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भारतीय छात्रों ने कागज़ से बनाई सिंगल सीटर ‘इलेक्ट्रिक रेसिंग कार’, मिला अवार्ड

paper car

क्या आपने कभी किसी ऐसी गाड़ी के बारे में सुना है जो कागज़ के कचरे को रीसायकल कर बनी हो। शायद आप भी सोच में पड़ जायेंगे कि क्या ऐसा भी कभी हो सकता है क्या! लेकिन इसका जवाब आपको इस लेख में मिल जायेगा।

दरअसल उत्तराखंड के एक कॉलेज के छात्रों ने मिलकर एक ऐसी इलेक्ट्रिक कार बनाई है जो रीसायकल किये जाने वाले पेपर से मिलकर बनी है और यह 108 किमी प्रति किलोवाट का माइलेज भी देती है।

छात्रों की बनाई इस कार को ‘ईको मैराथन बेंगलुरु’ में अवार्ड भी मिला है आइये जानते हैं कैसे तैयार हुई यह कार।    

उत्तराखंड में ग्राफिक एरा (डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी) के 21 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्र मधुर सक्सेना कहते हैं, “यह हमारे लिए एक निर्णायक क्षण था क्योंकि यह हमारी टीम का पहला प्रयास था और इस प्रतियोगिता में हमारे कॉलेज का दूसरा। अब हम 600 किमी प्रति किलोवाट की माइलेज हासिल करके खुद को आगे बढ़ाने की योजना बना रहे हैं। यहाँ से आगे हम और भी बेहतर करने वाले हैं!

छात्रों की टीम

मधुर टीम E^2’ के 10 सदस्यों में से एक हैं, जिन्होंने और पेपर से एक प्रोटोटाइप इलेक्ट्रिक कार बनाने का नायाब आइडिया पेश किया। 

पेपर इंजीनियरिंग के सिद्धांतों का इस्तेमाल करते हुए छात्रों ने कार की बाहरी बॉडी को रिसाइकिल किए गए पेपर-मैशे (papier-mâché)  को प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) के साथ मिलाकर बनाया।

उन्होंने कहा, “हमने कैंपस और आस-पास के इलाकों से पेपर इकट्ठा किया और इन्हें काटकर पेपियर-मैचे बनाया जिससे कार की बॉडी को तैयार किया। हमने इसकी मजबूती के लिए पीओपी भी लगाया।

अपनी पसंद के मैटेरियल से उन्होंने कार को न सिर्फ रिसाइकिल बल्कि वाटर और फायरप्रूफ भी बनाया है। अन्य इलेक्ट्रिक सिंगल-सीटर रेसिंग कारों की बॉडी कार्बन-फाइबर से बनी होती है। उनकी तुलना में पेपर से बने कार की बॉडी काफी हल्की और सस्ती है।

ऐसी दिखती है पेपर से बनी कार

कार्बन-फाइबर बॉडी के साथ कार बनाने में लगभग 3 लाख रुपये का खर्च आता है जबकि 40 किलो की इस कार की कीमत सिर्फ 1.78 लाख रुपये है।

खास बात यह है कि यह सब बेंगलुरु में 2019 शेल इको-मैराथन इंडिया से कुछ महीने पहले पूरा हो गया था।

कार बनाने की प्रक्रिया और चुनौतियों के बारे में बात करते हुए मधुर कहते हैं, “इलेक्ट्रिक वाहनों के बारे में हमें काफी सीमित जानकारी ही थी। हम खाली समय में इसे बनाते थे। इस दौरान हम कई बार असफल भी हुए और हमें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। यहाँ तक कि सही मोटर बनाने के सफ़र में हमसे 3-4 मोटर भी जल गए। वहीं बेंगलुरु में भी बाधाएं कम नहीं थी। फाइनल मैराथन से ठीक एक दिन पहले कार का फ्यूज बंद हो गया और हमें एक अनजाने शहर में दूसरी कार खोजने और इसे ठीक कराने के लिए पागलों की तरह घूमना पड़ा।

मधुर कहते हैं, “हर मुश्किलों के साथ हमारा डर और घबराहट दूर होता गया और टीम पहले से कहीं अधिक मजबूत हो गई। मुझे याद है, ड्राइवर अभिनव देवरानी रेस से कुछ दिन पहले बेहद तनाव में थे। जिस किसी ने पेपर से बने कार की बॉडी के इनोवेशन के बारे में सुना, उसने हमें शंका और चिंता भरी नजरों से देखा। हम लोगों का भरोसा नहीं जीत पाए। लेकिन हमें पता था कि हम सही काम कर रहे हैं। अंतिम दिन हमारा डर उत्साह और खुशी में बदल गया।

रास्ते में आने वाली सभी बाधाओं से जूझते हुए सी-जीरो अंततः ट्रैक पर दौड़ी और 108 किमी / kWh का माइलेज हासिल किया। साथ में ऑफ-ट्रैक कैटेगरी में सर्कुलर इकोनॉमी अवार्ड भी जीता।

दुनिया भर में होने वाली एनर्जी इफिशिएंसी कंपटिशन (ऊर्जा दक्षता प्रतियोगिता) शेल इको-मैराथन में हर साल भाग लेने वाले इंजीनियरिंग और विज्ञान के छात्रों का सैलाब उमड़ता है। वे इनोवेटिव ऑटोमोटिव वाहन बनाते हैं जो फ्यूल-एफिशिएंट होते हैं और ऑटोमोबाइल क्षेत्र के भविष्य में क्रांति ला सकते हैं। यह आज के लीडर्स और भविष्य के इनोवेटर्स का संगम है जो ऊर्जा से संबंधित चुनौतियों के लिए स्थायी समाधान लेकर आते हैं। इन प्रयासों के जरिए प्रतियोगिता न केवल ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए नई प्रतिभाओं को सामने ला रही है, बल्कि सर्कुलर इकोनॉमी में भी योगदान दे रही है। हर एक प्रोटोटाइप को इस सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है, चाहे वह डिजाइन हो या इसमें इस्तेमाल किये जाने वाले मैटेरियल।

मूल लेख- ANANYA BARUA

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