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19 साल की महक ने बनाया प्राकृतिक फ्रिज़, जिसमें बिना बिजली के भी ताज़ा रहेंगी फल-सब्जियां

Innovation natural fridge

हमारे देश में फसलों का उत्पादन तो बड़ी मात्रा में होता है लेकिन कटाई के बाद इन्हें सुरक्षित रखना  बड़ी समस्या है। संयुक्त राष्ट्र (UN) के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 14 बिलियन US$ के मूल्य की फसलें बर्बाद हो जाती हैं। ऐसे में बर्बाद होती फसलों को सुरक्षित रखने का सबसे आसान तरीका है बढ़िया कोल्डस्टोरेज, लेकिन बड़े और आधुनिक कोल्डस्टोरेज छोटे गांवों में मौजूद नहीं होते। वहीं शहरों के कोल्ड स्टोरेज में एयर कूलर और बिजली की भारी खपत होती है। इसी समस्या का एक सस्टेनेबल उपाय खोज निकाला है 19 साल की महक परवेज़ ने। उन्होंने बनाया है एक प्राकृतिक फ्रिज़!

उनका आविष्कार पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है। यह एक ग्रिड-लेस तकनीक है, जिसका नाम SunHarvested CoolRooms है। महक के अनुसार इस तकनीक से पारंपरिक भंडारण की तुलना में तीन गुना अधिक समय तक सब्जियां ताजा रहती हैं।  

 

किसानों की बर्बाद होती फसल को बचाने के लिए किया आविष्कार

चेन्नई में पली-बढ़ी महक अक्सर अपनी माँ के दो एकड़ के खेत में फसल को बर्बाद होते देखती थीं। तब उन्होंने, चेन्नई के गर्म और ठंडे वातावरण से प्रेरणा लेते हुए एक छोटा सा प्रयोग करने का फैसला किया।  

उन्होंने बताया कि चेन्नई में दिन के समय तापमान 45 डिग्री होता है जबकि शाम को हवा सुखद और तापमान ठंडा हो जाता है। थोड़ा पढ़ने के बाद उन्हें पता चला कि यह भूमि और समुद्र के बीच Convection Currents के कारण होता है। ठंडी हवा की इस तकनीक के बारे में जानने के बाद उन्होंने इससे किसानों की मदद करने का फैसला किया।  

उन्होंने ड्राफ्ट ट्यूब (Draft Tube), सीमेंट का कमरा और चिमनी के ज़रिए वही तरीका आजमाया। तीन अलग-अलग प्रोटोटाइप बनाने के बाद आख़िरकार उन्हें सफलता मिल ही गई।  

उनके ड्राफ्ट ट्यूब का हर हिस्सा चेन्नई में ही बनाया गया था फिर इन्हें एक साथ जोड़ा गया। चूंकि सनहार्वेस्टेड कूलरूम तकनीक स्टोरेज का एक सस्टेनेबल विकल्प है इसलिए यह रेफ्रिजरेटर से निकलने वाली गैस को कम करने में भी मदद करती है। 

महक के इस आविष्कार ने ‘ईको-इनोवेशन’ श्रेणी के तहत 2023 का लेक्सस डिज़ाइन अवार्ड भी जीता है। उनके बनाएं प्राकृतिक फ्रिज़ आविष्कार को को अगर बड़े पैमाने में उपयोग किया जाए तो खेती से निकलने वाले वेस्ट को बेहद कम किया जा सकता है और वह भी पर्यावरण को नुकसान पहुचाएं बिना। 

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