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द बेटर इंडिया की कहानी का असर! सुदाम साहू को देशभर से मिले 4000 क्विंटल देसी बीजों के ऑर्डर

Odisha Farmer Sudam Sahu's Indigenous Seed Bank

बरगढ़ (ओडिशा) जिले के काटापाली गांव के किसान सुदाम साहू, साल 2001 से देसी बीज जमा (Indigenous seed Bank) करने का काम कर रहे हैं। इसक काम को शुरू करने के पीछे उनका मकसद था कि ज्यादा से ज्यादा किसान देसी बीज का इस्तेमाल करें। वह अपने आस-पास के किसानों तक तो देसी बीज पंहुचा रहे थे, लेकिन वह इसे देश भर के किसानों तक पहुंचना चाहते थे। 

ऐसे में द बेटर इंडिया-हिंदी के एक लेख ने उनके इस लक्ष्य को थोड़ा आसान बना दिया। बड़ी ख़ुशी और गर्व के साथ सुदाम ने बताया कि द बेटर इंडिया पर उनकी कहानी पढ़कर, उन्हें देशभर से धान के करीब 4000 क्विंटल देसी बीज का ऑर्डर मिला है। ओडिशा सहित हरियाणा, बंगाल और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों से करीब 1500 किसानों ने उनके दुर्लभ बीज (Indigenous seed Bank) में रुचि दिखाई है।  

अब सुदाम, प्री-ऑर्डर पर इन किसानों के लिए बीज की खेती करने की तैयारी में लगे हैं। इससे उन्हें तो अच्छा आर्थिक फायदा  मिला ही है, साथ-साथ उनसे जुड़े 1500 किसानों को भी काम मिला है। ये सारे किसान 4000 क्विंटल देसी बीज को उगाने में उनकी मदद करेंगे।  

सुदाम साहू

इसके अलावा, सुदाम के जीवन में और भी कई तरह के बदलाव आए हैं।

उन्होंने बताया, “वैसे तो मैं पहले से ही ऑर्गेनिक खेती और देसी बीज के फायदों की वर्कशॉप लेता रहता था। लेकिन मेरी कहानी पढ़ने के बाद, अब देश के दूसरे राज्यों से भी लोग मुझे ट्रेनिंग के लिए नियमित रूप से बुलाने लगे हैं। इस साल के लिए मेरी 25 से 30 वर्कशॉप की बुकिंग अभी से हो चुकी है। सोशल मीडिया के जरिए  भी मेरे देशभर से कई किसान मित्र बन गए हैं, जिससे मैं देसी बीज के संग्रह को और बढ़ा पाऊंगा।”

हाल ही में सुदाम ने सोशल मीडिया के जरिए, अपने इलाके के कुछ किसानों की करीब 2200 किलो सब्जी बिकवाने में मदद की थी। दरअसल, इन किसानों ने नई किस्म के अलग-अलग रंग वाली कंद की सब्जियां उगाई थीं। ये सब्जियां स्वास्थ्य के लिए अच्छी होती हैं, लेकिन इन किसानों को मार्केट न मिलने के कारण वे अपनी सब्जियां 10 या 20 रुपये/किलो के कम दाम में बेचने को मजबूर थे। फिर सुदाम ने अपने सोशल मीडिया पर इसकी जानकारी दी और सब्जियां 50 रुपये के अच्छे दाम पर बिकी।  

इसके अलावा, पिछले कुछ समय से उनके खेत (Indigenous seed Bank) में देशभर के मीडिया चैनलों का तांता लगा रहता है। राज्य स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक कृषि विभाग के अधिकारी उनके संग्रह को देखने आ चुके हैं।  

सालों पहले नौकरी छोड़ शुरू की थी खेती 

49 वर्षीय सुदाम बताते हैं, “साल 2001 में मुझे सरकारी नौकरी का प्रस्ताव भी आया था। चूँकि, मेरे घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए पिता चाहते थे कि मैं नौकरी करूँ। बावजूद इसके, उनकी इच्छा के खिलाफ जाकर मैंने खेती करने का फैसला किया।”
हालांकि, सुदाम के पिता खेती में केमिकल का प्रयोग किया करते थे, लेकिन बीज इकट्ठा करने (Indigenous seed Bank) और जैविक खेती के प्रति उनके रुझान का श्रेय, वह अपने दादा को देते हैं।

 वह कहते हैं, “साल 2001 में जब मैंने खेती करने का फैसला किया, तब तक मेरे दादा नहीं रहे थे। इसलिए मैंने वर्धा (महाराष्ट्र) गाँधी आश्रम में जाकर जैविक खेती की ट्रेनिंग ली। उसी दौरान मुझे देसी बीज के फायदों के बारे में जानने का मौका मिला और मैंने अलग-अलग जगहों से इसके संग्रह का काम शुरू किया।”

उन्होंने वापस घर आकर आस-पास के किसानों को जैविक खेती सिखाना शुरू किया। वह अलग-अलग गाँवों में भी जाया करते थे और जहां से भी देसी बीज मिलते, वह लेकर आते थे। इसके अलावा वह छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, बंगाल जैसे राज्यों में भी बीज की तलाश में जाते थे। इस तरह साल 2012 तक उनके पास 900 किस्मों के देसी धान के बीज जमा (Indigenous seed Bank) हो गए थे। जिसके बाद, उन्होंने दालों और सब्जियों के बीज के बारे में भी जानना शुरू किया। 

उन्होंने अपने घर की पहली मंजिल पर ही, अपना बीज बैंक (Indigenous seed Bank) बनाया है। जहां, लगभग 800 वर्ग फुट के क्षेत्र की दीवारों पर अलग-अलग गमलों में बीजों को लटकाकर रखा गया है। 

वह चाहते थे कि उनका यह दुर्लभ संग्रह उन तक सिमित न रहकर, देशभर के किसानों तक पहुंचे और अब यह सच में मुमकिन हो पा रहा है।  

पिछले साल उनके प्रयासों को देखते हुए, उन्हें ‘जगजीवन राम इनोवेटिव किसान’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। 

हमें उम्मीद है कि सुदाम साहू की कहानी की तरह ही, आप सब हमारी हर प्रेरक कहानी को दुनियाभर तक पहुंचकर एक नए भारत की नींव रखेंगे!
इस बदलाव के लिए द बेटर इंडिया की पूरी टीम की ओर से आप सभी पाठकों का कोटि कोटि धन्यवाद!   

संपादन- अर्चना दुबे

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