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कारपेंटर से लेकर प्लम्बर तक! अपनी आर्थिक आज़ादी के लिए इन महिलाओं ने तोड़े सारे बंधन

financial independent woman (3)
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हमारा देश जब आज़ादी का 75वां महोत्सव मना रहा है, ऐसे में उस बदलाव के बारे में बात करना ज़रूरी हो जाता है, जो सालों बाद हमारे समाज में आ पाया है और ये बदलाव लेकर आई हैं देश की महिलाएं। आज हम बात कर रहे हैं उन महिलाओं की, जिन्होंने अपनी आर्थिक आज़ादी के लिए सालों पुरानी सोच की परवाह नहीं की और अपने आप को आत्मनिर्भर बनाया।

उन्होंने उन कामों को चुना, जिन्हें कुछ सालों तक सिर्फ पुरुषों के काम समझे जाते थे। ज़रा सोचिए, क्या आपके घर का सोफा या आलमारी बनाने के लिए कभी बढ़ई दीदी आती हैं या घर की वॉशिंग मशीन बनाने आप किसी महिला के पास जाते हैं। लेकिन अब ये सब हो रहा है और इसे करने वाली देश की आम महिलाएं हैं।  

देश की ऐसी ही पांच महिलाओं की कहानियां हम लेकर आए हैं, जो बड़े ही सामान्य परिवार और परिवेश में रहते हुए भी असामान्य काम कर रही हैं। 

1. प्रीति हिंगे 

प्रीति हिंगे

नागपुर की रहनेवाली प्रीति हिंगे, पिछले आठ सालों से शहर में ‘जय श्री गणेश फर्नीचर’ नाम से अपना बिज़नेस चला रही हैं। अपने पिता से लकड़ी का काम सीखने के बाद, उन्हें हमेशा से इस काम में रुचि थी। लेकिन उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि एक दिन वह इस काम के कारण बिज़नेसवुमन बन जाएंगी। 

शादी के बाद, अपने पति का साथ देने के लिए उन्होंने एक छोटी सी दुकान में फर्नीचर बनाने का काम शुरू किया। वह अपने शहर की पहली महिला कारपेंटर हैं और अपनी तीन बेटियों का ख्याल रखते हुए वह इस बिज़नेस को भी बखूबी चला रही हैं।  

जल्द ही वह अपना बड़ा शो रूम भी खोलने वाली हैं। अपनी आर्थिक आज़ादी से वह इतनी खुश और सफल हैं कि वह अपनी तीनों बेटियों को अपने दम पर पढ़ा रही हैं। सालों से जिस काम को सिर्फ मर्दों का काम समझकर, महिलाएं आगे नहीं आ रही थीं, उस काम को प्रीति जिस हिम्मत और लगन के साथ करती हैं, उससे वह कई और महिलाओं को रोज़गार की एक नई राह भी दिखा रही हैं।  

2. शताब्दी साहू ने खुद कमाई अपनी आर्थिक आज़ादी

शताब्दी साहू

सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद, भुवनेश्वर की शताब्दी साहू ने नौकरी करने के बजाय, एक ऐसे काम को चुना, जिसे महिलाओं का काम नहीं समझा जाता। लेकिन भीड़ से हटकर उनके काम ने ही आज उन्हें ओडिशा की एक मात्र महिला प्लंबर ट्रेनर का ख़िताब दिलाया है। 

आमतौर पर घर का एक छोटा सा नल भी खराब हो जाता है, तो हम महीनों प्लंबर की राह देखते हैं। लेकिन भुवनेश्वर की शताब्दी साहू अपने घर के साथ पड़ोसियों के घर में नल या लीकेज जैसी हर परेशानी चुटकियों में सुलझा लेती हैं। 

27 वर्षीया शताब्दी, खुद तो प्लम्बिंग का काम बखूबी जानती ही हैं, साथ ही वह अब तक वह 1000 लोगों को प्लंबिंग की ट्रेनिंग भी दे चुकी हैं। हालांकि आज तक उनके पास ट्रेनिंग के लिए एक भी महिला नहीं आई है, लेकिन वह चाहती हैं कि महिलाएं इस काम को अपनाएं।  

उन्हें भारत सरकार के कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के हाथों ‘ओडिशा की एक मात्र महिला प्लंबर ट्रेनर’ का अवॉर्ड भी मिला है और ये सब मुमकिन हो सका, क्योंकि उन्होंने अपनी आर्थिक आज़ादी के लिए सिर्फ अपने दिल की सुनी। 

3. सीता देवी 

सीता देवी

पिछले 15 सालों से गया (बिहार) की सीता देवी एक इलेक्ट्रीशियन के तौर पर काम कर रही हैं और बल्ब से लेकर माइक्रोवेव तक सब कुछ ठीक कर सकती हैं। उन्होंने एक समय पर मजबूरी में इस काम की शुरुआत की थी। लेकिन आज वह इस काम को ख़ुशी से करती हैं। क्योंकि इसी काम ने उन्हें मुश्किल समय में घर चलाने में मदद की और एक नई पहचान बनाने में भी।

सीता देवी स्कूल कभी नहीं गईं, लेकिन फिर भी पूरा काम बड़ी आसानी से कर लेती हैं। दरअसल, उनके पति जितेंद्र मिस्त्री, इलेक्ट्रीशियन हैं। लेकिन स्वास्थ्य संबधी दिक्कतों के कारण वह काम नहीं कर पा रहे थे, जिसके बाद सीता ने घर की ज़िम्मेदारी उठाई और अपने बेटों को आगे चलकर उन्होंने ही इलेक्ट्रिक उपकरण बनाना सिखाया। 

सीता की कहानी साबित करती है कि कोई भी काम महिला या पुरुष का नहीं होता। 

4. आर्थिक आज़ादी के साथ जीवन जी रहीं संतोषीनी मिश्रा

संबलपुर की संतोषीनी मिश्रा 74 की उम्र में भी शहर की कई शादियों और अन्य समारोहों में केटरिंग सर्विस का काम करती हैं। वह अपनी केटरिंग एजेंसी के माध्यम से कइयों को रोज़गार भी दे रही हैं।

संतोषिनी मिश्रा

आज से करीब 40 साल पहले, संबलपुर (ओडिशा) की संतोषिनी मिश्रा अपने परिवार का खर्च और ज़िम्मेदारियां संभालने के लिए दूसरों के घर में खाना बनाया करती थीं। 

उस समय घर की चार दीवारी से निकलकर काम करना एक बड़ी बात थी। लेकिन घर की आर्थिक स्थिति से परेशान होकर, उन्हें मजबूरी में काम करने के लिए बाहर निकलना पड़ा। 

वह कहती हैं, “सालों पहले जब लोगों के घरों में खाना बनाने का काम छोड़कर, केटरिंग का काम शुरू किया था, तब शहर में ज्यादातर केटरिंग बिज़नेस, पुरुष ही चलाते थे। मुझे परिवार और समाज से कई तरह के विरोध का सामना भी करना पड़ा था। एक समय में मुझे अपने बेटे के लिए लड़की ढूंढने में भी दिक्कत हो रही थी।”

लेकिन उन्होंने हर मुसीबत से लड़कर अपने काम को करना जारी रखा और आज भी वह इस काम को ख़ुशी के साथ करती हैं और पूरी तरह से आत्मनिर्भर हैं।  

5. दीपिका लकड़ा  

कुछ समय पहले तक गार्डनिंग को मात्र एक शौक़ ही समझा जाता था। कोई इसे एक बिज़नेस विकल्प के तौर पर नहीं सोचता था। पौधों की नर्सरी या पौधों की देखभाल के काम के लिए भी माली ही हुआ करते थे। लेकिन आज कई महिलाएं घर से नर्सरी बिज़नेस चला रही हैं।  

दीपिका लकड़ा

ऐसी ही एक युवा हैं झारखण्ड की दीपिका लकड़ा भी। रांची में सरकारी क्वार्टर में रहनेवाली दीपिका लकड़ा को गार्डनिंग से खास लगाव है। वह कई तरह के सजावटी पौधे उगा रही हैं और साथ ही एक नर्सरी भी चला रही हैं। 

दीपिका, साल 2017 से गार्डनिंग का यूट्यूब चैनल भी चला रही हैं। लेकिन उस समय कॉलेज और पढ़ाई के कारण वह ज्यादा वीडियोज़ नहीं बना पाती थीं। पिछले साल लॉकडाउन में उन्होंने ज्यादा वीडियोज़ बनाकर अपलोड करना शुरू किया, जिसकी वजह से उनके सब्सक्राइबर्स की संख्या भी बढ़ने लगी। अब वह इसके ज़रिए कुछ पैसे भी कमा लेती हैं, साथ ही कुछ दुर्लभ किस्मों के पौधे तैयार करके वह बेच भी रही हैं।  

आत्मनिर्भर जीवन जी रहीं इन सारी महिलाओं ने साबित किया है कि उनके लिए आर्थिक आज़ादी पाना सिर्फ पैसे कमाना नहीं, बल्कि उस काम को करना है, जिसे करने में उन्हें मज़ा आता हो और जिसे करके वह अपनी अलग पहचान बना सकें। 

हर सामाजिक बेड़ियों और रूढ़ियों को तोड़ आर्थिक रूप से आज़ाद जीवन जी रहीं और इन सभी महिलाओं को द बेटर इंडिया का सलाम।   

संपादनः अर्चना दुबे

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