क्या आप कभी किसी ऐसे शख्स से मिले हैं, जिसने स्कूल की पढ़ाई भी पूरी न की हो, लेकिन एक से बढ़कर एक आविष्कार किए हों? चौंक गये न! तो चलिए, आज हम आपको राजस्थान के एक ऐसे ही शख्स की कहानी सुनाते हैं, जो केवल पांचवीं पास हैं लेकिन उन्होंने किसानों के लिए एक से बढ़कर एक कृषि यंत्र बनाए हैं।
यह कहानी राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में रहनेवाले 62 वर्षीय गुरमैल सिंह धौंसी की है। गुरमैल कहते हैं, “सच कहूँ तो स्कूली पढ़ाई में मेरा मन नहीं लगता था। पिताजी के बहुत कहने पर मैं छठी कक्षा तक स्कूल गया और उसमें भी एक-दो पेपर में फेल हो गया। इसलिए मैं खुद को पौने छह कक्षा तक पढ़ा हुआ मानता हूँ। पढ़ाई छोड़ने के बाद मैंने एक ‘वर्कशॉप’ पर ही काम करना शुरू किया, जहां ट्रैक्टर के कल-पुर्जे बनते और ठीक होते थे। साथ ही, वे दूसरे कृषि यंत्र भी बनाते थे। कुछ समय तक वहां काम सीखने के बाद मैंने अपनी खुद की वर्कशॉप शुरू की।”
साल 1982 में उन्होंने अपनी छोटी-सी वर्कशॉप, धौंसी मैकेनाइजेशन (Dhonsi Mechanization) की शुरुआत की थी, जो आज एक कंपनी बन चुकी है। अब इलाके में गुरमैल सिंह की पहचान एक आविष्कारक के तौर पर है। बतौर फैब्रीकेटर और मैकेनिक अपना करियर शुरू करने वाले गुरमैल ने कभी नहीं सोचा था कि वह एक दिन बड़ी-बड़ी मशीनें बनाने लगेंगे। द बेटर इंडिया से बात करते हुए अपने पूरे सफर के बारे में विस्तार से बताया।
सरसों की थ्रेसिंग मशीन से हुई शुरुआत
गुरमैल ने जब अपनी खुद की वर्कशॉप शुरू की, तो लोगों के ट्रैक्टर और दूसरी मशीनों की मरम्मत करने के साथ-साथ, वह कृषि यंत्र भी बनाते थे। वह कहते हैं कि बाजार में उपलब्ध कृषि यंत्रों के अलावा, वह किसानों की जरूरत के हिसाब से भी काम करना चाहते थे। जैसे उन्होंने देखा कि सरसों की कटाई के बाद, इसकी थ्रेसिंग के लिए किसान परिवारों को बहुत मेहनत करनी पड़ती है। हाथों से सरसों को कूटना, फिर साफ़ करना, और इसके बाद भी उन्हें अच्छे नतीजे नहीं मिलते थे। इसलिए, उन्होंने सोचा कि क्यों न इस काम के लिए कोई मशीन हो।
1986 में उन्होंने सरसों की थ्रेसिंग मशीन बनाई, जो हाथों-हाथ बिकी। उन्होंने आगे कहा, “हमारे गाँव में कुछ लोग गेहूं की कटाई और थ्रेसिंग के लिए हार्वेस्टर कंबाइन मशीन लेकर आए। लेकिन मैंने देखा कि इस मशीन का काम सिर्फ एक ही मौसम में था, जब गेहूं की फसल होती थी। मुझे लगा कि इस मशीन में बदलाव करके इसे दूसरी फसलों में भी इस्तेमाल में लेना चाहिए। इसलिए मैंने सरसों की थ्रेसिंग मशीन भी कंबाइन में ही जोड़ दी। हालंकि, शुरुआत में लोग मुझसे अपनी मशीन मॉडिफाई करवाने में कतराते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि मैं पैसे ज्यादा लेता हूँ।”
ऐसे में, एक आदमी ने उन्हें सलाह दी कि वह किसानों को मशीन तैयार करने का सामान लाने के लिए कहें और खुद उनसे सिर्फ अपनी फीस लें। यह तरीका काम कर गया। उन्होंने कहा कि उन्होंने अलग-अलग तरह की मशीनें बनाई, जिनमें से कुछ में सफलता मिली, तो कई बार वह असफल भी हुए। लेकिन हमेशा कुछ अलग करने की उनकी कोशिश कभी नहीं रुकी। अब तक वह 20 से ज्यादा मशीनें बना चुके हैं, जिनमें थ्रेसिंग मशीन के अलावा, लोडर, वाटर लिफ्टर, मिनी कंबाइन, रिज मेकर, वुड चीपर, कम्पोस्ट मेकर, ट्री प्रुनर जैसी मशीनें शामिल हैं।
बनाई खाद बनाने वाली मशीन
साल 2007 में गुरमैल सिंह ने ‘कम्पोस्ट मेकर’ और ‘ट्री प्रुनर’ मशीन बनाई। इन दोनों मशीनों के लिए उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली है।
वह कहते हैं, “इफको के चेयरमैन रहे स्वर्गीय सुरेंद्र जाखड़, हमेशा मेरे लिए प्रेरणास्रोत रहे। उन्होंने मेरी बनाई कुछ मशीनों को देखा और मुझसे कहा कि मैं अपनी किसी भी मशीन की टेस्टिंग उनके खेतों में कर सकता हूँ। उन्होंने ही मुझे ‘कम्पोस्ट मेकर’, और ‘ट्री प्रूनर’ मशीन बनाने के लिए कहा था।” जाखड़ ने उन्हें 2006 में एक ऐसी मशीन बनाने के लिए कहा, जिससे कि कृषि अपशिष्ट से कम समय में खाद बन जाए।
जाखड़ ने पहले गुरमैल को एक वर्मीकम्पोस्टिंग यूनिट दिखाई। इसे देखने के बाद, गुरमैल ने समझा कि केंचुआ कैसे खाद बनाता है और इस काम में कितना समय लगता है। वह कहते हैं, “मैंने मशीन पर काम करना शुरू किया और पहला मॉडल तैयार किया। इस मशीन को ट्रैक्टर की मदद से चलाया जा सकता था और यह कृषि अपशिष्ट जैसे तूरी, भूसी, टहनियों और पत्तों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर पाउडर बना देती थी। लेकिन इस मशीन में एक समस्या थी कि इससे बनने वाली खाद में पोषण कम होता था।”
इसलिए, गुरमैल ने इस बारे फिर अपनी मशीन पर काम किया। इस बार उन्होंने ऐसा सिस्टम तैयार किया कि जब मशीन पराली की कटाई करे, तो बीच-बीच में इस पर पानी छिड़का जाए और इसे हवा भी लगती रहे। साथ ही, उन्होंने मशीन में 35 डिग्री से ज्यादा और 60 डिग्री से कम तापमान रखा, ताकि कृषि अपशिष्ट जल्दी गलने व सड़ने लगे। एक-दो ट्रायल लेने के बाद, उन्होंने इस मशीन से बनी खाद को लैब में टेस्ट कराया। उन्हें पता चला कि उनकी बनाई खाद में अच्छी मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम है। उनकी यह मशीन सफल हो गयी और उन्होंने इसे ‘कंपोस्ट मेकर’ नाम दिया।
उन्होंने आगे कहा कि बाजार में उपलब्ध अन्य कम्पोस्ट मेकर मशीनें खाद बनाने में लगभग चार-पांच महीने का समय लेती हैं। लेकिन उनकी बनाई मशीन से यह काम 30-40 दिनों में ही हो जाता है। “दूसरी मशीनों से एक टन खाद बनाने की लागत लगभग तीन हजार रुपए आती है। लेकिन मेरी मशीन मात्र 2 रुपए/टन की लागत से काम करती है। 1200 टन पराली या अन्य कृषि अपशिष्ट को प्रोसेस करने में यह मशीन मात्र एक घंटे का समय लेती है,” उन्होंने कहा। अब तक वह लगभग 150 मशीनें बेच चुके हैं।
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नांदी फाउंडेशन के साथ कार्यरत, सत्य नारायण कहते हैं कि उनके फाउंडेशन ने गुरमैल सिंह से आठ मशीनें खरीदी हैं। इन्हें वह अलग-अलग जगहों पर किसानों के लिए चल रहे प्रोजेक्ट्स में इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “इस मशीन की वजह खाद बनाने में लगनेवाला समय और लागत दोनों कम होते हैं। सबसे पहले हमने इसे पंजाब में ट्राई किया था। इसके बाद, दूसरी जगहों के लिए भी, हमने यह मशीन खरीदी। हमारा फाउंडेशन किसानों को खेती के लिए जैविक खाद उपलब्ध कराता है। अगर खाद बनाने का काम हम मजदूरों से कराएं, तो बहुत ज्यादा लागत लगती है। लेकिन इस मशीन में सिर्फ एक ही बार की इन्वेस्टमेंट है।”
बागों में पेड़ों की कटाई-छटाई के लिए मशीन
जब गुरमैल, कंपोस्ट मेकर पर काम कर रहे थे, तो जाखड़ ने ही उन्हें बागों में पेड़ों की कटाई-छंटाई (प्रूनिंग) के लिए एक मशीन बनाने के लिए भी कहा। क्योंकि, बागवानी करनेवाले लोगों के लिए फलों के पेड़ों की कटाई-छंटाई (प्रूनिंग) करना बहुत मुश्किल होता है। पेड़ों पर चढ़कर इन्हें ऊपर से काटना या फिर सीढ़ी लगाकर काटने में, बहुत सी परेशानियां आती हैं। कई बार लोगों को पेड़ से गिरने के कारण चोट भी लग जाती है। इस काम में समय भी काफी जाता है। वह कहते हैं कि उन्होंने इस काम को भी चुनौती की तरह लिया और बागों में पेड़ों की कटाई-छंटाई के लिए मशीन बनाने में जुट गए। अपनी इस मशीन को उन्होंने ‘बाग प्रूनर मशीन’ नाम दिया।
उन्होंने कहा, “यह मशीन किसी भी तरह के बड़े और लम्बे पेड़ों की कटाई-छटाई कर सकती है और वह भी पेड़ों को नुकसान पहुंचाए बिना। इससे बागवानी करने वाले किसानों का काम आसान हो जाता है।” ट्रैक्टर से चलनेवाली इस मशीन में हाइड्रोलिक सिस्टम लगा है और पेड़ों की प्रूनिंग के लिए कटर लगाए गए हैं। इस मशीन से 10 से लेकर 20 फ़ीट तक की लम्बाई वाले पेड़ों की प्रूनिंग अच्छे से की जा सकती है। एक अकेला इंसान भी ट्रैक्टर और इस मशीन की मदद से एक घंटे में सैकड़ों पेड़ों की प्रूनिंग कर सकता है।
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अब तक वह लगभग 15 मशीनें बेच चुके हैं। अपनी इन दोनों मशीनों के लिए उन्हें सराहना और सम्मान, दोनों मिले हैं। साल 2009 में उन्हें नैशनल इनोवेशन फाउंडेशन (NIF) से जुड़ने का मौका मिला। NIF की टीम ने उनकी मशीनों की अच्छे से जांच-पड़ताल करने के बाद, न सिर्फ उन्हें सम्मानित किया बल्कि इन मशीनों के लिए पेटेंट फाइल करने में भी उनकी मदद की है। गुरमैल सिंह को कंपोस्ट मेकर मशीन के लिए 2012 में, तत्कालीन राष्ट्रपति ने सम्मानित भी किया था। इसके बाद 2014 में, उन्हें दो हफ्तों तक राष्ट्रपति भवन में रहने का मौका भी मिला।
गुरमैल सिंह कहते हैं, “यह NIF के कारण हुआ कि आज मेरी बनाई मशीनों की मांग देश के सभी राज्यों में होने के साथ-साथ, अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे देशों में भी है। मेरी बनाई मशीनें, दूसरे देशों में भी लोगों के काम आ रही हैं। इसलिए मैं हमेशा कुछ न कुछ करते रहने की कोशिश करता हूँ।”
गुरमैल सिंह जैसे लोग हमारे देश की आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा हैं। द बेटर इंडिया उनके जज्बे को सलाम करता है।
अगर किसान भाई अपनी जरूरत के हिसाब से, कोई भी मशीन उनसे बनवाना चाहते हैं, तो उन्हें 9414631570 पर संपर्क कर सकते हैं। यदि आप उनकी बनायी हुई मशीनें देखना चाहते हैं, तो यहाँ क्लिक करें।
संपादन- जी एन झा
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