महाराष्ट्र में पुणे के बारामती शहर की निवासी, 16 वर्षीय मयूरी पोपट यादव ने अपने दिव्यांग भाई के लिए एक ख़ास साइकिल बनाई है। यह एक व्हीलचेयर-कम-साइकिल है, जिसकी मदद से अब उसके भाई को स्कूल आने-जाने में तकलीफ़ नहीं होगी।
मयूरी, आनंद विद्यालय में दसवीं कक्षा की छात्रा है। मयूरी का छोटा भाई निखिल पैरों से दिव्यांग है और इसलिए, जब कभी भी उनके पिता घर पर न हो, तो उसके स्कूल जाना मुश्किल हो जाता है और अक्सर निखिल को क्लास छोड़नी पड़ती है।
इस परेशानी को ख़त्म करने के लिए मयूरी ने अपने स्कूल के शिक्षकों व प्रिंसिपल से विचार-विमर्श कर एक व्हीलचेयर-कम-साइकिल बनाई है, जिससे वह आसानी से निखिल को अपने साथ स्कूल ले जा सकती है। आनंद विद्यालय के प्रिंसिपल ए. एस अतर ने कहा,
“मयूरी का भाई निखिल पढ़ाई में बहुत अच्छा है, लेकिन जब भी उसके पिता घर पर नहीं होते तो वह स्कूल नहीं आ पाता। इसलिए मयूरी इस नेक विचार के साथ मेरे पास आई। शुरुआत में, हम झिझक रहे थे, क्योंकि हमें लगा कि यह संभव नहीं है, लेकिन बाद में विज्ञान के शिक्षक जयराम पवार और वासीकर और हमारे स्कूल की तकनीकी टीम के साथ विचार-विमर्श करके इस पर काम शुरू किया।”
हाल ही में नसरपुर में आयोजित जिला स्तरीय विज्ञान प्रदर्शनी में इस अनोखे साइकिल का प्रदर्शन किया गया था, जहाँ इसे राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के लिए भी चुन लिया गया है।
मयूरी ने इस बारे में सकाल टाइम्स को बताया,
“मेरा भाई अब बड़ा हो रहा है। ऐसे में पापा के लिए भी उसे गोद में उठाकर स्कूटर पर बिठाना और फिर स्कूल छोड़ कर आना, बहुत बार मुमकिन नहीं हो पाता। और फिर जब पापा नहीं होते हैं तो वह स्कूल नहीं जा पाता। इसलिए मैंने इस पर विचार किया और सोचा कि मैं उसे अपने साथ ही स्कूल ले जा सकती हूँ। मैंने अपने शिक्षकों और प्रिंसिपल के साथ इस पर चर्चा की और सभी ने खुशी-खुशी मेरा समर्थन किया।”
इस व्हीलचेयर-कम-साइकिल को बनाने के लिए वेल्डिंग द्वारा व्हीलचेयर को साइकिल से जोड़ दिया गया है। साथ ही, साइकिल में और भी कुछ बदलाव किये गये हैं ताकि यह निखिल के लिए पुर्णतः सुरक्षित हो।
साइकिल और व्हीलचेयर के पहियों में भी कुछ बदलाव किये गये, जैसे कि साइकिल के ब्रेक सिस्टम को अच्छी तरह से व्हीलचेयर के पहियों से जोड़ा गया है। साथ ही, एक बेल्ट भी लगाई गयी है ताकि निखिल आसानी से व्हीलचेयर पर बैठ पाए।
निखिल ने कहा, “मुझे बहुत ख़ुशी है कि मेरी बहन ने मेरे लिए यह साइकिल बनाई। मुझे लगता है कि दिव्यांगों की बुनियादी सुविधाओं के लिए इस तरह के और ज़्यादा इन्वेंशन होने चाहिए ताकि उन्हें हर किसी की तरह समान अवसर मिले।”
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