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7वीं पास ने बनाई चंदन का पेस्ट बनाने वाली मशीन, कई बड़े मंदिरों ने खरीदी

Subhash Jagtap and his sons with machine

हम सब जानते हैं कि चंदन की लकड़ी की बाजार में बहुत मांग है, क्योंकि यह बहुउपयोगी है। हमारे देश में चंदन का उपयोग पूजा-पाठ के साथ-साथ, सौंदर्य प्रसाधन क्षेत्र में भी काफी ज्यादा होता है। इसलिए आजकल किसान अपने खेत में चंदन के कुछ पेड़ भविष्य के लिए निवेश के तौर पर लगा रहे हैं। क्योंकि चंदन से जुड़ा व्यापार क्षेत्र काफी व्यापक है।

लेकिन साथ ही, कुछ समस्याएं भी हैं जैसे चंदन की लकड़ी का पेस्ट बनाने के लिए इसे बहुत घिसना पड़ता है। खासकर कि मंदिरों में, जहां हर रोज काफी ज्यादा मात्रा में चंदन इस्तेमाल होता है। इसलिए बहुत से लोग बैठकर घंटों तक चंदन घिसते रहते हैं। यह काम कहने में छोटा-सा है, लेकिन करने बैठे, तो समय और मेहनत दोनों ही बहुत ज्यादा लगते हैं। लोगों की इसी परेशानी को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र में जलगांव के शेन्दुर्णी में रहने वाले एक शख्स ने चंदन का पेस्ट बनाने के लिए एक खास मशीन बनाई है।

75 वर्षीय सुभाष जगताप ने अब तक कई छोटी बड़ी मशीनें बनाई हैं। इसलिए लोग उन्हें एक आविष्कारक के रूप में जानते हैं। उन्हें नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने सम्मानित भी किया है। द बेटर इंडिया से बात करते हुए सुभाष ने बताया कि कैसे ट्रक की बॉडी बनाते-बनाते वह लोगों की जरूरत के हिसाब से कृषि यंत्र और मशीनें बनाने लगे। आज अपने आविष्कारों के कारण ही वह लाखों का कारोबार कर पा रहे हैं।

सुभाष जगताप अपनी बनाई एक मशीन के साथ

मात्र सातवीं पास हैं सुभाष

बचपन में अपने मामा के घर पर पले-बढ़े सुभाष कहते हैं कि उनके पिताजी रेलवे में काम करते थे। “वह रेलवे में टर्नर थे और ब्रिटिश सरकार के समय से ही रेलवे में काम कर रहे थे। पिताजी के तरफ के परिवार में लगभग सभी लोग रेलवे में थे। लेकिन मामाजी ट्रक चलाते थे और उनके पास अपने कई ट्रक थे।”

पढ़ाई-लिखाई में सुभाष की ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी और इसलिए उन्होंने सिर्फ सातवीं कक्षा तक ही पढ़ाई की। लेकिन उन्हें सीखना खूब आता था। वह कहते हैं, “मुझे ट्रक के बारे में कभी किसी ने नहीं सिखाया। मैं बस अपने आसपास होने वाली चीजों को ध्यान से देखता हूँ और वहीं से प्रेरणा लेकर काम करता हूँ। ऐसे ही, मैं बचपन से देखता था कि ट्रक में क्या कल-पुर्जे होते हैं। कैसे बनते हैं और क्या चीजों की जरूरत होती है।”

हालांकि, जब सुभाष ने पढ़ाई छोड़ी तो परिवार को उनकी चिंता हुई कि अब वह क्या करेंगे। इसलिए उनके पिताजी ने उन्हें रेलवे में लगवा दिया। लेकिन रेलवे का काम उन्हें रास नहीं आया। क्योंकि वह कुछ अलग करना चाहते थे। वह कहते हैं, “सच कहूं, तो कई बरसों बाद मुझे समझ में आया कि मैं सही मायनों में करना क्या चाहता था। और यह तब हुआ, जब मैंने पहली बार अपने एक किसान दोस्त के लिए एक कृषि यंत्र बनाया।”

सुभाष जगताप अपने एक दोस्त और उनके लिए बनाए कृषि यंत्र के साथ

लेकिन इससे पहले उन्होंने कई छोटे-मोटे काम किए। कभी किसी दुकान पर तो कभी किसी गैराज पर। लगभग 40 साल पहले उन्होंने अपना खुद का काम शुरू किया। उन्होंने अपनी एक छोटी-सी वर्कशॉप शुरू की और ट्रक के फेब्रिकेशन का काम करने लगे।

दोस्त के लिए बनाया था पहला कृषि यंत्र

सुभाष बताते हैं कि इस काम से उनका घर ठीक-ठाक चल रहा था। लेकिन उन्हें बार-बार लगता था कि उन्हें कुछ और करना चाहिए। इसी बीच एक दिन उनके एक किसान दोस्त, गोपाल का उनके घर आना हुआ। वह कहते हैं, “मेरे दोस्त ने बताया कि उसे खेत में जुताई के लिए साइकिल से एक यंत्र बनवाना है। उसके पास बैल या ट्रेक्टर खरीदने के पैसे नहीं थे। ऐसे में मैंने साइकिल को ही जुताई के यंत्र में बदलने का काम किया।”

सुभाष ने बताया कि शुरुआत में लोगों ने इस यंत्र को लेकर बहुत मजाक बनाया था। लेकिन जब यह यंत्र बनकर तैयार हुआ और उनके दोस्त इसे अपने खेतों में इस्तेमाल करने लगे तो उनका अपमान सम्मान में बदल गया। जो भी इस मशीन को देखता तो पूछता की कहां से लिया? इस तरह उनके पास ऑर्डर बढ़ने लगे।

बहुत से लोग उनके पास आने लगे और बताते कि उन्हें क्या चाहिए। उन्होंने फसलों में छिड़काव के लिए मोबाइल स्प्रेयर भी बनाया था, जिसके लिए उन्हें नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन से सम्मान भी मिला। इसके बाद, उन्होंने और भी कई यंत्र बनाए जैसे इनोवेटिव ड्रिलिंग मशीन, प्लाईवुड कटिंग मशीन आदि। लेकिन कई बार पैसे की कमी के कारण वह अपनी इन मशीनों पर ज्यादा काम नहीं कर पाए।

आविष्कारों के लिए मिले सम्मान

चंदन का पेस्ट बनाने की मशीन में मिली सफलता

उनका फेब्रिकेशन का काम ठीक चल रहा था। जिससे घर-परिवार के लिए सही कमाई हो जाती थी। बीच-बीच में लोग अपने लिए खास मशीनें बनवाने के ऑर्डर भी उन्हें देते रहते थे। लेकिन कई बार लोग उनसे सामान्य समस्याओं को हल करने के लिए कहते थे। जिन पर कई बार वह काम करते तो कई बार फंडिंग की वजह से काम रुक जाता था।

सुभाष बताते हैं, “कुछ साल पहले मुझे जलगांव स्थित एक मंदिर के पुजारी ने कहा कि चंदन की लकड़ी का पेस्ट बनाने के लिए कोई मशीन बनाओ। क्योंकि चंदन की लकड़ी को हाथ से पत्थर पर घिसा जाता है। जिसमें बहुत मेहनत और समय लगता है।” सुभाष को भी लगा कि इस परेशानी को हल करने के लिए वह कुछ कर सकते हैं।

उन्होंने इस बारे सोचना शुरू किया और अपने आसपास दिखने वाली मशीनों पर गौर करने लगे। वह बताते हैं कि दक्षिण भारत में इडली डोसा का बैटर या मूंगफली की चटनी बनाने के लिए पहले पारंपरिक चीजें इस्तेमाल होती थीं। लेकिन अब ज्यादातर इलेक्ट्रिक मशीन का प्रयोग किया जाता है। इस मशीन से उन्हें प्रेरणा मिली।

चंदन का पेस्ट बनाने वाली मशीन

कई महीनों की मेहनत के बाद उन्होंने अपनी मशीन का प्रोटोटाइप तैयार किया। यह बिजली से चलने वाली मशीन है। जिसमें उन्होंने पत्थर का भी इस्तेमाल किया है। इसमें एक तरफ पानी के लिए प्रबंध किया गया है ताकि लकड़ी को घिसते समय पाइप से हल्का-हल्का पानी भी आता रहे। उनकी यह मशीन काफी सफल रही और लोगों की मांग पर उन्होंने इसके दो मॉडल तैयार किए- जम्बो और मिनी।

जम्बो मशीन से एक घंटे में पांच किलो चंदन का पेस्ट तैयार होता है। यह बड़े मंदिरों और कंपनियों के लिए कारगर है। लेकिन वहीं बहुत से लोग कम काम के लिए मशीन चाहते थे। इसलिए उन्होंने ‘मिनी मशीन’ भी बनाई, जिससे एक घंटे में ढाई किलो चंदन का पेस्ट तैयार होता है।

शुरू की अपनी कंपनी

सुभाष को अपनी इस मशीन के लिए भी नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने सम्मानित किया है। उन्होंने बताया कि उनके दोनों बेटे, सचिन जगताप और स्वप्निल जगताप भी उनके साथ मिलकर काम कर रहे हैं। स्वप्निल कहते हैं, “मैने ऑटोमोबाइल इंजिनीरिंग की हुई है। कॉलेज के समय से ही मैंने ठान लिया था कि पापा के काम में हाथ बटाकर और उनके सामान को बाजार तक पहुंचाने की कोशिश करुंगा। क्योंकि उन्होंने बहुत सी मशीन बनाई हैं। लेकिन मार्केटिंग के लिए हमेशा दूसरों पर निर्भर होना पड़ा।” 

सचिन और स्वप्निल ने इस काम के लिए अपनी खुद की कंपनी ‘Invento Processing Tools Pvt. Ltd.‘ की नींव रखी। इस कंपनी के जरिये वह चंदन की लकड़ी का पेस्ट बनाने वाली मशीन को मार्किट कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनकी इन मशीन को स्थानीय मंदिरों के साथ-साथ द्वारका के मंदिर, पंढ़रपुर मंदिर और दक्षिण भारत के कई बड़े मंदिरों ने खरीदा है। 

चंदन पेस्ट बनते हुए

पंढ़रपुर मंदिर में सेवा करने वाले अतुल कुलकर्णी बताते हैं, “हमने उनसे दो मशीनें खरीदी हैं। दोनों ही काफी अच्छी तरह से काम कर रही हैं। मंदिर की परंपरा है कि गर्मियों के मौसम में भगवान के शरीर को हर रोज चंदन लगाया जाता है ताकि ठंडक रहे। इसके लिए काफी ज्यादा मात्रा में चंदन के पेस्ट की जरूरत होती है। पहले यह काम हम दो-तीन लोग मिलकर करते थे। बड़े-बड़े पत्थर पर चंदन की लकड़ियों को घिसते थे। लेकन अब मशीन की वजह से इस काम में बहुत आसानी हो गयी है।”  

स्वप्निल कहते हैं कि अब तक वे लगभग 60 मशीनें बेच चुके हैं। “पिछले कुछ समय से हमें कई कॉस्मेटिक और आयुर्वेदिक कंपनियों ने भी संपर्क किया। उनके यहां उत्पाद बनाने के लिए जड़ी बूटियों को पीसा जाता है। इसलिए हमने इस मशीन में कुछ बदलाव करके उन्हें दिया है,” उन्होंने कहा। 

सुभाष के मुताबिक अगर कोई किसान या कोई और चंदन का पेस्ट बनाने की अपनी यूनिट शुरू करना चाहता है तो यह मशीन बहुत ही कारगर है। मशीन की कीमत जानने के लिए या इसे खरीदने के लिए आप 7709110350 पर संपर्क कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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