“जब भी हम मोती का नाम लेते हैं तो अक्सर लोगों के दिमाग में समुद्र आता है और जब हम उन्हें बताते हैं कि हम यहाँ अपने शहर, अपने राज्य में रहकर मोती पालन कर रहे हैं तो लोगों को यकीन ही नहीं आता।”
यह कहना है कुलंजन दुबे मनवानी का। कुलंजन और उनके पति, अशोक मनवानी पिछले 20 सालों से भारत में मोती पालन पर शोध कार्य कर रहे हैं। महाराष्ट्र से संबंध रखने वाला यह दंपति अब तक महाराष्ट्र के अलावा और 12 राज्यों में मोती पालन कर चूका है। कर्नाटक, केरल, गुजरात, उत्तर-प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मणिपुर, मेघालय, असम आदि राज्यों में उन्होंने न सिर्फ़ खुद मोती पालन किया है पर बहुत से किसानों को सिखाया भी है।
मनवानी दंपति ने साबित किया है कि मोती सिर्फ़ समुद्र के नमकीन पानी में ही नहीं बल्कि गाँव-शहरों में मीठे पानी के स्त्रोत जैसे नदी और तालाबों में भी हो सकता है।
अपने सफर के बारे में 44 वर्षीय अशोक बताते हैं कि पढ़ाई के दिनों में उन्होंने लाइब्रेरी की एक किताब में मोती पालन के बारे में पढ़ा था। बस वहीं से उनकी दिलचस्पी इस विषय में हो गयी। इस बारे में और अधिक जानने की चाह उन्हें उनके गाँव से निकाल कर मुंबई ले आयी और फिर मुंबई से वे दिल्ली, भुवनेश्वर और कोचीन तक गए। इन जगहों पर स्थित कृषि संस्थानों से उन्होंने मोती पालन में सर्टिफाइड कोर्स और ट्रेनिंग की।
इसके बाद अशोक ने खुद मोती पालन शुरू किया। उन्होंने बताया, “मोती बनाकर बेचने से ज़्यादा रूचि मुझे इस प्राकृतिक प्रक्रिया को समझने में रही। मैंने कभी नहीं सोचा कि मैं बहुत ज़्यादा मोती पालन करके बेचूंगा, बल्कि मेरा उद्देश्य तो इस विषय पर शोध करके भारत में इसे किसानों के लिए हितकारी बनाना रहा है। और इसलिए मैंने अपने संगठन का नाम भी ‘इंडियन पर्ल कल्चर’ रखा है।”
साल 2001 में उन्होंने ‘इंडियन पर्ल कल्चर’ को शुरू किया था और आज उसके बैनर तले वे सैकड़ों लोगों को मोती पालन के लिए ट्रेन कर चुके हैं।
अशोक के इस काम में उनकी साथी शोधकर्ता और पत्नी, कुलंजन ने उनका भरपूर साथ दिया। कुलंजन बताती हैं कि एक वर्कशॉप के दौरान उनकी मुलाकात अशोक से हुई थी। जहां अशोक ने उन्हें मोती पालन पर उपलब्ध अंग्रेजी किताबों को उनके लिए हिंदी में अनुवाद करने को कहा।
“मैंने जब ये किताबें उनके लिए हिंदी में अनुवाद करना शुरू किया तो मुझे इसमें मजा आने लगा। फिर मैंने उनके साथ उनकी ट्रेनिंग सेशन और वर्कशॉप में जाना शुरू किया। बस फिर वहीं से हमारा सफर शुरू हो गया। मोतियों को समझने के लिए हम न जाने कितने ही गाँव में, जंगलों में रहे हैं। यह 20 साल की मेहनत है कि आज हम इस विषय पर इतना कुछ जानते हैं और लोगों को बता पा रहे हैं।”
कैसे होता है मोती पालन:
मोती एक प्राकृतिक रत्न है, जिसे सीप बनाते हैं। कुलंजन बताती हैं कि जब सीप में कोई बाहरी पार्टिकल जैसे मिट्टी के कण या कोई सूक्ष्मजीव चला जाता है तो वह उसे बाहर निकालने के लिए एक लिक्विड छोड़ती है। ऐसे ही धीरे-धीरे उस कण पर सीप परत दर परत एक चमकदार कोटिंग बना देती है और फिर एक निश्चित समय बाद यही मोती बन जाता है।
“मोती को नेचुरल या कल्चर्ड और आर्टिफीसियल तरीके से बनाया जा सकता है। आर्टिफीसियल तरीके में कोई भी छोटा बीड लेकर उस पर केमिकल की चमकदार परत चढ़ा दिया जाता है। लेकिन यह असली मोती नहीं होता। असली मोती को नेचुरल तरीके से यानी कि उसे खुद ब खुद बनने दिया जाता है। पर इसमें हर मोती का आकार अलग होता है और प्राकृतिक रूप से बने मोती कभी भी गोल नहीं होते,” उन्होंने बताया।
कल्चर्ड प्रक्रिया भी प्राकृतिक प्रक्रिया ही है बस इसमें किसान का थोड़ा हस्तक्षेप रहता है। मोती को अपने हिसाब से आकार और डिजाईन देने के लिए सीप में टूल्स की मदद से मेटल आदि की डाई रखी जाती है ताकि उस पर इस मेटल की चमकदार परत चढ़ सके।
अशोक के मुताबिक भारत में डिज़ाइनर पर्ल यानी कि आकृतिकार मोती पालन को बहुत ही सफल व्यवसाय के रूप में विकसित किया जा सकता है। पर इसके लिए इससे जुड़े बहुत से मिथक और डर को खत्म करना होगा। वे कहते है कि हमारे यहाँ मोती पालन को बहुत महंगा और मुश्किल काम माना जाता रहा है। क्योंकि इसके लिए इस्तेमाल होने वाली टूल किट की कीमत लगभग 18, 000 रुपये है। जबकि यह टूल किट समुद्र के सीपों पर कामयाब है न कि मीठे पानी के लिए।
“हमें भी अपने शोध के लगभग नौ-दस सालों में यह समझ आया कि आख़िर क्यों हमारे सीपों की मृत्युदर इतनी अधिक है। क्योंकि हम गलत टूल्स इस्तेमाल कर रहे थे।,” उन्होंने आगे कहा।
अलग-अलग राज्यों में मोती पालन करते हुए और लोगों को सिखाते हुए, अपने अनुभव के आधार पर अशोक और कुलंजन ने अपनी एक टूल किट भी तैयार की। यह टूल किट खास तौर पर मीठे पानी की सीपों के लिए है, जिसे उन्होंने साइकिल के पहिए की तीलियों से बनाया है। इसकी कीमत मात्र 500 से 800 रुपये के बीच में है। अपनी टूल किट के लिए उन्हें सरकार से सम्मान भी मिल चूका है।
मोती पालन के बारे में कुछ ख़ास बातें:
कुलंजन बताती हैं सबसे पहले आपको तालाब या नदी से सीप पकड़ना आना चाहिए। सीपों को इकट्ठा करके उन्हें किसी बाल्टी या फिर टब के पानी में रखा जाता है। इसके बाद उनमें टूल्स की मदद से मेटल की डाई या फिर अन्य कोई बीड राखी जाती है।
“इस प्रक्रिया को ऑपरेशन कहते हैं। वैसे तो यह देख कर लगता है कि बड़ा आसान है लेकिन अगर आपको यह समझ नहीं है कि सीप को कितना और कहाँ से खोलना है तो सीप मर जाएंगे और नुकसान आपका ही होगा। इसलिए ज़रूरी है कि आप अच्छे से ट्रेनिंग करें,” उन्होंने कहा।
सीप पर ऑपरेशन के बाद उन्हें फिर से तालाब या नदी में छोड़ दिया जाता है और उनकी देखभाल की जाती है। सामान्य तौर पर एक या डेढ़ साल में सीप के अंदर मोती बन जाता है। हालांकि, मनवानी दंपति के मुताबिक अलग-अलग मौसम और पानी के हिसाब से मोती बनने का समय तय होता है। जैसे गुजरात में उन्होंने सिर्फ़ छह महीनों में मोती तैयार किए हैं तो उत्तर-प्रदेश के कई इलाकों में उन्हें आठ महीने लगे।
“इसलिए हम हमेशा अपनी ट्रेनिंग में लोगों को कहते हैं कि दूसरी किसी जगह से सीप लाकर मोती बनाने से बेहतर है कि आप अपने स्थानीय सीपों से मोती लें। क्योंकि दूसरे पानी और जलवायु से आये हुए सीप वैसे मोती नहीं दे पाएंगे जैसे वे अपने स्थानीय इलाके में देते हैं,” अशोक ने बताया।
इसके अलावा, अशोक कहते हैं कि वैसे तो ज़्यादातर मोती पालन करने वाले लोग एक-डेढ़ साल में ही मोती लेने के लिए सीपों को इकट्ठा करके मोती निकालने लगते हैं। इस प्रक्रिया में वे सीपों को मार देते हैं। पर इससे हम अपनी प्रकृति को खत्म कर रहे हैं। क्योंकि सीप मोती बनाने से भी ज़्यादा ज़रूरी हमारे पर्यावरण के लिए हैं। यह जीव जल-स्त्रोतों में फ़िल्टर का काम करता है। इसलिए वे हमेशा सीपों की प्राकृतिक मौत के बाद ही मोती निकालते हैं।
सफल व्यवसाय है मोती पालन:
हज़ार स्क्वायर फीट के तालाब से एक बार में लगभग दो हज़ार मोती लिए जा सकते हैं। अशोक बताते हैं कि एक मोती पर सामान्य रूप से 30-40 रुपये की लागत आती है। मोती की कीमत उसके आकार, चमक, वजन, रंग आदि पर आधारित होती है। एक मोती को आप 250 से 500 रुपये की कीमत तक बेच सकते हैं। वैसे देश में ऐसे उदाहरण भी हैं जब एक ही मोती की कीमत 12 लाख रूपये तक गयी है।
इसके अलावा, वे सीप के शैल (कवच) को हैंडीक्राफ्ट बनाने वाले संगठनों को दे देते हैं क्योंकि ये शैल ज्वेलरी, आर्टिफेक्ट आदि बनाने में काम आते हैं। जिनकी अच्छी कीमत बाजारों में मिलती है। इस तरह से यह भी किसानों के लिए एक अतिरिक्त आय का साधन हो जाता है।
कुलंजन कहती हैं कि वे लोग हमेशा ही किसानों को इंटीग्रेटेड फार्मिंग यानी कि मछली और मोती पालन साथ में करने की हिदायत देते हैं। क्योंकि मछली का और मोती का दाना एक ही होता है। ऐसे में आप एक साल में मोती की एक क्रॉप और मछली की दो क्रॉप ले सकते हैं।
सरकार दे रही है सब्सिडी:
अशोक और कुलंजन ने सरकारी संगठनों के लिए पूरे देश में 300 से भी ज़्यादा ट्रेनिंग सेशन और वर्कशॉप की हैं। आज उनके सिखाए हुए कई किसान मोती पालन करके अच्छा कमा रहे हैं। मीठे पानी में मोती पालन पर उनकी सफलता देखते हुए कृषि संगठनों ने भी इस पर ध्यान दिया है।
यदि कोई अपने घर में या फिर बगीचे आदि में तालाब बनाकर मोती पालन शुरू करना चाहता है तो इस पर लगभग 25 लाख रुपये खर्च होते हैं। लेकिन अच्छी बात यह है कि अब सरकार किसानों को मोती पालन के लिए साढ़े बारह लाख रुपये की सब्सिड़ी भी दे रही है। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए यहां पर क्लिक करें।
मोती पालन पर अपने काम के लिए अशोक और कुलंजन को 70 से भी ज़्यादा सम्मानों से भी नवाज़ा जा चूका है। उन्होंने कभी भी अपने ज्ञान और शोध कार्यों को सिर्फ पैसे कमाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया। बल्कि उनका सपना है कि भारत में एक वक़्त ऐसा आये कि भारत मोतियों का पूरे विश्व में निर्यात करे।
सालाना 5 से 8 लाख रूपये कमाने वाले मनवानी दंपति भविष्य में अपने अनुभवों को एक किताब की शक्ल देने की ख्वाहिश रखते हैं। अंत में वे सिर्फ इतना ही कहते हैं कि यदि कोई उनसे मोती पालन सीखना चाहता है तो बेहिचक उनसे सम्पर्क कर सकता है।
आप उनकी वेबसाइट यहां पर देख सकते हैं और उनसे सम्पर्क करने के लिए 09271282561 पर फ़ोन कर सकते हैं!
संपादन – मानबी कटोच