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रिक्शा चालक ने एक इनोवेशन से खड़ा किया अपना अंतरराष्ट्रीय कारोबार!

रियाणा के यमुनानगर जिले में दामला गाँव के रहने वाले धर्मबीर कम्बोज (Dharambir Kamboj) ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन उनकी बनाई मशीन की मांग भारत से आगे दक्षिण अफ्रीका, केन्या और जापान जैसे देश में भी होगी। उनके परिवार, दोस्त-रिश्तेदारों को भी अंदाजा नहीं था कि स्कूल में कई बार फेल होकर जैसे-तैसे दसवीं पास करने वाले धर्मबीर (Dharambir Kamboj) का नाम आविष्कार करने वालों की फ़ेहरिस्त में शामिल होगा।

पर कहते हैं न, ‘जहाँ चाह, वहां राह’ और ऐसा ही कुछ उनके साथ भी हुआ। घर की आर्थिक तंगी और बड़े परिवार की ज़िम्मेदारी ने कभी भी धर्मबीर (Dharambir Kamboj) को यह सोचने का वक़्त ही नहीं दिया कि वे जीवन में कुछ कर नहीं सकते। बल्कि वह तो स्कूल में पढ़ते हुए भी पैसे कमाने का कोई न कोई जुगाड़ निकाल लेते थे।

कभी आटा पीसने का काम किया तो कभी सरसों का तेल बेचने का। घर चलाने की यह जद्दोजहद उन्हें दिल्ली ले गई। धर्मबीर (Dharambir Kamboj) बताते हैं कि उनकी बेटी सिर्फ़ 3 दिन की थी, जब वे दिल्ली के लिए निकले। आर्थिक तंगी इतनी थी कि गाँव से दिल्ली जाते वक़्त उनकी जेब में सिर्फ़ 70 रुपये थे, जिसमें से 35 रुपये किराए में खर्च हो गए। “मैंने दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरते ही काम की तलाश शुरू कर दी थी। कड़ाके की ठंड थी, न रहने का ठिकाना था और न ही खाने-पीने का। स्टेशन से बाहर निकल वहां लोगों से पूछा कि कोई काम मिलेगा क्या? तो किसी ने रिक्शा किराए पर लेकर चलाने की सलाह दी तो मैंने उसके बताए पते पर जाकर रिक्शा किराए पर ले लिया और चलाने लगा।”

यहाँ धर्मबीर (Dharambir Kamboj) ने न जाने कितने दिन भूखे रहकर काटे तो ज्यादा कमाई के लिए कई रातें बिना सोये निकाली। कभी रात में काम न मिलता तो 3 रुपये की रजाई किराए पर लेकर वहीं फूटपाथ पर सो जाते थे। मुश्किल के इस वक़्त में न तो उनके अपने साथ थे और न ही इस शहर में उनका कोई अपना था।

अपनी ‘मल्टी-प्रोसेसर’ मशीन के साथ धर्मबीर कम्बोज

“मैं यह कहूँगा कि मुझे जीना दिल्ली ने सिखाया। दिल्ली के अलग-अलग, नए-पुराने इलाकों में मैंने छोटी-बड़ी चीज़ें बनती देखी। यहाँ पता चला कि आप आम, नींबू से ज़्यादा उसकी प्रोसेसिंग से बने प्रोडक्ट से कमाते हैं। बस यूँ लगा लो कि दिल्ली के इन इलाकों ने मुझे भी अपने बिज़नेस के ख़्वाब दिखाए,” धर्मबीर (Dharambir Kamboj) ने हंसते हुए कहा।

एक दिन काम के दौरान उनका एक्सीडेंट हो गया और इसके बाद उन्होंने अपने गाँव वापस लौटने का फ़ैसला कर लिया। क्योंकि उन्हें लगा कि अगर उन्हें कुछ हो जाता तो शायद उनके परिवार को इसका पता भी नहीं चलता। गाँव लौटकर उन्होंने खेती शुरू कर दी। लेकिन इस बार उन्होंने पारम्परिक अनाज की खेती न करके सब्ज़ियाँ उगाई।

“पहले-पहले कुछ मुश्किल हुई, लेकिन फिर खेती में भी मुनाफ़ा होने लगा। एक वक़्त आया जब मैंने 70 हज़ार प्रति एकड़ टमाटर बेचा। मैंने मशरूम, स्ट्रॉबेरी की खेती भी की। खेती में जो कुछ मुनाफ़ा हुआ उससे पहले के कुछ कर्ज़ चुका दिए। मैंने अपना पूरा ध्यान खेती पर ही लगाया क्योंकि मुझे लगता था कि इसी से मुझे मेरी राह मिलेगी,” द बेटर इंडिया से बात करते हुए धर्मबीर (Dharambir Kamboj) ने कहा।

एक बार किसानों के एक समूह के साथ उन्हें राजस्थान के पुष्कर जाने का मौका मिला। यहाँ उन्होंने देखा कि सेल्फ-हेल्प ग्रुप से जुड़ी महिलाएँ खुद गुलाबजल बना रही हैं। वहां उन्होंने आंवले के लड्डू भी बनाते देखे। यहाँ पर उन्हें समझ आया कि कोई भी सब्ज़ी, फल, फूल आदि की खेती में फायदा तब है जब किसान अपनी उपज को सीधे बाज़ार में बेचने की बजाय उसकी प्रोसेसिंग करके और प्रोडक्ट्स बनाकर बेचे।

राजस्थान से लौटने पर उन्हें गुलाबजल बनाने के लिए 25 हज़ार रुपए की सब्सिडी मिली। ये वो मौका था जब धर्मबीर (Dharambir Kamboj) के मन में पहली बार अपनी मशीन का ख्याल आया। “मैं बचपन में भले ही पढ़ाई में बढ़िया नहीं था लेकिन जुगाड़ से छोटी-मोटी मशीन बनाने का शौक हमेशा रहा। गाँव में बहुत बार हीटर बनाकर बेचे और फिर बिना देखे किसी भी मशीन का चित्र मैं मिट्टी पर बना लिया करता था। उस दिन से पहले मेरे दिल में कभी ऐसा ख्याल नहीं आया कि मैं कोई मशीन बनाऊं या फिर कोई इनोवेशन करूँ।” उन्होंने कहा।

गुलाबजल बनाने के लिए जब धर्मबीर (Dharambir Kamboj) पीतल के बर्तन लेने दुकान पर गए तो अचानक उनके मन में एक ख्याल आया और वे दुकान से वापस आ गए। उन्होंने घर आकर अपनी पत्नी से बात की और हमेशा की तरह उनकी पत्नी ने इस काम में उनका हौसला बढ़ाया। उन्होंने एक-दो दिन लगाकर अपनी ज़रूरत के हिसाब से एक मशीन का स्कैच तैयार किया और पहुँच गए एक लोकल मैकेनिक के पास।

उस मैकेनिक ने उनसे मशीन बनाने के 35 हज़ार रुपए मांगे तो धर्मबीर (Dharambir Kamboj) ने जैसे-तैसे 20 हज़ार रुपए उसे देकर मशीन का काम शुरू करवाया। इस मशीन को बनाने में उन्हें 8-9 महीने का समय लगा। उन्होंने अपनी मशीन को ‘मल्टी-प्रोसेसिंग मशीन’ नाम दिया।

मल्टी-प्रोसेसर मशीन

यह नाम उन्होंने इसलिए दिया क्योंकि इस मशीन में आप न सिर्फ़ गुलाब बल्कि किसी भी चीज़ जैसे कि एलोवेरा, आंवला, तुलसी, आम, अमरुद आदि को प्रोसेस कर सकते हैं। आपको अलग-अलग प्रोडक्ट बनाने के लिए अलग-अलग मशीन की ज़रूरत नहीं है। आप किसी भी चीज़ का जैल, ज्यूस, तेल, शैम्पू, अर्क आदि इस एक मशीन में ही बना सकते हैं।

धर्मबीर (Dharambir Kamboj) बताते हैं कि इस मशीन में 400 लीटर का ड्रम है जिसमें आप 1 घंटे में 200 लीटर एलोवेरा प्रोसेस कर सकते है। साथ ही इसी मशीन में आप कच्चे मटेरियल को गर्म भी कर सकते हैं। इस मशीन की एक ख़ासियत यह भी है कि इसे आसानी से कहीं भी लाया-ले जाया सकता है। यह मशीन सिंगल फेज मोटर पर चलती है और इसकी गति को नियंत्रित किया जा सकता है।

धर्मबीर (Dharambir Kamboj) ने इस मशीन को अपने खेत पर रखकर फार्म फ्रेश प्रोडक्ट बनाना शुरू किया। उन्होंने अपने खेत में उगने वाले एलोवेरा और अन्य कुछ सब्ज़ियों को सीधा प्रोसेस करके, उनके जैल, ज्यूस, कैंडी, जैम आदि प्रोडक्ट बनाकर बेचना शुरू किया। अख़बार में छपी एक छोटी-सी खबर से गुजरात के हनी बी नेटवर्क और ज्ञान फाउंडेशन को उनके इस काम के बारे में पता चला।

ज्ञान फाउंडेशन से कुछ लोगों ने जाकर धर्मबीर (Dharambir Kamboj) की मशीन और उनके कार्य को देखा। “ज्ञान फाउंडेशन और अनिल गुप्ता के संपर्क में आने से मुझे बहुत सहायता मिली। उन्होंने मुझे अपने प्रोडक्ट्स के लिए FSSAI सर्टिफिकेट अप्लाई करने के लिए कहा। उन्होंने मेरी मशीन के लिए सेल टैक्स नंबर भी लिया और उनकी मदद से मुझे मशीन पर अपना पेटेंट भी मिला,” उन्होंने बताया।

अपनी मशीन पर ट्रेनिंग देते हुए धर्मबीर

साल 2009 में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने उनको सम्मानित किया। इसके बाद उनके बारे में जब कई अख़बारों में छपा तो उन्हें मशीन के लिए पूरे देश से ऑर्डर आने शुरू हो गए।

हनी बी नेटवर्क की मदद से धर्मबीर (Dharambir Kamboj) ने अपनी मशीन को और थोड़ा मॉडिफाई किया और अलग-अलग साइज़ के पाँच मॉडल बनाए। इनमें सबसे बड़े साइज़ की मशीन का मूल्य 1 लाख 80 हज़ार रुपए है तो सबसे छोटी साइज़ वाली मशीन 45 हज़ार रुपए की है। इसके अलावा बाकी तीन मॉडल की कीमत क्रमश: 1 लाख 25 हज़ार, 80 हज़ार और 55 हज़ार रुपए है।

मशीन बेचने के अलावा धर्मबीर (Dharambir Kamboj) किसानों और महिलाओं के सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स को इस मशीन पर अलग-अलग तरह प्रोडक्ट्स बनाने की ट्रेनिंग भी देते हैं। उन्होंने कई राज्यों में किसानों और महिलाओं को छोटे-छोटे स्तर पर खेती से ही अपना कारोबार शुरू करने में मदद की है। उनके इन सभी कार्यों के लिए उन्हें 2012 में फार्मर साइंटिस्ट अवॉर्ड भी मिला।

आज उनकी मशीन देश के बाहर जापान, दक्षिण अफ्रीका, केन्या, नेपाल और नाईज़ीरिया जैसे देशों तक भी पहुँच चुकी है। उनके प्रोडक्ट्स भी उनके बेटे के नाम पर प्रिंस ब्रांड से देशभर के बाज़ारों में जा रहे हैं। आज वे एलोवेरा जैल, तुलसी का तेल, सोयाबीन का दूध, हल्दी का अर्क, गुलाब जल, जीरे का तेल, पपीता और जामुन का जैम आदि बना रहे हैं। उनके इस काम से उनके गाँव की महिलाओं को रोज़गार भी मिल रहा है।

आज उनकी मशीन केन्या, दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में भी काफ़ी प्रसिद्द है

उन्होंने अपने यहाँ एक सामुदायिक वर्कशॉप भी शुरू की है। जिसका उद्देश्य स्थानीय छोटे-छोटे इनोवेटर्स को उनके आविष्कार बनाने के लिए मदद करना है। साथ ही, वे हनी बी नेटवर्क और ज्ञान फाउंडेशन के साथ काफ़ी सक्रिय है। हर साल वे उनके साथ शोधयात्रा में भाग लेते हैं।

इस मशीन के बाद उन्होंने सोलर पॉवर से चलने वाली एक झाड़ू भी बनाई है। उनके इस इनोवेशन पर वे अभी और काम कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि उनका यह इनोवेशन भी ग्रामीण लोगों के लिए हितकर साबित होगा। अंत में धर्मबीर (Dharambir Kamboj) किसानों के लिए सिर्फ़ यही संदेश देते हैं, “किसानों को ऐसी फसल उगानी चाहिए जिसे वे प्रोसेस करके प्रोडक्ट बना सके। इससे ही उन्हें फायदा होगा और गाँव में रोज़गार भी आएगा। साथ ही, नए प्रोडक्ट्स बनाने की कोशिश करे जो कोई और नहीं कर रहा हो। क्योंकि कोशिश करोगे तभी सफल हो पाओगे।”

यदि आपको इस कहानी ने प्रेरित किया है या फिर आप यह मशीन खरीदना चाहते हैं तो धर्मबीर कम्बोज (Dharambir Kamboj) से 9896054925 या फिर kissandharambir@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं। आप उन्हें अपने यहाँ किसानों, महिलाओं या फिर छात्रों की ट्रेनिंग के लिए भी बुला सकते हैं।

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