जहां चाह होती है, वहां राह भी बन ही जाती है और इस बात को सच साबित किया है IAS गोविंद जायसवाल ने। गोविंद ने तमाम परेशानियों के बावजूद पूरी हिम्मत और लगन से मेहनत कर आखिरकार वह मुकाम हासिल कर ही लिया, जहां तक पहुंचने का वह हमेशा से सपना देखा करते थे।
हालांकि, यह सफर और यह कहानी सिर्फ गोविंद की सपलता और उनके संघर्ष की नहीं है। यह कहानी उनके पिता नारायण जायसवाल के परिश्रम और त्याग की भी है। यह कहानी उस रिक्शा चालक पिता की भी है, जिसने कभी अपने ज़ख्म छुपाए, तो कभी कई रातें भूखे रहकर गुज़ारीं और बेटे को बना दिया IAS अधिकारी और अब उनके असल ज़िंदगी की कहानी पर फिल्म भी आने वाली है, जिसका नाम है ‘अब दिल्ली दूर नहीं’।
IAS गोविंद के पिता ने अकेले संभाली सारी ज़िम्मेदारी
गोविंद जायसवाल ने अपनी शुरुआती पढ़ाई एक सरकारी स्कूल से की थी और फिर बनारस के हरिश्चंद्र डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद, उन्होंने 2004-05 में UPSC की तैयारी के लिए दिल्ली जाने का फैसला किया। माँ थीं नहीं, ऐसे में पिता ने ही बेटे को पाल-पोसकर बड़ा किया और अपनी आर्थिक तंगी का असर बेटे पर नहीं पड़ने दिया।
नारायण जायसवाल ने दिन-रात रिक्शा चलाकर बेटे को पढ़ाया। कई बार तो ऐसा भी हुआ, जब बेटे को पैसे भेजने के लिए पिता भूखे भी रहे अपने घावों का इलाज तक नहीं कराया, ताकि बच्चे के लिए पैसे कम न पड़ें। गोविंद ने भी पिता के त्याग का मान रखा और मंजिल पाने के लिए जी-जान से मेहनत से तैयारी करते रहे और साल 2006 में अपने पहले ही Attempt में न सिर्फ UPSC परीक्षा पास की बल्कि 48वीं रैंक हासिल कर 22 साल की उम्र में IAS अफसर भी बने।
आईएएस गोविंद जायसवाल की इसी प्रेरित करने वाली कहानी पर बनी फिल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ के ज़रिए IAS गोविंद और उनके पिता के संघर्ष और यहां तक के सफर की कहानी देशभर के युवाओं को प्रेरित करने का काम करेगी।
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