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जलवायु परिवर्तन से नहीं होगा अब किसानों को नुकसान, मदद करेगी ये ‘फसल’

किसान सुमंत प्रसाद ने अपने खेतों में गोभी लगाई थी। फसल अच्छी थी, इसलिए उन्हें उम्मीद थी कि अच्छी कमाई होगी। लेकिन, होली के पहले हुई बिन मौसम की बरसात और ओले गिरने से उनकी पूरी फसल खराब हो गई। मुनाफा तो दूर लागत तक नहीं निकल पाया।

मार्च, 2020 के पहले 15 दिनों में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश और यूपी से लेकर कई राज्यों में बहुत ज्यादा बारिश और ओले गिरे। जिससे गेहूँ, सरसों और सब्जियों की फसलें बर्बाद हो गईं। सुमंत जैसे करोड़ों किसान होंगे जो जलवायु परिवर्तन की वजह से आई मौसम की अनिश्चितता की मार झेल रहें हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ऐसा कुछ नहीं है जो किसानों के नुकसान को कम कर सके।

हम मौसम तो नहीं बदल सकते, उस पर किसी का वश नहीं है। लेकिन, मौसम के हिसाब से काम करके किसान नुकसान को कम कर सकते हैं। मौसम विभाग समय-समय पर लोगों को चेतावनी के जरिए मौसम की जानकारी देता है, जो ज्यादातर सही भी होती है। लेकिन, बंगलुरु के दो इंजीनियर दोस्त इस काम में दो कदम आगे बढ़ गए हैं।

पेशे से इंजीनियर शैलेन्द्र तिवारी और आनंद कुमार ने एक स्टार्टअप शुरू किया जो किसानों को उनके इलाके की मौसम की जानकारी मोबाइल तक पहुंचाता है। जिसकी सहायता से किसानों को पता चल जाता है कि आने वाले 4-5 दिनों में उनके खेत के आसपास का मौसम कैसा होगा, बारिश होगी या नहीं, हवा तो नहीं चलने वाली, वगैरह-वगैरह।

‘फसल’ एक उपकरण है, जो खेतों में लगाया जाता है, उसमें लगे स्पेशल सेंसर, उस इलाके का मौसम, जमीन का तापमान, मिट्टी में नमी, सिंचाई की ज़रूरत आदि की जानकारी देते हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या तकनीकी के जरिए यह उपकरण किसानों की मदद करता है।

शैलेन्द्र, फसल उपकरण की सहायता से पिछले एक साल में ही सब्जियों और फलों की खेती करने वाले किसानों के लाखों रुपए बचा चुके हैं। शैलेंद्र बताते हैं कि महाराष्ट्र के सांगली और नाशिक जिले में पिछले साल सैकड़ों किसानों के बाग बारिश से बर्बाद हो गए थे। लेकिन, वो किसान बच गए थे जिन्होंने मौसम के अनुसार काम किए थे। उनमें कई किसान ऐसे थे जिनके बागों में यह उपकरण लगा था।


इंजीनियरिंग छोड़कर, खेती से जुड़े उपकरण बनाने का आइडिया कैसे आया?

इस सवाल पर आनंद कहते हैं,  “हम दोनों लोग ही फार्मिंग बैकग्राउंड से हैं। बंगलुरु में जॉब करते हुए आसपास खेती करने की भी सोच रहे थे। लेकिन जब रिसर्च करके इस फील्ड में आये, तो पता चला कि एग्रीकल्चर में पहले से ही बहुत दिक्कतें हैं। हमारे पास इतनी एडवांस टेक्नोलॉजी है, लेकिन इसका फायदा फार्मिंग इंडस्ट्री या फार्मर्स की हालत सुधारने में नहीं हो रहा है।”

शैलेंद्र बताते हैं कि उन दोनों ने कई किसानों की रोज़ाना गतिविधियों को नोट किया। उन्होंने पाया कि बहुत सारे किसान सिंचाई से जुड़े फैसले, कीटनाशक छिड़काव, या कीट पतंगों से राहत पाने के तरीकों का इस्तेमाल सिर्फ अनुमान लगाकर करते हैं। वे कई बार ऐसे वक्त पर सिंचाई कर देते हैं जब दूसरे दिन बारिश होने वाली होती है। ऐसे में ज्यादा पानी भर जाने से उनकी फसलें खराब हो जातीं हैं। किसान ज्यादा फर्टीलाइजर और कीटनाशक भी डालते हैं, जिसकी ज़रूरत कई बार नहीं होती क्योंकि उनके पास कोई डाटा नहीं होता या वो ज्यादा लिखापढ़ी नहीं करते। फसल ऐप में वो सारे सिस्टम अपडेटेड हैं, जिससे उन्हें पता चलता रहता है कि फसल की डिमांड क्या है और मौसम कैसा रहने वाला है।

‘फसल’ के बारे में बताते हुए शैलेंद्र कहते हैं, “फसल, फार्म स्पेसिफिक, क्रॉप स्पेसिफिक है। यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और टेक्नोलॉजी के जरिये खेत और वातावरण का सारा डाटा जमा कर सकता है, और मौसम में होने वाले किसी भी बदलाव का हफ्ते भर पहले का पूर्वानुमान बताता है। इससे किसान पहले से अपनी फसल को व्यवस्थित कर सकते हैं।

वह कहते हैं अगर किसानों को पता चल जाए कि इस हफ्ते, मंगलवार से लेकर बृहस्पतिवार तक बारिश होने की संभावना है तो फिर वे अपने खेत में सोमवार या फिर मंगलवार को सिंचाई कर सकते हैं। उनके मुताबिक ‘फसल’ के इस्तेमाल से सिंचाई में होने वाले खर्च में 20-25% की बचत होती है। वहीं, 8-20% की बचत कीटनाशकों के इस्तेमाल में भी होती है।

आनंद IIT-B (आईआईटी बॉम्बे) से पढ़े हैं और कई बड़ी कंपनियों में काम कर चुके हैं। वह बताते हैं कि उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती ‘फसल’ की डिजाइनिंग या फंक्शनिंग नहीं थी, बल्कि किसानों को यकीन दिलाना था कि यह डिवाइस काम करेगी।

“भारत जैसे देश में जहां खेती-किसानी, अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा हैं वहां, खेती में अभी भी टेक्नोलॉजी इतनी विकसित नहीं है। किसानों में जागरूकता की कमी है। हालांकि एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो कि व्हाट्सएप्प और यूट्यूब से देख कर सीखता है और सीखाता भी है, लेकिन इन चीज़ों की रफ्तार बहुत कम है।” – आनंद

आनंद बताते हैं कि ऐसे में जब किसान कोई गलत फैसला लेता है तो उसे कई नुकसान होते हैं। जमीन या तालाब के पानी का व्यर्थ इस्तेमाल होता है, ज्यादा पेस्टीसाइड और फर्टीलाइजर डालने से अनाज की गुणवत्ता खराब होती है, साथ ही खेत की मिट्टी भी खराब होने लगती है। ऐसे में खेती के लिए ज़रूरी है कि सही समय पर और सही तरीके से खेती से जुड़ी प्रक्रियाएं हों।

आनंद और शैलेन्द्र बताते हैं कि उन्हें अपने परिवार और दोस्तों का पूरा सपोर्ट मिल रहा है। शुरुआती दौर में जब उन्होंने स्टार्टअप शुरू किया था, तब अपनी टीम को देने के लिए उनके पास सैलरी भी नहीं थी। परिवार और दोस्तों के सहयोग से वे इस दिशा में सफल हो रहे हैं। फिलहाल उनका उपकरण महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में लगा है, जहाँ वो नियमित डाटा भेजते हैं। शैलेंद्र कहते हैं,

“हमने ये काम इसलिए भी किया क्योंकि हम ये समझते है कि हमारा देश तभी तरक्की करेगा जब किसान प्रगतिशील होंगे और तकनीकी उनका साथ देगी।”

‘फसल’ कैसे काम करता है?

इस बारे में शैलेंद्र बताते हैं, “सोलर से चलने वाले इस डिवाइस में कई सेंसर लगे होते हैं। एक सेंसर जमीन में होता है तो दूसरा पौधों की जड़ों के पास होता है और एक पत्तियों के पास भी होता है। जमीन वाला सेंसर बताता है कि खेत में पानी कम है तो सिंचाई हो, जड़ वाला बताता है कि कोई बैक्टिरिया, कीड़ा या फंगस तो नहीं लगने वाला, जबकि पत्तियों वाला बताता है कि बाहर का तापमान पौधे पर कैसा असर डाल रहा है। इसी तरह ये उपकरण बताता है कि हवा कैसे और किस ओर चल रही है। ये सब डाटा, तकनीकी के जरिए हमारे सर्वर में आता है, और उस किसान के रजिस्टर्ड मोबाइल में पहुंच जाता है। जिसके बाद किसानों को ये पता चलता है कि उन्हें खेत में अब क्या करने की ज़रूरत है। ”

इसके साथ ही ‘फसल’ से जुड़े एक्सपर्ट भी किसानों को सलाह देते हैं। किसानों को हफ्ते में दो बार मैसेज कर पूरी जानकारी दी जाती है। इसके बदले किसानों से मामूली फीस लिया जाता है। लेकिन, ये किसान के खर्च और लाभ की तुलना में काफी कम होती है। इन दोस्तों का अविष्कार किसानी जगत में क्रांति ला सकता है, ज़रूरत है बस सही सपोर्ट और किसानों के बीच इसकी जागरूकता फैलाने की।

अगर आप भी ये उपकरण लगाना चाहते हैं, कोई जानकारी लेना चाहते हैं या किसी प्रकार की मदद करना चाहते हैं तो इमेल, फेसबुक और वेबसाइट से जुड़ सकते हैं। आप चाहें तो इन नंबरों पर भी कॉल कर सकते हैं – 08299853713/ 08197200535

संपादन – अर्चना गुप्ता


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