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सड़क हादसे से आहत तीन दोस्तों ने बनाई अनोखी मशीन, झपकी आते ही कर देगा अलर्ट

Driver Tracking Device K Shield
सड़क हादसे से आहत तीन दोस्तों ने बनाई अनोखी मशीन, झपकी आते ही कर देगा अलर्ट

विशाखापट्टनम के रहने वाले प्रदीप वर्मा, रतन रोहित और ज्ञान साईं बचपन से ही काफी गहरे दोस्त हैं। तीनों शुरू से ही इंजीनियर बनना चाहते थे और अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी होने के बाद, उन्होंने स्थानीय गायत्री विद्या परिषद कॉलेज में इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में दाखिला ले लिया। हालांकि, उनकी इच्छा अपनी पढ़ाई पूरी कर किसी अच्छी कंपनी में नौकरी पाने की थी। लेकिन एक सड़क हादसे ने उनकी सोच को पूरी तरह से बदल दिया और उन्होंने अपने कॉलेज के दिनों में ही एक ऐसे स्टार्टअप (Safety shield) की नींव रखी, जो देश में लाखों लोगों की जिंदगी बचा सकती है।

दरअसल, तीनों दोस्तों ने मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस एक ऐसी मशीन बनाई है, जो गाड़ी की कंडीशन, लोकेशन और स्पीड से लेकर ड्राइवर और ट्रैफिक की हर एक्टिविटी को ट्रैक करने में सक्षम है।

उन्होंने अपनी इस मशीन को ‘K-Shield’ नाम दिया है, जिसे इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफॉर्मेशन मिनिस्ट्री ने 2020 में सड़क सुरक्षा के लिए टॉप-10 इनोवेशन में भी जगह दी।

हादसे की वजह ने किया प्रेरित

यह बात साल 2017 की है, प्रदीप अपने दोस्तों के साथ कॉलेज जा रहे थे। इसी दौरान दो बसें आपस में टकरा गईं। एक बस में स्कूली बच्चे थे, तो दूसरी में टूरिस्ट। हालांकि, इस हादसे में किसी की जान तो नहीं गई, लेकिन कुछ लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। 

Kshemin Labs के संस्थापक ज्ञान साईं, प्रदीप वर्मा और रोहित रतन

23 वर्षीय प्रदीप ने बताया, “जहां पर हादसा हुआ, वहां कोई ट्रैफिक नहीं था। रिपोर्ट आने के बाद पता चला कि ड्राइवर ने हेडफोन लगाया था और गाड़ी चलाने के दौरान, उन्हें नींद आ गई थी। इसी वजह से यह हादसा हुआ।” इसके बाद, प्रदीप ने इंटरनेट पर रिसर्च किया। इस दौरान उन्हें कुछ चौंकाने वाले आंकड़े मिले। 

वह कहते हैं, “मैंने केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय के सड़क सुरक्षा को लेकर जारी एक सर्वे को पढ़ा। इस सर्वे के मुताबिक, देश में 70 फीसदी से अधिक हादसे ड्राइवर की गलती के कारण होते हैं। इसमें गाड़ी चलाने के दौरान नशा करना, हेडफोन लगाना और नींद आना सबसे बड़ी वजह थी। बस यहीं से हमें K-Shield (Safety shield) बनाने की प्रेरणा मिली।”

पढ़ाई में हुई काफी दिक्कत

प्रदीप और उनके साथी उस वक्त कॉलेज के सेकेंड ईयर में थे। कॉलेज के बाद, सभी साथियों का समय इसी प्रोजेक्ट पर गुजरता था। लेकिन इसका असर उनकी पढ़ाई पर दिखने लगा था।

प्रदीप कहते हैं, “पांच बजे कॉलेज खत्म होते ही, रतन और ज्ञान मेरे घर आ जाते थे। हम रातभर इस प्रोजेक्ट पर काम करते थे। जिस वजह से हमारे मार्क्स काफी कम होने लगे। हमारे परिजन इससे काफी नाराज थे कि यह हम क्या कर रहे हैं?”

साल भर यही सिलसिला चलता रहा और 2018 के शुरुआती दिनों में उनका पहला प्रोटोटाइप बनकर तैयार हो गया। इस दौरान, विशाखापट्टनम में इंटरनेशनल इनोवेशन फेयर हुआ, जहां उन्होंने अपनी इस डिवाइस (Safety shield) के लिए गोल्ड मेडल जीता। 

सड़क हादसों को रोकने के लिए K Shield एआई डिवाइस

इससे तीनों दोस्तों के परिवार को भरोसा हो गया और उन्होंने अपने बच्चों को बढ़ावा देना शुरु कर दिया। फिर, 2019 में उन्होंने करीब 5 लाख की लागत से अपनी कंपनी ‘Kshemin Labs’ की शुरुआत की। 

इस Safety shield की क्या है खास?

उनकी इस K-Shield (Safety shield) में दो नाइट विजन कैमरा लगे हुए हैं। एक कैमरा ट्रैफिक के मूवमेंट को रिकॉर्ड करता है, तो दूसरा ड्राइवर के आँख और सिर के मूवमेंट को।  गाड़ी चलाते समय अगर ड्राइवर अपनी पलकें धीरे-धीरे झपका रहा है, तो इसका मतलब है कि उन्हें नींद आ रही है। 

इस डिवाइस को गाड़ी के यूएसबी से कनेक्ट किया जाता है। यह सिस्टम 4 जी नेटवर्क से जुड़ा हुआ है और यह ट्रैफिक और ड्राइवर के मूवमेंट के साथ ही, गाड़ी के कंडीशन को भी ट्रैक करने में सक्षम है।

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दरअसल, इस सिस्टम के जरिए गाड़ी के माइलेज को नियमित रूप से एनालाइज किया जाता है और इसमें अगर कोई कमी हो, तो संभावित कारणों का आसानी से पता चल जाता है।

इसे लेकर रतन कहते हैं, “ट्रैकिंग की सभी जानकारियों को क्लाउड पर भेजा जाता है और ग्राहकों को ऐप के जरिए जानकारी मिल जाती है कि वे कितने सुरक्षित तरीके से गाड़ी चला रहे हैं।”

इस सिस्टम को उन्होंने पूरी तरह से भारतीय परिवेश के हिसाब से विकसित किया है। वह कहते हैं, “भारत में नेटवर्क की समस्या आम है। इसलिए हमने अपने सिस्टम को इस तरीके से बनाया है, जो नेटवर्क न होने की स्थिति में भी जानकारियों को जुटा सकता है और एक बार नेटवर्क से जुड़ने के बाद, उसे तुरंत सर्वर पर फीड कर सकता है।”

कितनी सफल है यह Safety shield?

प्रदीप बताते हैं, “ऑडी, बीएमडब्ल्यू जैसी गाड़ियों में ऐसी सुविधाएं पहले से ही होती हैं। लेकिन मिडिल क्लास के लोग इतनी महंगी गाड़ियां नहीं खरीद सकते हैं। वहीं, वाहनों की ट्रैकिंग के लिए बाजार में अभी जो किट मिलती हैं, उनमें कैमरा नहीं होते है। इस वजह से नतीजे ज्यादा प्रभावी नहीं होते हैं।”

प्रदीप और उनके साथियों ने इस डिवाइस को फिलहाल ट्रक, बस और कार जैसी बड़ी गाड़ियों के लिए बनाया है। वे इस सुविधा को जल्द ही मोटर साइकिलों के लिए भी लॉन्च करेंगे।

उनके इस इनोवेशन को सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क, पुणे का पूरा साथ मिल रहा है और उनकी मदद से वे टाटा मोटर्स और मारुति सुजुकी जैसी बड़ी कंपनियों के रिसर्च टीम के साथ भी काम कर रहे हैं।

इस डिवाइस का रेंज फिलहाल 15 हजार है। लेकिन अगर इसे बड़े पैमाने पर बनाया जाए, तो इसकी कीमत 5 से 10 हजार के बीच हो सकती है। वहीं, मोटर साइकिलों के लिए इसकी कीमत और भी कम होगी।

प्रदीप अंत में कहते हैं कि वह सड़क सुरक्षा को लेकर तकनीक की मदद से समाज में एक नए विमर्श को जन्म देना चाहते हैं। वे अभी इंडस्ट्री में बिल्कुल नए हैं और अपने दायरे को बढ़ाने के लिए उन्हें इनवेस्टर्स की जरूरत है।

आप Kshemin Labs से यहां संपर्क कर सकते हैं।

संपादनः अर्चना दुबे

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