दुनिया में लाखो ऑटो वाले हैं, हर गाड़ी वाले का अपना एक स्टाइल होता है, लेकिन दिल्ली के सीताराम जी का स्टाइल बेहद ही अलग और तारीफ़ के काबिल है। दिखने में यह सामान्य ऑटो है, लेकिन इसकी विशेषताएं असाधारण है। सीताराम जी के ऑटो के अपने नियम है, जिसे हर सवारी को पालन करना होता है और ये अनुशासन में बहुत विश्वास रखते है।
सीताराम जब तीन वर्ष के थे, तब उनके पिता का देहांत हो गया और घर की सारी ज़िम्मेदारी सीताराम के ऊपर आ गई थी। इस दुःख की घड़ी से उबर पाते कि साल भर के भीतर माँ का भी देहांत हो गया। जिस उम्र में माँ की गोद में बच्चा खेलता है, उस उम्र में सीताराम अपनी दादी के साथ खेत में काम करने जाया करते थे। बचपन बेहद संघर्ष में बिता, फिर भी खेती-किसानी कर, अपनी पढ़ाई पूरी की और घर खर्च चलाया। स्कूल के बाद सीताराम ने रोज़मर्रा के लिए तरह-तरह के काम किए। शुरुआत में एक एल्युमीनियम फैक्ट्री में काम किया, फिर एक छोटी सी साइकिल की दुकान में पंचर बनाने का काम शुरू किया लेकिन इन सबसे बड़ी मुश्किल से घर खर्च चलता था। सीताराम जीवन के सबसे बुरे दौर से गुज़र रहे थे, घर खर्च का बढ़ता बोझ और काम में मन भी नहीं लगता था।
नए काम की तलाश में सीताराम जगह-जगह भटकता रहा, लेकिन कुछ भी नहीं मिला और फिर एक दिन तुलसीदास नामक आदमी अपनी साइकिल का पंचर बनवाने उनकी दुकान पर आया और उन्होंने ही सुझाव दिया कि तुम ऑटो क्यों नहीं चलाते, जिससे तुम्हारी आमदनी बढ़ जाएगी। परिवार की बढ़ती ज़िम्मेदारी और खर्च को देखते हुए सीताराम ने अपने जोड़े हुए पैसो से और कुछ पैसे कर्ज़ लेकर एक ऑटो ख़रीदा और दिल्ली की सड़को पर निकल पड़े। शुरू में बहुत ग्राहक नहीं मिलते थे, लेकिन उम्मीद थी कि धीरे-धीरे पैसेंजर मिलने शुरू होंगे। सीताराम बताते है कि जब ग्राहक नहीं मिलते थे, तो ड्राइवर मित्र तंज कसते हुए कहते थे कि ईमानदारी और सिद्धांत से न ऑटो चलती है और न ही पेट भरता है, लेकिन सीताराम उनकी बातों का हमेशा मुस्कुराकर जवाब देते और कहते कि मुझे तो ईमानदारी पर पूरा विश्वास है।
इनकी ऑटो के है अनूठे नियम
जीवन के बुरे दौर ने सीताराम को बहुत कुछ सीखा दिया था। ऑटो खरदीने के बाद सीताराम ने कुछ नियम बना लिए और जब पूछो कि यह अनोखे नियम क्यों, तो कहते है, “बस यही मेरा जीने का तरीका है, इन नियमों से मुझे संतुष्टि मिलती है, ख़ुशी मिलती है कि मैंने कभी किसी का बुरा नहीं किया और इन नियमो से दूसरों का भला की होता है।”
1 . ऑटो में चलते वक़्त बाहर कचरा फेंकना सख्त मना है, कचरा फेंकने हेतु गाड़ी के अंदर एक डस्टबिन है, उसमें ही कचरा फेंक सकते हैं। अगर आपके पास ज़्यादा कूड़ा -कचरा है, तो आप ऑटो में मुफ़्त में उपलब्ध बैग ले सकते है।
2 . ऑटो में साफ़ पानी पीने की व्यवस्था, दुर्घटना होने पर फर्स्ट ऐड किट, आग लगने की स्थिति में एक फायर एक्सटीन्गुइशर,भीषण गर्मी में ऑटो के ऊपर गर्मी से राहत देने हेतु खस की व्यवस्था और पढ़ने हेतु अख़बार आदि हमेशा उपलब्ध मिलेगा।
3. सीताराम जब भी ऑटो किसी स्थान पर खड़ी करते है, तो एक छोटा सा बोर्ड लगा देते है, जिसमें उनका फ़ोन नंबर लिखा होता है! यह इसीलिए कि अगर ऑटो के कारण जाम लग रहा हो, या किसी को कोई इमरजेंसी सेवा लेनी हो, तो वह सीताराम को कॉल करके बुला सकता है। सीताराम कहते है कि कभी कोई बच्चा फ़ोन करता है कि एग्जाम के लिए जल्दी जाना है, तो कभी कोई बूढ़ा फ़ोन करता है कि मुझे घर छोड़ दीजिये ।
4 . ऑटो में सिगरेट पीना सख्त मना है, जिसे गाड़ी में सिगरेट पीना हो, वह दूसरी ऑटो देख सकता है। अगर कोई सवारी सिगरेट का आदी है, तो सीताराम, ऑटो को किसी गैर- सार्वजानिक जगह पर रोकते है और सवारी को बाहर जाकर धूम्रपान करने को कहते है I
5.सीताराम अपने साथ एक रेडियम जैकेट और सीटी भी रखते है। जब रात के अँधेरे में कभी लम्बा ट्रैफिक जाम लगा हो या कोई एम्बुलेंस फँस जाती है, तब यह जैकेट पहनकर, सिटी बजाकर पूरा ट्रैफिक क्लियर करने का काम करते है।
वे कहते है, “हो सकता है मेरे इस काम से किसी की जान बच जाए, या कोई बच्चा समय पर एग्जाम देने पहुंच जाए। मैं जब भी ट्रैफिक क्लियर करता हूँ, तो लोगों के चेहरे पर संतुष्टि देखता हूँ। बहुत बार तो ऐसा भी हुआ है कि दो घंटे से लम्बा जाम लगा हुआ है और लोग बस हॉर्न बजाए जा रहे है और तब मैं यह जैकेट पहनकर ट्रैफिक क्लियर करता हूँ। लोग ट्रैफिक से निकलने के बाद राहत की साँस लेते है और बस यही देखकर लगता है, चलो आज फिर कुछ अच्छा किया है मैंने।”
सीताराम की समझदारी से बची जान
एक दिन सीताराम को रात को एक कॉल आया – “मेरी पत्नी को अस्पताल ले जाना है और मेरे पास अस्पताल जाने का कोई साधन नहीं है, मेरी पत्नी को असहनीय प्रसूति पीड़ा हो रही है।”
फिर क्या था; आधी रात को सीताराम अपना ऑटो लेकर निकल पड़े और उस महिला को प्रसव हेतु कड़कड़डूमा स्थित अस्पताल ले पहुंचे!
सीताराम कहते है, “वैसे तो ज़िन्दगी में खुश होने के बहुत मौके मिलते है, किन्तु नवजात शिशु की उस पहली मुस्कान ने मुझे बहुत हिम्मत दी, ऐसा लगा मानो जीवन में कोई बड़ा लक्ष्य हासिल कर लिया होI”
सीताराम की कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है, जो सोचते हैं कि हमारे अकेले के करने से क्या ही बदलाव आएगा। इस तीस वर्ष की यात्रा में सीताराम ने समाज में कुछ बेहतर करने का सफल प्रयास किया है। गरीबी से अकेले दो- दो हाथ कर, आज अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे रहे है। वे कहते है, “मैं नहीं चाहता कि मेरे बच्चे भी ऑटो चलाए लेकिन यह ज़रूर चाहता हूँ कि वो भी अपने जीवन में आम लोगों के लिए कुछ अच्छा करें।”
सीताराम की ज़िन्दगी से यह सीखा जा सकता है कि कैसे अपना काम करते हुए ही समाज के लिए कुछ बेहतर किया जा सकता है!
(संपादन – मानबी कटोच)