घरों के भीतर की प्रदूषित हवा जिंदगी पर भारी पड़ सकती है। इस प्रदूषण से हर साल लाखों लोगों की मौत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इनडोर वायु प्रदूषण सबसे अधिक खतरनाक है। रिपोर्ट्स के अनुसार, दुनिया में मौत का दूसरा प्रमुख पर्यावरणीय कारण घर के अंदर जलने वाली आग से होने वाला प्रदूषण है। हर साल, लगभग 38 लाख लोग इनडोर वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों (जैसे स्ट्रोक, निमोनिया, सांस की बीमारी और कैंसर) का शिकार बनते हैं। दुर्भाग्य से, इसी रिपोर्ट का अनुमान है कि वैश्विक स्तर पर 300 करोड़ से अधिक लोग बॉयोमास, केरोसिन या कोयले को खाना पकाने के लिए ईंधन के रूप में उपयोग करते हैं।
अपने घर में इनडोर प्रदूषण के दुष्प्रभाव को देखकर बड़ी हुई, भुवनेश्वर की एक इंजीनियर, देबश्री पाढ़ी ने उन दो समस्याओं का समाधान निकाला है, जो वायु प्रदूषण के मुख्य कारकों में से एक हैं- बॉयोमास ईंधन और पराली का जलना।
देबश्री ने द बेटर इंडिया को बताया, “बचपन में मुझे धुएं की वजह से अक्सर रसोई में जाने को नहीं मिलता था। लगभग उन सभी परिवारों का यही हाल था, जिनके पास एलपीजी कनेक्शन नहीं था। इन पारंपरिक चूल्हों से निकलने वाले धुएं ने मेरे एक रिश्तेदार के फेफड़ों को प्रभावित किया और यहाँ तक कि उनकी आँखों में भी जलन होने लगी।”
इस 24 वर्षीय इंजीनियर ने ‘अग्निस’ नामक खाना पकाने का स्टोव तैयार किया है जिससे कोई प्रदूषक तत्व नहीं निकलते हैं और यह 0.15 पीपीएम से कम कार्बन मोनोऑक्साइड का उत्सर्जन करता है। ‘अग्निस’ का एक और लाभ यह है कि इसे उपयोग करने वालों को लकड़ी के लिए जंगलों में भटकने की ज़रूरत नहीं है। सबसे अच्छी बात है कि इस एन्ड टू एन्ड कुकिंग तकनीक से खाना पकाने में सामान्य से आधा समय लगता है।
गर्मी की छुट्टियों में मिली प्रेरणा
देबश्री गर्मी की छुट्टी अक्सर ओडिशा के भद्रक स्थित अपने पुश्तैनी गाँव नामी में बिताती थीं। वहाँ उन्होंने खाना बनाने की परेशानियों को करीब से देखा था। उन्हें पता था कि इन पारम्परिक चूल्हों पर खाना बनाना किसी संघर्ष से कम नहीं। इस समस्या को हल करने का मौका उन्हें एक प्रोजेक्ट के तौर पर मिला।
“कॉलेज में तीसरे वर्ष में, हमारे विभाग ने किसी ऐसी समस्या का समाधान खोजने के लिए कहा, जिससे बड़े पैमाने पर जनसंख्या प्रभावित हो रही है। इनडोर वायु प्रदूषण एक ऐसी चीज थी जिसके बारे में मैं जानती थी और इसे करीब से देखा था। इसलिए मैं एक धुआंरहित चूल्हा बनाने को लेकर उत्साहित थी,” देबश्री ने बताया।
देबश्री ने सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, मैसूरु, कर्नाटक से अपनी इंजीनियरिंग पूरी की।
अनुसंधान, विकास और कई परीक्षणों से होकर उन्होंने एक धुआंरहित स्टोव प्रोटोटाइप बनाया। उनके प्रयासों से प्रभावित होकर, उनके कॉलेज के शिक्षकों ने उन्हें भुवनेश्वर में केंद्र सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम एंटरप्राइज इन्क्यूबेशन प्रोग्राम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया। वहाँ पर न केवल आयोजकों ने उनका प्रोटोटाइप पसंद आया बल्कि 2015 में उन्हें अपने इस प्रोटोटाइप को और संशोधित करने के लिए ट्रेनिंग भी मिली। इस प्रोग्राम के अंत में, उन्हें अपने इस इनोवेशन को प्रोडक्ट्स के तौर पर मार्किट करने के लिए 6.25 लाख रुपये की धनराशि मिली।
इन्क्यूबेशन से मिले फंड और अपने परिवार से कुछ मदद के साथ, देबश्री ने अपनी कंपनी, डीडी बायोसोल्यूशन टेक्नोलॉजी को रजिस्टर किया और एग्रो-वेस्ट क्लीन कुकिंग फ्यूल तकनीक विकसित की।
दो समस्याएं और एक हल
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के एक अध्ययन का अनुमान है कि इनडोर प्रदूषण समग्र प्रदूषण स्तरों में 22 से 52 प्रतिशत के बीच कुछ योगदान देता है। इस में सुधार के लिए, शोध में स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल खाना पकाने में करने का सुझाव दिया गया है। इस बीच, उत्तरी राज्यों में जलने वाली पराली हर सर्दियों में वायु प्रदूषण को बढ़ाती है और इसका काफी असर दिल्ली पर भी पड़ता है।
घरेलू जरूरतों और कचरे के निपटान की समस्या को ध्यान में रखते हुए, देबश्री ने सामान्य खाना पकाने के स्टोव के आकार के तीन प्रकार के बर्नर बनाए।
स्टेनलेस स्टील से बने, तीन स्टोव – नैनो, सिंगल बर्नर और डबल बर्नर अलग-अलग कीमत रेंज में उपलब्ध हैं- 2,800 से 4,500 रुपये। जबकि सिंगल और डबल बर्नर घरेलू उपयोग के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, नैनो गैस पोर्टेबल है और इसे किसी बैग में कहीं भी ले जाया जा सकता है।
तीनों स्टोव गोलियों की तरह आकार वाले एग्रो-मास पैलेट पर चलते हैं। इनके लिए पैलेट बनाने की मशीन (डीडी बायो सॉल्यूशन टेक्नोलॉजी का पेटेंट) में कृषि अवशेष, गुड़, चूना और मिट्टी का मिश्रण मिलाया जाता है। 300 किलो पैलेट को तैयार करने में मशीन को एक घंटे का समय लगता है। देबश्री ने सीएसआईआर – इंस्टीट्यूट ऑफ मिनरल्स एंड मैटेरियल्स टेक्नोलॉजी, भुवनेश्वर से इस तकनीक के लिए प्रमाण हासिल किया। यह अनोखा स्टोव 2019 में लॉन्च किया गया।
देबश्री ने सबसे पहले अपने गाँव में इस अनोखे स्टोव की बिक्री की। साथ ही, किसानों को पैलेट बनाने वाली मशीन भी किराये पर दी ताकि सभी के लिए यह फायदेमंद हो।
एक किलो पैलेट की कीमत 6 रुपए होती है, जो 50 मिनट तक जलते हैं। पैलेट बनाकर बेचने से जो भी मुनाफा हो रहा है उसे देबश्री और किसानों के बीच बांटा जाता है। चूंकि खाना पकाने की प्रक्रिया अग्निस स्टोव में दो गुना तेज है, इसलिए ग्रामीणों को पैलेट्स पर औसतन 120-150 रुपये प्रति माह खर्च करने पड़ते हैं।
स्टोव का प्रभाव
नामी गाँव की रहने वाली प्रेरणा इस बात से हैरान थी कि इस वैकल्पिक चूल्हे का उनका स्वास्थ्य के लिए सकारात्मक प्रभाव रहा है। वह द बेटर इंडिया को बतातीं हैं, “खाना बनाते समय अब मुझे खांसी बहुत ही कम होती है और मेरी आंखों में पानी नहीं जाता है।”
प्रेरणा उन ग्रामीण महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने खाना पकाने के लिए गोबर, लिग्नाइट, कोयला, केरोसिन और जलाऊ लकड़ी जैसे प्रदूषण फैलाने वाले बायोमास ईंधन का उपयोग बंद कर दिया है। इन सभी घरों में ज़ीरो स्मोक कुकिंग स्टोव-अग्निस को स्थान मिला है।
“अग्निस स्टोव पर चावल तैयार करने में केवल 5 मिनट लगते हैं और दाल के लिए 10 मिनट। हम स्वच्छ ईंधन पर खर्च करने से संकोच नहीं करते हैं क्योंकि यह सुरक्षित और प्रदूषण मुक्त है। मेरी माँ की आँखों की एलर्जी खत्म हो गई है, और हमारी रसोई में दीवारें अब धुएँ से काली नहीं होती हैं,” एक अन्य लाभार्थी, सार्थक रावत्रे बताते हैं।
अब तक मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया को देखते हुए, देबश्री का लक्ष्य अपनी तकनीक को शहरी क्षेत्रों में भी ले जाने का है।
“यह स्टोव सामुदायिक रसोई, सड़क विक्रेताओं, स्कूलों और छोटे पैमाने पर रेस्तरां के लिए अच्छा विकल्प है। हम पहले ही भुवनेश्वर में ढाबों को स्टोव बेच चुके हैं। पोर्टेबल स्टोव के लिए भी मांग बढ़ी है और उसी के लिए, हम ऐसे विकासशील संस्करणों पर काम कर रहे हैं जो शहरी जरूरतों के अनुरूप होंगे,” उन्होंने आगे कहा।
इस तरह के आविष्कार समय की जरूरत है, खासकर दक्षिण एशियाई देशों में, जहाँ बॉयोमास ईंधन और कोयले का इस्तेमाल खाना पकाने के लिए किया जाता है। यह न केवल लोगों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है बल्कि इसके चलते उपचार पर भी लोगों का खर्च कम होगा। खाना पकाने के समय में कटौती होगी और हवा को भी प्रदूषित नहीं करेगा। यक़ीनन, देबश्री का यह इनोवेशन पर्यावरण और समाज दोनों के लिए अच्छा है।
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मूल लेख: गोपी करेलिया
संपादन – जी. एन झा
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