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डेनमार्क के प्राइमरी स्कूलों में दिया जाता है राजस्थान के इस गाँव का उदाहरण!

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पिपलांत्री गाँव।

गर मैं आपको राजस्थान के किसी एक गाँव की कल्पना करने को कहूं तो शायद आपके दिमाग में ऐसा गाँव उभर कर आएगा जहां रेगिस्तान है, हरियाली नहीं है, पानी का अभाव है, वगैरह वगैरह! लेकिन उदयपुर से 71 किमी दूर एक गाँव ऐसा है जो ठीक इसके उलट है और कई मामलों में देश के तमाम गांवों के लिए एक मिसाल भी है।

राजसमंद जिले में बसे पिपलांत्री नाम के इस गाँव को ‘आदर्श ग्राम’, ‘निर्मल गाँव’, ‘पर्यटन ग्राम’, ‘जल ग्राम’, ‛वृक्ष ग्राम’, ‛कन्या ग्राम’, ‛राखी ग्राम’ जैसे विविध उपमाओं के साथ देशभर में पहचाना जाता है। इस गाँव पर सैकड़ों डॉक्यूमेंट्रीज बनी हैं।

 

राजस्थान के कक्षा सात व आठ की सरकारी पुस्तकों में पिपलांत्री को पाठ के रूप में पढ़ाया जा रहा है तो डेनमार्क के प्राइमरी स्कूलों में इसके उदाहरण दिए जाते हैं।

वृक्षारोपण के बाद पिपलांत्री।

करीब दो हजार की आबादी वाले इस गाँव के बदलाव की कहानी 2005 के बाद से शुरू होती है जब श्याम सुन्दर पालीवाल यहां के सरपंच बने। हालांकि पिपलांत्री पहले भी खूबसूरत हुआ करता था लेकिन मार्बल खनन क्षेत्र में बसे होने के चलते यहाँ की पहाड़ियां खोद दी गई, पानी पाताल में चला गया और प्रकृति के नाम पर कुछ भी नहीं बचा। ऐसे में श्याम सुन्दर ने अपने गाँव की वन संपदाओं को नष्ट होते देख मुंह फेरकर निकल जाने की बजाय इन पहाड़ियों पर हरियाली की चादर ओढ़ाने की कसम खाई। उनके इसी संकल्प के चलते आज 15 साल बाद पिपलांत्री देश के उन चुनिंदा गाँवों की सूची में सबसे अव्वल नंबर पर आता है, जहाँ कुछ नया हुआ है।

जल को जगदीश मानने वाले श्याम सुंदर ने दूर-दराज की ढाणियों, खेड़ों में बसे गांवों के अधिकतर खेतिहर व मार्बल खान मजदूरों और अशिक्षित ग्रामीणों की समस्याओं के निवारण के लिए वाटरशैड योजना को सही ढंग से लागू किया। जिससे पहाड़ी नालों के कारण होने वाले उपजाऊ मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद मिली।

पिपलांत्री में जल संरक्षण के लिए बना एनिकट।

‘द बेटर इंडिया’ से बात करते हुए वे बताते हैं, “मैं पिपलांत्री ग्राम पंचायत का पूर्व सरपंच (2005-2010) और वर्तमान में ‛जलग्रहण विकास कमेटी’ का अध्यक्ष हूँ। इस पंचायत में 7 राजस्व गाँव के अलावा 17 ढाणियां और खेड़ें भी हैं। एक वक्त था जब हमारे गाँव की पहाड़ियां हरियाली और सुंदरता में कश्मीर की वादियों जैसी थी। आमजन के लालच, अंधाधुंध वनौषधियों के संग्रहण, वनों द्वारा प्राप्त उपज के अतिदोहन, इमारती लकड़ी की कटाई और बेतरतीब ढंग से मार्बल खानों की खुदाई, अनियंत्रित पशु चराई के कारण यह पहाड़ियां खाली होती चली गई। मैं सोचता हूँ कि कड़े से कड़े कानून भी इस तरह के प्राकृतिक विनाश को रोकने में कारगर साबित नहीं हो सकते।”

श्याम सुन्दर ने ग्राम पंचायत स्तर पर जनजागृति के माध्यम से जल संरक्षण, मृदा संरक्षण, ग्राम स्वच्छता, बालिका शिक्षा और स्वास्थ्य सुरक्षा जैसे मुद्दों के साथ ही हर साल पौधारोपण करवाते हुए ग्रामीणों की भावनात्मक प्रतिबद्धता के साथ पौधों की सुरक्षा के भी पुख़्ता इंतजाम किए।

पिपलांत्री मार्ग पर लगे पेड़।

”मुझे पहली बार सरपंच चुनाव में सफलता नहीं मिली, इसके बावजूद मैंने सरकारी योजनाओं की पूरी जानकारी जुटाकर एक-एक ढाणी के विकास के लिए कोशिशें जारी रखी। शुरुआती दौर में कुछ स्वार्थी तत्वों ने मेरी बातों का मज़ाक बनाया, मुझे नीचा दिखाने की कोशिश की लेकिन गाँव के चंद मुट्ठीभर मौजीज लोगों में राजकीय माध्यमिक विद्यालय, पिपलांत्री के पूर्व प्रधानाध्यापक ओंकारलाल श्रीमाली, पटवारी कमरदान चारण और एक आयुर्वेद अधिकारी ने बदलाव की इस पहल में मेरा साथ दिया,”  श्याम सुंदर पालीवाल ने कहा।

 

वर्ष 2005 में पिपलांत्री के सरपंच बने पालीवाल का मानना है कि ग्रामीण विकास के तमाम रास्ते जलसंरक्षण से होकर गुजरते हैं। 

पिपलांत्री में पेयजल की भी पूर्ण व्यवस्था की गई है।

गाँव में खुले में शौच जाने की प्रवृत्ति से भारी नुकसान होते हैं। गंदा पानी सार्वजनिक जलस्त्रोतों में मिलकर तमाम रोगों का कारण बनता है।
उन्होंने जल संरक्षण के निमित्त हर छोटी से छोटी बात का भी पूरा ध्यान रखा। वाटरशेड योजना में गाँव वालों से 5 से 10 फीसदी तक अंशदान लिया, ताकि परिसंपत्ति में उनका भी जुड़ाव बना रहे। उनकी नवाचारी पहल के चलते नरेगा जैसी योजना में भी उत्साहीजनों ने श्रमदान किया।

जलसंरक्षण के निमित्त कलस्टर मद में उपलब्ध फंड को चौगुना लाभदायक बनाने में ग्राम सभा के जरिये दूरदर्शी निर्णय लेकर उन्होंने चारागाह विकास, नर्सरी आदि में बाउण्ड्री निर्माण, सड़क निर्माण, पौधारोपण, एनीकट बंधाई जैसे कामों की लम्बी सीरीज तैयार की और इन कामों को धरातल पर उतारा।

”संपूर्ण स्वच्छता अभियान के बजट को गाँव की स्कूलों से लेकर घर-घर तक प्रभावी क्रियान्वयन करने के लिए पिपलांत्री को 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से ‘निर्मल ग्राम पंचायत सम्मान’ मिला, तो 2008 में गणतंत्र दिवस पर भी ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ मिला। गत वर्ष ‛न्यू इंडिया कॉन्क्लेव’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिपलांत्री को सम्मानित किया।”

गाँव-ढाणियों में यातायात की सुगम व्यवस्था के लिए श्याम सुंदर ने नरेगा बजट को आम सहमति व प्रभावी ढंग से लागू कर 7 गांवों सहित 17 ढाणियों में रास्ते चौड़े करवाकर सड़कें बनवाईं। गाँव के मेहनतकश लोगों ने सरकारी योजनाओं के बेहतर प्रबंधन में उनका हमेशा सहयोग किया। इसी के चलते वे विभिन्न योजनाओं के बजट को समन्वित, संतुलित और एकीकृत रूप से काम में ले पाए।

गाँव की बालिकाओं के साथ श्याम सुन्दर पालीवाल।

पहाड़ी ढलानों, एनीकटों पर उन्होंने यह नवाचार किया कि थांवलों में ग्वारपाठा और केले के पौधे लगाए। केला बरसाती पानी को भीतर सोखकर गर्मी के दिनों में थांवले में रोपे गए साथी पौधे को जीवनदान देता है। पिपलांत्री के चारागाह क्षेत्र में करीब 400 से ज्यादा केले के पेड़ हैं। पूरी ग्राम पंचायत में अब तक 5 लाख से अधिक पौधे, पेड़ बन चुके हैं। इतना ही नहीं, करीब 35 लाख से ज्यादा एलोवेरा के पौधे लगे हैं। एलोवेरा तीव्र ढलानों पर मिट्टी को थामे रखता है, कड़ी गर्मी में मुरझाने के बावजूद पूरी तरह सूखता नहीं और बरसात में वापस पनप जाता है।

पालीवाल बताते हैं, “निर्मल ग्राम पंचायत के रूप में हमें पांच लाख रुपए मिले। इस राशि से एलोवेरा ज्यूस, जैल , क्रीम बनाने की मशीन खरीदी। अब जब भी ज़रूरत पड़ती है तब नरेगा और स्वयं सहायता समूह की मदद से एलोवेरा की ताजी रसभरी पत्तियां काटकर ज्यूस, क्रीम, जैल तैयार कर पिपलांत्री ब्रांड के नाम से बेचा जाता है। इससे गाँव की गरीब और बुजुर्ग महिलाओं को रोज़गार मिला है।”

 

ऐलोवेरा ज्यूस निकालने के लिए खरीदी गई मशीन।

पिपलांत्री में पिछले कुछ सालों की मेहनत से अब तलहटी के खुले कुओं में भूजल स्तर 10-20 फीट आ गया है। छोटे-छोटे पहाड़ी खेतों में प्रगतिशील किसान अब फलदार बगीचे लगा रहे हैं। सरकारी जमीन, पहाड़, चारागाह, नर्सरी में स्थित नलकूप से गर्मी में भी नए पौधे रोपे जा रहे हैं। यहां की नर्सरी में सालभर पौधे तैयार करने का काम चलता रहता है। गाँव वालों की आपसी एकजुटता और सामंजस्यपूर्ण सद्भावना का ही परिणाम है कि गाँव में खुली चराई बिलकुल नहीं होती।

पिपलांत्री में बेटियों के जन्म पर 111 पौधे और उनके नाम पर 18-20 साल के लिए 31 हज़ार की एफडी करवाई जाती है। इन कन्याओं ने अब तक 93 हज़ार पौधे लगा ‛कन्या उपवन’ तैयार कर दिया है।

 

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पिपलांत्री में रहने वाली निकिता पालीवाल 12 वर्ष की है और उसके 7 वें जन्मदिन पर 111 पौधे लगाए गए थे। वह कहती है, ”आज जब मैं इन पौधों को पेड़ बनते और बड़े होते देखती हूँ तो बहुत खुशी महसूस करती हूँ । मुझे जब भी समय मिलता है इनकी सार संभाल और निगरानी के लिए इनके पास चली आती हूँ । इस तरह से पौधारोपण यदि पूरे देश के हर गाँव में हो जाए तो आनंद ही आ जाए।”

निकिता पालीवाल।

पिपलांत्री ग्राम पंचायत ऐसी पंचायत है जिसमें आज भी ‘स्वजल धारा योजना’ में हर घर में जनसहयोग से पेयजल उपलब्ध करवाया जा रहा है, इससे सरकारी बजट पर कोई बोझ नहीं पड़ता। गाँव में रात्रिकालीन रौशनी की व्यवस्था भी ग्रामीणों ने खुद ही की है। यहाँ गली, मोहल्लों में लोगों ने खुद के बिजली खर्च से स्ट्रीट लाइट्स लगवा रखी है।

गाँव में प्रयास किए गए हैं कि वनसंरक्षण और वन विकास में गाँव के हर बच्चे, हर परिवार का योगदान रहे। इसके चलते सक्षम परिवारों से ट्रीगार्ड उपहार स्वरूप लगवाए गए हैं । स्थानीय ‘दिलीप उप स्वास्थ्य केंद्र भवन’ के लिए भूरेलाल जैन ने 7 लाख 51 हज़ार रुपए की राशि दान की। गाँव के किसी भी व्यक्ति के स्वर्गवास होने पर उनकी स्मृति में न्यूनतम 11 पौधे लगवाए जाते हैं। कुछ परिवारों ने 500 पौधे रोपकर नियमित सिंचाई और सुरक्षा की व्यवस्था तक संभाल रखी है।

 

दिवंगत की स्मृति में किया गया पौधारोपण।

पिपलांत्री में इस तरह के बदलाव के बाद रक्षाबंधन का त्यौहार गाँव की बेटियों के लिए और भी खास हो गया है। क्योंकि अब बेटियां अपने भाई के अलावा यहां लगे पेड़ों को भी राखी बांधती हैं। इसके लिए यहां राखी से एक दिन पूर्व बड़ा आयोजन होता है।

”राखी का त्यौहार हम बहन बेटियों के लिए सच में यादगार बन जाता है जब गाँव की सारी सखियां मिलकर पेड़ों को राखी बांध कर उनके सरंक्षण का जिम्मा लेती हैं। चूंकि हम इन पेड़ों को राखी बांधती हैं, इस नाते यह पेड़ हमारे भाई है। हमारे लिए अगले दिन राखी और भी यादगार हो जाती है जब सगे भाई की कलाई पर राखी बांधी जाती है। सच में इस गाँव की बेटियों के कितने सारे भाई हैं।” प्रिया कुमारी ने कहा।

पिपलांत्री के राजस्व रिकॉर्ड के पटवार क्षेत्र में एक भी तालाब नहीं है लेकिन अब यहां दो बड़े एनीकट और दर्जनों छोटे – बड़े चैकडेम बनाए जा चुके हैं।

 

भीषण अकाल के दिनों में जब यहां पहाड़ी चोटियों पर पानी का नामोनिशान नहीं बचता था, भूजल स्तर चार सौ फीट गहरा चला गया था, उन्हीं स्थानों पर अब पानी बहुत कम गहराई पर मिलने लगा है।

पिपलांत्री गाँव में जल संरक्षण के ​लिए बना एनिकेट।

 

अगर आप भी अपने गाँव में इस तरह का बदलाव चाहते हैं और श्यामसुन्दर जी से किसी तरह की मदद चाहते हैं तो उनसे 09680260111 पर बात कर सकते हैं। फेसबुक पर पिपलांत्री के पेज से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे।

 

संपादन – भगवती लाल तेली 


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