पत्रकारिता को यदि मिशन समझ कर किया जाए तो लोगों की ज़िंदगी में बेहतर सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। इसे सच कर दिखाया है डॉ. महेंद्र मधुप ने। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों के संघर्षों, उनके अन्वेषण की कहानी सामने लाने का कार्य किया। उन्होंने किसानों को खेती से जुड़े रहने के लिए प्रेरित किया है। डॉ. मधुप को उनके कार्य के लिए दिसंबर 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने राष्ट्रपति भवन में आत्मा राम पुरस्कार से भी सम्मानित किया था। इस वक्त डॉ. मधुप फार्मर साइंटिस्ट मिशन के जरिए कृषि में बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं।
किसान वैज्ञानिकों के जीवन पर लेखन
डॉ. मधुप ने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और फिर पीएचडी की। वे 1976 में राज्य कृषि विपणन बोर्ड में आ गए। डॉ. मधुप ने नवोन्मेषी किसान वैज्ञानिकों पर ‛खेतों के वैज्ञानिक’ (मार्च, 2017) लिखी। इसके बाद उनकी वैज्ञानिक किसान’ (जुलाई, 2017) और ‛प्रयोगधर्मी किसान’ (फरवरी, 2018) किताबें भी प्रकाशित हुईं। इसके पश्चात ‘अन्वेषक किसान’ आई।
महज 12 वर्ष की उम्र में बने पत्रकार
डॉ. मधुप बताते हैं कि उन्होंने महज 12 साल की उम्र में विद्यालय में गुरु जी कृष्ण कुमार सौरभ भारती से संबंद्ध ‛दैनिक अधिकार’ में लिखना शुरू किया। वहीं से पत्रकारिता शुरू हो गई। राजस्थान के जोधपुर में 2 मार्च 1947 को जन्में 73 वर्षीय डॉ. महेंद्र मधुप बताते हैं कि उनके पिता ज्ञानमल सरकारी नौकरी में थे। वह राजस्थान विधानसभा में मुख्य संपादक और समिति अधिकारी रहे। उनकी दो पुस्तकें भी छपीं। बकौल डॉ. मधुप उनके चाचा प्रकाश जैन अजमेर से ‛लहर’ मासिक पत्रिका निकालते थे। पिता और चाचा के लिखने-पढ़ने के शौक के चलते ही वह लेखन की ओर प्रवृत्त हुए।
पहला मानदेय बच्चों की कहानी के लिए 5 रुपए मिला, अब तक 2500 कार्यक्रम
डा.महेंद्र मधुप के अनुसार उनकी पहली सजीव वार्ता आकाशवाणी में बच्चों की कहानी के रूप में 1959 में ‛मुकुल’ में प्रसारित हुई। उन्हें मानदेय के रूप में 5 रुपये मिले, लेकिन उन 5 रुपयों की जो खुशी थी वह आज के लाखों रुपयों से कहीं बढ़कर थी। विश्वविद्यालय में भी पत्रिकाओं का संपादन जारी रहा। इसके बाद उन्होंने राष्ट्रदूत, राजस्थान पत्रिका, लोकवाणी और नियमित मंडी आदि पत्रिकाओं में निरंतर लिखा। इस बीच दूरदर्शन से जुड़ने का मौका मिला। उन्होंने चौपाल कार्यक्रम की एंकरिंग की। अब तक वह दूरदर्शन, टीवी चैनलों और आकाशवाणी के करीब 2500 से अधिक कार्यक्रमों की एंकरिंग कर चुके हैं।
कृषि पत्रिका ‘शरद कृषि’
डॉ. मधुप सन् 2005 में राज्य कृषि विपणन बोर्ड से मुक्त हो गए। वह बताते हैं कि पुणे में ‛शरद कृषि’ नामक प्रयोगधर्मी कृषि पत्रिका का प्रकाशन तय हो चुका था। ‛सेंटर फॉर इंटरनेशनल ट्रेड इन एग्रीकल्चर एंड एग्रो बेस्ड इंडस्ट्रीज (सिटा) ने राजस्थान सरकार को एक पत्र लिखकर जयपुर में उन्हें इसके हिंदी संस्करण का मानद संपादक बनाने की इजाज़त ली। मार्च, 2005 में इस पत्रिका से जुड़ने के बाद 2017 तक इस पत्रिका के हिंदी संस्करण के संपादक रहे।
डॉ. मधुप के मुताबिक इस पत्रिका ने दूसरी हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसने देश में बदलती कृषि प्रबंधन व्यवस्था की नवीनतम जानकारी और संभावनाओं का आंकलन प्रस्तुत किया। बकौल डा. मधुप ‛शरद कृषि’ में ‛खेतों के वैज्ञानिक’, ‛खेतों के वैज्ञानिकों ने कर दिखाया कमाल’, ‛कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती’ जैसे कॉलमों के जरिए किसान वैज्ञानिकों की सफलताओं पर लिखी कहानियों की लंबी सीरीज छपी। इसमें छापे गए इनोवेशन ऐसे थे, जिनके प्रयोग से किसानों को खेती में सहूलियत होती। इन्हें देशभर में पहचान मिली। इनमें से कई का अब कृषि से जुड़ा बड़ा कारोबार है।
नौकरी छोड़ ‛मिशन फार्मर साइंटिस्ट’ शुरू किया, 52 किसान वैज्ञानिक जोड़े
डॉ. मधुप ने जनवरी, 2017 में ‛शरद कृषि’ का आखिरी अंक निकालने के पश्चात नौकरी को अलविदा कह दिया। बेटे ने उन्हें भविष्य में खेत वैज्ञानिकों के लिए ही कार्य करने की सलाह दी। ऐसे में उन्होंने ‛मिशन फार्मर साइंटिस्ट’ के जरिए नई पारी की तैयारी शुरू कर दी। हरियाणा में किसान वैज्ञानिक ईश्वरसिंह कुंडू के घर पर उन्होंने युवा कृषि पत्रकार मोईनुद्दीन चिश्ती और कुछ करीबी जनों के साथ मिलकर मिशन की रूपरेखा तैयार की। क़िताबों के माध्यम से किसान वैज्ञानिकों के कार्यों को पूरी दुनिया से अवगत कराने की ठान ली। उनका मानना है कि यदि कृषि पत्रकारिता करके भी किसानों की ज़िंदगी में किसी तरह का बदलाव न ला सके तो बेकार है। वह ‘मिशन फार्मर साइंटिस्ट’ के साथ 52 किसान वैज्ञानिकों को जोड़ चुके हैं। उनका लक्ष्य मिशन के साथ 100 कृषि वैज्ञानिकों को जोड़ने का है।
किसानों को लोन, सब्सिडी नहीं, प्रोसेसिंग मशीनें बढ़ाएंगी आगे
डा. मधुप का मानना है कि किसानों को लोन, सब्सिडी नहीं, बल्कि प्रोसेसिंग मशीनें आगे बढ़ाएंगी। उनका सरकार को सुझाव है कि हर ग्राम पंचायत में किसानों को फसलों के उचित दाम दिलवाने के लिए प्रोसेसिंग मशीनें लगाए। मसलन टमाटर, आलू या सरसों आदि की पैदावार के बाद इनकी प्रोसेसिंग मशीनें लगवा दे। गाँव के युवाओं को ट्रेनिंग दिलवाकर प्रोसेसिंग, पैकेजिंग सिखाए। स्थानीय ब्रांड बनाए। आसपास के गाँवों-कस्बों में बेचे। इससे किसानों का मुनाफा भी बढ़ेगा।
उल्लेखनीय कार्य के लिए पुरस्कारों की झड़ी
जीवन में सफल तीन बच्चों के पिता डॉ. मधुप को केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय (एमएचआरडी) के तहत केंद्रीय हिंदी संस्थान का विज्ञान और तकनीकी साहित्य के विकास के लिये दिए जाने वाला ‛आत्माराम पुरस्कार’ (2005) तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने प्रदान किया। इसके साथ ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, दिल्ली की ओर से दिए जाने वाले ‛चौधरी चरणसिंह पुरस्कार’ को पाने वाले भी वह पहले राजस्थानी हैं। 2007 का यह पुरस्कार जुलाई 2008 में प्रदान किया गया। इसके अलावा उन्हें कृषि विपणन सुझाव पुरस्कार, कोसांब अवार्ड, अशोक माथुर स्मृति मीडिया सम्मान भी प्राप्त हो चुका है। डॉ. मधुप का अलबत्ता कहना हैं कि उनका पुरस्कारों से लगाव नहीं। काम से है। कृषि की कोई जानकारी नहीं होने के बावजूद अपने अध्ययन और लगन से उन्होंने इस क्षेत्र में जबरदस्त काम किया। वह अनवरत यह काम करते रहना चाहते हैं।
डॉ. महेंद्र मधुप से उनके मोबाइल नंबर 9414265720 पर संपर्क किया जा सकता है।