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24 घंटे मरीज़ों के लिए खुला रहता है यह क्लिनिक, डॉक्टर की फीस मात्र 10 रुपये

बचपन में हम अक्सर अपने दादा-दादी या नाना-नानी के जमाने की कहानियां सुनते हैं। कई बार बड़े-बुजुर्गों का जीवन हमें इतना प्रभावित करता है कि हम उनकी बताई राहों पर चलने लगते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी आंध्र प्रदेश की डॉ. नूरी परवीन की है। मूल रूप से विजयवाड़ा से संबंध रखने वाली, डॉ. नूरी ने कभी अपने दादा जी को नहीं देखा। क्योंकि, उनका देहांत नूरी के जन्म से पहले ही हो गया था। उन्होंने सिर्फ अपने पिता से उनकी नेकी और समाज सेवा की कहानियां सुनी और शायद यही वजह है कि वह अपने दादा जी की तरह, समाज सेवा के काम में जुट गईं।

वह कहती हैं, “बचपन से ही दादा जी के बारे में सुनते हुए, मेरे मन में भी समाज सेवा की भावना आ गयी थी। फिर हमेशा अपने पिता को भी लोगों की मदद करते हुए देखा। मैं अक्सर सोचती थी कि बड़ी होकर मैं ऐसा कुछ करुँगी, जिससे लोगों की भलाई हो।” अपने बचपन के सपने को साकार करते हुए, डॉ. नूरी आज अपना क्लिनिक चला रही हैं। जहाँ वह मात्र 10 रुपए में लोगों का इलाज करती हैं। अपनी मेडिकल की पढाई पूरी करने के बाद, उन्होंने फैसला किया कि वह जरूरतमंद और गरीब तबकों से आने वाले लोगों के लिए काम करेंगी। 

उन्होंने द बेटर इंडिया को अपने इस सफर के बारे में विस्तार से बताया। वह कहतीं हैं, “मैं बचपन से ही पढ़ाई में अच्छी थी। मैं बचपन में देखती थी कि लोग डॉक्टरों को सबसे अधिक इज्जत देते हैं। इस पेशे को बहुत नेक माना जाता है क्योंकि, डॉक्टर लोगों की जान बचाते हैं। इसलिए, मैंने भी डॉक्टर बनने की ठान ली।”

हालांकि, उनके लिए यह राह आसान नहीं थी। क्योंकि, 10वीं कक्षा तक उर्दू मीडियम से पढ़ी डॉ. नूरी को, 11वीं कक्षा से अंग्रेजी मीडियम कोर्स लेना पड़ा। हमेशा टॉप करने वाली नूरी के नंबर अचानक से कम आने लगे और उनका मनोबल टूटने लगा। वह कहती हैं, “वह समय मुश्किल था लेकिन, डॉक्टर बनने की चाह में मैंने हर मुश्किल से लड़ने की ठानी। मेरे परिवार ने भी हमेशा मेरा साथ दिया और कड़ी मेहनत से आखिरकार मुझे स्कूल के बाद मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिल गया।” 

Dr. Noori Parveen

मात्र 10 रुपए में इलाज:

डॉ. नूरी ने आंध्र प्रदेश में कडप्पा के ‘फातिमा इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज’ से अपनी एमबीबीएस की डिग्री पूरी की। उन्होंने बताया कि कॉलेज की पढ़ाई के दौरान भी, वह समाज सेवा के कार्यों से जुडी रहीं। उन्होंने आगे बताया, “कॉलेज के दूसरे साल में, मैंने अपने कुछ दोस्तों और जूनियर्स के साथ मिलकर एक संगठन बनाया। हम सभी छात्र मिलकर, अलग-अलग आश्रय घर और वृद्धाश्रमों में जाया करते थे। वहाँ पर रहने वाले लोगों का नियमित चेक-अप करते थे और अन्य किसी तरह की मदद हो पाती तो वह भी किया करते थे।” 

डिग्री पूरी होने के बाद, उन्होंने देखा कि उनके दोस्त या तो आगे मास्टर्स डिग्री की तैयारी में जुटे हुए हैं या फिर कोई अस्पताल ज्वॉइन कर रहे हैं। बाकी सबकी तरह नूरी ने भी यही करने का विचार किया था। लेकिन, फिर उन्हें लगा कि अगर वह सिर्फ अपने बारे में सोचेंगी तो बचपन से लोगों के लिए कुछ करने का जो उनका सपना है, वह कैसे पूरा होगा? इसलिए, उन्होंने न तो कोई अस्पताल ज्वॉइन किया और न ही आगे पढ़ाई की तैयारी। उन्होंने कहा, “मैंने गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए क्लिनिक शुरू करने का फैसला किया, जहाँ उन्हें कम से कम पैसे में सही इलाज मिले। मैंने पहले इस बारे में अपने घर पर नहीं बताया और पिछले साल क्लिनिक शुरू कर दिया। मैं खुशकिस्मत हूँ कि जब मेरे परिवार को इस बारे में पता चला तो उन्होंने इस काम में भी मेरा सहयोग किया।” 

7 फरवरी 2020 को उन्होंने अपना क्लिनिक शुरू किया, जहाँ वह मरीजों से मात्र 10 रुपए फीस लेती हैं। अगर किसी मरीज को पूरे दिन क्लिनिक में रखना पड़े तो मात्र 50 रुपए फीस है। उनके क्लिनिक में तीन बेड हैं और अन्य कुछ जरूरी सुविधाएँ। डॉ. नूरी बताती हैं कि हर रोज, वह कम से कम 40-50 मरीजों को देखती हैं। उन्होंने कहा, “मैंने अपना क्लिनिक कडप्पा में ही खोला है। यहाँ आसपास के ग्रामीण इलाकों से मरीज आते हैं, जो बड़े अस्पतालों या क्लीनिकों में नहीं जा सकते हैं। क्योंकि, ज्यादातर जगह डॉक्टरों की फीस ही 200-250 रुपये होती है और दवाइयों का खर्च अलग। ये लोग पैसे की वजह से, बहुत बार अपने स्वास्थ्य को अनदेखा करते हैं, खासकर महिलाएं। लेकिन अगर डॉक्टर की फीस कम हो तो इनकी काफी ज्यादा मदद हो जाती है।” 

लॉकडाउन में भी खुला क्लिनिक: 

डॉ. नूरी बताती हैं कि मार्च 2020 में जब लॉकडाउन लगा तो उन्हें अपना क्लिनिक बंद करना पड़ा। लेकिन, इसके एक सप्ताह में ही लोग उनसे संपर्क करने लगे। क्योंकि, लॉकडाउन के कारण उनका दूसरी जगह जाना भी मुश्किल हो रहा था। ऐसे में, उन्होंने फिर से क्लिनिक खोला। उन्होंने कहा, “लॉकडाउन में भी क्लिनिक 24 घंटे खुला रहा था और अभी भी हम हर वक्त लोगों की मदद के लिए तैयार रहते हैं। पिछले एक साल में लोगों से अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। मैं लोगों को सस्ता इलाज देकर, उनकी मदद कर रही हूँ तो कुछ समृद्ध लोगों ने आगे बढ़कर, अपने स्तर पर हमारी मदद करने की कोशिश की है।” 

उनके यहाँ बुखार, खांसी-जुकाम जैसी बीमारियों से लेकर दिल, और दिमाग से संबंधित बीमारियों से जूझ रहे मरीज भी आते हैं। वह हरेक मरीज का हर संभव इलाज करने की कोशिश करती हैं। उन्होंने बताया कि वह अपने नेटवर्क में कार्डियोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, और गायनाकोलॉजिस्ट से भी जुड़ी हुई हैं। अगर कभी कोई मरीज इस तरह की बीमारियों के साथ आता है तो वे एक्सपर्ट डॉक्टर से फोन पर सलाह-मशविरा करती हैं। साथ ही, वह कोशिश करती हैं कि उस मरीज को सही इलाज और देखभाल मिले।

डॉ. नूरी कहतीं हैं, “अगर मैं इस तरह के मरीजों को वापस लौटा दूंगी या कहीं बड़े अस्पताल में जाने को कहूँगी तो ये लोग निराश होंगे। इसलिए, मैं उनकी परेशानी सुनती हूँ और उन्हें हल करने की कोशिश करती हूँ। इसके बाद, अगर किसी को ज्यादा इलाज की जरूरत होती है तो उन्हें दूसरी जगह भेजा जाता है।”

कडप्पा में ही रहने वाले सिद्दकी बताते हैं, “एक दिन देर रात में मेरी तबियत बहुत खराब हो गयी थी। लेकिन मैं अस्पताल जाने से कतरा रहा था क्योंकि मुझे डर था कि अगर डॉक्टर नहीं मिले तो। ऐसे में, मैंने और मेरे भाई ने डॉ. नूरी को फोन किया। वह अपने क्लीनिक से निकल गयी थीं लेकिन मेरे फोन के बाद वह तुरंत क्लीनिक वापस आ गई और मुझे भी क्लीनिक आने को कहा। आज के समय में किसी डॉक्टर का अपने मरीजों के लिए यह समर्पण बड़ी बात है।”

इसके अलावा, डॉ. नूरी ने ‘नूर चैरिटेबल ट्रस्ट’ की भी शुरूआत की है। जिसके जरिए, वह जरूरतमंद परिवारों के बच्चों तक किताबें, स्टेशनरी और भी कई जरूरी चीजें पहुंचा रही हैं। उनका उद्देश्य, हर संभव तरीके से लोगों की मदद करना है। इन सामाजिक पहलों के अलावा वह दहेज, आत्महत्या के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए, डॉक्यूमेंट्री भी बनाती हैं। 

अंत में वह कहती हैं, “मैं जरूरत होने पर अभी भी अपने परिवार से मदद मांगती हूँ। क्योंकि, मेरा उद्देश्य पैसे कमाना नहीं बल्कि लोगों की मदद करना है। मुझे पूरा भरोसा है कि जैसे अब तक मेरी कोशिश सफल रही है, आगे भी यह अभियान चलता रहेगा।” 

बेशक, डॉ. नूरी परवीन की यह पहल काबिल-ए-तारीफ है और हमें उम्मीद है कि वह इसी तरह आगे बढ़कर, लोगों की मदद करती रहेंगी। 

संपादन- जी एन झा

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