्नी ने बताया कि ऑटो में किसी सवारी का सामान छूट गया है। जब उन्होंने उस सामान को निकालकर देखा, तो हैरान हो गए, बैग में सोने की अंगूठी और चेन के साथ नगद राशि थी। महेश को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह बैग किसका है और अब इसे कैसे लौटाया जाए। सबसे पहले महेश ने बैग को घर के सुरक्षित स्थान पर रख दिया । महेश ने बहुत कोशिश की, याद करने की, कि आखिर यह बैग किस सवारी का है पर कुछ समझ नहीं आ रहा था।
अगले दिन महेश बैग के मालिक को ढूंढ़ते हुए उन्हीं रास्तों पर निकल पड़ा, लेकिन दिन भर की मेहनत के बाद भी असली मालिक का पता नहीं चला। लगभग पांच दिन तक महेश और उनकी पत्नी बेहद परेशान रहे कि आखिर इस बैग के मालिक को ढूंढा कैसे जाए, लेकिन कुछ पता नहीं चला।
जब कुछ पता नहीं चला तो महेश ने सोचा कि क्यों न एक बार बैग में देखा जाये शायद कोई संपर्क या जानकरी मिल जाए, इसके बाद महेश ने बैग को पूरी तरह से खाली किया तो बैग में आधार कार्ड और एक मोबाइल नंबर मिला। मोबाइल नंबर मिलते ही महेश और उनकी पत्नी ने राहत की सांस ली और एक उम्मीद जग गई कि अब इस बैग के मालिक को ढूंढ़ने में आसानी होगी। महेश ने उस नंबर पर कॉल करके पूरा माजरा बताया और कहा कि आपका बैग हमारे पास सुरक्षित है और आप इसे आकर ले लीजिये। इसके बाद सभी लोग पुलिस थाने में मिले और महेश ने अपनी ईमानदारी का परिचय देते हुए वह बैग मालिक के हाथों में सौप दिया। उस बैग के मालिक को ढूंढ़ना किसी जंग से कम नहीं था।
महेश की ईमानदारी को देखते हुए समाज के लोगों ने भी उनको शॉल पहना कर और 5001 रुपये की सहयोग राशि देकर सम्मान किया।
महेश कहते है कि उन पांच दिनों तक बहुत बैचनी हो रही थी, “मेरे मन में था कि कैसे भी यह बैग इसके मालिक तक पहुंच जाए। बार बार उन रास्तों पर जाता, कि शायद वह सवारी मिल जाए लेकिन हर रोज़ निराशा हाथ लगती। बैग खाली करते वक़्त भी बेहद असमंजस में था, लेकिन फिर मेरी पत्नी हीरामती ने मुझे समझाया और कहा कि हमारी नियत साफ़ है, आप संकोच मत करिए।”
महेश बताते है कि उन्हें एक बार भी मन में यह ख्याल नहीं आया कि यह सब सोना और पैसे उन्हें रख लेना चाहिए। वो कहते हैं न अभी भी कुछ लोग गरीबी में जिंदगी जीते हुए भी ईमानदारी की रोटी खाना पसंद करते हैं। तभी तो लाख रुपए मिलने के बाद भी इस ऑटो रिक्शा चालक का ईमान नहीं डगमगाया।
महेश एक सामान्य ऑटो वाला है, जिसने कुछ साल पहले ही लोन लेकर अपना ऑटो ख़रीदा था।
महेश की पत्नी हीरामती बताती है, “घर में 6 सदस्य है, पति-पत्नी और चार बच्चें, कभी-कभी आर्थिक दिक्कत भी आती है लेकिन मेहनत करने से वो भी समस्या ठीक हो जाती है। बैग लौटाने के बाद बेहद राहत के साथ -साथ संतुष्टि मिल रही है। मुझे गर्व है मेरे पति पर, जिन्होंने जीवन के किसी भी पड़ाव पर अपने सिद्धांतो से समझौता नहीं किया।”
महेश मुस्कुराते हुए कहते है कि “भले ही मैंने अपने जीवन में लाखों नहीं कमाये और न ही इतना सोना पहले कभी देखा था लेकिन अपने ईमान को कभी डगमगाने नहीं दिया, आज जब शहर में निकलता हूँ, तो लोग मुस्कुराकर अभिवादन करते हैं, कहते है नियत हो तो महेश भाई जैसी- यह सुनकर लगता है, जीवन की यही असली कमाई है।”
आज के इस दौर में ऐसे बहुत कम लोग मिलते हैं, जो ईमानदारी के पाठ को जिंदा रखें हुए है, लेकिन जब कोई रुपयों से भरा बैग वापस कर दे, तो लगता है कि आज भी इंसानियत जिंदा है। सिर्फ पैसो के पीछे भागती इस दुनिया के सामने महेश जैसे लोग मिसाल है।
संपादन – मानबी कटोच