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70 की उम्र में भी खुद की कमाई से चला रहीं घर खर्च, हर तरह की कर चुकी हैं मजदूरी

jadi ba
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अक्सर मेहनत करने वाले परेशानियों से नहीं डरते, बल्कि अपने दम पर मुश्किलों को दूर करने की कोशिश करते हैं। मेहनत करके अपने आप को आत्मनिर्भर बनाने की एक मिसाल हैं, अहमदाबाद की 70 वर्षीया जड़ी बा। एक गरीब परिवार में जन्मीं जड़ी बा के माता-पिता दोनों अहमदाबाद नगरपालिका में काम करते थे। 

बेहद ही कम तनख्वाह होते हुए भी उन्होंने जड़ी बा सहित उनके सभी छह भाई-बहनों को इंटर तक पढ़ाया। 

जड़ी बा कहती हैं, “मैंने बचपन से गरीबी देखी है। कई बार तो एक दिन छोड़कर ही हमें गेहूं की रोटी नसीब होती थी। लेकिन मैंने शिकायत करना नहीं सीखा। मैं हमेशा सोचती थी कि एक दिन स्थिति ठीक हो जाएगी।”

लेकिन समय के साथ, उनके जीवन में परिस्थिति ज्यादा बेहतर हो नहीं पाई। आज भी वह कठिन मेहनत करके अपने जीवन को बेहतर बनाने की जद्दो जहद में लगी हैं। लेकिन जो बात उन्हें बेहद खास बनाती है वह है- उनके चेहरे की मुस्कान और किसी बात की शिकायत किए बिना जीवन को जीने का जज्बा।  

45 सालों से काम कर रहीं जड़ी बा ने की हर तरह की मजदूरी 

Jadi ba

पढ़ाई के बाद जड़ी बा की शादी अहमदाबाद के ही डाया भाई चौहान से हो गई और वह साबरमती इलाके के केशवनगर में एक चॉल में रहने चली आईं।  उस समय डायाभाई एक प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी करते थे और मात्र 45 रुपये की तनख्वाह से उनके लिए माता-पिता और घर का खर्च उठाना काफी मुश्किल था।  

तब जड़ी बा ने घर की जिम्मेदारी उठाते हुए पति का साथ देने का फैसला किया। शादी करने के बाद उन्होंने सबसे पहले गाँधी आश्रम में चरखा चलाने का काम करना शुरू किया था। उन्होंने छह साल यहां काम करने के बाद, मिट्टी उठाने और स्कूल में मध्यान्ह भोजन के बर्तन धोने का काम भी किया है।  

उन्होंने करीबन 18 साल अपने बूढ़े सास-ससुर की सेवा भी पूरे लगन से की। उनके पति डायाभाई बताते हैं, “मैं जड़ी जैसी जीवनसंगिनी पाकर बेहद खुश हूँ।  उन्होंने हर कदम मर मेरा साथ दिया। मेरे माता-पिता की मुझसे ज्यादा सेवा की और कभी भी कोई शिकायत नहीं की।”

नहीं रही पति की नौकरी, तो खुद संभाल रहीं घर की जिम्मेदारी 

जड़ी बा और डाया भाई की खुद की कोई संतान नहीं है। इसलिए माता-पिता के गुज़रने के बाद, दोनों काम करके अपना गुजारा चलाया करते थे। लेकिन कोरोना के समय उन दोनों की नौकरी छूट गई। उस दौरान उनके रिश्तेदारों और सरकार की मदद से उनके घर का खर्च चलता था। जड़ी बा बताती हैं, “कोरोना के समय मेरी छोटी बहन और मेरे जेठ के बेटे ने मुझे समय-समय पर आर्थिक मदद की है। वहीं हमें सरकारी योजना के तहत हर रोज़ खाना मिल जाया करता था।”

कोरोना के समय उनके पति के पैरों में काफी तकलीफ हो गई,  जिसके बाद उनका काम पर वापस लौटना मुश्किल हो गया। हालांकि उन्होंने कई जगह काम की तलाश भी की, लेकिन अधिक उम्र के कारण उन्हें कोई काम नहीं मिला। जड़ी बा एक मेहनत पसंद महिला हैं, इसलिए वह दूसरों पर निर्भर होकर जीना नहीं चाहती थीं।  उन्होंने गाँधी आश्रम में काम की मांग की, आश्रम के पास ही सफाई विद्यालय में उन्हें सफाई का काम मिल भी किया। 

पहले वह यहां कुछ समय के लिए ही जाया करती थीं। जड़ी बा कहती हैं, “कम समय के लिए जाने पर मुझे कम पैसे ही मिलते थे। लेकिन मैंने सफाई विद्यालय के डायरेक्टर जयेश पटेल से ज्यादा काम की मांग की, ताकि थोड़े ज्यादा पैसे कमा सकूँ और उन्होंने मेरी मेहनत को देखकर मुझे यहां दिनभर काम करने की ज़िम्मेदारी दे दी।”

Jadi ba at her workplace

काम कुछ भी हो, हमेशा अच्छे से तैयार होकर रहना पसंद है जड़ी बा को 

यूं तो जड़ी बा बताती हैं कि उन्हें ज्यादा कोई शौक नहीं है। लेकिन वह जहां भी जाती हैं, अच्छे से तैयार होकर ही जाना पसंद करती हैं। उन्होंने बताया कि सफाई विद्यालय में बड़े-बड़े अधिकारी आते हैं और उन्हें सबसे मिलाया जाता है। इसलिए वह हर दिन अच्छे से साड़ी पहनकर तैयार होकर ही काम पर जाती हैं। 

वह सुबह जल्दी उठकर, घर का सारा काम खुद करती हैं। फिर वह अपने लिए टिफिन और पति के लिए खाना बनाने के बाद, काम के लिए निकलती हैं। उनके घर से आश्रम करीबन चार किलोमीटर दूर है। हर दिन वह 10 बजे बस से सफाई विद्यालय जाती हैं और शाम को पांच बजे वापस आती हैं। 

फिलहला जड़ी बा को पांच हज़ार रुपये तनख्वाह मिलती है,  जो उनके लिए काफी बड़ी रकम है। जड़ी बा ने बताया कि यहां काम करते हुए उन्हें जीवन में पहली बार पांच हजार रुपये का चेक मिला था, जिसे देखकर वह रो पड़ी थीं।

अपने काम करने की इस आदत को वह अपने स्वस्थ रहने का कारण भी मानती हैं। वह कहती हैं, “इस उम्र में छोटी-छोटी दिक्कतें तो होती हैं, लेकिन मैं घरेलु उपचार से उसे ठीक कर लेती हूँ और नियमित काम करती रहती हूँ।”

उनके जीवन का एक ही उदेश्य है कि वह जब तक स्वस्थ हैं, तब तक ऐसे ही सम्मान से काम करती रहें।  आशा है आपको भी उनकी कहानी से ज़रूर प्रेरणा मिली होगी। 

संपादन-अर्चना दुबे

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