स्टील के चमकते बर्तनों से भरे किचन में, कांच के बर्तनों के बस एक ही सेट को देखते-देखते मैं बड़ी हुई हूं। जिसे अक्सर मेहमानों के आने पर ही निकाला जाता था। उन्हें हाथ लगाने की किसी को इजाजत नहीं होती थी। टेबल पर लगाने और उठाने की जिम्मेदारी भी माँ की ही थी। जबकि स्टील के बर्तनों को लगाना मेरा काम था। वीआईपी ट्रीटमेंट वाले उस ब्रांड का नाम आज भी मेरे जहन में बसा हुआ है- बोरोसिल।
चार दशक पुराने इस ब्रांड को आज भी लोग उतना ही पसंद करते हैं। लेकिन इसका सफर हमेशा इतना आसान नहीं रहा। उतार-चढ़ावों से भरे उनके इस लंबे सफर की कहानी को जानने के लिए द बेटर इंडिया ने बोरोसिल ग्लास वर्क्स लिमिटेड के प्रबंध निदेशक श्रीवर खेरुका से बातचीत की।
कैसे शुरू हुआ सफर?
श्रीवर बताते हैं, “50 के दशक के अंत में, मेरे परदादा कलकत्ता में (अब कोलकाता) जूट के सामानों के ब्रोकर (आढ़ती) थे और बाद में, मेरे दादाजी बी एल खेरुका भी उनके साथ जुड़ गए। दोनों ने बहुत मेहनत की और एक सफल बिज़नेस खड़ा कर, निर्यात करना भी शुरू कर दिया था। लेकिन जूट एक्सचेंज बंद होने से कारोबार लड़खड़ा गया। मेरे दादाजी अपने कुछ निर्णयों से निराश थे। उन्हें कुछ बेहतर करने की उम्मीद थी। यह एक ऐसा झटका था, जिससे सीख लेकर, वे दूसरे बिज़नेस की तरफ बढ़े, ताकि इस स्थिति से निकल सकें।”
खेरुका अब कुछ नया करना चाहते थे। इसके लिए जर्मनी, जापान के साथ-साथ, दुनिया के कई देशों की यात्रा की। श्रीवर बताते हैं, “काफी रिसर्च करने के बाद उनके पास बिज़नेस के लिए दो आइडियाज़ थे। वह, या तो कागज का बिज़नेस करते या फिर कांच का। उन्होंने दोनों के लाइसेंस के लिए आवेदन किया। उन्हें ग्लास का बिज़नेस शुरू करने की अनुमति मिल गई। इस तरह से विंडो ग्लास लिमिटेड अस्तित्व में आया।”
आज जिस कंपनी को बोरोसिल के नाम से जानते हैं, दरअसल वह पहले विंडो ग्लास लिमिटेड के नाम से जानी जाती थी। साल 1962 में, बिज़नेस की शुरुआत की गई। कंपनी ने औद्योगिक और साइंटिफिक ग्लास बनाने और बेचने के लिए अमेरिकी कंपनी कॉर्निंग ग्लास वर्क्स के साथ संयुक्त उद्यम में प्रवेश किया। हालांकि कांच के व्यवसाय में जाने का फैसला तो ले लिया गया, लेकिन इसमें काफी संघर्ष था। वह इससे पूरी तरह वाकिफ नहीं थे।
बोरोसिल नाम कैसे पड़ा?
श्रीवर बताते हैं, “शुरु के 12 साल तक तो कंपनी घाटे में चलती रही। बावजूद इसके खेरुका बिज़नेस में बने रहे।” वह आगे कहते हैं, “दादाजी को पक्का विश्वास था कि स्थिति में सुधार होगा और बिज़नेस ग्रो करेगा। वह अपने इस विश्वास के साथ आगे बढ़ते रहे।”
बोरोसिलिकेट एक ऐसा कांच है, जो अधिक तापमान में इस्तेमाल करने पर भी टूटता नहीं है। इसकी यही खासियत इसे लैब्स और उद्योगों में इस्तेमाल के लिए बिल्कुल परफेक्ट बनाती है। यही बोरोसिलिकेट, कंपनी का प्रमुख ब्रांड बन गया था।
जल्द ही बोरोसिलिकेट से, कंपनी को नए नाम की प्रेरणा मिली और इस ब्रांड को एक नया नाम दिया गया- बोरोसिल। लेकिन आज जिस तरह का यह किचन और होम ब्रांड है, उस समय ऐसा नहीं था। कंपनी ज्यादातर साइंटिफिक उत्पाद का निर्माण कर रही थी। कुछ ही कंज्युमर प्रोडक्ट्स थे। साल 1988 में, खरुका ने जेवी से कॉर्निंग के शेयर खरीद लिए और कंपनी का नियंत्रण पूरी तरह से अपने हाथ में ले लिया। इसके बाद शुरू हुआ उनका अपना खुद का सफर।
हालांकि, आज यह काफी जानी-मानी कंपनी है और करोड़ों का इसका टर्नओवर भी है। लेकिन यहां तक कंपनी को लेकर आना आसान नहीं था। कंपनी के साथ तीसरी पीढ़ी के जुड़ने के बाद से ही, बिजनेस आगे बढ़ने लगा था। उससे पहले तो परिस्थितियां काफी मुश्किलों भरी थीं।
विदेश जाकर करना चाहते थे पढ़ाई
श्रीवर के पिता प्रदीप खेरुका जब बिज़नेस से जुड़े थे, तो उनकी उम्र महज 18 साल थी। लेकिन श्रीवर बिज़नेस में आने से पहले कुछ समय चाहते थे। वह बताते हैं, “मुझे आगे क्या करना है, यह निर्णय लेने से पहले मैं विदेश जाकर पढ़ाई करना चाहता था।” श्रीवर ने तीन साल तक विदेश में पढ़ाई की। वह, वहां कुछ समय और रुककर काम करना और अनुभव लेना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपने परिवार को मना लिया था।
वह कहते हैं, “मैने पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद, छुट्टियों में Goldman Sachs में नौकरी की और उसके बाद बोस्टन में एक काउंसलिंग फर्म से जुड़ गया। नौकरी करते हुए मुझे तकरीबन डेढ़ साल हो गए थे। तब 2006 में, मेरे पास पिताजी का फ़ोन आया। उन्होंने मुझे याद दिलाया कि भारत में एक बिज़नेस मेरा इंतजार कर रहा है।”
विरासत में जरूर मिला लेकिन संघर्ष बहुत था
वापस आने के बाद 2006 में, श्रीवर ने बिज़नेस ज्वॉइन कर लिया। उन्होंने कहा कि ऐसा लगा जैसे किसी ने उन्हें एक गहरी खाई में धकेल दिया हो। श्रीवर ने बताया, “यह समय हमारे बिज़नेस के लिए काफी मुश्किल भरा था और परिस्थितियों से लड़ने और सीखने के लिए मुझे इसके हवाले कर दिया गया। आज पीछे मुड़कर देखता हूं, तो अच्छा लगता है। लेकिन उस समय इतनी समझ नहीं थी। इस सफर के पांच साल तो अपने ऊपर विश्वास होने न होने में ही गुजर गए।” कई मौकों पर तो श्रीवर अपने आप से पूछने लगे थे कि वापस आकर बिज़नेस से जुड़ने का उनका निर्णय गलत तो नहीं था।
अपनी चुनौतियों के बारे में बात करते हुए श्रीवर कहते हैं, “कंपनी की लागत काफी बढ़ गई थी, जिसका बिल्कुल भी अनुमान नहीं था और मार्केट में कॉम्पिटिशन भी अचानक से बढ़ गया। मुंबई में अपने प्लांट के विस्तार को लेकर हम स्थानीय और यूनियन से जुड़े कई मुद्दों से जूझ रहे थे। यहां तक कि स्थानीय अधिकारियों से मंजूरी लेना भी एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा था। हमारे सामने एक साथ इतनी सारी परेशानियां आ गईं, जिससे टीम का मनोबल गिरने लगा और साथ ही इसने कंपनी के कैश फ्लो को भी प्रभावित किया।”
श्रीवर ने बताया, “एक समय ऐसा भी आया, जब कर्मचारियों को सैलरी देना तक मुश्किल हो गया। इन परेशानियों से निकलने में मेरी रातों की नींद हराम हो गई थी। मैं अमेरिका से अच्छी खासी नौकरी छोड़कर आया था, मुझे इस पर गर्व भी था। मैं असफल नहीं होना चाहता था और अपने बिजनेस में तो, बिल्कुल भी नहीं।” लेकिन इन सभी चुनौतियों के बावजूद, जो एक चीज़ कंपनी के साथ डटकर खड़ी रही, वो थी बोरोसिल की ब्रांड वैल्यू।
ब्रांड, जो लोगों के दिल-ओ-दिमाग पर छाया रहा
उन्होंने बताया, “हर किसी को हमारा ब्रांड पसंद था और हमारे हर प्रोडक्ट से लगाव था। उनसे बातचीत के बाद मुझे लगा कि चीजें बदल सकती हैं।” ब्रांड लोगों के दिमाग में बसा हुआ है, यह जानकर श्रीवर को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली।
ब्रांड की रिकॉल वैल्यू को भुनाने के लिए कंपनी, स्पेशलाइज्ड ग्लास के साथ कांच के अलग-अलग तरह के कंज्युमर प्रोडक्ट लेकर आई। ग्लासवेयर बनाने से लेकर, वह अब सर्विंग ग्लासवेयर के कारोबार की शुरुआत कर चुके थे। श्रीवर ने बताया, “आज हम कप, प्लेट कटोरी और यहां तक कि टोस्टर और मिक्सर ग्राइंडर जैसे किचन एप्लाइंसेस भी बना रहे हैं। बिज़नेस के दूसरे यानी साइन्टिफिक हिस्से में, हम दवाइयों की शीशियां और लैब्स में इस्तेमाल होने वाले कई तरह के उपकरण भी बना रहे हैं।”
आज बोरोसिल की दो कंपनियां हैं, बोरोसिल लिमिटेड और बोरोसिल रिन्यूएबल्स लिमिटेड। पिछले साल जहां बोरोसिल लिमिटेड ने 600 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया। वहीं, बोरोसिल रिन्यूएबल्स का टर्नओवर 500 करोड़ रुपये का रहा। दोनों कम्पनियों में कुल 1500 कर्मचारी काम करते हैं और कंज्यूमर डिपार्टमेंट में 1000 SKU’s (प्रोडक्ट्स कोड) हैं।
आज भी ग्राहकों के फीडबैक पर देते हैं ध्यान
सफलता के बावजूद, श्रीवर ने ब्रांड की ताकत और ग्राहकों की प्रतिक्रिया को कभी नज़रअन्दाज़ नहीं किया। वह कहते हैं, “ग्राहकों की शिकायतों के आंकलन के लिए हमारे पास एक मजबूत प्रक्रिया है। मैं इन सब पर नज़र रखता हूं और जल्द से जल्द इन्हें निपटाने की कोशिश करता हूं। देश के किसी भी कोने से शिकायत क्यों न आई हो, हमारा टारगेट तीन दिनों में ग्राहकों की शिकायतों को दूर करने का है। इसके साथ ही हमारी कोशिश ऐसे सुधारात्मक और निवारक कदम उठाने की होती है, जिससे ऐसी शिकायतें भविष्य में फिर से न आएं।
श्रीवर कहते हैं, कई शहरों में घूमकर, वह ग्राहकों से मिलकर उनसे बातचीत करना चाहते थे। वह बताते हैं, “महीने के एक या दो दिन इसके लिए रखे गए थे। इससे यह समझने में मदद मिलती कि ग्राहक हमसे और क्या चाहता है। दुर्भाग्यवश कोविड महामारी के चलते ऐसा नहीं हो पाया। कोई भी फिजिकल और ग्राउंड मीटिंग नहीं हो पाई।”
ग्राहकों से मिले फीडबैक के बारे में वह बताते हैं, “मैने सेना के बहुत से परिवारों को इस ब्रांड से जुड़ी यादों के बारे में बात करते हुए सुना है। मुझे सेना में कार्यरत लोगों के कुछ बच्चों ने बताया कि कैसे वो अपने पापा को लाल डिब्बे के पैक से निकाल कर बोरोसिल के गिलास में पानी दिया करते थे और पानी पिलाने के बाद गिलास को धोकर वापस उसे डिब्बे में रख देते थे।”
ब्रांड भारतीय है, ग्राहकों को नहीं होता विश्वास
श्रीवर बताते हैं कि जब वह ग्राहकों से कहते हैं कि यह एक भारतीय ब्रांड है, तो वे सुनकर हैरान रह जाते थे। उनके अनुसार, “इसकी पैकेजिंग और क्वालिटी ने हमेशा इसे एक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड होने का एहसास करवाया है।” सिर्फ ग्राहक ही नहीं बहुत सारे कर्मचारी भी कंपनी से काफी लंबे समय से जुड़े रहे हैं। कंपनी के पास ऐसी कई कहानियां हैं।
श्रीवर कहते हैं, “मैं एक ऐसे कर्मचारी को जानता हूं, जो कोलकाता प्लांट में सफाई का काम करता था और उसके बेटे ने कर्मचारी के तौर पर फैक्टरी ज्वॉइन की थी। आज उनका पड़पोता प्लांट में इंजीनियर है। ऐसे बहुत से परिवार हैं, जो कंपनी के साथ लंबे समय से जुड़े हैं और कंपनी के साथ आगे बढ़ रहे हैं।”
जब डाइनिंग टेबल ही बन जाता है बोर्डरूम
श्रीवर ने कहा, “परिवार का हर शख्स बिज़नेस के साथ कितना जुड़ा हुआ है, इसका अंदाजा आप हमारी डाइनिंग टेबल को देखकर लगा सकते हैं। जहां अक्सर बिज़नेस से जुड़ी बातें होती रहती हैं।” वह हंसते हुए कहते हैं, “काम और घर में कोई अंतर नहीं है। मुझे नहीं पता कि ऐसा कैसे हो पाता है, लेकिन मैं ऐसे ही माहौल में बड़ा हुआ हूं और ये चीजें मुझे परेशान नहीं करतीं। हां, लेकिन मेरी दादी और मां, जरूर समय-समय पर अपना गुस्सा दिखा देती थीं।”
बिज़नेस से हम सभी को काफी लगाव है, लेकिन हमने इसे कभी बोझ नहीं माना। आधी रात को कुछ ऐसे भी मामले सामने आए, जिन्हें हम सभी ने सुबह तीन बजे बैठकर भी सुलझाने की कोशिश की है। श्रीवर के अनुसार, बिज़नेस के साथ उनका अनुभव हमेशा संतोषप्रद रहा है।
एक अनुभवी बिजनेसमैन होने के नाते श्रीवर कहते हैं, पैसा कमाना तो एक कारण है ही, लेकिन बिजनेस क्यों शुरु करना चाहते हैं, इस बात को जानें। वह कहते हैं, “उस कारण का पता होना और उसे दिमाग में बैठाए रखना बेहद जरूरी होता है, जिसके लिए आपने बिज़नेस शुरू किया था। उस पर ईमानदारी से टिके रहेगें, तो आप मुश्किल से मुश्किल दौर से भी बाहर निकल पाएंगे।”
मूल लेखः विद्या राजा
संपादनः अर्चना दुबे
यह भी पढ़ेंः NTPC Recruitment 2021: चिकित्सा व फाइनेंस प्रोफेशनल के लिए रिक्तियां, 2 लाख तक होगा वेतन
यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।