राजस्थान के केरडी गाँव के किसान देवी लाल गुर्जर ने अपने खेतों में चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई। वैसे तो, अब तक उनकी बाजरा, मक्का और सरसों की फ़सल तैयार हो जानी चाहिए थी, पर ऐसा नहीं हुआ। बल्कि बारिश कम होने के कारण उनकी ज़मीन सूखने लगी थी। पर इस सूखे को देखकर देवीलाल को कोई हैरानी नहीं हुई, हाँ! पर उनके मन में निराशा ज़रूर थी।
फ़सल के लिए उन्होंने न जाने कितने उर्वरक डाले थे और कितनी ही बार खेतों की सिंचाई की थी, पर फिर भी फ़सलों पर कोई असर नहीं पड़ा।
खेत की हालत से निराश, देवीलाल ने अपने बेटे, नारायण लाल से पानी की समस्या पर चर्चा की और उसे कुछ करने के लिए कहा। नारायण का बचपन गाँव में बीता, जहाँ सभी लोग कृषि पर आधारित हैं, इसलिए वे अपने पिता और अन्य किसानों की सभी तकलीफ़ों के बारे में जानते थे और उनके लिए कुछ करना भी चाहते थे।
नारायण बचपन से ही एक मेधावी छात्र रहे हैं और अपने स्कूल के साइंस प्रोजेक्ट्स में उनका बहुत अच्छा प्रदर्शन होता था। उन्होंने अपने इसी ज्ञान को गाँववालों की मदद करने के लिए इस्तेमाल करने की ठानी!
20 वर्षीय नारायण ने द बेटर इंडिया को बताया, “जहाँ मैं रहता हूँ, वहाँ खेती बहुत हद तक या तो भूजल पर या फिर राजसमन्द झील (उनके गाँव में एक कृत्रिम झील) के पानी पर निर्भर है, जिसमें बारिश का पानी इकट्ठा होता है। ”
आगे गाँव की समस्या के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि बारिश कम होने और भूजल स्तर के घटने के कारण, झील में ज़्यादा पानी जमा नहीं हो पाता, जिससे यहाँ पर फ़सल की उपज में 30 प्रतिशत की कमी आ गयी। यह बात नारायण के पिता और केरडी के अन्य किसानों के लिए एक चिंता का विषय बन गयी।
नारायण उस समय दसवीं कक्षा में थे, जब उनके पिता ने उनसे इस बारे में चर्चा की थी। उस समय तो वह इस परेशानी का हल नहीं ढूंढ पाए थे पर वे उसी वक़्त से इस समस्या का समाधान ढूँढने में लग गये थे। फिर 12वीं कक्षा में उन्होंने पॉलीमर के विषय में पढ़ा।
सुपर एब्जॉर्बेंट पॉलिमर (SAP) ऐसे रसायनिक पदार्थ होते हैं, जो बहुत अधिक मात्रा में किसी भी तरल पदार्थ को सोख सकते हैं। अगर इसे एक दम शुद्ध पानी में मिलाया जाए, तो ये वजन से 300 से1200 गुना अधिक तरल पदार्थ को सोखने की क्षमता रखता है। पर अगर इसे नमक के पानी में मिलाया जाए, तो सोखने की यह क्षमता आधी हो जाती है।
अगर सीधे शब्दों में कहा जाए तो एक ऐसा पदार्थ, जो ज़्यादा से ज़्यादा पानी सोख सकता है और साथ ही, काफ़ी समय तक पानी को अपने में रख सकता है, जब तक कि उस पानी की एक-एक बूँद का इस्तेमाल न हो जाए। इस पदार्थ को अक्सर, डायपर और सेनेटरी पैड में इस्तेमाल किया जाता है।
नारायण ने इसका उपयोग उस मिट्टी पर भी किया गया, जिसमें पानी को सोखकर रखने की क्षमता कम थी। पॉलीमर द्वारा मिट्टी को ज़्यादा से ज़्यादा पानी सोखने के लायक बनाने की उनकी यह पहली कोशिश थी।
वर्तमान में मिट्टी में जल-धारण की इस समस्या के लिए रसायन इस्तेमाल किये जाते हैं। पर नारायण के अनुसार, ये रसायन फ़सलों को, मिट्टी को, और मिट्टी की उर्वरक क्षमता को काफ़ी हानि पहुँचाते हैं।
वे आगे बताते हैं, “रसायन, मिट्टी और हवा में भी प्रदुषण फैलाते हैं। साथ ही ये मिट्टी में पूरी तरह घुलने में भी काफ़ी समय लेते हैं। आर्थिक रूप से देखा जाए, तो इनकी कीमत करीब 700 रुपये प्रति किलो है, जो किसानों के लिए बहुत महँगी हो जाती है।”
वैसे तो पॉलीमर अपनी जल-धारण क्षमता के कारण बहुत उपयोगी होते हैं। पर इन्हें भी रसायनों से ही बनाया जाता है और ये काफी महंगे भी होते हैं। राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब किसानों के लिए यह उपयुक्त विकल्प नहीं था |
पढ़ाई के दौरान नारायण को इस तरह के पॉलीमर के बारे में सभी जानकारी मिली। इसी जानकारी के आधार पर, उन्होंने ऐसे प्राकृतिक तत्वों के बारे में पता लगाने की कोशिश की, जिनके गुण इस तरह के पॉलीमर से मेल खाते हों। अपनी इस तलाश के लिए उन्हें बहुत ज़्यादा नहीं भटकना पड़ा, बल्कि कुछ समय की रिसर्च में ही उन्हें पता चला कि फलों के छिलकों में भी बहुत हद तक पानी सोखने की क्षमता, पॉलीमर जैसी ही होती है।
इस युवा इनोवेटर के लिए यह उनकी ज़िंदगी का सबसे खास पल था। फिर उन्होंने बायोडिग्रेडेबल चीज़ों का इस्तेमाल कर, एक इको- फ्रेंडली वाटर रिटेंशन पॉलीमर (ईएफपी) विकसित किया। अब ईएफपी एक पाउडर रूप में उपलब्ध है, जिसे खेतों में छिड़कना बहुत ही आसान है। मिट्टी में मिलने पर यह अधिक से अधिक बारिश के पानी को सोख लेता है और तब तक इस पानी को रखता है, जब तक कि आख़िरी बूँद भी प्रयोग में न आ जाए। यह ईएफपी पाउडर पौधों की जड़ों में छिड़का जाता है और फिर पौधे इससे अपनी आवश्यकतानुसार पानी ले लेते हैं।
ईएफपी सबसे अलग है और इस समय राजस्थान जैसे इलाकों की ज़रूरत है!
नारायण बताते हैं, “यह आविष्कार पूरी तरह से जैविक कचरे (बायो-वेस्ट) से बना है, जिसमें फलों के छिलके होते हैं, जिन्हें जूस बनाने वाले छोटे कारखाने अक्सर फेंक देते है। जैविक कचरे से बनने के कारण यह पाउडर बाज़ार में मिलने वाली किसी भी पॉलीमर से बहुत सस्ता है। साथ ही, इसमें प्रयोग हुई सभी चीज़ें पर्यावरण के अनुकूल हैं, तो ये फ़सलों के लिए उर्वरक का काम भी करते हैं और उन्हें बढ़ने में मदद करते हैं।”
पर्यावरण के अनुकूल इस खास पॉलीमर के सबसे पहले ग्राहक देवी लाल और केरडी गाँव के कुछ अन्य किसान थे। नारायण बताते हैं कि किसानों को इस ईएफपी को खरीदने और प्रयोग करने के लिए ज़्यादा समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ी, क्योंकि इसकी कीमत किसानों के लिए मात्र 100 रुपये प्रति किलो तय की गयी थी।
“हम नर्सरी व अन्य ग्राहकों से औसतन 120 रुपये प्रति किलो लेते हैं। इसमें प्रोसेसिंग, ट्रांसपोर्ट आदि का शुल्क और अन्य टैक्स शामिल हैं। किसानों को हम ये 100 रुपये प्रति किलो की दर से बेचते हैं,” नारायण ने योर स्टोरी को दिए एक इंटरव्यू में बताया।
इस उत्पाद की कीमत रासायनिक पॉलीमर से 80 प्रतिशत कम है और फिर भी यह उद्योग, हर एक किलो पर 40 प्रतिशत तक का मुनाफ़ा कमा रहा है।
उनका प्रयोग सफ़ल रहा और नारायण ने अपना स्टार्ट-अप शुरू किया। आज वे ‘इको- फ्रेंडली वाटर रिटेंशन पॉलीमर’ के सीईओ हैं, जिसे उन्होंने साल 2014 में शुरू किया और इसके साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी कर रहे हैं।
केरडी में इस पाउडर की बिक्री के बाद, नारायण और उनकी टीम ने राजस्थान में लगने वाले अलग-अलग कृषि मेलों और प्रदर्शनियों में जाकर, अपने इस उत्पाद का प्रचार किया। इस उत्पाद की कई खूबियों ने लोगों का ध्यान खींचा, जैसे कि इससे गीले कचरे का अपघटन हो जाता है, साथ ही, यह पर्यावरण के अनुकूल पानी सोखने वाला पॉलीमर है और फिर, फ़सल के लिए उर्वरक का काम भी करता है।
कुछ ही वक़्त में, उन्हें सैंकड़ों आर्डर मिलने लगे, जो न सिर्फ राजस्थान, बल्कि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और यहाँ तक कि यूएई और दक्षिणी कोरिया से भी थे! एक समय ऐसा भी था, जब उन्हें लगा कि शायद पहले से मिले 500 ऑर्डर को ही पूरा कर पाना मुमकिन न हो।
इस सबके अलावा, अपनी पढ़ाई, ऑर्डर पूरे करने, और फंड्स की दिक्कतें, ये सभी चीज़ें नारायण ने एक साथ संभाली। और अब वे एक युवा और प्रोफेशनल टीम बना रहे हैं, जो मार्केटिंग, नेटवर्किंग और टीम प्रबंधन में माहिर हो।
बेशक, इस तरह के इनोवेशन हमारे देश के किसानों की समस्या के लिए अच्छा हल हो सकते हैं। जहाँ एक तरफ रसायन ज़मीन से उसकी प्राकृतिक उर्वरता छीन रहे हैं, तो वहीं अनियमित बारिश और घटता भूजल स्तर, इन समस्याओं को और बढ़ा रहे हैं। इन सभी कारणों से ही फसलों का उत्पादन स्तर और गुणवत्ता घटती जा रही है।
पर ईएफपी जैसे पर्यावरण के अनुकूल और कम लागत वाले समाधानों से नारायण जैसे इनोवेटर, देश में किसानों के भविष्य को नयी दिशा और आशा दे रहे हैं।
अगर आप इस पाउडर के लिए ऑर्डर देना चाहते हैं या फिर नारायण की कोई आर्थिक मदद करना चाहते हैं, तो उनकी वेबसाइट के लिंक पर क्लिक करें।
संपादन: निशा डागर