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भाई के त्याग को मानते हैं अपनी सफलता का कारण, पढ़ें गोल्डन बॉय अचिंता शेउली की कहानी

Achinta seuli
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पश्चिम बंगाल के देउलपुर गांव के रहनेवाले 20 वर्षीय अचिंता शेउली ने बर्मिंघम में पुरूषों के 73 किलो वर्ग में क्लीन और जर्क में कुल 313 किलो वजन उठाकर राष्ट्रमंडल खेलों का रिकॉर्ड अपने नाम किया। साथ ही, उन्होंने भारत को तीसरा गोल्ड दिलाकर देश का मान भी बढ़ाया।  

उनकी इस सफलता के साथ ही हावड़ा में बैठे उनके भाई का सपना भी पूरा हो गया। उन्होंने एक समय पर अपने खुद के सपने को पीछे रखकर, अचिंता को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया था। 

अपने प्रदर्शन के बाद मीडिया से बात करते हुए अचिंता शिउली ने अपने भाई को अपनी सफलता का श्रेय दिया। क्योंकि वह चाहते थे कि पूरी दुनिया यह बात जाने कि यहां तक पहुंचने के लिए उनके साथ-साथ, कई और लोगों का त्याग और मेहनत भी इस जीत में शामिल है।

पोडियम पर तिरंगा लहराने वाले इस खिलाड़ी को वेटलिफ्टिंग का सपना दिखाने वाले उनके बड़े भाई अलोक ही हैं। 

पिता के निधन के बाद, अपनी ट्रेनिंग छोड़, अचिंता को किया खेल के लिए तैयार 

हावड़ा से करीबन दो घंटे की दूरी पर रहनेवाले अचिंता शेउली ने 2013 में अपने पिता को खो दिया था, जिसके बाद घर के हालात पहले जैसे नहीं थे। उस दौरान, उनके बड़े भाई आलोक वेटलिफ्टिंग किया करते थे। आलोक अपने घर के पास वाली जिम में ट्रेनिंग के लिए जाते थे, जहां वह अचिंता को भी लेकर जाते थे। हालांकि, शुरुआत में अचिंता को इसमें कोई रुचि नहीं थी।  

Achinta’s Family

घर के खर्च निकालने के लिए आलोक ने आगे चलकर अपनी ट्रेनिंग छोड़ दी और अपने पिता की तरह ही हावड़ा में मजदूरी करने लगे। लेकिन अलोक ने अपने सपने को अचिंता के अंदर हमेशा जिन्दा रखा।  

माँ के साथ एम्ब्रॉइडरी का काम करते थे अचिंता शेउली 

बड़े भाई के साथ-साथ, उनकी माँ ने भी सिलाई और एम्ब्रॉइडरी का काम करना शुरू किया था। चूंकि अचिंता उम्र में छोटे थे, इसलिए उनके ऊपर कोई तकलीफ न आए, इस बात का उनकी माँ और भाई ने विशेष ध्यान रखा। समय के साथ अचिंता और उनके भाई दोनों ने माँ के साथ एम्ब्रॉइडरी का काम करना शुरू किया। 

अचिंता शेउली उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि वह सिर्फ स्कूल जाते,  ट्रेनिंग करते, खाना खाते और माँ के साथ एम्ब्रॉइडरी के काम में मदद करते थे।  

दरअसल, पिता के निधन के समय अलोक नेशनल लेवल के वेटलिफ्टर अस्तम दास से ट्रेनिंग ले रहे थे और दास सर ही अचिंता के भी शुरुआती कोच थे। उन्होंने जरूरतमंद बच्चों को कोचिंग देने के लिए अपनी नौकरी भी छोड़ दी थी। दास सर ने अचिंता शेउली को फ्री में कोचिंग देना शुरू किया। अचिंता के बारे में बात करते हुए दास सर बताते हैं कि अचिंता काफी दुबले-पतले थे, लेकिन उनके अंदर खेलने का जोश था।  दास सर के साथ अचिंता ने 2013 से ही प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया।

लेकिन जीवन का टर्निंग पॉइंट तब आया, जब अचिंता शेउली को 2014 में आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट के ट्रायल में चुना गया।

उन्होंने 2016 और 2017 में आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट में अपना प्रशिक्षण जारी रखा।  2018 में वह राष्ट्रीय शिविर में आ गए।  2018 में ही उन्होंने जूनियर और सीनियर कॉमनवेल्थ चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। 

2019 में, अचिंता शेउली ने 18 साल की उम्र में सीनियर नेशनल में स्वर्ण पदक हासिल किया था। 2021 में कॉमनवेल्थ सीनियर चैंपियनशिप में अचिंता ने पहला स्थान हासिल किया था।  

आज वह देश के जाने-माने वेटलिफ्टर हैं। हाल में कॉमनवेल्थ खेलों में मिली जीत से उन्होंने साबित कर दिया कि जीवन में तकलीफों को हराने के लिए मेहनत का रास्ता ही सबसे अच्छा रास्ता होता है।  

द बेटर इंडिया की ओर से उन्हें इस सफलता के लिए ढेरों शुभकामनाएं। 

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