अब तक आपने कपड़े, प्लास्टिक से बने तिरंगे झंडे देखे होंगे लेकिन क्या आपने कभी बीजों से बना तिरंगा देखा है। शायद नहीं!
अब आप सोचेंगे कि बीजों से झंडा कैसे बन सकता है? लेकिन यह सच है। देश में कुछ लोग बीजों से भी तिरंगा बना रहे हैं। इसे बनाने की प्रमुख वजह गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस मनाने के बाद प्लास्टिक के झंडों का विभिन्न स्थलों पर बिखरा पड़ा होना है। इस दिन देशभर के सरकारी और निजी संस्थानों में झंडा फहराया जाता है। सभी लोग अपने-अपने ढंग से देश के प्रति अपने प्यार और आदर को व्यक्त करते हैं। बड़ी संख्या में छोटे-बड़े तिरंगे ख़रीदे जाते हैं। लेकिन फिर दूसरे दिन ही आपको ये तिरंगे यहां वहां बिखरे पड़े मिलते हैं। ऐसे में न सिर्फ तिरंगे के स्वाभिमान को आघात पहुंचता है बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह है।
फ्लैग कोड यानी भारतीय ध्वज संहिता, 2002 के मुताबिक ऐसे बिखरे पड़े झंडों को पूरे आदर व सम्मान के साथ या तो मिट्टी में दबाया जाता है या फिर एकांत में जाकर कहीं नष्ट किया जाता है। लेकिन प्लास्टिक से बने झंडों को मिट्टी में दबाना या अन्य तरीके से नष्ट करना जैसे भी हो पर्यावरण के लिए बहुत हानिकारक है। ऐसे में इसका अन्य विकल्प ऐसा झंडा ही हो सकता था जो प्रकृति के अनुकूल हो और उसके सम्मान को भी ठेस नहीं पहुंचाए।
ऐसे में प्लास्टिक के झंडों के विकल्प की तलाश ‘सीड फ्लैग’ पर जाकर खत्म होती है। सीड फ्लैग यानी बीज से बना झंडा। इस झंडे को सीड पेपर से बनाया जाता है। सीड पेपर एक बायोडिग्रेडेबल पेपर होता है जिसमें अलग-अलग किस्म के बीज होते हैं। इस पेपर को मशीन की बजाय हाथों से बनाया जाता है। पेपर को मिट्टी में दबाने पर ये बीज अंकुरित हो जाते हैं और कुछ दिनों में ये पौधे बनने लगते हैं।
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पिछले दो सालों से इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल स्टेशनरी उत्पाद जैसे अख़बार से बनी पेंसिल, प्लांटेबल पेंसिल, पेपर स्ट्रॉ, बम्बू टूथब्रश आदि बनाने वाली कंपनी पेपा ने इस साल प्लांटेबल झंडे बनाना भी शुरू किया है।
कंपनी के फाउंडर विष्णु कहते हैं कि अब ज़्यादातर लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक हो रहे हैं। पर्यावरण के लिए हानिकारक प्लास्टिक या फिर अन्य उत्पादों की जगह लोग पर्यावरण के अनुकूल उत्पाद चाहते हैं।
“ऐसे में हमने भी सोचा कि क्यों न हम झंडों के लिए भी लोगों को अच्छा विकल्प दे। इस झंडे को आप ‘फ्लैग कोड’ के अनुसार मिट्टी में ही दबाते हैं। लेकिन इससे उगने वाला पौधा देश के प्रति आपके आदर और सम्मान का प्रतीक बन जाता है।” उन्होंने आगे कहा।
पेपा कंपनी अपने झंडों में तुलसी के बीजों का इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने इसी साल गणतंत्र दिवस से कुछ दिन पहले प्लांटेबल झंडे लॉन्च किए थे। उस समय वे लगभग 75 हजार झंडे बेचने में कामयाब रहे थे। इस वर्ष 15 अगस्त 2019 से पहले तक वे 5 लाख झंडो की बिक्री कर चुके हैं।
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पेपा की ही तरह एक और संगठन ‘सीड पेपर इंडिया’ भी इको-फ्रेंडली और सस्टेनेबल उत्पाद बनाता और बेचता है। फाउंडर रोशन राय ने बताया कि उनके यहाँ बनने वाले झंडों के लिए वे ऑर्गेनिक रंग इस्तेमाल करते हैं। उनके झंडे 4 तरह की वैरायटी में उपलब्ध हैं। इनमें तुलसी, मोर्निंग ग्लोरी, डेज़ी वाइट और वाइल्ड फ्लावर्स शामिल हैं।
सीड पेपर इंडिया के बनाए झंडे को आप 3 से 4 दिन तक पानी में भिगो कर रखें। उसके बाद मिट्टी में बो कर हर रोज पानी दें। ऐसा करने पर 4 से 6 हफ्तों में इनसे पौधे अंकुरित हो जाएंगे।
रोशन के अनुसार हर स्वतंत्रता दिवस पर लगभग 50 टन प्लास्टिक के झंडे या तो लैंडफिल में जाते हैं या फिर जलाए जाते हैं। इसलिए हमें अब अपनी आदतों में सुधार लाना होगा। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इस्तेमाल होने वाली चीज़ों के लिए इको-फ्रेंडली विकल्प तलाशने होंगे।
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आईए, इस स्वतंत्रता दिवस पर अपने पर्यावरण को प्लास्टिक से आज़ाद करे और भारत को बेहतर बनाने की दिशा में एक कदम उठाए।