उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले की कुंवरापुर गाँव की रहने वाली 44 वर्षीया सुधा पांडे बीते 15 वर्षों से डेयरी का काम कर रही हैं। सुधा के पास ज़मीन नहीं थी और न ही घर की हालत इतनी अच्छी थी कि खेत खरीद सकें। सुधा ने कर्ज़ लेकर एक भैंस खरीदी और दूध बेचकर घर चलाना शुरू किया। वह एक स्वयं सहायता समूह से भी जुड़ी थीं। नेशनल बैंक ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) की मदद से उन्होंने 10 भैंसें कर्ज़ लेकर खरीद ली और यहीं से शुरू हुआ उनका डेयरी का कारोबार। धीरे-धीरे उनकी मेहनत और लगन ने रंग लाया और उन्हें अच्छा मुनाफ़ा होने लगा।
सुधा बताती हैं, “आज मेरे पास कुल मिला कर 65 गौवंश हैं। डेयरी चलाने में मेरा बेटा और पति पूरी मदद करते हैं। मैंने दो लोगों को और नौकरी पर रखा है, क्योंकि इतने सारे पशुओं की देखभाल करना आसान काम नहीं।” सुधा ने बताया कि दूध की बिक्री के लिए उन्होंने पराग कंपनी की मदद ली। पराग की गाड़ी रोज़ सुबह उनके घर पहुँच जाती है।
सुधा को डेयरी क्षेत्र में सराहनीय काम करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार से लगातार 4 बार गोकुल पुरस्कार भी मिल चुका है। बता दें कि यह पुरस्कार सबसे ज़्यादा दूध उत्पादन के लिए दिया जाता है। सुधा आज गाँव की दूसरी महिलाओं को भी डेयरी का संचालन करना सिखा रही हैं। सुधा की डेयरी में दूध उत्पादन ज़्यादा होने का एक कारण उनका सही तरीके से पशुओं की देखभाल करना भी है। उन्होंने अपने पशुओं को गर्मी से बचाने के लिए उनके रहने की जगह पर पानी का फव्वारा और पंखे की भी व्यवस्था की है।
सुधा पशुपालकों को सलाह देते हुए कहती हैं कि पशु सबसे कम दूध गर्मी के मौसम में देते हैं। अगर इस समय उनकी सही देख-रेख की जाए तो डेयरी व्यवसाय में नुकसान नहीं होगा। सुधा अपने पशुओं को घर का सदस्य मानती हैं। वह कहती हैं कि मैंने तो पशुओं के लिए संगीत का भी इंतज़ाम कर रखा है। दूध दूहते वक़्त मैं कोई बढ़िया संगीत बजा देती हूँ। मेरा मानना है कि पशुओं पर भी संगीत का अच्छा असर होता है।
वर्मी कम्पोस्ट बनाना भी सिखा रहीं –
कई सारे पशु होने से उनका गोबर भी ज्यादा मात्रा में निकलता है। इससे सुधा केंचुआ खाद तैयार करती हैं, जिसे वर्मी कम्पोस्ट भी कहते हैं। वह गाँव की कई महिलाओं को भी वर्मी कम्पोस्ट बनाने की ट्रेनिंग दे चुकी हैं।
सुधा बताती हैं, “अच्छा लगता है, जब लोग पूछते हैं कि आपकी तरह काम कैसे करूँ, डेयरी कैसे शुरू की जाए? मैं खुशी–खुशी उनकी मदद करती हूँ।”
जैविक तरीके से खेती कर के महिला किसान ने संवारी अपनी ज़िंदगी –
सीतापुर जिले के ही तेंदुआ गाँव की रहने वाली सुधा तोमर ने जब देखा कि रासायनिक खादों और कीटनाशकों के इस्तेमाल से फसलों को तो नुकसान होता ही है, साथ ही सेहत पर भी ये बुरा असर डालते हैं तो उन्होंने भी जैविक तरीके से खेती और पशुपालन करने की ठानी।
42 साल की सुधा 2008 से पशुपालन और वैज्ञानिक तकनीक के ज़रिये खेती कर रही हैं। उन्होंने अपने 3 एकड़ अनुपजाऊ जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए सबसे पहले मृदा परीक्षण कराया और फिर हरी खाद, गोबर की खाद और केंचुआ खाद जैसे जैविक तरीके अपनाकर खेती करना शुरू किया।
खेती के साथ वह बकरी पालन भी करती हैं और उनके खाने के लिए हरा चारा खरीदने के बजाय सहजन, नेपियर और शहतूत की रोपाई कर कम लागत में बिना किसी मिलावट का चारा घर में ही तैयार करती हैं।
सुधा तोमर ने बताया, “मैं अनाज के साथ सब्जियाँ भी उगाती हूँ। मेरे गाँव में ज़्यादातर लोग अपने खेत में दो-तीन फसल लगाते हैं, लेकिन मैं अपने खेत में लौकी, प्याज, आलू, लहसुन, तरोई, लोबिया जैसी 30 फसलें लगाती हूँ। अगर कुछ चीजें छोड़ दें तो अब मैं बाजार से खाने का सामान कम ही लेती हूँ।“
सुधा बताती हैं कि इसके लिए उन्हें बहुत ज़्यादा ज़मीन की ज़रूरत भी नहीं पड़ती। खेत में हल्दी, लहसुन, प्याज जैसी फसलों को लगाने के बाद वह ऊपर लता वाली सब्जियाँ लगा देती हैं। साथ ही, खेत के मेड़ों पर केला और गन्ना लगा देती हैं। इससे कम ज़मीन में ज़्यादा से ज़्यादा फसलें तैयार हो जाती हैं।
खेती में सुधा के योगदान को देखते हुए पूर्व कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने उन्हें सम्मानित भी किया है।
किसानों से जुड़े संगठन भी दे रहे महिलाओं को बढ़ावा –
आज किसानों की मदद करने वाले कई संगठन काम कर रहे हैं। एक गैरसरकारी संगठन रूरल वीमेन टेक्नोलॉजी पार्क के हेड डॉ. सौरभ ने बताया कि भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ग्रामीण महिलाओं का योगदान काफ़ी है, इसके बावजूद भी विडंबना यह है कि उन्हें किसान का दर्जा तक नहीं दिया गया है। वे आज भी खेती से जुड़े फैसले नहीं ले सकतीं। इसके पीछे एक कारण ग्रामीण महिलाओं की जागरूकता एवं जानकारी में कमी होना भी है।
इस समस्या का समाधान बताते हुए डॉ. सौरभ कहती हैं, “कृषि में लगने वाले महिलाओं के श्रम को कम कर उनकी कार्य क्षमता बढ़ाने की ज़रूरत है। स्थानीय तौर पर मिलने वाले खाद्य पदार्थों जैसे मोटे अनाज, सुपर फूड किनोवा, वंडर प्लांट सहजन आदि की खेती को बढ़ावा देना चाहिए। ये ज्यादा मुनाफ़ा देने वाली फसलें हैं। इसके अलावा महिलाओं को कृषि, पशुपालन एवं संबंधित उद्यमों की जानकारी देने की ज़रूरत है। उन्हें उन्नत कृषि यंत्रों व तकनीक से जुड़े प्रशिक्षण देने की भी ज़रूरत है। हम इन महिला किसानों को कृषि अवशेषों से ईंधन बनाने का प्रशिक्षण देते हैं। इसके अलावा फल-सब्ज़ियों का उत्पादन, मुर्गी पालन, वैज्ञानिक विधि से बकरी पालन, बत्तख पालन, खरगोश पालन, रंगीन मछली पालन, मखाना उत्पादन एवं प्रोसेसिंग, अजोला उत्पादन आदि की भी जानकारी देते हैं, जिसे ये अपना रोज़गार बना सकें।“
सुधा तोमर से संपर्क करने के लिए 7753943683 पर डायल करें या फिर आप 9454099434 पर डॉ. सौरभ से बात कर सकते हैं!
संपादन – मनोज झा