Site icon The Better India – Hindi

सेरेब्रल पाल्सी होने के बावजूद विकलांग कोटा की नौकरी ठुकरा कर दो कंपनियों के निर्माता बने अजीत बाबू !

सेरेब्रल पाल्सी और डिस्लेक्सिया होने के बावजूद, आज अजीत बाबू है दो सफल कंपनियों के निर्माता – आईये जाने उनके इस प्रेरणादायी सफ़र के बारे में !

“अपने हौसले को ये मत बताओ, कि तुम्हारी तक्लीफ कितनी बड़ी है।

अपनी तक्लीफ को बताओ , कि तुम्हारा हौसला कितना बड़ा है।”

अजीत बाबू ने अपने हौसले और दृढ निश्चय से इन पंक्तियों को चरितार्थ कर दिखाया है। उन्होंने सेरेब्रल पाल्सी और डिस्लेक्सिया से ग्रस्त  होने के बावजूद भी दो सफल कंपनियों को स्थापित किया है।

“मुझे कभी नही लगा कि मैं बाकी लोगों से अलग हूँ। मुझे लगता है  लोग, सेरेब्रल पाल्सी और डिस्लेक्सिया जैसी चीज़ों को बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं। लोग, ऐसे लोगों को महसुस कराते हैं कि वो अलग है। पर मुझे किसी ने ये महसुस नही कराया। जब मैं सुबह उठा तो मुझे कहा गया कि जाओ पैसे कमा कर लाओ फिर खाओ। मेरे पास ज्यादा विकल्प नही थे, इसलिए मैंने वो किया जो मैं कर सकता था। बस! मुझे नही पता इसको कैसे एक  प्रेरणात्मक कहानी के रूप मे बताया जाये।

–अजीत मुस्कुराते हुए कहते हैं।

मिलिए इस २६ वर्षीय एनत्रेप्रेनेर से जो सेरेब्रल पाल्सी एवं डिस्लेक्सिया से ग्रस्त होते हुए भी कितनों के लिए एक उदहारण है।

अजीत बाबू

आज कई भ्रमों को तोड़ते हुए अजीत ‘लाइफ हैक इन्नोवेशंस’ नामक कम्पनी के फाउंडर एवं सीईओ हैं। इसके अलावा उन्होंने दो और कंपनियां शुरू की हैं। लेकिन अगर आप उनसे पूछेंगे तो उन्हें इसमें कुछ भी ख़ास नही दिखता। इस युवक का अपनी बीमारी को लेकर भी वही यथार्थवादी नजरिया है जो अपनी ज़िन्दगी को लेकर है।

१९८९ में  बंगलोर में समय से पूर्व जन्मे अजीत को सेरेब्रल पाल्सी से ग्रस्त घोषित कर दिया गया था। सेरेब्रल पाल्सी एक ऐसी बीमारी है जिसमे जन्म के समय या जन्म के तुरंत बाद दिमाग के कुछ सेल्स के मृत हो जाने से शारीरिक कार्य क्षमता बाधित हो जाती है। और डिस्लेक्सिया में इंसान को पढने में कठिनाई होती है। लेकिन अजीत ने इन बीमारियों को कभी अपनी कमजोरी नही बनने दिया। एक जिज्ञासु बच्चे से एक सफल व्यवसायी बनने  तक का उनका सफ़र काफी घटनापूर्ण रहा है।

ये सब कर्णाटक के एक एनजीओ- ‘स्पास्टिक सोसाइटी ऑफ़ कर्नाटक’ में शुरू हुआ जहाँ उसकी बीमारी को पहचाना गया था। ये संस्था नयूरोमस्कुलर एवं डेवलपमेंटल कमियों से ग्रस्त लोगों की सहायता करती है। इस संस्था ने अजीत के माता पिता को उसकी स्थिति के बारे में बताया और उन्हें समझाया कि उसके साथ कैसा व्यवहार करना है।

बड़े होने के साथ ही अजीत का लेखन तथा पत्रकारिता की तरफ रुझान बढ़ने लगा। इसीलिए स्कूल की पढाई पूरी करने के बाद वो बंगलौर के ‘क्रिस्तु जयंती कॉलेज’ जाने लगा।

लेकिन डिस्लेक्सिया के कारण उन्हें कुछ विषयों को समझने में मुश्किल होती थी और आख़िरकार उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा।

“कॉलेज छोड़ने के बाद मैंने एक कॉल सेंटर में काम करना शुरू कर दिया। मैंने बंगलोर के लगभग १० कॉल सेंटरों में काम किया। मेरे बार बार नौकरियां बदलने का कारण ये था कि मैं बहुत जल्दी उस नौकरी से ऊब जाता था। एक बार तो ऐसा लगा कि मैं अच्छे पैसे कमा रहा हूँ, और ये नौकरी भी काफी चुनौतीपूर्ण है। पर जल्दी ही मैं उस से भी ऊब गया। अंत में मैंने कुछ अपना करने का सोचा।”

इस समय तक अजीत के पास लेखन, थिएटर और निर्देशन का भी अनुभव था।२००९ मे उन्होंने अपने एक दोस्त के साथ मिल कर ‘ड्रीम क्लिक कॉन्सेप्ट्स’ नामक एक कंपनी की शुरुआत की, जो उनका पहला उधमी उपक्रम था। ड्रीम क्लिक में काम करते करते अजीत अपने एक दोस्त की कंपनी में शामिल हुए जहाँ से उन्होंने मार्केटिंग के गुर सीखे। इसके साथ साथ वो कॉलेजों में  मार्केटिंग और सेल्स पर प्रेरणात्मक भाषण भी देने लगे थे।

अजीत का परिवार उनके बार बार नौकरी छोड़ने से खुश नहीं था। उनके पिता जो एक सरकारी कर्मचारी हैं, ने उन्हें रेलवे या डाक विभाग में  विकलांग कोटा से नौकरी करने को कहा। पर अजीत के मन में कुछ और ही चल रहा था।

“मुझे विकलांग शब्द से नफरत थी और मुझे किसी की हमदर्दी नही चाहिए थी” –वो कहते हैं।

नेपाल के भूकंप के बाद ही उन्हें इस कंपनी का ख्याल आया। 

और फिर शुरुआत हुई लाइफ हैक इन्नोवेशंस की, जो एक ऐसी कंपनी है जिसका उद्देश्य अक्षय उर्जा को रोजमर्रा की ज़िन्दगी में शामिल करना है।

“अगर आप अक्षय उर्जा (रिन्यूएबल एनर्जी) के बारे में सोचे तो पहला ख्याल यही आता है कि ये कोई बहुत मुश्किल चीज़ है। लेकिन अभी के हालात में इसकी जरुरत है –सिर्फ इसलिए नहीं कि धरती को बचाना है जैसा कि लोग कहते हैं पर हमारे खुद के लिए। और अजीत के मुताबिक ऐसा करने का एक ही तरीका है-अक्षय उर्जा को हमारी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाना। आप किसी भी एक उपकरण को ले और उसे अक्षय उर्जा से चलने वाला बनाये।

-अजीत कहते हैं।

शुरुआत मे पैसों का इंतज़ाम करना मुश्किल था पर जब उन्होंने अपने आइडिया के बारे में अपने दोस्तों को बताया तो वे उनकी मदद करने को सहर्ष तैयार हो गये। करीब १५-२० दोस्तों ने मिल कर ७-८ लाख रूपये इकट्ठे किये और अजीत ने इसकी मदद से ५ लोगो की टीम बना कर शुरुआत की।

फिलहाल उनकी कंपनी एक उपकरण पर ही ध्यान क्रेंदित कर रही है –एक ऐसा पोर्टेबल पॉवर बैंक जो सौर उर्जा, वायु उर्जा एवं बिजली से चार्ज होगा।

इस उपकरण के बारे मे पूछने पर अजीत कहते हैं-

“ कई लोग पोर्टेबल पॉवर बैंक लेकर चलते हैं। पर एक पॉवर बैंक ६-७ घंटे मे चार्ज होता हैं। इसलिए कई बार पॉवर बैंक चार्ज नही होता। तो अगर कोई इतना वक्त पॉवर बैंक को चार्ज करने में लगायेगा तो क्यूँ न वो अपना फ़ोन ही चार्ज कर ले। “

इसलिए अजीत ने एक ऐसा पॉवर बैंक बनाने का सोचा जो एक अच्छे सोलर पैनल से चलेगा जिसकी कीमत भी कम होगी और कम समय में ज्यादा देर के लिए चार्ज हो जाएगा। पर इतना काफी नहीं था। अजीत ने उन सभी कारणों के बारे में भी सोचा जो एक सौर उर्जा (सोलर पॉवर) से संचालित उपकरण को चार्ज होने से रोकेंगे, जैसे की कई दिनों तक धुप न निकलना। इसलिए उन्होंने “जुगाड़” (लाइफ हैक को हिंदी मे जुगाड़ कहते हैं ) लगाया। इस पॉवर बैंक में एक छोटा सा पंखा भी होगा जिससे निकलने वाली उर्जा भी इस उपकरण को चार्ज करेगी। और साथ ही साथ ये उपकरण बिजली से भी चार्ज होगा।

यह पॉवर बैंक अभी उत्पादन प्रक्रिया में है और इस माह के अंत तक मार्किट में उपलब्ध होगा।

“मुझे डिस्लेक्सिया है इसलिए मुझे कुछ बातों को समझने में मुश्किल होती है पर एक बार मेरी रूचि जाग जाये तो फिर उस चीज़ को समझने में मैं अपनी पूरी ताकत लगा देता हूँ।”

-अजीत कहते हैं।

भविष्य के बारे में पूछने पर वो कहते हैं कि लाइफ हैक तो बस शुरुआत है, अभी उनके दिमाग में बहुत सारे उपक्रम हैं जिन्हें वो एक एक कर के शुरू करेंगे। और साथ ही साथ वो एक किताब भी लिख रहे हैं। वो अपनी जर्नलिज्म की पढाई भी पूरी करेंगे।

वो कहते हैं-

“ मुझे जितना, ‘विकलांग’-  इस शब्द से नफरत है, उतना ही मुझे इस शब्द के साथ जोड़ा जाता है। इसलिए मैं दुनिया को दिखाना चाहता हूँ कि एक विकलांग  इंसान क्या क्या कर सकता हैं।

इंडिया इन्क्लुशन समिट में आप अजीत बाबू और उनके जैसे कई प्रेरणात्मक हस्तियों से मिल सकते हैं।  रजिस्टर करें ।

अजीत बाबू से संपर्क करने के लिए आप  ajit.babu@outlook.com पर मेल कर सकते है।

मूल लेखतान्या सिंह

Exit mobile version