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दो दोस्तों ने मिलकर बनाई ऐसी किट, एक पल में हो जाएगा दूध का दूध और पानी का पानी!

Two Friends Invented low Cost Milk Adulteration Kit
Milk Adulteration Kit: दो दोस्तों ने मिलकर बनाई ऐसी किट, पल में हो जाएगा दूध का दूध और पानी का पानी

दूध में मिलावट (Milk Adulteration) की समस्या आम है। लोगों को मिलावटी दूध के कारण किडनी, लीवर से संबंधित बीमारियों का सामना करना पड़ता है और इससे बच्चों के विकास पर भी काफी बुरा असर पड़ता है।

सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में सख्ती दिखाई है और दूध में मिलावट की समस्या के रोकथाम के लिए उम्रकैद की सजा के लिए सिफारिश की है।

लेकिन आज हम आपको ऐसे दो दोस्तों की कहानी बताने जा रहे हैं, जिनके इनोवेशन से न सिर्फ कुछ ही पलों में दूध की टेस्टिंग की जा सकती है, बल्कि यह काफी सस्ता भी है।

दरअसल यह कहानी है करनाल में ‘डेलमोस रिसर्च’ नाम से अपनी कंपनी चलाने वाले बब्बर सिंह और मनोज मौर्य की। दोनों ने करनाल स्थित  नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट से डेयरी टेक्नोलॉजी में डिग्री हासिल करने के बाद मदर डेयरी, अमूल डेयरी जैसे कई संस्थानों में काम किया और कुछ अलग करने की चाहत में 2017 में ‘डेलमोस रिसर्च’ की शुरुआत की।

इसके तहत वह ‘डेल स्ट्रिप्स’ (Del Strips) नाम से मिल्क टेस्टिंग किट बनाते हैं। उनकी यह तकनीक इतनी आसान है कि कोई भी बिना किसी स्किल के आसानी से दूध का दूध और पानी का पानी कर सकता है। वह भी सिर्फ 5 रुपए खर्च कर। 

कैसे मिली प्रेरणा

इसे लेकर मनोज ने द बेटर इंडिया को बताया, “मैं और बब्बर, मदर डेयरी में एक साथ काम कर रहे थे। इसी दौरान हमने कुछ अपना शुरू करने का फैसला किया। हम पहले खास तरीके से पिज्जा कॉर्नर शुरू करना चाहते थे। इसे लेकर हमने एनडीआरआई के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉ. राजन शर्मा से बात की, तो उन्होंने बताया कि प्रोसेसिंग सिस्टम का पेटेंट हासिल नहीं हो सकता है।”

वह आगे बताते हैं, “हम कुछ ऐसा शुरू करना चाहते थे, जिसका हमें पेटेंट मिल जाए और कोई हमारे मॉडल को कॉपी नहीं कर पाए। फिर, डॉ. राजन शर्मा ने ही हमें मिल्क एडल्ट्रेशन किट बनाने का सुझाव दिया। हमने हमेशा मिल्क प्रोक्योरमेंट में ही काम किया था और हमें मिलावट की समस्या का अंदाजा पहले से था। उनके के इस आइडिया को सुनते ही हमने तय कर लिया कि हम इसी दिशा में काम करेंगे।”

वह बताते हैं कि उन्होंने इसे लेकर फरवरी 2016 में काम करना शुरू कर दिया और सितंबर 2017 से उनकी कंपनी शुरू हो गई। इस दौरान अपने प्रोफेसर का पूरा साथ मिला।

वह कहते हैं, “प्रोफेसर ने हमें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से लेकर बिजनेस शुरू करने तक में काफी मदद की। हमारे पास काम करने के लिए कोई जगह नहीं थी, तो उन्होंने अपने लैब में हमें जगह दी। हमें दिन-रात, जब कभी भी उनकी जरूरत थी। वे हमारे साथ खड़े रहे। हम उनकी मदद को कभी भूल नहीं सकते हैं।”

किस मकसद के साथ शुरू की 

मनोज कहते हैं कि दूध की टेस्टिंग तीन तरीके से होती है –

  1. मशीन टेस्टिंग
  2. केमिकल टेस्टिंग
  3. रेपिड टेस्टिंग

वह बताते हैं कि दूध की जांच करने वाली मशीनों की कीमत 5 लाख से 80 लाख तक होती हैं। यही कारण है कि इसे सिर्फ चुनिंदा लैब में ही लगाए जाते हैं। वहीं, दूध जांच के सबसे पुराने तरीकों में एक केमिकल टेस्टिंग के लिए काफी स्किल की जरूरत होती है और इसे हर कोई नहीं कर सकता है। इसलिए उन्होंने रैपिड टेस्टिंग किट को चुना।

वह कहते हैं, “ग्राहक स्तर पर दूध में मिलावट (Milk Adulteration) की जांच नहीं होने का फायदा, कुछ मिलावटखोर आसानी से उठा लेते हैं। इसका कंपनियों के साथ-साथ किसानों को भी काफी नुकसान होता है।”

वह कहते हैं, “इसलिए हमें एक ऐसी तकनीक चाहिए, जो न सिर्फ सस्ता हो, बल्कि कोई भी बिना किसी दिक्कत के इस्तेमाल कर पाए। हमारी तकनीक इन उम्मीदों पर खरा उतरती है।”

क्या है तकनीक

इसे लेकर मूल रूप से गुड़गांव के रहने वाले बब्बर सिंह बताते हैं, “हमारे स्ट्रिप में एंजाइम और अलग-अलग तरहे के केमिकल इस्तेमाल में जाते हैं। टेस्टिंग के दौरान मिलावटी तत्व इससे रिएक्ट कर, एक खास तरीके के रंग को जन्म देते हैं।”

वह कहते हैं, “रंग के इंटेंसिटी को, एक कलर चार्ट से मिलाया जाता है। जिससे पता चल जाता है कि दूध में कितने परसेंट की मिलावट है। आमतौर पर जो केमिकल टेस्टिंग होती है, उसमें सिर्फ यह पता चलता है कि मिलावट है या नहीं। लेकिन हमारी तकनीक में 0.005 परसेंट मिलावट को भी आसानी से पता लगाया जा सकता है।”

वह बताते हैं कि स्ट्रिप पीले रंग का होता है और यदि दूध में डालने के बाद इसका रंग नीला हो जाए, तो लोगों को समझ जाना चाहिए कि दूध में मिलावट (Milk Adulteration) है। यदि रंग न बदले तो कोई दिक्कत नहीं। वह कहते हैं कि इस प्रक्रिया में 5-10 सेकेंड से लेकर ज्यादा से ज्यादा छह मिनट लगते हैं।

शुरुआती दिनों में उनके इस स्ट्रिप किट की सेल्फ लाइफ बस 15-20 दिन थी। लेकिन अब छह महीने से अधिक हैं।

कितना होता है खर्च

मनोज कहते हैं कि आज दूध में नमक, यूरिया, मेल्टोडेक्सट्रिन, स्टार्च, चीनी, ग्लूकोच, आटा जैसी कई चीजें मिला दी जाती हैं। यदि शुरुआती जांच में इसकी पकड़ हो गई, तो किसानों को नुकसान होता है। नहीं तो कंपनियों को।

वह कहते हैं कि उनका ग्राहकों और कंपनियों के लिए अलग-अलग पैक हैं। ग्राहकों के लिए उनके पैक जहां 20 रुपए में मिलते हैं, वहीं कंपनियों के लिए पैक की कीमत 3250 रुपए है।

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वह कहते हैं, “ग्राहकों के लिए हमने चीजों को काफी आसान रखने की कोशिश की है। इसमें एक ही स्ट्रिप में चार तरह के टेस्ट हो सकते हैं। इस तरह एक टेस्ट की कीमत 5 रुपए पड़ती है। वहीं, कंपनियों के लिए मिलने वाले किट में 600 स्ट्रिप्स होते हैं। इस तरह, कंपनियों को एक टेस्ट के लिए करीब 5.5 रुपए खर्च करने पड़ते हैं।”

वह बताते हैं कि कंपनियों के लिए दूध में नमक, चीनी, यूरिया जैसी अलग-अलग मिलावटी चीजों की जांच के लिए अलग-अलग स्ट्रिप हैं। उनका मानना है कि ग्राहकों को दूध की टेस्टिंग हर दिन करने की जरूरत नहीं है। इसे बीच-बीच में करते रहने से मिलावटखोरों के अंदर एक डर रहता है और वे इससे बचते हैं। 

कितना है दायरा

मनोज बताते हैं, “आज हमारा बिजनेस उत्तर-पूर्व भारत को छोड़ कर पूरे देश में है। वैसे अब असम में भी हमारे टेस्टिंग कीट जाते हैं। हमारे बी टू बी और बी टू बी टू सी, 650 से अधिक कस्टमर है। इसके अलावा हमारे पूरे देश में 30 से अधिक डिस्ट्रीब्यूटर्स भी हैं।”

मनोज और बब्बर ने अपने इस बिजनेस को करीब दो लाख रुपए से शुरू किया था और आज उनका टर्नओवर करीब 5 करोड़ रुपए है और उन्होंने अपने किट को सैम्पल के तौर पर अमेरिका भी भेजा है।

अपने पूरे काम को संभालने के लिए उन्होंने 20 लोगों को नौकरी पर भी रखा है।

पहले भी बिजनेस में हाथ आजमा चुके थे मनोज

मनोज बताते हैं, “मैंने 2011 में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, कई कंपनियों में काम किया। लेकिन मैंने 2014 में अपनी नौकरी छोड़ उत्तर प्रदेश स्थित अपने मूल शहर मिर्जापुर में मिल्क कलेक्शन का बिजनेस शुरू किया।”

वह कहते हैं, “मिर्जापुर एक पिछड़ा जिला है और वहां मिल्क कलेक्शन की कोई खास सुविधा नहीं है। इसलिए मुझे लगा कि यहां कुछ किया जा सकता है। इसी सोच के तहत मैंने इसे शुरू किया। बिजनेस ने जल्द ही अच्छी रफ्तार पकड़ ली और हर दिन 10 हजार लीटर दूध का कलेक्शन होने लगा।”

मनोज किसानों से ऊंची दर पर दूध खरीदते थे। वह कहते हैं, “उस समय कंपनियां किसानों से 28 रुपए प्रति लीटर ही दूध खरीदती थी। लेकिन हम 31.5 रुपए खरीदते थे। हम दूध को आगरा में 35 रुपए प्रति लीटर बेचते थे। सबकुछ अच्छा चल रहा था और हम पूरी पारदर्शिता के साथ काम कर रहे थे।”

वह कहते हैं, “लेकिन तभी नीतियों में बदलाव हुआ और खरीदने और बेचने के दाम में कोई फर्क नहीं रह गया और तीन महीने में हमारा बिजनेस बंद हो गया। इससे मुझे 10-12 लाख रुपए का नुकसान हुआ। जिसे मैंने अपने करीबियों से मांगा था। यह मेरे लिए काफी मुश्किल समय था। हारकर मैंने नौकरी फिर से शुरू कर दी।”

आईआईटी कानपुर से मिली फंडिंग

इसे लेकर बब्बर बताते है, “2018 में आइआइटी कानपुर और विलग्रो इनोवेशन फाउंडेशन द्वारा आयोजित iPitch कार्यक्रम में हमें टॉप-10 सोशल इनोवेशन स्टार्टअप में चुना गया और पुरस्कार के रूप में 25 लाख रुपए मिले। जिससे हमें अपने बिजनेस को एक नया आयाम देने में मदद मिली। इतना ही नहीं, हमें फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित ‘ईट राइट स्टार्टअप अवार्ड्स’ में सर्वश्रेष्ठ स्टार्टअप का पुरस्कार भी मिला।”

क्या है भविष्य की योजना

मनोज कहते हैं, “भारत में बड़े मवेशीपालकों की बात छोड़ दी जाए, तो अधिकांश लोगों के पास एक या दो मवेशी होते हैं। जिससे हर दिन करीब पांच-सात लीटर दूध होते हैं। इतने दूध से तो उनके परिवार की जरूरतें भी पूरी नहीं पाती हैं। फिर भी वे अपने और अपने बच्चों के हिस्से का दूध बेचते हैं, ताकि मवेशियों को खिलाने के पैसे मिल जाएं।”

वह कहते हैं, “लेकिन कुछ लोग सिस्टम में कमियों का फायदा उठाना चाहते हैं, जिससे सभी को काफी नुकसान होता है। इसलिए वह अपने इनोवेशन को सभी तक पहुंचाना चाहते हैं। जिस दिन लोगों ने खुद से दूध को जांचना शुरू कर दिया, सबकुछ ठीक हो जाएगा। इसके बाद, न किसी फूड इंस्पेक्टर की जरूरत होगी और न ही कानूनी पचड़े की।”

वह कहते हैं कि एकबार इंडस्ट्री में मजबूती हासिल कर लेने के बाद, वे सीधे ग्राहकों तक पहुंचने की कोशिश करेंगे। उनके अगले तीन साल का बजट करीब 15 करोड़ रुपए है। 

यदि आप डेलमोस रिसर्च के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें या फिर आप कंपनी से 07082261082 पर भी संपर्क कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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