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माँ के दर्द को देख बनाई ऐसी मशीन, जिससे मिनटों में खत्म हो सकेगा दिनभर का काम

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कहा जाता है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है और लिप्सा प्रधान (Lipsa Pradhan) के सामने वह जरूरत, अपनी माँ के दर्द को कम करने के रूप में आई। लिप्सा ओडिशा के बरगढ़ जिले के कामगाँव की रहने वाली हैं।

महुआ के फूलों को जमा करना, लिप्सा के गांव की आजीविका का मुख्य साधन है। उनकी माँ भी हर दिन महुआ चुनने जाती थीं। 

इस कड़ी में लिप्सा द बेटर इंडिया से कहती हैं, “महुआ के फूल गर्मियों में होते हैं। मेरी माँ हर दिन कड़ी धूप में महुआ चुनने जाती थीं। इसमें चार-पांच घंटे लगते थे। फिर भी, वह महुआ के सभी फूलों को चुन नहीं पाती थीं। अगले दिन तक, सभी फूल सूख जाते थे जिसे चुनना मुमकिन नहीं होता था।”

लिप्सा प्रधान

वह आगे कहती हैं, “मैं बचपन से ही माँ के इस दर्द का अनुभव करती थी और हमेशा इसे हल करने के बारे में सोचती थी। फिर, 2015 में गांव के ही स्कूल में इंस्पायर अवार्ड का आयोजन हुआ। इसे लेकर मैंने अपने विज्ञान के शिक्षक से बात किया और महुआ के फूलों को उठाने के लिए एक डिजाइन को तैयार किया।”

लिप्सा प्रधान (Lipsa Pradhan) के डिजाइन को स्कूल के बाद जिला स्तर पर भी सम्मानित किया गया। लेकिन राज्य स्तर पर वह सफल न हो सकीं। 

वह कहती हैं, “राज्य स्तर पर मेरा डिजाइन सफल नहीं हो सका। लेकिन, प्रतियोगिता में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के कुछ अधिकारी आए थे। उन्होंने सभी के डिजाइन के बारे में जानकारी ली। बाद में, उन्हें मेरा डिजाइन काफी पसंद आया और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम इग्नाइट अवार्ड-2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों सम्मानित किया गया।”

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फिलहाल स्थानीय वीमेंस कॉलेज से बीएससी फिजिक्स की पढ़ाई कर रही लिप्सा, उस वक्त नौवीं क्लास में थीं।

वह कहती हैं, “महुआ के फूल काफी मुलायम होते हैं। इसलिए मैं इसे उठाने का कोई आसान तरीका अपनाना चाहती थी। फिर मैंने एक ऐसे प्रोटोटाइप को बनाया, जिसे सिर्फ जमीन पर घुमाने से महुआ अपने-आप जमा हो जाएगा।”

अपने माता-पिता के साथ लिप्सा

21 वर्षीया लिप्सा ने अपने इस प्रोटोटाइप को “ए डिवाइस टू कलेक्ट महुआ फ्लॉवर फ्रॉम ग्राउंड” नाम दिया है। 

इस मशीन का डिजाइन काफी आसान है। इसके हैंडल में एक छोटा सा चक्का लगा है और इसके आगे सिलेंडर जैसे एक और चक्के में लोहे के कई कांटे लगे हैं। इसे जमीन पर घुमाने के बाद, महुआ के फूल उसमें फंस जाते हैं, जिसे जमा करने के लिए आगे प्लेट लगाए गए हैं।

लिप्सा कहती हैं, “एक बार घुमाने के बाद इसमें 200 से अधिक महुआ जमा हो सकते हैं और जरूरत के हिसाब से सिलेंडर के आकार को बढ़ाया भी जा सकता है। इस तरह, महुआ के फूल को चुनने में पहले जहां पूरा दिन बर्बाद होता था। उसमें अब एक घंटे से भी कम समय लगते हैं।”

वह कहती हैं, “पहले महिलाओं को बैठ कर महुआ चुनना पड़ता था। जिससे महिलाओं को घुटने और पीठ में काफी दर्द होती थी। लेकिन अब उन्हें बैठे की जरूरत नहीं। इस मशीन को खड़े-खड़े आसानी से चलाया जा सकता है।”

लिप्सा के इस इनोवेशन को लेकर उनकी माँ कहती हैं, “मैं अपनी बेटी के इस इनोवेशन को लेकर काफी खुश हूं। इससे महुआ के फूलों को उठाने में लोगों को काफी मदद मिल सकती है। इससे लोगों को न सिर्फ शारीरिक थकान से राहत मिलेगी, बल्कि घंटों धूप में काम भी नहीं करना होगा।”

वह आगे कहती हैं, “मैं इस मशीन को वर्षों से इस्तेमाल कर रही हूं। हालांकि यह अभी सिर्फ प्रोटोटाइप है। यदि इसे बड़े पैमाने पर बनाई जाए, तो लोगों को इसका वास्तविक लाभ मिल सकता है।”

लिप्सा प्रधान (Lipsa Pradhan) बताती हैं कि पहले प्रोटोटाइप को बनाने में करीब छह हजार रुपए खर्च हुए। लेकिन यदि इसे बड़े पैमाने पर बनाया जाए, तो यह लोगों को तीन से चार हजार में मिल सकता है।

वह कहती हैं, “महुआ औषधीय गुणों से भरपूर है और आज भारत में उड़ीसा के अलावा बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन होता है। यदि इस मशीन को बड़े पैमाने पर बनाया जाए, तो महुआ चुनने वाले लोगों की जिंदगी काफी आसान हो सकती है।”

वह कहती हैं कि यदि किसानों को महुआ चुनने में आसानी होगी, तो इसे बाजार में भी  और अधिक कमर्शियलाइज करने में मदद मिलेगी।

वह अंत में कहती हैं, “आज लोगों को, खास कर युवाओं को अपने आस-पास की चीजों को महसूस करने की जरूरत है। इससे उन्हें गांवों में रह रहे लोगों के जीवन को आसान बनाने की प्रेरणा मिलेगी और इनोवेशन के नए-नए आइडिया आएंगे। मैं अभी भी सोचती रहती हूं कि और ऐसे क्या काम कर सकते हैं, जिससे उनकी मुश्किलें कम हो जाए।”

आप लिप्सा से pradhanlipsa8@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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