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कबाड़ से जुगाड़! 12वीं पास किसान ने बनाई ऐसी मशीन, खेती में 70 फीसदी खर्च होगा कम

Madhya Pradesh Innovator Rajpal Singh Narwariya

मूल रूप से मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिला के जमाखेड़ी गांव के रहने वाले राजपाल सिंह नरवरिया, अपने पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। राजपाल के पिता खेती-किसानी करते थे और बढ़ती उम्र के कारण उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था।

घर के बड़े बेटे होने के कारण, राजपाल ने खेती में अपने पिता की मदद करने का फैसला किया। इस तरह, 12वीं के बाद उनकी पढ़ाई छूट गई। 

इस कड़ी में राजपाल ने द बेटर इंडिया को बताया, “मेरे पास 50 बीघा जमीन है और बढ़ती उम्र के कारण पिताजी को खेती में काफी दिक्कत आ रही थी। फिर, चंदेरी के एक सरकारी स्कूल से 12वीं पास करने के बाद मैंने पढ़ाई छोड़, खेती करने का फैसला किया।”

राजपाल 2001 में खेती से जुड़े। सबकुछ सामान्य चल रहा था, लेकिन 2003-04 में उनके चाचा के साथ हुई एक घटना ने उनकी जिंदगी को एक नया मोड़ दिया और आज उनकी पहचान एक बड़े इनोवेटर के रूप में होती है। वह अभी तक दो दर्जन से अधिक इनोवेशन कर चुके हैं और उन्हें राष्ट्रपति द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है।

इलाके में कैसे हुए चर्चित

वह कहते हैं, “यह बात 2003-04 की है। मेरे चाचा जी का मोटर बोरवेल में गिर गया था। इससे न सिर्फ उन्हें मोटर का नुकसान हुआ, बल्कि बोरबेल भी बेकार हो जाने का खतरा था।”

वह आगे कहते हैं, “मैंने देखा कि चाचा जी के घर में मायूसी छाई है। फिर, मैंने उनसे कहा कि आप चिन्ता न करें, बोरबेल से मोटर तो किसी न किसी तरह से निकाल ही लेंगे। उन्हें लगा कि मैं उन्हें झूठा दिलासा दे रहा हूं और उन्होंने मुझ पर विश्वास नहीं किया।”

राजपाल को बचपन से ही चित्रकारी का काफी शौक था और उन्हें एक डिजाइन बनाया कि बोरबेल से मोटर कैसे निकाल सकते हैं। इसके बाद, उन्होंने लोहे की पत्तियों से एक तेल की कुप्पी जैसा डिजाइन तैयार किया। इसके ऊपर सॉकेट लगा था। 

राजपाल ने इससे बोरबेल में गिरे मोटर को निकालने की कोशिश की और उन्होंने पहली बार में ही यह कर दिखाया। इससे पूरे इलाके में उनके नाम की चर्चा होने लगी और जहां कहीं भी ऐसी घटना होती थी, लोग राजपाल को खोजने आते थे।

इसके बाद, राजपाल ने एक के बाद एक कर, खेती से जुड़ी कई मशीनों को बनाया शुरू कर दिया। आज वह व्हील स्प्रेयर, इको फ्रेंडली प्रो ट्रे मेकिंग मशीन से लेकर ऐसे सस्ते कम्बाइन हार्वेस्टर (Combine Harvester) को बना चुके हैं, जिससे किसानों को कटाई पर 70 फीसदी तक की बचत हो सकती है।

राजपाल सिंह नरवरिया

राजपाल के कम्बाइन हार्वेस्टर (Combine Harvester) बनाने की कहानी एक झकझोर देने वाली घटना से जुड़ी हुई है।

वह कहते हैं, “यह बात 2011 की है। पास के चक बड़ेड़ा गांव में किसी किसान ने अपने खेत में पराली में आग लगाई। लेकिन वे आग पर काबू नहीं रख पाए और उनका आधा गांव जल गया। इस घटना में लोगों को काफी नुकसान हुआ और कई मवेशी मारे गए।”

इस घटना ने राजपाल को काफी प्रभावित किया और वे इसे हल करने की कोशिश करने लगे।

वह कहते हैं, “किसानों के लिए फसल की कटाई सबसे जरूरी चीज है। यदि यह समय पर न हो तो दाने झड़ने लगते हैं। उन्हें कभी मवेशी नुकसान पहुंचा देते हैं। कभी अचानक बारिश का खतरा होता है, तो कभी आगजनी की घटना का।”

वह आगे कहते हैं, “आज कई सरकारी योजनाओं के कारण, खेती में मजदूरों का मिलना काफी मुश्किल हो गया है। वहीं, कम्बाइन हार्वेस्टर (Combine Harvester Cost) की कीमत इतनी अधिक होती है कि छोटे किसानों के लिए उसे खरीदना मुमकिन ही नहीं है।”

इन्हीं मुद्दों को देखते हुए, राजपाल को एक ऐसी मशीन बनाने की प्रेरणा मिली, जिससे न सिर्फ फसलों की कटाई, थ्रेसिंग, भूसा बनाना, दानों की सफाई करना आसान हो, बल्कि सस्ता भी हो।

क्या है खास

राजपाल ने अपने कम्बाइन हार्वेस्टर (Combine Harvester) बनाने की शुरुआत 2011 में की और 2013 में उनका पहला प्रोटोटाइप बन कर तैयार हो गया। 

वह बताते हैं, “इस प्रोटोटाइप को मैंने पहले इस्तेमाल में लाए मशीनों से बनाया था। जब भी पैसों का इंतजाम होता था, मैं इसपर काम करता था। इस दौरान जोड़ने-तोड़ने का काम लगा रहा। पहला प्रोटोटाइप बनाने में 7 लाख खर्च हुए।”

वह कहते हैं, “बाजार में इस तरह की और मशीनें हैं, जो कटाई के साथ ही भूसा बना सकती हैं। लेकिन मेरी तकनीक इसलिए अलग है कि इसे ट्रैक्टर से अलग करना बिल्कुल आसान है। दूसरी मशीनें परमानेंट होती हैं, जिस वजह से उसे दूसरे काम में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।”

राजपाल द्वारा निर्मित कम्बाइन हार्वेस्टर

वह कहते हैं, “मेरी मशीन में कटाई, थ्रेसिंग का काम तो किया ही जा सकता है। इसके अलावा, इसमें पशुओं के चारे को भी काटा जा सकता है।”

राजपाल का यह डिजाइन 2016 में पूरी तरह से बन कर तैयार हो गया और उन्हें नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन से 3 लाख का ग्रांट भी मिला। उन्होंने अपने इस डिजाइन को ट्रैक्टर ड्रिवेन कम्बाइन हार्वेस्टर विद एक्स्ट्रा मेकर” नाम दिया है।

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इस डिजाइन के लिए उन्हें 2017 में राष्ट्रपति के हाथों नेशनल इनोवेशन अवॉर्ड मिला था, तो 2019 में उन्हें जगजीवन राम अभिनव किसान पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

कितनी होगी बचत

वह कहते हैं, “आज कम्बाइन हार्वेस्टर (Combine Harvester) की कीमत 20-25 लाख रुपए होती है और उसमें भूसा लगाने की मशीन अलग से लगानी पड़ती है। लेकिन, मैंने जिस डिजाइन को तैयार किया है, उसे किसी ट्रैक्टर में 4 – 4.5 लाख में तैयार किया जा सकता है।”

राजपाल के कम्बाइन हार्वेस्टर के पार्ट्स

वह कहते हैं, “आम तौर पर किसानों को एक एकड़ में कटाई के लिए 1200 रुपए, भूसा बनवाने के लिए 2500 से 3000 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। लेकिन इस मशीन में सिर्फ डीजल की लागत पर दोनों काम एक साथ किया जा सकता है और उनके करीब 1000 रुपए खर्च होंगे। इस तरह, किसानों को 60 से 70 फीसदी तक की बचत होती है।”

कैसे करता है काम

वह कहते हैं, “इस कम्बाइन हार्वेस्टर (Combine Harvester) को 45 हार्स पावर या उससे अधिक शक्ति के किसी भी ट्रैक्टर के पीछे जोड़ा जा सकता है। इसमें फसल की कटाई के बाद, सभी कामों को एक साथ किया जा सकता है। इसमें एक बार में सात क्विंटल अनाज जमा किया जा सकता है, तो भूसा जमा करने के लिए पांच क्विंटल का टैंक लगा है।”

पर्यावरण को भी होगा फायदा

वह कहते हैं, “आज जब खेत में पराली जलाने से प्रकृति को काफी नुकसान हो रहा है, तो इस तरह की सस्ती तकनीक किसानों के लिए काफी मददगार साबित हो सकती है।”

राजपाल ने अपने दायरे को बढ़ाने के लिए एक साल पहले गांव के पास ही “नरवरिया एग्रो इनोवेशन” नाम से एक फर्म की शुरुआत की। लेकिन कोरोना महामारी के कारण काम शुरू नहीं हो पाया है। वह कहते हैं कि उनकी सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और वह इसकी शुरुआत जल्द ही करेंगे।

वह अंत में कहते हैं, “मैं एक किसान परिवार से हूं। हम पहले सोचते थे कि मशीन सिर्फ बड़ी-बड़ी कंपनियां और वैज्ञानिक बनाते हैं। लेकिन, बाद में अहसास हुआ है कि किसानों की जो जरूरत है, वे उससे काफी दूर हैं। इसलिए किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए स्थानीय स्तर पर इनोवेशन को बढ़ावा देना जरूरी है। मेरा संकल्प है कि मैं अपने अंतिम समय तक, उनकी बेहतरी के लिए काम करता रहूंगा।”

आप राजपाल सिंह नरवरिया से 8103118384 पर संपर्क कर सकते हैं।

संपादन- जी एन झा

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