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इस कश्मीरी कृषि इंजीनियर ने किए एक-दो नहीं, बल्कि 8 से ज़्यादा आविष्कार, बना रहे खेती आसान

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देश का किसान शायद सबसे ज़्यादा मेहनत करता है। बीज बोने से लेकर फसल काटने और इसे बाज़ार तक बेचने तक, उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। हालांकि, समय के साथ बाज़ार में कई मशीनें आ गई हैं, जो किसानों का काम आसान बना रही हैं। लेकिन ज़्यादातर आविष्कार और मशीनें इतनी महंगी होती हैं कि छोटे किसान उसे खरीद नहीं पाते। 

ऐसे ही किसानों के लिए ढेरों आविष्कार कर रहे हैं, कश्मीर के एक कृषि  वैज्ञानिक डॉ. मोहम्मद मुज़मिल। 34 वर्षीय डॉ. मुज़मिल, शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी में काम कर रहे हैं। वह एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं और बचपन से ही उन्हें खेती में विशेष रुचि रही है। 

यही वजह है कि उन्होंने पढ़ाई भी इसी विषय में की। हालांकि वह पढ़ाई और काम के कारण कभी भी सीधे रूप से खेती से नहीं जुड़ सके, लेकिन अपने काम से वह हमेशा कोशिश करते हैं कि किसानों की मदद कर सकें। 

कैसा था कृषि वैज्ञानिक बनने तक का सफर?

Dr. Muzamil with his innovation

मूल रूप से श्रीनगर से ताल्लुक रखने वाले डॉ. मुज़मिल के पिता की पुश्तैनी खेती थी,  साथ-साथ वह स्कूल में पढ़ाया भी करते थे। मुज़मिल बचपन से ही पढ़ाई में अच्छे रहे हैं । वह कहते हैं, “मैंने बचपन में ही सोच लिया था कि मुझे कृषि विषय के साथ पढ़ाई करनी है, ताकि किसी तरह अपने काम से किसानों की मदद कर सकूँ।”

उन्होंने साल 2010 में एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की। इसके बाद उन्होंने जेआरएफ के साथ भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) की परीक्षा परीक्षा पास की और वहीं से मास्टर्स और पीएचडी की पढ़ाई पूरी की।

अपनी पीएचडी के दौरान, उन्हें डीएसटी (DST) इंस्पायर फेलोशिप भी दी गई, जो केवल टॉपर्स को दी जाती है। दिल्ली में पढ़ाई करते समय ही उन्होंने अपने इनोवेशन की शुरुआत कर दी थी। डॉ. मुज़मिल कहते हैं कि पीएचडी करने के बाद, उन्होंने आईसीएआर की एक और परीक्षा (कृषि अनुसंधान सेवा) भी पास की।

इसके बाद उन्हें ‘वैज्ञानिक’ की पढ़ाई के लिए चुना गया और वह  (NAARM) राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी में प्रशिक्षण के लिए हैदराबाद चले गए। वह बताते हैं, “उस दौरान मुझे अपने घर के पास ही शालीमार की एक कॉलेज में नौकरी का प्रस्ताव मिला, जिसे मैंने अपना लिया। अब मैं पिछले चार सालों से यहां काम कर रहा हूँ और साथ सी छोटी-छोटी मशीनें भी बना रहा हूँ।”   

 

Farming Innovations

पढ़ाई के साथ ही किया पहला आविष्कार

डॉ. मुज़मिल ने दिल्ली में रहते हुए सबसे पहले किसानों के लिए एक सस्ता पैडी स्ट्रॉ चॉपर बनाया था। इसके बाद शालीमार आकर उन्होंने वर्मी कंपोस्टिंग मशीन, एप्पल ग्रेडर, पैडी स्ट्रॉ चॉपर, मटर प्लांटर, चिली सीड एक्सट्रैक्टर, सोलर ऑपरेटेड  कोकून ड्रायर, वेजिटेबल सीडर और मकई  शेलर जैसी ढेरों मशीनें बनाई हैं।  

उन्होंने कश्मीरी किसानों के लिए ख़ास एक एप्पल ग्रेडर बनाया। यह एक सस्ती मशीन है, जो साइज के हिसाब से सेबों को अलग करने का काम करती है।  वहीं उन्होंने एक ऐसी मशीन भी बनाई है, जो मशरुम किसानों के भी बड़े काम की चीज़ है। यह एक ऑटोमेटिक मशीन है, जो मशरुम बैग्स में भूसी और बीज भरने का काम करती है। 

इसके अलावा, हाल में वह एक ऐसी मशीन पर काम कर रहे हैं, जो मकई के अंदरी भाग को पूरी तरह से पाउडर बना सकता है। इस पाउडर का इस्तेमाल जानवरों के चारे के रूप में हो सकता है। वह कहते हैं, “पहले किसान दाने निकालकर अंदर का कोब फेंक देते थे, लेकिन अब इस मशीन के इस्तेमाल से वह इससे भी कमाई कर सकेंगे।”

Dr. Muzamil at his workshop

इन मशीनों के लिए वह अपनी यूनिवर्सिटी की वर्कशॉप से ही काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि आस-पास के जितने भी किसान हैं, वे सभी अपनी समस्या लेकर उनके पास ही आते हैं। उनकी समस्याओं की जानकारी ही उन्हें और उपयोगी मशीन बनाने के लिए प्रेरित करती है।

उन्होंने बताया, “हाल में किसान मेरे पास से भाड़े में मशीन ले जाते हैं, जिसे काम हो जाने पर वह लौटा देते हैं।” उनके इलाके में चिली सीड निकालने वाली मशीन और एप्पल ग्रेडर काफी डिमांड में है।  वहीं कई लोग मशरुम बैग फिलर की भी मांग भी कर रहे हैं। लेकिन डॉ. मुज़मिल इस मशीन के पेटेंट का इंतजार कर रहे हैं उसके बाद वह यह मशीन भी लोगों को इस्तेमाल करने के लिए देंगे।  

कृषि प्रधान देश में डॉ. मुज़मिल  जैसे और वैज्ञानिकों की जरूरत है जो अपने काम से किसानों की मदद कर सकें। आप उन्हें muzamil4951@gmail.com  पर सम्पर्क कर सकते हैं। 

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