जैसे-जैसे देश में कोविड-19 के मरीज़ों की संख्या बढ़ी, अस्पतालों में बेड की कमी होने लगी। एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रति 1000 व्यक्ति सिर्फ 0.5 बेड हैं। बेड की यह कमी मरीज़ों के लिए बहुत खतरनाक साबित हुई क्योंकि कई मरीज़ों को अस्पतालों ने वापस लौटा दिया।
आए दिन, सोशल मीडिया पर पीड़ित लोग अपनी कहानी बता रहे हैं। लेकिन कहते हैं न कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। अगर समस्या है तो उसका समाधान भी है। बेड की कमियों से अस्पतालों को उभारने के लिए ऐसा ही एक समाधान दिया है IIT मद्रास द्वारा इन्क्यूबेटेड एक स्टार्टअप ने। इस स्टार्टअप ने एक ऐसा हॉस्पिटल यूनिट डिज़ाइन किया है जिसे फोल्ड किया जा सकता है और कहीं भी लाया ले जाया सकता है।
ख़ास बात है कि इस यूनिट को चार लोग मिलकर दो घंटे के अन्दर कहीं भी सेट-अप कर सकते हैं। इसका नाम मेडीकैब (MediCAB) है।
इस इनोवेटिव आइडिया को हकीकत बनाने वाले स्टार्ट-अप का नाम है मोडयुल्स हाउसिंग सोल्यूशन। यह IIT मद्रास के एक पूर्व छात्र का स्टार्टअप है। कोरोना काल में दूरगामी क्षेत्रों के लिए यह बहुत ही बेहतर साधन साबित हो सकता है।
सीईओ श्रीराम रविचंद्रन बताते हैं कि यह फोल्डेबल पोर्टेबल अस्पताल चार जोन में बना है जिसमें एक डॉक्टर का कमरा, एक आइसोलेशन रूम, एक मेडिकल रूम / वार्ड और एक ICU शामिल हैं। महामारी के बाद इन अस्पतालों को ग्रामीण क्षेत्रों में माइक्रो-क्लिनिक के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकेगा।
इसे बनाने की लागत लगभग 16 लाख रुपये हैं जिसमें निर्माण के साथ ट्रांसपोर्टेशन का भी खर्च शामिल है। पहली यूनिट उन्होंने अभी केरल के वायनाड जिले के वरादूर में लगाई है, जिसमें 15 बेड हैं। वहां पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के साथ ही इस अस्पताल को लगाया गया है। यहाँ पर उन मरीज़ों को रखा जा सकता है जिनका कोविड-19 टेस्ट पॉजिटिव है लेकिन उनकी हालात बहुत गंभीर नहीं है।
वह आगे कहते हैं कि अभी पायलट प्रोजेक्ट केरल में शुरू किया गया है। वायनाड के बाद उन्होंने तमिलनाडु के भी एक प्राइवेट अस्पताल के लिए 30-बेड यूनिट बनाई है। पायलट प्रोजेक्ट के बाद ही वह आगे की योजना पर काम कर पाएंगे।
मेडीकैब में 4 जोन डिज़ाइन किए गए हैं:
जोन 1: यह स्वास्थ्य कर्मियों के लिए है खासतौर पर डॉक्टर और नर्सों के लिए। ताकि उन्हें अस्पताल से घर न जाना पड़े। अगर कोरोना वायरस से जूझ रहे मरीज़ों के इलाज़ के बाद वह अपने घर जाएंगे तो संक्रमण का खतरा ज्यादा बढ़ेगा। मेडिकल एक्सपर्ट के सुझाव के तहत सबसे अच्छा यही है कि डॉक्टर और नर्स मेडिकल यूनिट में ही रहें। इसलिए इस ज़ोन में रेस्टरूम और चेंजरूम आदि बनाए गए हैं।
जोन 2: यहाँ पर डॉक्टर मरीज़ों का चेक-अप करेंगे और फिर उन्हें टेस्ट के रिजल्ट आने तक रखा जा सकता है। यहाँ पर मरीज़ों को 5-10 दिन तक निगरानी में भी रखा जा सकता है। एक कमरे में एक मरीज़ आराम से रह सकता है।
जोन 3: यहाँ पर मरीज़ों को कोविड-19 टेस्ट पॉजिटिव आने पर रखा जाता है। वायनाड में जो यूनिट है वह जोन 3 में आती है। यह किसी मेडिकल वार्ड की तरह है। 800 स्क्वायर फीट में डिज़ाइन इस वार्ड में सभी ज़रूरी मेडिकल उपकरण व अन्य चीजें हैं। कई बार मरीजों को सिर्फ आइसोलेशन में रखना होता है। श्रीराम कहते हैं कि इसमें 10-15 रेस्टरूम बनाए गए हैं जिनमें लोगों को रखा जाता है। इसमें अंदर एक पैंट्री है और टीवी आदि की व्यवस्था भी की गई है।
जोन 4: यह दो बेड या फिर सिंगल बेड वाली आईसीयू यूनिट है जिसमें जरूरत पड़ने पर ऑक्सीजन या फिर वेंटीलेटर सपोर्ट दिया जा सकता है। इस फैसिलिटी की मेडिकल वार्ड में ज़रूरत नहीं होती क्योंकि हर एक मरीज़ की हालात गंभीर नहीं है।
जोन 2 से 4 तक को ऐसे डिज़ाइन किया गया है कि अंदर से हवा बाहर न जाए क्योंकि कुछ दिनों पहले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पुष्टि की है कि कोरोना वायरस हवा से फैलता है। इसलिए इस बात को ध्यान में रखा गया है। श्रीराम आगे कहते हैं, “किसी भी महामारी से लड़ने के लिए ज़रूरी है कि हमारे पास बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएं हों। शहरों में तो फिर भी यह सुविधा है लेकिन गांवों में नहीं।”
उम्मीद है कि यह पायलट प्रोजेक्ट सफल रहे और देश के हर एक कोने तक इस सुविधा को पहुँचाया जा सके।
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