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दाह-संस्कार के लिए बनाया चलता-फिरता और इको-फ्रेंडली शवदाह गृह

Cremation

साल 2020 की शुरुआत से ही, भारत कोरोना महामारी का दंश झेल रहा है। इस महामारी की वजह से करोड़ों लोगों की जिंदगी प्रभावित हुई है। किसी का रोजगार छिन गया, तो किसी की जिंदगी। लेकिन सबसे बड़ी विडंबना यह है कि दुनिया से चले जाने के बाद, कई लोगों को सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं हुआ। बीच में एक समय ऐसा भी आया, जब कोरोना से मरनेवाले लोगों के अंतिम संस्कार के लिए लोग आगे नहीं आ रहे थे, तो कहीं श्मशान में लोगों को जगह नहीं मिल पा रही थी। 

“मैंने ख़बरों में देखा कि कैसे लोग शवों को पानी में बहा रहे हैं। फिर एक खबर देखी कि दिल्ली के एक नेकदिल इंसान कोरोना से मरनेवाले लोगों का अंतिम संस्कार कर रहे हैं। लेकिन एक समय ऐसा भी आया कि उन्हें पार्कों में लोगों का अंतिम संस्कार करना पड़ा, क्योंकि श्मशान घाट में जगह नहीं मिल पा रही थी। तब मुझे लगा कि क्या इसके लिए हम कोई सिस्टम तैयार कर सकते हैं,” यह कहना है हरजिंदर सिंह चीमा का। हरजिंदर सिंह मोहाली स्थित कंपनी ‘चीमा बॉयलर्स लिमिटेड‘ के चेयरमैन हैं। 

उन्होंने बताया कि अपनी कंपनी के जरिए, वह बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रीज के लिए ‘बॉयलर्स’ बनाते हैं। लेकिन कोरोना महामारी के कारण, लोगों का बुरा हाल देखकर उन्हें लगा कि उन्हें समाज के लिए कुछ करना चाहिए। इसलिए उन्होंने दाह-संस्कार के लिए एक नया सिस्टम बनाने का फैसला किया। सबसे पहले उन्होंने यह समझा कि सामान्य तौर पर दाह-संस्कार के लिए जो तरीका इस्तेमाल होता है, उसमें क्या परेशानियां हैं। इसके बाद उन्होंने अपनी तकनीक पर काम किया। वह कहते हैं कि इस काम के लिए उन्हें आईआईटी रोपड़ से पूरी मदद मिली। 

Harjinder Singh Cheema, Cheema Boilers and Prof. Harpreet Singh, IIT Ropar

तैयार की ‘नोबल कॉज’ 

72 वर्षीय हरजिंदर सिंह ने दाह-संस्कार के लिए जो शवदाह गृह बनाया है, उसे उन्होंने – ‘Noble Cause’ नाम दिया। इसके लिए उन्हें तकनीकी सहायता आईआईटी रोपड़ से मिली। हरजिंदर सिंह बताते हैं, “सबसे पहले हमने तय किया कि हम ऐसा सिस्टम बनाएंगे, जो इको-फ्रेंडली हो और जिसे जरूरत के हिसाब से कहीं भी ले जाया जा सके। इस शवदाह गृह को बनाने की प्रेरणा हमें ‘विक स्टोव‘ से मिली है, जो धुआंरहित होती है। हमने शवदाह गृह बनाने के लिए ‘स्टेनलेस स्टील’ का इस्तेमाल किया है और इसे इस तरह से बनाया गया है कि इसमें कम समय में ही दाह-संस्कार हो जाए।” 

उन्होंने अप्रैल 2021 से इस तकनीक पर काम शुरू किया था और आईआईटी रोपड़ की मदद से, मई 2021 तक काम पूरा कर लिया। 

‘Noble Cause’, एक कार्ट के आकार का शवदाह गृह है, जिसमें पहिए लगे हैं। इसे जरूरत के हिसाब से कहीं भी ले जाया जा सकता है। आईआईटी रोपड़ के प्रोफेसर, डॉ. हरप्रीत सिंह बताते हैं, “इस में शव को जलने में कम समय लगता है। साथ ही, सामान्य से काफी कम लकड़ियों की जरूरत होती है, क्योंकि इसमें दोनों तरफ लगी स्टील की प्लेट हीट लॉस नहीं होने देती हैं। इसमें नीचे की तरफ एक ट्रे भी लगी हुई है, जिसमें राख इकट्ठी होती है।” 

हरजिंदर सिंह कहते हैं कि अभी भी लोग इलेक्ट्रिक शवदाह गृह इस्तेमाल करने में हिचकिचाते हैं। ऐसे में, ‘Noble Cause’ उनकी परेशानी दूर कर सकती है। सबसे अच्छी बात यह है कि इसे कहीं भी ले जाया जा सकता है। “इसे रोटरी क्लब, मंदिरों, गुरुद्वारों आदि द्वारा आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है। जहाँ भी जगह की कमी हो, वहां पर इसकी मदद से अपनों को अंतिम विदाई दी जा सकती है,” उन्होंने कहा। 

पटना, गुरुग्राम के नगर निगम को पहुंचाई 

Noble Cause

इस तकनीक के तैयार होने के बाद, सबसे पहले एक शवदाह गृह मोहाली के श्मशान घाट में लगाया गया। यहां पर इस शवदाह गृह को अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। श्मशान घाट के सेवादार, रामरतन कहते हैं कि उन्हें चीमा बायलर कंपनी ने दाह-संस्कार के लिए यह शवदाह गृह दिया। लेकिन इस्तेमाल के बाद पता चला कि यह सामान्य तरीके से काफी बेहतर है। कोरोना काल में इतने सारे दाह-संस्कार हो रहे थे कि प्रदूषण भी बढ़ने लगा था। लेकिन इसमें (नोबल कॉज) दाह संस्कार करने पर लकड़ी पूरे तरीके से जलती है और धुंआ कम से कम निकलता है। साथ ही, सामान्य तरीके से दाह-संस्कार करने में लगभग चार क्विंटल लकड़ियां लगती हैं, लेकिन इसमें ढाई क्विंटल में ही काम हो जाता है।

रामरतन ने कहा कि सामान्य तरीके से दाह-संस्कार पूरा होने में लगभग छह घंटे लगते हैं। लेकिन इसमें तीन-चार घंटों में ही प्रक्रिया हो जाती है। स्वर्गवासी व्यक्ति के परिवारजन चाहें, तो उसी दिन आकर फूल चुन सकते हैं और राख ले जा सकते हैं। कोरोना महामारी के समय में यह इनोवेशन बहुत ही कारगर है। क्योंकि लोगों को शव का अंतिम संस्कार करने तक के लिए जगह नहीं मिल रही है। ऐसे में, आप कहीं भी खुली जगह में ‘Noble Cause’ को लगाकर सम्मानपूर्वक अपनों को विदाई दे सकते हैं। 

हरजिंदर सिंह कहते हैं कि उन्होंने अब तक ऐसे 10 शवदाह गृह बनाये हैं, जिनमें से एक आईआईटी रोपड़ को दी गयी है और अन्य पटना नगर पालिका और गुरुग्राम नगर पालिका को भेजे गए हैं। हाल ही में, चंडीगढ़ नगर पालिका ने भी उन्हें संपर्क किया है। 

मरीन इंजीनियरिंग करने वाले हरजिंदर सिंह ने लगभग 12 सालों तक नौकरी की और 1990 में अपनी खुद की कंपनी शुरू की थी। वह कहते हैं कि उनका सफर आसान नहीं रहा, लेकिन उन्होंने हमेशा अपने आइडियाज को हक़ीक़त बनाने पर काम किया। शुरुआत में, वह सिर्फ बॉयलर रिपेयर करते थे, लेकिन 1999 में उन्होंने इंडस्ट्री के लिए बॉयलर बनाना भी शुरू किया। आज उनकी कंपनी के बनाए बॉयलर दूसरे देशों में भी जाते हैं। कुछ साल पहले, उनकी कंपनी ने आईआईटी रोपड़ के साथ तकनीकी सहयोग के लिए टाईअप किया था। तब से वह अलग-अलग तकनीकों पर आईआईटी रोपड़ के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। अगर आप इस बारे में अधिक जानना चाहते हैं या उनसे संपर्क करना चाहते हैं तो उन्हें hscheema@cheemaboilers.com पर ईमेल कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

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