सालों से एक सोशल इंटरप्राइज़, PotHoleRaja भारत में सड़कों को ठीक करने के मिशन पर है। इस महीने की शुरुआत में ही पॉट होल राजा को एक सड़क का निर्माण करने का कान्ट्रैक्ट दिया गया। अब आप सेच रहे होंगे इसमें क्या इतना खास है? खास बात यह है कि यह सड़क उन्हें अपने पेटेंट किए गए GridMats टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए बनानी थी, जिसमें प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल किया जाता है। यह पूरी तरह से ‘इको-फ्रेंडली’ और ‘टिकाऊ’ तकनीक है।
3,000 किलोग्राम रिसायकल किए गए प्लास्टिक का इस्तेमाल करके बनाई गई यह सड़क ब्रुकफील्ड प्रॉपर्टीज़ इंडिया के पोर्टफोलियो में एक संपत्ति, ईकोवर्ल्ड और शहर के कमर्शिअल क्षेत्र बेलंदूर और आउटर रिंग रोड को जोड़ती है। सड़क बनाने का मुख्य मकसद ट्रैफिक को कम करना है।
यह पहल, कनाडा स्थित आर्किटेक्चर, इंजीनियरिंग, प्लानिंग और टेक्नोलॉजी फर्म, बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) और बेंगलुरु ट्रैफिक पुलिस के साथ साझेदारी में ब्रुकफील्ड प्रॉपर्टीज़ के नेतृत्व वाले क्षेत्र के लिए एक बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड प्लान का हिस्सा है।
कम समय और कम लागत में होता है निर्माण
द बेटर इंडिया से बात करते हुए, पॉट होल राजा के डायरेक्टर, सौरभ कुमार कहते हैं, “वर्तमान में, मारथल्ली की ओर जाने के लिए इकोवर्ल्ड से निकलने वाले यात्रियों को बेल्लंदूर में एक बड़ा यू-टर्न लेना पड़ता है और जो लोग आउटर रिंग रोड से इकोवर्ल्ड और उसके आसपास के क्षेत्र में जाते हैं, उन्हें भी भारी ट्रैफिक के कारण बहुत असुविधा का सामना करना पड़ता है। इस जगह भारी ट्रैफिक, मुख्य रूप से यात्रियों के भीड़भाड़ वाले जंक्शन पर यू-टर्न लेने के कारण होता है।”
वह आगे कहते हैं कि एक अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई कनेक्टिंग रोड बनाने से लोगों को आने-जाने में सुविधा भी होगी और समय की बचत भी होगी। सौरभ ने बताया, “इस सड़क पर काफी ज्यादा ट्रैफिक होता है और हम नहीं चाहते थे कि ऐसी सड़क हो, जिसमें कुछ ही महीनों के भीतर गड्ढे हो जाएं और टूट जाएं।”
रिसायकल किए गए पॉलीप्रोपाइलीन से बनाई गई इस सड़क पर, ग्रिडमैट को बेडिंग की परत के ऊपर रखा जाता है और विभिन्न समाग्री से भर कर पैक किया जाता है, जिससे आधे से भी कम समय में एक स्थायी, सपाट, उच्च गुणवत्ता वाली सतह, तैयार होती है। इसके अलावा इसे बनाने में 20% से 25% कम लागत लगती है।
पानी की कम खपत और स्टील के बिना बनती है सड़क
यहां के एक लोकल ट्रैफिक पुलिस के मुताबिक इस जगह से गुजरने वाले लोगों को अपने ऑफिस जाने और शाम को ऑफिस से घर वापस जाने के लिए बहुत बड़ा यू-टर्न लेना पड़ता था और इस कारण औसतन उन्हें 75 मिनट का नुकसान हो रहा था। जनवरी 2022 में, ब्रुकफील्ड प्रॉपर्टीज़, इकोवर्ल्ड के पास भारी ट्रैफिक के संभावित समाधानों की पहचान करने के लिए आईबीआई में शामिल हुई।
इस मामले में छह से ज्यादा समाधान प्रस्तावित किए गए थे। सड़क को तत्काल सुधार की ज़रूरत थी, जिसके लिए पॉट होल राजा को कॉन्ट्रैक्ट दिया गया। शहर की ट्रैफिक पुलिस के अनुरोध के बाद, इस सड़क के निर्माण की प्रक्रिया शुरू हुई।
PotHoleRaja ने 30 मीटर लंबी और 15 मीटर चौड़ी इस कनेक्टिंग रोड का निर्माण 9 जुलाई को शुरू किया था। निश्चित रूप से यह बहुत लंबा खंड नहीं था, बल्कि लगभग 500 और 600 वर्ग मीटर के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण और प्रमुख भाग है।
शुरुआत में, PotHoleRaja टीम को मेट्रो निर्माण स्थल से मलबा हटाना पड़ा। टीम को केवल सड़क का निर्माण ही नहीं करना था, बल्कि सड़क पर लगने वाली चीज़ें, रिफ्लेक्टर, बोलार्ड भी लगाना था, फुटपाथ को ठीक करना था और नाली की संरचना को थोड़ा चौड़ा करने के लिए इसे फिर से डिजाइन करना था, ताकि लोगों की पहुंच आसान हो सके। हालांकि इसके वास्तविक निर्माण प्रक्रिया में सिर्फ चार से पांच दिन लगे।
सौरभ ने आगे बताया, “इस प्रोजेक्ट में, हमने लगभग 3000 किलो प्लास्टिक कचरे का उपयोग किया है। इसे बनाने में पारंपरिक कंक्रीट सड़कों की तुलना में 30 प्रतिशत कम पानी की खपत होती है और इसके लिए किसी तहर से भी स्टील के इस्तेमाल की ज़रूरत नहीं पड़ती।”
पॉट होल राजा कैसे करता है कचरे को इस्तेमाल के लिए तैयार?
रिसायकल किए गए प्लास्टिक का प्रमुख स्रोत इंडस्ट्रियल कचरा है। इंडस्ट्रीज़ से उत्पन्न प्लास्टिक कचरे को रिसायकलर इकट्ठा करता है। फिर इन्हें अलग-अलग किया जाता है। इसके बाद, इसे धोया, सुखाया और साफ किया जाता है। फिर होसुर में पोटहोल राजा के कारखाने पहुंचाया जाता है।
प्लास्टिक कचरे को रिसायकल कर, छर्रों के रूप में बदल दिया जाता है। इसके बाद, फैक्ट्री उन छर्रों का उपयोग कर ग्रिडमैट बनाती है, जो रिसायकल्ड पॉलीप्रोपाइलीन कचरे से डिज़ाइन की गई एक छत्ते जैसी संरचना होती है। इससे ही सड़क का निर्माण किया जाता है। पॉलीप्रोपाइलीन प्लास्टिक में, प्लास्टिक की कुर्सियाँ, बाल्टियाँ और ऑटोमोबाइल में इस्तेमाल होने वाला कठोर प्लास्टिक शामिल होते हैं।
अब तक, इस सामाजिक इंटरप्राइज़ ने देश में कई सड़क प्रोजेक्ट्स पर काम किया है। बेंगलुरु में, उन्होंने कई रेजिडेंशिअल और कमर्शिअल संपत्तियों के अंदर ग्रिडमैट लगाया है। उदाहरण के लिए, पीन्या इंडस्ट्रियल एरिया में, उन्होंने एबीबी इंडिया लिमिटेड कारखाने के बाहर ग्रिडमैट लगाए हैं। यहां तक कि होसुर के कारखाने में, जहां पॉट होल राजा अपनी ग्रिडमैट बनाता है, वहां फुटपाथ भी इन छत्ते के आकार की संरचनाओं का उपयोग करके बनाया गया था।
पॉट होल राजा 5 साल की वारंटी के साथ बनाता है सड़क
पॉट होल राजा ने गुरुग्राम में मारुति सुजुकी कारखाने में इसी तरह की स्थापना की है और हाल ही में इसे जम्मू में हैवी ड्यूटी वाले कारखाने के परिसर के अंदर भी लगाया गया है। महाराष्ट्र सरकार द्वारा हाल ही में आयोजित एक स्टार्टअप प्रतियोगिता जीतने के बाद, सौरभ को उल्हासनगर नगर निगम क्षेत्र में 200 मीटर की सड़क के निर्माण का ठेका भी मिला।
इस बारे में और बात करते हुए सौरभ कहते हैं, “ज्यादातर जहां हैवी ड्यूटी वाले वाहन होते हैं, वहां हमारी टेक्नोलॉजी से सड़कों का निर्माण किया जाता है। कारखाने के परिसर के अंदर, हमारी बनाई गईं सड़कों पर जाने वाली गाड़ियों का भार कम से कम 50 टन होता है। हमारी सड़कें पांच साल की वारंटी वाली होती हैं, जो अपने आप में एक अनोखी बात है, क्योंकि इस इंडस्ट्री में कोई भी इस तरह का दावा नहीं करता है। किसी भी सड़क को बनाने के लिए, हम ग्राहकों और लाभार्थियों को आश्वस्त करते हैं कि हम हमेशा उनके साथ हैं।”
पारंपरिक सड़क और पॉट होल राजा की प्रक्रिया में क्या फर्क है?
PotHoleRaja के काम की शुरुआत मिट्टी को संकुचित करने से होती है, जिससे बेस बनाते हैं। यह एक प्रक्रिया है, जिसे पारंपरिक सड़क बनाने वाले भी अपनाते हैं। सौरभ बताते हैं, “पारंपरिक सड़कों पर कभी-कभी, बहुत अधिक मिट्टी भरने का काम किया जाता है, जबकि हमारे लिए यह बहुत पतली परत होती है, जिसकी माप लगभग 300 मिमी होती है। परंपरागत रूप से, यह 500 से 600 मिमी तक जा सकता है।”
इसके बाद बड़े आकार के छर्रे बिछाने की प्रक्रिया होती है, जिन्हें तकनीकी रूप से WMM (वेट मिक्स मैकडैम) या WBM (वॉटर-बाउंड मैकडैम) के रूप में जाना जाता है। WMM से सड़कें बनाने में स्टोन एग्रीगेट्स और बाइंडर्स का उपयोग होता है, वहीं WBM में स्टोन एग्रीगेट्स, स्क्रीनिंग और पानी के साथ स्टोन डस्ट जैसे बाइंडर्स का इस्तेमाल किया जाता है।
इन सामग्रियों को मिलाने से फुटपाथ की ताकत बढ़ जाती है। पारंपरिक सड़कों पर यह ओवरलेइंग 250 से 300 मिमी मोटा मापकर किया जाता है, जबकि पॉट होल राजा केवल 100 मिमी से 150 मिमी तक जाता है।
तीसरे स्टेप की बात की जाए, तो पारंपरिक सड़कों में कंक्रीट की अगली परत के लिए बेस बनाया जाता है, जिसके लिए पत्थर और धूल के ऊपर 150 से 200 मिमी की मोटाई वाली कंक्रीट की एक पतली परत बिछाई जाती है, जिसे डीएलसी (ड्राई लीन कंक्रीट) कहा जाता है। सड़क पर बिछाई गई कंक्रीट की अंतिम परत लगभग 250 से 300 मिमी मोटी होती है।
ग्रिडमैट तकनीक क्या है?
सौरभ कहते हैं, “ग्रिडमैट तकनीक से बनाई गई सड़कों में, हम एम-रेत (एक इको-फ्रेंड्ली निर्माण सामग्री, जिसे निर्मित रेत कहा जाता है) की एक बहुत पतली परत बिछाते हैं, ताकि ग्रिडमैट को बिछाने में मदद मिल सके। हमारे ग्रिडमैट केवल 40 मिमी मोटे हैं। उस 40 मिमी में, हम छत्ते की संरचना के सिर्फ पॉकेट में कंक्रीट भरते हैं। अंतिम उत्पाद केवल 40 मिमी की मोटाई वाला ग्रिड है। यह हमारे फुटपाथ की मोटाई है।”
इसके अलावा, पॉट होल राजा बहुत सारे कंक्रीट बचाता भी है। वे स्टील उपयोग नहीं करते हैं। सौरभ बताते हैं कि इस तकनीक के इस्तेमाल से बनाई गई सड़कों पर तपमान के बदलाव से कोई असर नहीं पड़ता है। वह कहते हैं, “हमारी तकनीक के साथ, सड़कों के विस्तार होने और संकुचन के लिए (यानि दरारें) कोई जगह नहीं है। एक पारंपरिक सड़क में चार से पांच परतें होंगी, जबकि हमारी केवल दो या तीन परतें होंगी।”
इसके अलावा, ग्रिडमैट का उपयोग करके बनाई गई सड़कों के रिलेइंग की बहुत कम गुंजाइश है। सौरभ बताते हैं, “हमारे मामले में, नुकसान की संभावना बहुत कम है। सबसे खराब स्थिति में, मान लें कि मेट्रो रेल लाइन के निर्माण के दौरान हमारे द्वारा बनाई गई सड़क के ऊपर एक बहुत भारी उपकरण गिर जाता है, तो इसे ठीक करने के लिए, हम बस उस हिस्से को काट कर खोल देंगे और फिर से बिछा देंगे। चूंकि हम कम सामग्री का उपयोग करते हैं, इसलिए रख-रखाव बहुत कम होगा। इस इंडस्ट्री में, सड़क को तोड़कर बनाने में उतना ही खर्च आता है, जितना कि एक नई सड़क बनाने में आता है।”
PotHoleRaja का इतिहास
PotHoleRaja की शुरुआत भारतीय वायु सेना के पूर्व पायलट डॉ. प्रताप बी राव ने की थी। इसके बाद, उन्होंने कई वर्षों तक निजी क्षेत्र में सेवा की। उनकी आन्त्रप्रेनरीअल यात्रा 2011 में शुरू हुई थी, लेकिन पांच साल बाद ही भारत में सड़कों की हालत और ट्रैफिक से जुड़ी शिकायतों को देखते हुए उन्हें पॉट होल राजा का विचार आया।
सौरभ ने बताया, “उस समय, मैं एक सॉफ्टवेयर डेवलपर के रूप में काम कर रहा था। अपनी नौकरी छोड़ने के बाद, मैं प्रताप के साथ सड़कों को गड्ढा मुक्त करने की यात्रा पर निकल पड़ा। जब हमने शुरुआत की थी, तो हमारा मुख्य फोकस गड्ढे को ठीक करना और सार्वजनिक जगहों को सुधारना था। लेकिन जल्द ही कई निजी सड़क मालिकों ने विभिन्न सड़क रख-रखाव परियोजनाओं के लिए हमसे जुड़ना शुरू कर दिया। शुरू से ही हमारा रुझान स्थिरता रहा है। हमारी पोथोल फिक्सिंग तकनीक में भी, हमने ठंडे बिटुमेन/डामर का इस्तेमाल किया, जो गर्म नहीं होता और सभी मौसम में सही रहता है। हालांकि, तब भी हम इस बारे में सोचते रहते थे कि कैसे बेकार प्लास्टिक और रबर को रिसायकल करते हुए हम ऐसी सड़कें बनाएं, जिनमें कोई गड्ढा न हो।”
2018-19 में, PotHoleRaja ने अपने उस विचार के साथ प्रयोग करना शुरू किया और कई विफलताओं का सामना भी किया। अंत में, जब COVID-19 महामारी आई, तो उनकी टीम ने बहुत सोच-विचार और मंथन किया कि इस प्लास्टिक के साथ क्या किया जा सकता है।
असफलताओं ने सिखाया बहुत कुछ
सौरभ ने कहा, “हमने अपने वेयरहाउस में बहुत समय बिताया, बहुत सारे प्रयोग किए और कुछ ऐसे उत्पाद लेकर आए, जो हमारी उम्मीदों के मुताबिक नहीं रहे। उन असफलताओं ने हमें सिखाया कि इसे कैसे बेहतर बनाया जाए। अंत में, 2020 में, हमने डिजाइन और पहले उत्पादन को पूरा किया और उनके स्थायित्व को समझने के लिए ग्रिडमैट के छोटे पैच लगाए।”
उन्होंने आगे कहा, “पिछले महीने, हमें ग्रिडमैट्स के लिए पेटेंट प्राप्त हुआ। पेटेंट होने से पहले भी, हम टेस्ट करने के लिए ग्रिडमैट इंस्टॉलेशन कर रहे थे। चूँकि हमारी गड्ढा ठीक करने की तकनीक बहुत प्रशंसा बटोर रही थी, इसलिए हमारे ग्राहकों का मानना था कि हमारी सड़कें भी लंबे समय तक चलेंगी।”
आगे भी, पॉट होल राजा अपने लाभकारी और गैर-लाभकारी काम को आगे बढ़ाना जारी रखेगा। उनकी सीएसआर गतिविधियां उनकी गैर-लाभकारी शाखा के अंतर्गत आती हैं।
PotHoleRaja के संस्थापक डॉ. प्रताप बताते हैं, “निजी संपत्तियों के लिए, हम पूरी सड़क का बुनियादी ढांचा बनाते हैं और कई बिल्डरों, आर्किटेक्ट, टेक पार्क आदि के साथ काम करते हैं। इससे हमें टिकाऊ रहने में मदद मिलती है।”
मूल लेखः रिनचेन नॉर्बू वांगचुक
संपादनः अर्चना दुबे
यह भी पढ़ेंः 57 वर्षों में 7 पहाड़ों को काटकर बनाई 40 किमी सड़क, मिलिए 90 वर्षीय भापकर गुरूजी से