चेन्नई के किलपाक इलाके में 17 वासु स्ट्रीट पर एक पूर्ण नियोजित घर स्थित है। सौर ऊर्जा से भरपूर इस घर में अपनी बायोगैस इकाई, जल-संचयन इकाई और खुद का किचन गार्डन है। इस घर की प्रसिद्धि इन अनूठे तरीकों को विकसित करने वाले इसके मालिक के कारण है।
अपने दोस्तों व परिवार के बीच प्रेम से ‘सोलर सुरेश’ पुकारे जाने वाले डॅा. सुरेश किसी और पर निर्भर हुए बिना एक आत्मनिर्भर और आरामदायक ज़िन्दगी जीने में विश्वास करते हैं।
आईआईएम-अहमदाबाद और आईआईटी-मद्रास से स्नातक डॅा.सुरेश ने टेक्सटाइल कम्पनी में एक मार्केटिंग एक्सीक्यूटिव के रूप में काम किया और उस कम्पनी के मैनेजिंग डायरेक्टर के पद तक पहुंचे। इस समय वह एक कम्पनी के जनरल मैनेजर है। वह अपने दिन की शुरुआत बायोगैस चालित स्टोव पर बनी कॅाफी से करते है। उनके घर में सोलर प्लान्ट से उत्पादित ऊर्जा द्वारा चलने वाले पंखों का प्रयोग किया जाता है। उनके घर में दोपहर के और रात के भोजन में उन आर्गेनिक सब्जियों का प्रयोग किया जाता है, जो उनकी छत पर बने किचन गार्डेन में उगायी जाती है।
यह पूछने पर कि सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादित करने का ख्याल उन्हें कैसे आया, वे बताते है कि यह विचार उन्हें तब आया जब वह जर्मनी घूमने गए थे –
सुरेश कहते हैं ,”मैंने देखा कि वहाँ लोगों के घरों की छतों पर सोलर प्लान्ट्स लगे हुए हैं ।जिसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि उस देश में जहाँ सूर्य की रोशनी इतनी कम है, यह सोलर प्लान्ट्स इतने कारगर है, तो भारत में क्यों नहीं। खासतौर पर चेन्नई में, जहाँ सौर ऊर्जा भरपूर मात्रा में उपलब्ध है।”
जब वह भारत लौट कर आए तो उन्होंने इसी सोच पर आधारित एक आत्मनिर्भर घर बनाने ठानी।
शुरू में सोलर प्लान्ट के निर्माण के लिए वह बड़ी कंपनियों के मालिकों से मिले, पर किसी ने भी इस छोटे प्रोजेक्ट के लिए कोई रूचि नहीं दिखाई, तब उन्होंने निश्चय किया कि वह स्थानीय विक्रेता से इस विषय में मदद लेंगे। उस स्थानीय विक्रेता ने डॅा. सुरेश के उत्साह को समझते हुए सौर ऊर्जा प्लान्ट विकसित करने में पूरी रुचि दिखाई। लगभग एक साल में दोनों ने मिलकर घर में प्रयोग हो सकने वाले एक किलोवाट के सोलर पावर प्लांट को तैयार कर लिया। अप्रैल 2015 में उन्होंने इस सोलर प्लांट की क्षमता बढ़ाते हुए तीन किलोवाट कर दी।
इसके कार्यों के बारे में बताते हुए, वे कहते हैं –
“इसमें अलग -अलग वायरिंग की आवश्यकता नहीं है और इसको लगाने के लिए मात्र एक दिन का समय लगता है, तथा मौलिक रख-रखाव के लिए छ: महीने में एक बार इसके पैनल्स साफ़ करने की आवश्यकता है। इसके प्रयोग के लिए मैं दिन में बैटरी चार्ज कर लेता हूँ, जो रात तक चलती है। चूंकि सोलर प्लांट सूर्य की अल्ट्रावॅायलेट किरणों पर निर्भर करता है न कि ऊष्मा की तीव्रता पर, इसलिए यह बरसात के मौसम में भी कार्य करता है।
मैं स्वतंत्र घर में रहता हूँ, जहाँ 11 पंखे, 25 लाइट्स, एक फ्रिज, कम्प्यूटर, पानी की मोटर, टेलीविजन, मिक्सर-ग्राइन्डर, ओवन, वाशिंग मशीन और एक एयर कंडीशनर है जो सिर्फ सौर ऊर्जा के सहारे ही चलते है। सोलर प्लांट को बहुत -बहुत धन्यवाद कि मुझे पिछले चार सालों में एक मिनट के लिए भी बिजली कटौती का सामना नही करना पड़ा और दिनभर में 12 से 16 इकाई बिजली उत्पादित करके बिजली के खर्चे से भी बचाया है।
हाल ही में आये तूफान के दौरान, जबकि सारे शहर की बिजली तीन -चार दिनों के लिए कट गयी थी, हमें अगले ही दिन से सौर ऊर्जा मिलने लगी थी, जिससे मेरे सभी दोस्तों और पड़ोसियों ने मेरे घर आकर अपने फोन चार्ज किये और अपने -अपने घरों के लिए पानी भर के ले गये।”
सुरेश बताते है सोलर प्लांट लगाना पर्यावरण के और आर्थिक रूप से भी घर, बिजनेस और पब्लिक सेक्टर के संस्थानों जैसे अस्पतालों,विद्यालयों और कॅालेजों के अनुरूप है।
एक बिल्डिंग की बड़ी, सपाट छत सोलर पैनल्स के लिए सबसे उपयुक्त स्थान है। एक बार इसे लगा लेने के बाद बिजली उत्पादन के लिए बीस साल तक कोई शुल्क नहीं लगता।
यह व्यवस्था न केवल पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अच्छी है बल्कि इन संस्थानों के आर्थिक विकास में भी सहायक है। जरा सोचिए किसी स्कूल के बिजली का बिल बच जाने पर वह क्या -क्या कर सकते है -पुस्तकालय, खेल का मैदान, पिकनिक और अन्य अध्यापकों के लिए वेतन भी जुटाया जा सकता है।
तमिलनाडु सरकार द्वारा चलायी गयी सोलर नेट मीटरिंग स्कीम एक प्रशंसनीय कदम है। इस स्कीम के अन्तर्गत पहले 10,000 ग्राहकों को, जो किलोवॅाट के सोलर सिस्टम लगवायेंगे को रु.20,000 की सब्सिडी राज्यसरकार से दी जाएगी। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार की ओर से 30,000 रूपये सब्सिडी मिलेगी। एक छत पर लगे एक किलोवॅाट के सोलर पावर सिस्टम में सोलर पैनल की गुणवत्ता के आधार पर रु. 80,000 से रु. 1.2 लाख की लागत आती है।
यदि किसी को इस बात की चिंता है कि सब्सिडी प्राप्त करना एक बेहद लम्बी प्रक्रिया है, तो वह यह कार्य खुद से भी कर सकते है। जब हम टीवी, वाशिंग मशीन और कार लेते हुए सब्सिडी की चिंता नहीं करते तो इसके लिए क्यों? इन सभी की तरह सोलर प्लान्ट भी एक उपकरण है, जो हमारे आराम और सुविधा के लिए है, वो भी पर्यावरण के अनुकूल रहते हुए।
इसके अतिरिक्त डॅा सुरेश के पास एक बायोगैस प्लान्ट,एक रेनवॅार हार्वेस्टिंग प्रणाली औऔर एक किचन गार्डन भी है।
वह छत के द्वारा बारिश का पानी एकत्रित करते है और आर्गेनिक फिल्टर प्लांट के द्वारा उसका शुद्धिकरण करते है। इस फिल्टर प्लांट में कंकड, चारकोल और बालू की परतें होती है जो पानी को शुद्ध कर देती है और जिसके बाद जल एक टैंक में एकत्रित हो जाता है तथा अलग -अलग कार्यों के लिए प्रयोग में आता है।
वह आगे बताते है ,”मैं देखता था कि बहुत सारा पानी मेरे घर के आस -पास रहता था,इसके लिए मैंने 15 इन्च के पाइप्स भूमि में लगवाए।भूमि से बारिश के पानी को जोड़ने से भूमिगत जल में इजाफा होगा।”
अपने बायोगैस प्लांट के लिए वह अपने आसपास के सब्जी बाजारों,अपने पड़ोसियों तथा अपने खुद के रसोई से बचा हुआ खाना और आर्गेनिक कचरा इकट्ठा करते हैं।प्लांट से उत्पादित हुई गैस का प्रयोग वह अपने घर में खाना पकाने के लिये करते है।
यह संसाधन का एक अत्यंत साधारण और आसानी से रख-रखाव का तरीका है।गैस उत्पादित करने के लिए प्लांट को आर्गेनिक कचरा जैसे पका हुआ,बचा हुआ खाना और सब्जियों के छिलकों की आवश्यकता होती है,जिससे 20 किलोग्राम बायोगैस उत्पादित की जा सकती है।इसमें किसी तरह की दुर्गंध नही होती और ना ही इसे बार-बार व्यवस्थित करना पड़ता है।मात्र सप्ताह में दो या तीन दिन प्लांट में आर्गेनिक कचरा डालने की आवश्यकता होती है।
मेरे घर में 1 क्यू. मी. क्षमता का प्लांट है,जिसमें 10 किलोग्राम कचरा प्रतिदिन प्रयोग होता है और जिससे 35 से 40 किलोग्राम गैस प्रतिमहीने प्राप्त होती है,जो कि लगभग 25 से 30 किलोग्राम एलपीजी के बराबर है।
डॅा सुरेश को अपनी हर सुबह अपने बगीचे में बागवानी करते हुए बिताना पसंद है।उनके बगीचे में 20 तरह की सब्जियाँ आर्गेनिक तरीके से उगायी जाती है।
“दिनभर में कुछ पल बगीचे में बिताना और इन सब्जियों को अपने सामने विकसित होते देखना एक अद्भुत दृश्य और अनुभव है।कुछ दिनों पहले मेरी पत्नी को रात को दस बजे हरी मिर्च की जरूरत पड़ी और मैं तुरंत अपने छत पर बने बगीचे से तोड़ के ले आया,वे अतिउत्साहित होकर बताते है।”
डॅा सुरेश अपने घर के आसपास हराभरा सब्जियों से ढका जंगल बनाने का प्रयास करते है।
वे कहते है ,”जब मैं छत पर होता हूँ,मुझे ऐसा महसूस होता है जैसे मैं अस्त-व्यस्त शहरी इलाके किलपाक में न होकर किसी जंगल में हूँ।मुझे अच्छा लगता है कि आसपास कोई बिल्डिंग और ढेर सारा ट्रैफिक नहीं दिखाई देता,सिर्फ हरियाली नजर आती है।”
इन सुविधाओं से मिलने वाले फायदों को देखते हुए डॅा सुरेश ने इसे अन्य घरों,संस्थाओं और संस्थानों में पहुंचाने का निश्चय किया है।
कुछ हद तक वह अपने इस प्रयास में सफल भी हुए है।उन्होंने कुछ घरों,विद्यालयों और कार्यालयों में इसको स्थापित किया है।वह बीस से ज्यादा संस्थानों,विद्यालयों,कॅालेजों और अपार्टमेन्ट्स में पिछले दो सालों में इसका प्रदर्शन कर चुके है।उनके इन अथक प्रयासों का परिणाम है,उनका घर न्यू 17 वासु स्ट्रीट पाचवीं से बारहवीं कक्षा तक के स्थानीय विद्यालयों के छात्रों के लिए वार्षिक शिक्षण भ्रमण का स्थान बन गया है।
उनका मानना है ,”ये सब पुराने तरीके ही है,जो लोग भूल गये है।लोगों को बस थोड़ा जागरूक होना होगा कि वे भी एक आरामदायक जिंदगी जी सकते है ,बिना किसी दूसरे की सहायता पर निर्भर रहकर और बिना पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए।ममैं यही करने की कोशिश कर रहा हूँ।”